उपनिषद संदेश
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Sanjay KumarDate
18-Oct-2014Category
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जब विद�यार�थी ग�र�क�ल से अपनी शिक�षा पूरी करके जाता है तो जाते समय ग�र� यह उपदेश देता है
वेदमनूच�याचार�योऽन�तेवासिनमन�श
मातृदेवो à¤à¤µà¥¤ पितृदेवो à¤à¤µà¥¤ आचारà¥?यà¥?यदेवोà¤à¤µà¥¤ अतिथिदेवो à¤à¤µà¥¤ यानà¥?यनवदà¥?यानि करà¥?माणि तानि सेवितवà¥?यानि नो इतराणि। यानà¥?यसà¥?माकà¤?à¥? सà¥?चरितानि तानि तà¥?वयोपासà¥?यानि नोइतराणि।।२।।
ये के चासà¥?मचà¥?छà¥?रेयांसो बà¥?राहà¥?मणासà¥?तेषां तà¥?वयासनेनपà¥?रशà¥?वसितवà¥?यमà¥?। शà¥?रदà¥?धया देयमà¥?। अशà¥?रदà¥?धया देयमà¥?। शà¥?रिया देयमà¥?। हà¥?रिया देयमà¥?।à¤à¤¿à¤¯à¤¾ देयमà¥?। संविदा देयमà¥?।।३।।
अथ यदि ते कर�मविचिकित�सा वावृत�तविचिकित�सा वा स�यात� ये तत�र ब�राह�मणाः समदिर�शनो य�क�ता अय�क�ता अलूक�षाधर�मकामाः स�य�र�यथा ते तत�र वर�त�तेरन�। तथा तत�र वर�त�तेथाः।।४।।
�ष आदेश �ष उपदेश �षा वेदोपनिषत�। �तदन�शासनम�।�वम�पासितव�यम�। �वम� चैतद�पास�यम�।।५।। तैत�तिरीय०।।
आचारà¥?यà¥?य अनà¥?तेवासी अरà¥?थातà¥? अपने शिषà¥?य और शिषà¥?याओं को इस पà¥?रकार उपदेश करे कि तू सदा सतà¥?य बोल, धरà¥?माचार कर, पà¥?रमादरहित होके पà¥? पà¥?ा, पूरà¥?ण बà¥?रहà¥?मचरà¥?यà¥?य से समसà¥?त विदà¥?याओं को गà¥?रहण कर औरआचारà¥?यà¥?य के लिये पà¥?रिय धन देकर विवाह करके सनà¥?तानोतà¥?पतà¥?ति कर । पà¥?रमाद से सतà¥?य कोकà¤à¥€ मत छोड़, पà¥?रमाद से धरà¥?म का तà¥?याग मत कर, पà¥?रमाद से आरोगà¥?य और चतà¥?राई को मत छोड़, पà¥?रमाद से पà¥?ने और पà¥?ाने को कà¤à¥€ मत छोड़। देव विदà¥?वानà¥? और माता पितादि कीसेवा में पà¥?रमाद मत कर। जैसे विदà¥?वानà¥? का सतà¥?कार करे उसी पà¥?रकार माता, पिता, आचारà¥?यà¥?य और अतिथि की सेवा सदा किया कर।जो अनिनà¥?दित धरà¥?मयà¥?कà¥?त करà¥?म हैं उन सतà¥?यà¤à¤¾à¤·à¤£à¤¾à¤¦à¤¿ को किया कर, उन से à¤à¤¿à¤¨à¥?न मिथà¥?याà¤à¤¾à¤·à¤£à¤¾à¤¦à¤¿ कà¤à¥€ मत कर। जो हमारे सà¥?चरितà¥?रअरà¥?थातà¥? धरà¥?मयà¥?कà¥?त करà¥?म हों उनको गà¥?रहण कर और जो हमारे पापाचारण हों उन को कà¤à¥€ मतकर।
जो कोई हमारे मधà¥?य में उतà¥?तम विदà¥?वानà¥? धरà¥?मातà¥?मा बà¥?राहà¥?मण हैं उनà¥?हीं के समीपबैठऔर उनà¥?हीं का विशà¥?वास किया कर, शà¥?रदà¥?धा से देना, अशà¥?रदà¥?धा से देना, शोà¤à¤¾ से देना, लजà¥?जा से देना, à¤à¤¯ से देना और पà¥?रतिजà¥?ञा से à¤à¥€ देनाचाहिà¤?।
जब कà¤à¥€ तà¥?à¤? को करà¥?म वा शील तथा उपासना जà¥?ञान में किसी पà¥?रकार का संशयउतà¥?पनà¥?न हो तो जो वे समदरà¥?शी पकà¥?षपातरहित योगी अयोगी आरà¥?दà¥?रचितà¥?त धरà¥?म की कामनाकरने वाले धरà¥?मातà¥?मा जन हों जैसे वे धरà¥?ममारà¥?ग में वरà¥?तें वैसे तू à¤à¥€ उसमेंवरà¥?तà¥?ता कर।
यही आदेश आज�ञा, यही उपदेश, यही वेद की उपनिषत� और यही शिक�षा है। इसी प�रकार वर�त�तना और अपना चाल चलनस�धारना चाहि�।
विचार करे- आचारà¥?य कह रहा है यदि मेरे à¤à¥€à¤¤à¤° कोई कमी हो तो उसको ना अपनाना। जो मेरे à¤à¥€à¤¤à¤° अचà¥?छाई है उसी को अपनाना।
परंत� आजकल ग�र� जी तो कहते है कि जो ग�र� कहे जो करे वह सब ठीक, उस पर बिलक�ल विचार ना करें।
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