जब विद�यार�थी ग�र�क�ल से अपनी शिक�षा पूरी करके जाता है तो जाते समय ग�र� यह उपदेश देता है

वेदमनूच�याचार�योऽन�तेवासिनमन�शास�ति।सत�यं वद। धर�मं चर। स�वाध�यायान�मा प�रमदः। आचार�य�याय प�रियं धनमाहृत�यप�रजातन�त�ं मा व�यवच�छेत�सीः। सत�यान�न प�रमदितव�यम�। धर�मान�न प�रमदितव�यम�।क�शलान�न प�रमदितव�यम�। स�वाध�यायप�रवचनाभ�यां न प�रमदितव�यम�।देवपितृकार�य�याभ�यांन प�रमदितव�यम�।।१।।

 

 

मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचारà¥?यà¥?यदेवोभव। अतिथिदेवो भव। यानà¥?यनवदà¥?यानि करà¥?माणि तानि सेवितवà¥?यानि नो इतराणि। à¤¯à¤¾à¤¨à¥?यसà¥?माकà¤?à¥? सà¥?चरितानि तानि तà¥?वयोपासà¥?यानि नोइतराणि।।२।।

 

 

ये के à¤šà¤¾à¤¸à¥?मचà¥?छà¥?रेयांसो बà¥?राहà¥?मणासà¥?तेषां तà¥?वयासनेनपà¥?रशà¥?वसितवà¥?यमà¥?। शà¥?रदà¥?धया देयमà¥?। अशà¥?रदà¥?धया देयमà¥?। शà¥?रिया देयमà¥?। हà¥?रिया देयमà¥?।भिया देयमà¥?। संविदा देयमà¥?।।३।।

 

 

अथ यदि ते कर�मविचिकित�सा वावृत�तविचिकित�सा वा स�यात� ये तत�र ब�राह�मणाः समदिर�शनो य�क�ता अय�क�ता अलूक�षाधर�मकामाः स�य�र�यथा ते तत�र वर�त�तेरन�। तथा तत�र वर�त�तेथाः।।४।।

 

 

à¤?ष आदेश à¤?ष उपदेश à¤?षा वेदोपनिषतà¥?।  à¤?तदनà¥?शासनमà¥?।à¤?वमà¥?पासितवà¥?यमà¥?। à¤?वमà¥? चैतदà¥?पासà¥?यमà¥?।।५।। à¤¤à¥ˆà¤¤à¥?तिरीय०।।
 

 

आचारà¥?यà¥?य अनà¥?तेवासी अरà¥?थातà¥? अपने शिषà¥?य और शिषà¥?याओं को इस पà¥?रकार उपदेश करे कि तू सदा सतà¥?य बोल, धरà¥?माचार कर, पà¥?रमादरहित होके पà¥? पà¥?ा, पूरà¥?ण बà¥?रहà¥?मचरà¥?यà¥?य से समसà¥?त विदà¥?याओं को गà¥?रहण कर औरआचारà¥?यà¥?य के लिये पà¥?रिय धन देकर विवाह करके सनà¥?तानोतà¥?पतà¥?ति कर । पà¥?रमाद से सतà¥?य कोकभी मत छोड़, पà¥?रमाद से धरà¥?म का तà¥?याग मत कर, पà¥?रमाद से आरोगà¥?य और चतà¥?राई को मत छोड़, पà¥?रमाद से पà¥?ने और पà¥?ाने को कभी मत छोड़। देव विदà¥?वानà¥? और माता पितादि कीसेवा में पà¥?रमाद मत कर। जैसे विदà¥?वानà¥? का सतà¥?कार करे उसी पà¥?रकार माता, पिता, आचारà¥?यà¥?य और अतिथि की सेवा सदा किया कर।जो अनिनà¥?दित धरà¥?मयà¥?कà¥?त करà¥?म हैं उन सतà¥?यभाषणादि को किया कर, उन से भिनà¥?न मिथà¥?याभाषणादि कभी मत कर। à¤œà¥‹ हमारे सà¥?चरितà¥?रअरà¥?थातà¥? धरà¥?मयà¥?कà¥?त करà¥?म हों उनको गà¥?रहण कर और जो हमारे पापाचारण हों उन को कभी मतकर।

जो कोई हमारे मध�य में उत�तम विद�वान� धर�मात�मा ब�राह�मण हैं उन�हीं के समीपबैठ और उन�हीं का विश�वास किया कर, श�रद�धा से देना, अश�रद�धा से देना, शोभा से देना, लज�जा से देना, भय से देना और प�रतिज�ञा से भी देनाचाहि�।

 

जब कभी त�� को कर�म वा शील तथा उपासना ज�ञान में किसी प�रकार का संशयउत�पन�न हो तो जो वे समदर�शी पक�षपातरहित योगी अयोगी आर�द�रचित�त धर�म की कामनाकरने वाले धर�मात�मा जन हों जैसे वे धर�ममार�ग में वर�तें वैसे तू भी उसमेंवर�त�ता कर।

 

यही आदेश आज�ञा, यही उपदेश, यही वेद की उपनिषत� और यही शिक�षा है। इसी प�रकार वर�त�तना और अपना चाल चलनस�धारना चाहि�।

 

विचार करे- आचारà¥?य कह रहा है यदि मेरे भीतर कोई कमी हो तो उसको ना अपनाना। à¤œà¥‹ मेरे भीतर अचà¥?छाई है उसी को अपनाना। 

 

परंतà¥? आजकल गà¥?रà¥? जी तो कहते है कि जो गà¥?रà¥? कहे जो करे वह सब ठीक, उस पर बिलकà¥?ल विचार ना करें। 

 

ALL COMMENTS (0)