भले ही तेजी से गुजरते समय ने हाथों में आईफोन दिए हो लेकिन उन्ही हाथों से रिश्ते छीन लिए है इस भूमंडलीकरण और उपभोक्तावाद का सबसे ज्यादा असर इंसानी रिश्तों पर पड़ा है. इन्हीं बदले हुए हालात का सबसे बड़ा दंश झेल रहे हैं हमारे बुजुर्ग. उन्हें आज के इस आधुनिक समाज में कई तरह की परेशानियों को झेलना पड़ रहा है. दिल्ली के भजनपुरा के इलाके की रहने वाली सत्यवती की उम्र भी अब उनपर हावी होने लगी है और उनका शरीर कमजोर होता चला जा रहा है. सत्यवती अपनी पहचान गुप्त रखती है उसे डर है कि कहीं उनके चार बेटे उनपर हाथ ना उठा दें. जिल्लत की जिन्दगी से तंग आकर सत्यवती ने एक वृद्धाश्रम में पनाह ली है. ऐसी ना जाने कितने बुजुर्ग आज बसेरे ढूंढ रहे बसेरे भावनाओं के अपनत्व के. बड़े शहरों की अगर बात की जाए तो सर्वेक्षण बताते है कि बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार के मामलों में दिल्ली के हालात बेहतर नहीं हैं.

 

ऐसी ही एक अन्य महिला बुजुर्ग कांता की उम्र अब 75 साल के लगभग होने वाली है. उनकी आँखें कमजोर हो गईं हैं और शरीर भी. ऐसे में जब उन्हें घर पर ही देखभाल की जरूरत है, तो उन्हें जुल्म का शिकार होना पड़ रहा है.  यह जुल्म कोई और नहीं बल्कि वो लोग कर रहे हैं जिनसे उनका खून का रिश्ता है. तंग आकर कांता ने भी पास के ही एक वृद्धाश्रम में सहारा लिया है. वो अब अपना वक्त भजन गाकर या टीवी पर प्रवचन सुनकर बिताती हैं. देवीराम हनुमान मंदिर के आसपास आसानी से दिख जाता है. चेहरे पर पड़ी झुर्रियां, आँखों में अजीब से खामोशी लिए वो कहता है कि मुझपर यह सबकुछ तब आ पड़ा है जब मैं कुछ झेलने के लायक ही नहीं बचा हूँ. अब मेरी आँखों से दिखता नहीं. दांत टूट गए हैं. शरीर कमजोर हो गया है. ऐसे में मुझे घर से निकाल दिया गया. मैं कहाँ जाऊं. बस दिल की एक ही तमन्ना है कि मेरा बेटा किसी दिन मुझसे बोले “पापा तू कैसा है? तूने खाना खाया या नहीं?”

 

इस तरह की पीड़ा समेटे अकेले राजधानी दिल्ली की सड़कों और वर्द्ध आश्रमों में आपको जा जाने कितने लोग मिल जायेंगे जिन्हें अब इंसानी रिश्तों की बात सिर्फ एक मजाक लगती है. वो भले ही खुल कर कुछ नहीं बताते लेकिन अन्दर अन्दर ही घुट घुटकर जीने पर मजबूर हैं. वो लोग ख़ुशक़िस्मत हैं जिन्हें कहीं किसी का सहारा मिल सका है. मगर जिन लोगों को यह सहारा नहीं मिला उन्हें “बस बहुत हो गया” कहने की जरूरत है, वो लोग बड़ी तकलीफदेह जिन्दगी गुजार रहे हैं. इनमें से कुछ ऐसे हैं जो अपने ही बच्चों के यहाँ नौकरों की तरह रहने को मजबूर हैं. शिकायत करें भी तो किसकी? इन्हें तो अपनों ने सताया है. वो अपने जिन्होंने इनकी कोख से जन्म लिया है. इसलिए इनकी तकलीफ बहुत ज्यादा है जो शायद कोई दूसरा महसूस ना कर सके. हांलाकि बुजुर्गों की अनदेखी करने वाली औलादों के ख़िलाफ सरकार ने वर्ष 2012 में सीनियर सिटिजन एक्ट 2007 को नए सिरे से लागू किया जिसके तहत 60 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति को “सीनियर सिटिजन” माना है. इस एक्ट में सजा का प्रावधान रखा गया पर जुल्म सहने के बावजूद बुजुर्ग अपने बच्चों के ख़िलाफ शिकायत दर्ज कराना नहीं चाहते. इस एक्ट के प्रावधानों के अनुसार औलादों को अपने माँ पिता को आर्थिंक सहायता देनी होती है.

 

मानव समाज में ऐसा कोई रिश्ता नहीं होता जिसमे तकरार और छोटी-मोटी बातें नहीं होती है. लेकिन वहीं छोटी-छोटी बातें जब बड़े तकरार का रूप ले लेती हैं तब आप चाहे जिंदगी में कितने ही आगे क्यों ना बढ़ जाएं. लेकिन कहीं ना कहीं दिल के कोने में एक याद हमेशा बसती रहेगी, जो हमेशा आपसे कहेगी की एक मौका उस रिश्ते को बचाने के लिए जो दिया जा सकता था. जीवन में कभी-न-कभी वह घड़ी आती है, जब कई माता-पिता खुद की देखभाल करने के काबिल नहीं रहते और उन्हें मदद की जरूरत पड़ती है. यहाँ तक कि कई बार तो वे अपने दिल में नाराजगी भी पालने लगते हैं. और-तो-और, कभी-कभी बुजुर्ग माँ या पिता ठेस पहुँचानेवाली बातें कह देते हैं. पर क्या हम सिर्फ इस बात से उनसे किनारा करें कि उन्हें गुस्सा आया या हमें ठेस पहुंची?

 

बचपन में हम कई बार रुठते है माता-पिता हमें मनाते ही नहीं वरन हमारी जिद भी पूरी करते है इसी तरह कुछ अनबन भी हो तो हमें दोबारा उनकी तरफ की तरफ कदम बढ़ाने चाहिए. ऐसे में अगर आपसे कुछ गलती हुई है तो उसे स्वीकारने में कोई हर्ज नहीं है. माता-पिता है जितना जल्दी गुस्सा होते है उतना ही जल्दी माफ भी करते है. ये उम्र एक पड़ाव होता है जिसमें भावनात्मक रूप से सहारे की सबसे बड़ी जरूरत होती है.

 

कई बार अपने प्यारे माता-पिता को ढलती उम्र में होनेवाली तकलीफें झेलते देखकर हमें बहुत दुख होता है. उनका खयाल रखनेवाले कई बच्चे यह देखकर कभी-कभी उदास हो जाते हैं, परेशान हो जाते हैं, खुद को दोषी महसूस करने लगते हैं, उन्हें चिंता होती है, रह-रहकर गुस्सा आता है, भले ही आप अपने बुजुर्ग माता-पिता से दूर रहते हों, फिर भी आपको तय करना चाहिए कि माता-पिता को रोजाना किस तरह की देखभाल की जरूरत है. अगर आपका घर उनके घर के पास नहीं है तो सप्ताह में कम से कम एक बार उनसे बात जरुर करें. “हालाँकि उम्र ढलने से होनेवाली समस्याओं के बारे में बातचीत करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन जब परिवार के सभी सदस्य मिलकर चर्चा करते हैं और पहले से अच्छी योजना बनाते हैं, बुजुर्गों की सेहत उनके रहन सहन से जुड़े फैसले लेते है है, तब वे सही चुनाव करने के लिए और भी अच्छी तरह तैयार होते हैं. हमें इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि कभी-न-कभी हमें बुढ़ापे में आनेवाली तकलीफों का सामना करना ही पड़ेगा. इसलिए यह बेहद जरूरी है कि एक परिवार के तौर पर हम इनका सामना करने के लिए तैयारी करें. इन जिम्मेदारियों को पूरा करते समय आप तरह-तरह की भावनाओं से गुजरें. बुजुर्गों से बुरा वर्ताव करते वक्त एक बार जरुर सोचें कि कल हम भी बुजुर्ग होंगे तो क्या इस व्यवहार के लिए हम तैयार होंगे?

-----राजीव चौधरी

 

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