अब धर्मपरिवर्तन के भी स्कूल

कहते हैं कि राजनीति में सही और ग़लत कुछ नहीं होता. लेकिन धर्म गलत सही की व्याख्या के साथ हमेशा खड़ा होता है. यूँ तो भारत की राजनीति में रोज़ नए धमाके होते रहते हैं. लेकिन अब यह सब धर्म में भी प्रवेश कर चूका है मेवात मॉडल स्कूल मढ़ी (नगीना) में बच्चों को जबरन नमाज पढ़ाने और धर्म परिवर्तन कराने वाला मामला इस बात की चीख-चीखकर गवाही दे रहा है. मेवात मॉडल स्कूल मढ़ी के कुछ बच्चों ने  उपायुक्त मनीराम शर्मा को दी शिकायत में आरोप लगाया कि पहले वह स्कूल के हॉस्टल में रहते थे. इस दौरान कुछ छात्र नमाज पढ़ने के लिए दबाव डालते थे. इतना ही नहीं मुस्लिम अध्यापक भी उन पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाते थे. इसके लिए स्कूल के एक अध्यापक मोइनुद्दीन उनको परेशान करते थे. इतना ही नहीं उनका आरोप है कि दूसरे धर्मों के प्रति उनका व्यवहार ठीक नहीं है.

 

दरअसल मेवात पहले हरियाणा में जिला गुड़गांव का एक भाग था. लेकिन बाद में सरकार ने जिला मेवात के नाम से अलग जिला बना दिया है जिसमें पुन्हाना, फिरोजपुर झिरका, नगीना तावडू व हथीन खंड आते है. आंकड़े बताते है 1947 में इस क्षेत्र में लगभग 30 प्रतिशत हिन्दू थे लेकिन अब घटकर 20 प्रतिशत रह गए है वे भी ज्यादातर कस्बों में है गांवों में तो बाल्मीकि, हरिजन व कुम्हार बगैरा ही दो दो चार चार ही घर रह गए है. मेवात का अल्पसंख्यक हिन्दू अनेक समस्याओं से ग्रस्त है तथा आतंकित व डरा हुआ है. कहा जाता यहां के गरीब हिन्दू परिवारों को जो गाँव में रहते है, उनको नल व कुओं से पानी न भरने देना, उनकी होली दहन, मंदिर श्मशान भूमियों व खेतों पर नायायज कब्जे तथा अनेक प्रकार से तंग करके इस्लाम धर्म अपनाने के लिए बाध्य करते है. वे मजबूर होकर या तो धर्म परितर्वन कर लेते है या पलायन कर जाते है यहां हिन्दुओं के पास आय के कोई अच्छे साधन नहीं है कुल मिलाकर कहा जाये तो यहाँ के गांवों का  हिन्दू इनकी दया पर ही निर्भर रहता है.

 

इसी मेवात मॉडल स्कूल मढ़ी में जबरन धर्मपरिवर्तन का यह मामला कोई मध्ययुगीन या पचास सौ साल पहला नहीं बल्कि आज 21 वीं सदी के तेज रफ़्तार से दौड़ते भारत में घटा है और सवाल उठा रहा है कि इस स्कूल में जबरन नमाज पढने के लिए बाध्य किये जाने वाले पीड़ित बच्चें वहां इतिहास, भूगोल, गणित आदि विषयों को पढने की हर माह मोटी फ़ीस भर रहे है या नमाज पढने की? वहां पढने वाले बच्चे यहाँ तक बता रहे कि नमाज न पढने पर उन्हें थप्पड़ तक खाने पड़े. क्या स्वतंत्र भारत में यही धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है? आज भले ही स्कूल प्रसाशन यह कहता हो कि हमने आरोपी शिक्षक निलम्बित कर दिए किन्तु एक सवाल यह भी खड़ा हो रहा कि इस्लाम से इस मानसिकता का निलम्बन कब होगा? कब तक मोइनुद्दीन जैसे लोग इस्लाम के छत्र तले दुनिया को देखने की कोशिश करते रहेंगे?

 

पिछले हजारों सालों में इन्सान बदले, नाम, पहचान के साथ देश और सरहदें बदली. लेकिन बदलाव के इस दौर यदि कुछ नहीं बदला वो है इस्लाम में धर्मपरिवर्तन की मजहबी मानसिकता क्यों? अरबी में एक कहावत है यदि तुम्हें मालुम नही है तो विद्वानों से पूछो. मुसलमान इसका अक्षरशः पालन भी करते हैं. अरबी भाषा के साथ अरब के मजहब की वकालत करने वाले उलेमा, मौलवी, मुफ्ती, काजी इत्यादि धर्माचार्य मुस्लिम समुदाय के महत्वपूर्ण व्यक्ति जिनके नियंत्रण के बाहर और अन्दर हजारों मदरसे लाखों मस्जिदों में चलने वाले छोटे-छोटे मकतब, जिनमें मुस्लिम शिशुओं की मानसिकता का निर्माण होता है इन्हीं के द्वारा चलाये जाते हैं. क्या यह बता सकते है कि आज के आधुनिक स्कूलों में इस्लाम को लेकर उसे अबोध बच्चों पर थोपने की यह मारामारी है तो बता दीजिये कि मदरसों में क्या सिखलाया जाता होगा? यही कि इस्लाम ही महान धर्म है शेष दुनिया पागल या फिर अधार्मिक है?

 

मैंने इस मामले को काफी ध्यान से पढ़ा समझा जाना मैंने एक पीड़ित बच्चें की माँ का दर्द भी सुना जो एक मोटी रकम स्कूल में झोकने के बाद भी अपने बच्चें को मुख्यधारा की शिक्षा के बजाय सिर्फ नमाज सिखा पाई? इस इस्लामी मानसिकता का विश्लेषणात्मक अध्यन यही कहता है कि भारतीय मुस्लिम मानसिकता ने हिन्दू विरोध को मजहब का हिस्सा समझ सत्य मान लिया है. आखिर क्या कारण है मध्य युग के महाबलशाली और क्रूर सुल्तानों ने धर्म परिवर्तन जो व्यवस्थाएं दी हैं जिनके कारण जिनके कारण हजारों लोगों को जीवन दांव पर लगाना पड़ा था वो व्यवस्थाएं आज भी खाड़ी देशों में आतंक के नाम पर और चूँकि यहाँ इस लोकतान्त्रिक भारत में आपका वश नहीं चल रहा तो यह प्रेमजाल और स्कूलों के माध्यम से उसे जीवित रखे हुए हो.

 

शायद इसी वजह से आज सारे विश्व में मुसलमानों को एक ही नज़र से देखा जा रहा है. इसकी वजह भी वो खुद ही हैं. मुसलमानों की सोच ये है कि बस इस्लाम ही एक मजहब है और मुसलमान ही ईश्वर की संतान हैं. जो मौलाना मुफ़्ती आज बड़े-बड़े न्यूज़ रूम में बैठकर कह रहे है कि इस्लाम जबरन धर्म परिवर्तन की आज्ञा नहीं करता क्या वो बता सकते है कि अरब से यहूदी, ईरान से पारसी, अफगानिस्तान से हिन्दू और बोद्ध, लाहौर से सिख, कश्मीर से हिन्दू कहाँ गये? जबकि ये इनके मूल धार्मिक पहचान के मूल स्थान थे. फिर भी हिन्दुओ ने मुस्लिमो को स्वीकार किया उन्हें दो राष्ट्र पाकिस्तान और बांग्लादेश दिए किसलिए? शायद इसलिए कि अब भारत शांति और सुकून से रह सके भारतीय समुदाय अपने मूल धर्म में अपनी पूजा उपासना कर सकें इसके बाद भी जबरन धर्मपरिवर्तन कराना, मजहब के नाम पर अपनी मजहबी उपासना की प्रणाली मासूम बच्चों पर थोपना, क्यों आप लोग एकता में अनेकता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को बली वेदी पर चढ़ा रहे है? 

---राजीव चौधरी

 

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