राजनीति का नव थप्पड़वाद

भारतीय राजनीति से मार्क्सवाद, समाजवाद और पूंजीवाद गुजरे जमाने की बात हो गयी है। अब जो नया वाद आया है वह विवाद विषय बना हुआ है। एक समय था जब सत्ता प्रप्ति के युद्ध करने पड़ते थे, तलवार और धनुष-कमान उठाने पड़ते थे। धीरे-धीरे जमाना गुजरा नेता मजदुर, किसान क्षेत्रवाद आदि के मुद्दे लेकर सत्ता पान करते दिखे लेकिन आज आज सत्ता की प्रप्ति के लिए थप्पड़ मार प्रतियोगिता चल रही है। हाल ही में पटना बीजेपी कार्यालय के प्रेस प्रभारी ने अपने बयान में घोषणा की कि लालू पुत्र आरजेडी नेता तेजप्रताप को थप्पड़ मारने वाले को 1 करोड़ रुपये का इनाम दिया जाएगा। हालाँकि आज कल इस तरह के इनाम घोषित के मामले राजनीति में लगातार आ रहे हैं। लेकिन सवाल जरूर उठते है कि एक थप्पड़ पर इतना पैसा क्यों जाया किया जाये? दूसरा पता नहीं कोई थप्पड़ मारे य नहीं! इससे बेहतर यह है कि खुद ही यह काम कर देना चाहिए इससे थप्पड़ भी लग जायेगा और पैसा भी बच जायेगा।

 

दो-चार दिन पहले ही हरियाणा भाजपा मीडिया के पूर्व कॉडिनेटर सूरजपाल अम्मू ने कहा था कि मैं लाल चौक पर खड़े होकर फारूक अब्दुल्ला को थप्पड़ मारना चाहता हूं और इसके लिए मैं चाहता हूं कि वे मुझे वहां आकर मिलें। भला इसके लिए इतनी मेहनत क्यों? क्या पता वहां अब्दुल्ला आये न आये! पर इसके लिए इतना शोर क्यों? दरअसल थप्पड़ मारना, नाक काटना, गला या बोटी-बोटी काटने की यह मौखिक बयानों की प्रतियोगिता बीते कुछ समय से समाज और राजनीति का हिस्सा बनती जा रही है।

 

जब इसी साल सोनू निगम ने जब एक ट्वीट के जरिये अपनी परेशानी जाहिर की कि ‘‘मैं मुस्लिम नहीं हूं और मुझे अजान की आवाज से सुबह उठना पड़ता है, भारत में इस जबरदस्ती की धार्मिकता का अंत कब होगा?’’ तो इसके बाद देश भर में मौखिक विवाद खड़ा हो गया था उसी समय  पश्चिम बंगाल की माइनॉरिटी यूनाइटेड काउंसिल की ओर से ये फतवा जारी किया गया। काउंसिल के वाइस प्रेसिडेंट सैयद शा अली अल कादरी ने कहा था कि जो भी सोनू निगम का मुंडन कर और जूतों की माला पहनाकर देशभर में घुमाएगा, उसे 10 लाख रुपए इनाम दिया जाएगा। हालाँकि फतवे के बाद सोनू निगम ने अपना मुंडन खुद ही करा कर जब इनाम राशि मांगी तो सैयद शा अली अल कादरी पैसे देने से मुकर गये। आसान शब्दों में इसे फतवा घोटाला भी कहा जा सकता है।

 

असल में जातिवाद के बाद इस नव थप्पड़वाद की गूंज भारतीय राजनीति में ज्यादा सुनाई दे रही है। साल 2014 में पानीपत में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री जी को एक युवक ने सरेआम थप्पड़ मार दिया था। हुड्डा एक खुली जीप पर सवार थे। इस युवक को फौरन हिरासत में ले लिया गया तथा इस कृकृत्य के बदले उसे जेल में क्या इनाम मिला होगा आप भलीभांति अंदाजा लगा सकते हैं! उसी साल केजरीवाल जी उत्तर-पश्चिम दिल्ली लोकसभा सीट से आप प्रत्याशी राखी बिड़ला के लिए प्रचार कर रहे थे। इसी दौरान उन पर हमला हुआ। हमलावर ने पहले उन्हें माला पहनाई और बाद में थप्पड़ मारा था।

 

आज भारत की राजनीति काफी बदल चुकी है, सुचिता और शिष्टाचार किसी भी लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करते हैं लेकिन वर्तमान राजनीति बदजुबानी पर टिक चुकी है जबान पर काबू न रखने वाले नेताओं को नोटिस और चेतावनी वगैरा देने का फायदा यह होता है कि नेताओं के काम-काज पर सवाल उठाने का मौका नहीं मिलता। इस बीच इतना समय मिल जाता है कि विपक्ष और मीडिया की मेहरबानी से इच्छित मैसेज भी सही जगह पहुंच जाता है। लोगों को हंसाने के लिए अपने पक्ष में करने के लिए विरोधी नेताओं के अपमान की एक तगड़ी खुराक की आदत लोगों डाली जा रही है। यह भी सोचना होगा कि कुछ महत्वाकांक्षी नेता सिर्फ खुद को चमकाने के लिए ऐसे बयान दे रहे हैं या इसके पीछे सुविचारित रणनीति है।

 

साल 2014 के शुरूआती दिनों में सहारनपुर से कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने वर्तमान प्रधानमंत्री और तब के विपक्ष के नेता नरेन्द्र मोदी को बोटी-बोटी काटने की धमकी दी थी तो बदले में उन्हें वहां से चुनाव का टिकट प्राप्त हुआ। तो पश्चिम बंगाल से पिछले दिनों एक इमाम मौलाना सैयद नूर उल रहमान बरकती कहा था कि अगर बीजेपी से कोई यहां आया तो ‘‘उसे मार-मार कर भूसा उड़ा देंगे।’’ इसके कुछ दिन बाद बिहार बीजेपी के अध्यक्ष नित्यानंद राय ने मोदी के विरोधियों से निपटने की धमकी देते हुए कहा कि उनके खिलाफ उठने वाली हर उंगली को तोड़ दिया जाएगा और जरूरत पड़ी तो विरोध में उठने वाले हर हाथ को मिलकर काट देंगे। पद्मावती फिल्म को लेकर नायिका और निर्माता के सिर काटने की करोड़ो के इनाम की घोषणा सबने सुनी ही है।

 

दरअसल जो युवा आज राजनीति में अपना करियर शुरू करने जा रहे है यह सब उनके लिए एक आसान सी राह बन गयी है मसलन राजनीति में आने के लिए आपको भारत के इतिहास और भूगोल यहाँ के लोकतंत्र और संविधान का ज्ञान भले ही न हो बस बदजुबानी आनी चाहिए। यदि आप इसमें पारंगत है तो बाकी का काम मीडिया स्वयं कर देता है। इसका एक नवीन उदहारण युवा नेता तेजप्रताप यादव हैं जिसने अपने पिता लालू यादव की सुरक्षा में कमी किए जाने पर सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही धमकी दे डाली थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खाल उधेड़ देंगे। इन सब बदजुबानी के बाद सवाल उभरते हैं कि राजनीतिज्ञों द्वारा एक दूसरे को मारने कूटने की धमकी जनता को पसंद है या यह सब नई पसंद बनाई जा रही है या फिर राजनेता देश के आन्तरिक लोकतंत्र और राजनैतिक मर्यादा को महत्त्वहीन बना रहे हैं?

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