कà¥à¤¯à¤¾ सच में बनà¥à¤¦à¤° ही इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ के पूरà¥à¤µà¤œ थे?
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Rajeev ChoudharyDate
06-Feb-2018Category
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कà¥à¤¯à¤¾ सच में बनà¥à¤¦à¤° ही इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ के पूरà¥à¤µà¤œ थे?
कà¥à¤¯à¤¾ आदमी कà¤à¥€ बंदर रहा होगा, इस सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त पर कितना यकीन होता हैं? दरअसल बरसों पहले डारà¥à¤µà¤¿à¤¨ का यह सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त पà¥à¤¾ था कि सà¤à¥€ जीव à¤à¤• आम पूरà¥à¤µà¤œ से आते हैं। यह सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त परिवरà¥à¤¤à¤¨ के साथ जीवन की पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤—त उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ पर जोर देते हà¥à¤ कहता है कि सरल पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से जटिल जीव विकसित होते हैं। मतलब आदमी पहले बंदर था या इसे यूं कहें कि बंदर धीरे धीरे आदमी बन गया। डारà¥à¤µà¤¿à¤¨ का सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त विकास की अवधारणा का सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त है। अब सवाल ये à¤à¥€ हैं यदि पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• परिवरà¥à¤¤à¤¨ होते-होते बनà¥à¤¦à¤° से इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ बन गया तो आगे इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ कà¥à¤¯à¤¾ बनेगा! कà¥à¤¯à¤¾ वह पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की तरह उड़ने लगेगा?
हाल ही में चारà¥à¤²à¥à¤¸ डारà¥à¤µà¤¿à¤¨ के सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त को गलत ठहराते हà¥à¤ केंदà¥à¤°à¥€à¤¯ मानव संसाधन विकास राजà¥à¤¯ मंतà¥à¤°à¥€ सतà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤² सिंह ने कहा है कि इस मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‡ पर अंततरराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ बहस की जरूरत है, “कà¥à¤°à¤®à¤¿à¤• विकास का चारà¥à¤²à¥à¤¸ डारà¥à¤µà¤¿à¤¨ का सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• रूप से सही नहीं है, इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ के पूरà¥à¤µà¤œ इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ और बंदरों के पूरà¥à¤µà¤œ बनà¥à¤¦à¤° थे इसमें कोई समानता नहीं हैं। केंदà¥à¤°à¥€à¤¯ मंतà¥à¤°à¥€ का कहना है कि “सरà¥à¤œà¤• या सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾” तो बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ थे, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मानव को धरती पर अवतरित किया हैं। इसके बाद वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ और वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• जगत से जà¥à¥œà¥‡ लोगों ने à¤à¤• ऑनलाइन पतà¥à¤° में सतà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤² सिंह से अपना बयान वापस लेने को कहा है। साथ ही वरिषà¥à¤ वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ ने मंतà¥à¤°à¥€ की इस टिपà¥à¤ªà¤£à¥€ की निनà¥à¤¦à¤¾ की और कहा “हम वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•, वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• जानकारी पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाले तथा वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ से जà¥à¥œà¥‡ लोग आपके दावे से काफी आहत हैं।
इस पà¥à¤°à¤•à¤°à¤£ पर हर किसी की अपनी राय हैं लेकिन जिस तरीके से इस बयान के बाद वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ आहत होने की बात सामने आई उससे यह साफ होता कि जो विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ अà¤à¥€ तक तरà¥à¤•à¥‹à¤‚, खणà¥à¤¡à¤¨à¥‹, नये विचारों, आयामों और खोजों पर आधारित था कà¥à¤¯à¤¾ वह अब à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं पर आन टिका हैं? कà¥à¤¯à¤¾ कà¥à¤› मजहबो की तरह अब उस विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की आसà¥à¤¥à¤¾ और à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ पर चोट होने लगेगी? जबकि विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ में तो à¤à¤• दà¥à¤¸à¤°à¥‡ के वाद, उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ खोज का खंडन और नये सिदà¥à¤¦à¤¾à¤‚तो का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ हà¥à¤† हैं? बहà¥à¤¤ पहले वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ की अवधारणा थी की पसीने से à¤à¥€à¤—ी कमीज में गेहूं की बाली लपेटकर अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥‡ कमरे में रख देने से 21 दिन बाद सà¥à¤µà¤¤: ही चूहें पैदा हो जाते है। इसके बाद इस सà¥à¤µà¤¤: जननवाद का खंडन करते हà¥à¤ वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ की अगली पीà¥à¥€ ने तरà¥à¤• दिया कि नहीं à¤à¤¸à¤¾ संà¤à¤µ नहीं बलà¥à¤•à¤¿ जीव से ही जीव पैदा होता हैं।
वरà¥à¤· 2008 में विकासवाद के समरà¥à¤¥à¤• जीव-विजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ सà¥à¤Ÿà¥‚अरà¥à¤Ÿ नà¥à¤¯à¥‚मेन ने à¤à¤• साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° में कहा था कि नà¤-नठपà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के जीव-जंतॠअचानक कैसे उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो गà¤, इसे समà¤à¤¾à¤¨à¥‡ के लिठअब विकासवाद के नठसिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त की जरूरत है। जीवन के कà¥à¤°à¤®-विकास को समà¤à¤¾à¤¨à¥‡ के लिठहमें कई सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚तों की जरूरत होगी, जिनमें से à¤à¤• होगा “डारà¥à¤µà¤¿à¤¨ का सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त” लेकिन इसकी अहमियत कà¥à¤› खास नहीं होगी। उदाहरण के लिà¤, चमगादड़ों में धà¥à¤µà¤¨à¤¿ तरंग और गूà¤à¤œ के सहारे अपना रासà¥à¤¤à¤¾ ढूà¤à¥à¤¨à¥‡ की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ होती है। उनकी यह खासियत किसी à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ जीव-जंतॠमें साफ नजर नहीं आती, à¤à¤¸à¥‡ में हम जीवन के कà¥à¤°à¤®-विकास में किस जानवर को उनका पूरà¥à¤µà¤œ कहेंगे?
पशà¥à¤šà¤¿à¤® दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में तरà¥à¤•à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° का पिता कहे जाने वाले अरसà¥à¤¤à¥‚ को तो लोग बड़ा विचारक कहते हैं लेकिन यूनान में अरसà¥à¤¤à¥‚ के समय हजारों साल से यह धारणा पà¥à¤·à¥à¤Ÿ थी कि सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के दांत पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ की अपेकà¥à¤·à¤¾ कम होते है।. अरसà¥à¤¤à¥ की à¤à¤• नहीं बलà¥à¤•à¤¿ दो पतà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤ थी वो गिन सकते थे, लेकिन उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¥€ इस धारणा को पà¥à¤·à¥à¤Ÿ किया। अरसà¥à¤¤à¥ के कई सौ वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ बाद किसी ने अपनी पतà¥à¤¨à¥€ के दांत गिने और इस धारणा का खंडन किया और बताया कि सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ और पà¥à¤°à¥à¤· दोनों में दांत बराबर संखà¥à¤¯à¤¾ में होते है। कà¥à¤¯à¤¾ इस सतà¥à¤¯ से अरसà¥à¤¤à¥ के मानने वालो की आसà¥à¤¥à¤¾ आहत होगी?
à¤à¤• छोटी सी सतà¥à¤¯ घटना है, गैलीलियो तक सारा यूरोप यही मानता रहा कि सूरज पृथà¥à¤µà¥€ का चकà¥à¤•à¤° लगाता है। जब गैलीलियो ने पà¥à¤°à¤¥à¤® बार कहा कि न तो सूरà¥à¤¯ का कोई उदय होता है, न कोई असà¥à¤¤ होता है. बलà¥à¤•à¤¿ पृथà¥à¤µà¥€ ही सूरà¥à¤¯ के चकà¥à¤•à¤° लगाती हैं। तब गैलीलियो को पोप की अदालत में पेश किया गया। सतà¥à¤¤à¤° वरà¥à¤· का बूà¥à¤¾ आदमी, उसको घà¥à¤Ÿà¤¨à¥‹à¤‚ के बल खड़ा करके कहा गया, तà¥à¤® कà¥à¤·à¤®à¤¾ मांगो! कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि बाइबिल में लिखा है कि सूरà¥à¤¯ पृथà¥à¤µà¥€ का चकà¥à¤•à¤° लगाता है, पृथà¥à¤µà¥€ सूरà¥à¤¯ का चकà¥à¤•à¤° नहीं लगाती। और तà¥à¤®à¤¨à¥‡ अपनी किताब में लिखा है कि पृथà¥à¤µà¥€ सूरà¥à¤¯ का चकà¥à¤•à¤° लगाती है। तो तà¥à¤® बाइबिल से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ हो? बाइबिल, जो कि ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ गà¥à¤°à¤‚थ है! जो कि ऊपर से अवतरित हà¥à¤† है!
गैलीलियो मà¥à¤¸à¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤¯à¤¾ और उसने कहा, आप कहते हैं तो मैं कà¥à¤·à¤®à¤¾ मांग लेता हूं। मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤·à¤®à¤¾ मांगने में कोई अड़चन नहीं है. आप अगर कहें तो मैं अपनी किताब में सà¥à¤§à¤¾à¤° à¤à¥€ कर दूं। मैं यह à¤à¥€ लिख सकता हूं कि सूरज ही पृथà¥à¤µà¥€ के चकà¥à¤•à¤° लगाता है, पृथà¥à¤µà¥€ नहीं। लेकिन आपसे माफी मांग लूं, किताब में बदलाहट कर दूं, मगर सचाई यही है कि चकà¥à¤•à¤° तो पृथà¥à¤µà¥€ ही सूरज के लगाती है। सचाई नहीं बदलेगी। मेरे माफी मांग लेने से सूरज फिकà¥à¤° नहीं करेगा, न पृथà¥à¤µà¥€ फिकà¥à¤° करेगी। मेरी किताब में बदलाहट कर देने से सिरà¥à¤« मेरी किताब गलत हो जाà¤à¤—ी।
हो सकता हैं सतà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤² सिंह की निंदा हो, इसे धरà¥à¤® और राजनीति की तराजू में रखकर सवाल हो, विपकà¥à¤· का à¤à¤• खेमा डारà¥à¤µà¤¿à¤¨à¤µà¤¾à¤¦ और उनके उपासक वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹ का पकà¥à¤· ले। लेकिन मेरा मानना है यह विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के रूà¥à¥€à¤µà¤¾à¤¦ पर सवाल है। पर कà¥à¤¯à¤¾ इस विषय पर दà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¾ शोध नहीं होना चाहिठकि à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के पास 46 गà¥à¤£à¤¸à¥‚तà¥à¤° होते हैं, और à¤à¤• बंदर में 48 कà¥à¤°à¥‹à¤®à¥‹à¤¸à¥‹à¤® होते हैं। इसे किस तरह सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° किया जाये कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ और बंदर का à¤à¤• सामानà¥à¤¯ पूरà¥à¤µà¤œ था और उसने बंदर से इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ बनने के रासà¥à¤¤à¥‡ पर गà¥à¤£à¤¸à¥‚तà¥à¤°à¥‹à¤‚ को खो दिया? आखिर कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ हजारों सालों में à¤à¤• à¤à¥€ बंदर इंसान नहीं बन पाया हैं। आखिर इसे किस तरह पचा सकते है कि अफà¥à¤°à¥€à¤•à¤¨ बनà¥à¤¦à¤° काले और यूरोपीय बनà¥à¤¦à¤° गोरे रहे होंगे जैसा कि आज इन à¤à¥‚à¤à¤¾à¤—ों पर मनà¥à¤·à¥à¤¯ जाति का रंग है? जब पूरà¥à¤µà¤œ साà¤à¤¾ थे तो मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ में कद, रंग और à¤à¤¾à¤·à¤¾ का परिवरà¥à¤¤à¤¨ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ हà¥à¤†? दूसरा यदि वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ और डारà¥à¤µà¤¿à¤¨ के इस सिदà¥à¤¦à¤¾à¤‚त को सही माने तो कà¥à¤¯à¤¾ इस तरह कह सकता हूठकि आज कà¥à¤› बंदर जल, थल, आकाश और मरà¥à¤¸à¥à¤¥à¤² में शोध कर रहे है, टà¥à¤°à¥‡à¤¨, बस, मोबाइल का इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² कर रहे है जबकि उसके पूरà¥à¤µà¤œ अà¤à¥€ à¤à¥€ वनों में उछल कूद रहे है?..राजीव चौधरी
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