अधकचरे तरà¥à¤• और उनसे लीपापोती
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Rajeev ChoudharyDate
15-Feb-2018Category
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अधकचरे तरà¥à¤• और उनसे लीपापोती
अजीब सा शोर है! गरीबी, बेरोजगारी और तमाम समसà¥à¤¯à¤¾ अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥‡ में खामोश बैठी है। राजनीति के गà¥à¤°à¤¾à¤‰à¤‚ड पर खेल खेला जा रहा है। चंदन गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ की देशà¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ पर सवाल, अंकित सकà¥à¤¸à¥‡à¤¨à¤¾ की गला रेतकर हतà¥à¤¯à¤¾, मेवात से धरà¥à¤®à¤¾à¤‚तरण की उठती सिसकियां और कशà¥à¤®à¥€à¤° घाटी से उठती अलगाव की आंधी बता रही है कि असली खेल यही है। घटनाà¤à¤‚ होंगी, बवंडर होंगे, आंसू à¤à¥€ होंगे लेकिन पà¥à¤°à¤—तिशील संवेदनशीलता की जगह मकà¥à¤•à¤¾à¤° सियासत होगी। इसके बाद नà¥à¤¯à¥‚ज रूम में टॉक शो होंगे, बहस होगी, अगले-पिछले उदाहरण देकर रोजाना की बहस के दंगल से राजनितिक पहलवान उठकर चले जायेंगे। बà¥à¤°à¥‡à¤• लिया जायेगा फिर अगली बà¥à¤°à¥‡à¤•à¤¿à¤‚ग नà¥à¤¯à¥‚ज का इंतजार होगा।
कासगंज घटना को कà¥à¤› दिन बीत गये। तिरंगा यातà¥à¤°à¤¾ पर हमले में मारा गया चंदन अà¤à¥€ जीवन के 20 बसंत ही देख पाया था। लेकिन उसकी चिता की राख के साथ अधकचरे तरà¥à¤•à¥‹à¤‚ से सवाल à¤à¥€ ठंडे हो गये। अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹ शंकर लिखते हैं कि चनà¥à¤¦à¤¨ गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ की हतà¥à¤¯à¤¾ मामले में कहा गया कि तिरंगा यातà¥à¤°à¤¾ जान-बूà¤à¤•à¤° मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® मà¥à¤¹à¤²à¥à¤²à¥‡ से निकाली गई और यहां ‘पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ मà¥à¤°à¥à¤¦à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦’ के नारे लगाठगà¤! जबकि सवाल यह होना चाहिठकि कà¥à¤¯à¤¾ मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® मà¥à¤¹à¤²à¥à¤²à¥‹à¤‚ में तिरंगा वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है? दूसरा चनà¥à¤¦à¤¨ को गोली मारने वाला अपराधी कौन था? उसके पास हथियार कहां से आया? पर इन गंà¤à¥€à¤° सवालों की जरा à¤à¥€ चरà¥à¤šà¤¾ न करते हà¥à¤ बात गणतंतà¥à¤° दिवस का जà¥à¤²à¥‚स निकाल रहे यà¥à¤µà¤•à¥‹à¤‚ की गलती बताते हà¥à¤ मामले को मोड़ने की कोशिश हà¥à¤ˆà¥¤ साथ ही मीडिया का à¤à¤• धड़ा इस बात को लेकर मà¥à¤–र रहा कि कà¥à¤¯à¤¾ देश में अब तिरंगा यातà¥à¤°à¤¾ जरूरी है?
इसके बाद की खबर पà¥à¥‡à¤‚ तो राजधानी दिलà¥à¤²à¥€ के रघà¥à¤µà¥€à¤° नगर इलाके में पà¥à¤°à¥‡à¤®-पà¥à¤°à¤¸à¤‚ग के कारण यà¥à¤µà¤¤à¥€ के माता-पिता व परिजनों ने मिलकर अंकित सकà¥à¤¸à¥‡à¤¨à¤¾ की बेरहमी से गला काटकर हतà¥à¤¯à¤¾ कर दी। अंकित का कसूर इतना था कि उसने हिनà¥à¤¦à¥‚ होकर à¤à¤• मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® लड़की से शादी कर अपना घर बसाना चाहता था। जिसके लिठयà¥à¤µà¤¤à¥€ à¤à¥€ तैयार थी लेकिन यà¥à¤µà¤¤à¥€ के पिता और रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ ने चाकू निकाला और देखते ही देखते सरेराह कà¥à¤› पलों में अंकित का गला रेत दिया। लेकिन यहाठà¤à¥€ मीडिया ने ये कहा कि हतà¥à¤¯à¤¾ तो हतà¥à¤¯à¤¾ है, कातिल तो कातिल है, कà¥à¤¯à¤¾ इतना कहना काफी नहीं होता? इस घटना को हिनà¥à¤¦à¥‚ मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिà¤à¥¤ à¤à¤• अखलाक, पहलू खां, और अफराजà¥à¤² की हतà¥à¤¯à¤¾ को à¤à¤• अरब हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं से जोड़ने वाले लोग आखिर अंकित सकà¥à¤¸à¥‡à¤¨à¤¾ की हतà¥à¤¯à¤¾ को 20 करोड़ मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤®à¥‹à¤‚ से नहीं जोड़ पाà¤?
कà¥à¤› लोगों ने कहा कि à¤à¤¸à¥€ घटनायें तो अकà¥à¤¸à¤° गोतà¥à¤°, जात और गाà¤à¤µ में इजà¥à¤œà¤¤ के नाम पर अंजाम दे दी जाती है। हाठये कहने वाले गलत नहीं हैं किनà¥à¤¤à¥ कà¥à¤¯à¤¾ आजतक किसी आपसी विवाद व रंजिस में अखलाक या पहलू खां की जान नहीं गयी? जब केरल में à¤à¤• हादिया के मामले पर सà¥à¤ªà¥à¤°à¥€à¤® कोरà¥à¤Ÿ उसकी जाà¤à¤š के आदेश à¤à¤¨à¤†à¤ˆà¤ को देता है तब मामला पà¥à¤°à¥‡à¤® की नजरों से देखा जाता है। इसे यà¥à¤µà¤¾à¤“ं को पà¥à¤°à¥‡à¤® करने जैसे सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° अधिकारों में गिना जाता है। लेकिन जब इसी पà¥à¤°à¥‡à¤® की à¤à¥‡à¤‚ट à¤à¤• अंकित सकà¥à¤¸à¥‡à¤¨à¤¾ चà¥à¤¤à¤¾ है तो इसे समà¥à¤®à¤¾à¤¨ के लिठहतà¥à¤¯à¤¾ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ ऑनर किलिंग बताकर नà¥à¤¯à¥‚ज रूम बà¥à¤°à¥‡à¤• ले लेते हैं।
पर लोगों के जेहन में उफन रहे सवाल बà¥à¤°à¥‡à¤• कैसे लें? कà¥à¤¯à¤¾ वामपंथ की कलम समाजवाद की रकà¥à¤·à¤¾ छोड़कर अब सीधे कटà¥à¤Ÿà¤° इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¤µà¤¾à¤¦ की रकà¥à¤·à¤¾ करती आसानी से नहीं दिख रही है? सवालों की फेरिहसà¥à¤¤ में सबसे बड़ा सवाल यह à¤à¥€ है कि अंकित की हतà¥à¤¯à¤¾ के वकà¥à¤¤ वहां बड़ी à¤à¤¾à¤°à¥€ à¤à¥€à¥œ मौजूद थी। यदि à¤à¥€à¥œ अंकित के बचाव में हतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ पर हमला कर देती तो इसे हिनà¥à¤¦à¥à¤¤à¥à¤¤à¥à¤µ से जोड़कर देखा जाना लाजिमी था। कहा जा रहा कि किसी मामले में जब à¤à¤• पकà¥à¤· हिनà¥à¤¦à¥‚ और दूसरा मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ हो तो जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° लोग तरà¥à¤•, तथà¥à¤¯ और नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ का साथ छोड़कर अपने धारà¥à¤®à¤¿à¤• हित के साथ खड़े नजर आते हैं लेकिन ये शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ किसने की? शाहबानो के मामले में संविधान पर पहले चोट करने वाले कौन थे?
à¤à¤• और खबर मेवात की à¤à¥€ है देश की राजधानी से सिरà¥à¤« 80 किमी. दूर मेवात से जहां अनà¥à¤¸à¥‚चित जाति के हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं को मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® दबंगों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इसà¥à¤²à¤¾à¤® सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करने का दबाव बनाते हà¥à¤ मारा-पीटा गया और मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ न बनने पर गांव छोड़ने की ‘धमकी’ तक दी गई। इस दà¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯à¤ªà¥‚रà¥à¤£ घटना को à¤à¥€ अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹ शंकर की माने तो अधकचरे, असंवेदनशील और बेहद आपतà¥à¤¤à¤¿à¤œà¤¨à¤• तरà¥à¤•à¥‹à¤‚ से à¥à¤•à¤¨à¥‡ की कोशिशें à¤à¥€ हà¥à¤ˆà¥¤ हमेशा की तरह मीडिया में बैठे मौलानाओं ने कहा इसà¥à¤²à¤¾à¤® इस चीज की आजà¥à¤žà¤¾ नहीं देता पर मà¥à¤°à¤à¤¾à¤¯à¤¾ सा सवाल वहीं खड़ा है कि यदि इसà¥à¤²à¤¾à¤® इस चीज की आजà¥à¤žà¤¾ नहीं देता तो फिर à¤à¤¸à¤¾ करने की आजà¥à¤žà¤¾ कौन देता है?
मेवात की घटना पर à¤à¥€ तरà¥à¤•à¥‹à¤‚ की बोछार हà¥à¤ˆ, चूंकि मामला देहाती इलाके का था खबर आसानी से पहले ही दब गई थी, इसलिठउनकी जरूरत ही नहीं पड़ी। दरअसल मामला दलित समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ से जà¥à¥œà¤¾ था तो जय à¤à¥€à¤®-जय मीम वाले राजनितिक योधा अपनी जबान की तलवार और दलित संवेदना की à¥à¤¾à¤² किनारे रखते नजर आये। हाठयदि यह मामला दलितों और अनà¥à¤¯ जाति समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ के बीच होता तो पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ से लेकर नेताओं तक की गाड़ी गाà¤à¤µ-गाà¤à¤µ घूमकर कोसती नजर आती। अमà¥à¤¬à¥‡à¤¡à¤•à¤° ने चाहे जो कहा हो, आज इसà¥à¤²à¤¾à¤® ने दलितों के साथ चाहे जो सà¥à¤²à¥‚क किया हो, पर मेवात का दà¥à¤ƒà¤– कोई नहीं मनाà¤à¤—ा, कà¥à¤¯à¤¾ कोई गला नहीं à¤à¤¾à¤°à¥à¤°à¤¾à¤¯à¥‡à¤—ा?
अब थोड़ा धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ देने वाली बात यह à¤à¥€ है कि यह घटनाà¤à¤‚ सिरà¥à¤« खबरें नहीं हैं, इनमें कà¥à¤› साà¤à¥‡ ततà¥à¤µ हैं, पर सामाजिक सदà¥à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾, अलà¥à¤ªà¤¸à¤‚खà¥à¤¯à¤• समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ का राग, इन सब सवालों का मà¥à¤‚ह à¤à¥€à¤‚चता सा दिखाई दे रहा है। तटसà¥à¤¥ होकर इंसानियत की बात हà¥à¤ तो देश में à¤à¤• अरसा सा बीत गया। कलम के धनी लोग राजनीतिक टोलो में बंटे से दिखाई दे रहे हैं तो फिर तिरंगे के लिठगिरी चंदन की लाश पर कोई आंसू कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ बहायेगा’ न कोई सवाल उठेगा। पà¥à¤°à¥‡à¤® के नाम पर अंकित सकà¥à¤¸à¥‡à¤¨à¤¾ की हतà¥à¤¯à¤¾ पर à¤à¤²à¤¾ कोई तà¥à¤¯à¥‹à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ चà¥à¥‡à¤‚गी, न कोई उंगली उठेगी और मेवात! कà¥à¤¯à¤¾ बात करते हैं साहब! ये तो कोई मà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¾ ही नहीं है। बस खेल देखो और उसपर बिछी बिसात देखो।
-राजीव चौधरी
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