कà¥à¤¯à¤¾ बिन बेटे मोकà¥à¤· नहीं मिलता?
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Rajeev ChoudharyDate
22-Feb-2018Category
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कà¥à¤¯à¤¾ बिन बेटे मोकà¥à¤· नहीं मिलता?
करà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤• में चिकà¥à¤•à¤¬à¤²à¥à¤²à¤¾à¤ªà¥à¤°à¤¾ जिले के à¤à¤• गांव में बेटा नहीं होने से दà¥à¤–ी à¤à¤• महिला ने अपनी तीन नाबालिग बेटियों के साथ कथित रूप से कà¥à¤à¤‚ में कूद कर खà¥à¤¦à¤•à¥à¤¶à¥€ कर ली। हनà¥à¤®à¤‚तपà¥à¤°à¤¾ गांव में 25 वरà¥à¤·à¥€à¤¯ नागाशà¥à¤°à¥€ ने अपनी तीन बेटियों नवà¥à¤¯à¤¾à¤¶à¥à¤°à¥€, दिवà¥à¤¯à¤¾à¤¶à¥à¤°à¥€ और दो महीने की à¤à¤• बेटी के साथ अपनी जान दे दी। नागाशà¥à¤°à¥€ की लंबे समय से बेटे की चाहत थी और बेटे को जनà¥à¤® नहीं देने की वजह से वह दà¥à¤–ी रहती थी। हालाà¤à¤•à¤¿ बताया जा रहा की नागाशà¥à¤°à¥€ पर कोई पारिवारिक दबाव नहीं था लेकिन सामाजिक दबाव न हो इससे इंकार à¤à¥€ नहीं किया जा सकता। इस तरह के अधिकांश मामलों में कोई न कोई à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ दबाव जरूर होता हैं जिसके कारण इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ आतà¥à¤®à¤¹à¤¤à¥à¤¯à¤¾ जैसे कदम उठाने को मजबूर हो जाता है।
दरअसल à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ समाज में जितने à¤à¥€ दà¥à¤ƒà¤– है अधिकांश दà¥à¤ƒà¤– की जड़ का मूल अशिकà¥à¤·à¤¾ और अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ है। कई बार इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ à¤à¤²à¥‡ ही अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ से बचना à¤à¥€ चाहे लेकिन हमारे इरà¥à¤¦-गिरà¥à¤¦ जमा समाज उसकी ओर धकेल ही देता है। नागाशà¥à¤°à¥€ का मामला à¤à¤²à¥‡ ही पà¥à¤²à¤¿à¤¸ के लिठकेस, उसके परिवार के विपदा और समाज के लिठà¤à¤• खबर हो। पर यह तीनों चीजें à¤à¤• ही सवाल छोड़ती नज़र आती हैं जो हमेशा से समाज के गले में डाला गया है कि ‘बेटे के हाथों पिंडदान न हो तो मोकà¥à¤· नहीं मिलता। जब तक चिता को बेटा मà¥à¤–ागà¥à¤¨à¤¿ नहीं देता, आतà¥à¤®à¤¾ को मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ नहीं मिलती।’ आज à¤à¥€ हमारे देश की जनसंखà¥à¤¯à¤¾ का à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़ा हिसà¥à¤¸à¤¾ मोकà¥à¤· के जाल में उलà¤à¤¾ हà¥à¤† है। मोकà¥à¤· यानी आतà¥à¤®à¤¾ का जनà¥à¤®à¤œà¤¨à¥à¤®à¤¾à¤‚तर के बंधन से मà¥à¤•à¥à¤¤ होकर परमातà¥à¤®à¤¾ में विलीन हो जाना।
अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ की नगरी में पितरों का उदà¥à¤§à¤¾à¤° करने के लिठपà¥à¤¤à¥à¤° की अनिवारà¥à¤¯à¤¤à¤¾ मानी गई है। गरà¥à¥œ पà¥à¤°à¤¾à¤£ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤°, à¤à¤¸à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि पà¥à¤¤à¥à¤° के हाथों पिंडदान होने से ही पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ मोकà¥à¤· को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है। पà¥à¤°à¤¾à¤£ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤°, मोकà¥à¤· से आशय है पितृलोक से सà¥à¤µà¤°à¥à¤—गमन और वह पà¥à¤¤à¥à¤° के हाथों ही संà¤à¤µ है। इस वजह से हमारे समाज में à¤à¤• धारणा बनी हà¥à¤ˆ है कि पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• माता पिता के à¤à¤• लड़के का जनà¥à¤® तो होना ही चाहिà¤à¥¤ जिसके बेटा नहीं होता उसे अà¤à¤¾à¤—ा तक समà¤à¤¾ जाता है। लड़के की यह चाहत न चाहते हà¥à¤ à¤à¥€ परिवार में संतानों की संखà¥à¤¯à¤¾ और देश की जनसंखà¥à¤¯à¤¾ बà¥à¤¾ रही है जो बाद में देश में बेरोजगारी बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ और साथ ही à¤à¤• सामानà¥à¤¯ आय वाले परिवार की आरà¥à¤¥à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ को बिगाड़ने का काम करती है।
पिछले कà¥à¤› सालों में à¤à¤²à¥‡ ही कानून के डंडे के डर से ‘‘शरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ लड़का ही होगा’’ वाले हकीम à¤à¥‚मिगत होकर अपना वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° चला रहे हों लेकिन पांच-सात साल पहले तक सड़कों के आसपास दीवारों, चौराहों, खेतों में बने टà¥à¤¯à¥‚बवेल के कमरों, आदि पर बड़े-बड़े अकà¥à¤·à¤°à¥‹à¤‚ में लिखा होता था ‘‘शरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ लड़का ही होगा मिले शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® औषधालय घंटाघर मेरठ’’ हालाà¤à¤•à¤¿ ये वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° अà¤à¥€ पूरà¥à¤£à¤¤à¤¯à¤¾ बंद नहीं हà¥à¤† अà¤à¥€ à¤à¥€ लड़का पैदा करने के कई नà¥à¤¸à¥à¤–े à¤à¥€ काम में लिठजाने लगे हैं। शातिर लोग तो इस चीज के विशेषजà¥à¤ž बने बैठे हैं और बड़े-बड़े पà¥à¥‡ लिखे लोग लड़के की चाहत में इनकी सेवाà¤à¤‚ लेने से नहीं चूकते।
जबकि इनका खेल केवल संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ के सिदà¥à¤¦à¤¾à¤‚त के आधार पर चलता है। जब इनकी दवा के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— के बाद लड़का पैदा हो जाता है तो यह उसे à¤à¤• उदाहरण के रूप में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करते हैं। मोटी रकम वसूल करते है और जब परिणाम विपरीत आता है तो दवा के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करने में गलती होना बताकर या उसकी किसà¥à¤®à¤¤ खराब बताकर सारा दोष पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करने वाली महिला का बता देते हैं। जब सब पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ के बाद à¤à¥€ लड़का पैदा नहीं होता तो महिला अपने आपको कोसती है और कई बार तो कà¥à¤› करà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤• की नागाशà¥à¤°à¥€ जैसे à¤à¥€ कदम उठा देती है।
आप किसी से à¤à¥€ पूछिठकि आखिर लड़का होना कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ जरूरी है? तो इस पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ के ये जबाब कà¥à¤› यूठमिलेंगे कि साहब लड़के से ही वंश चलता है, लड़का बà¥à¥à¤¾à¤ªà¥‡ का सहारा होता है लड़की तो पराई होती है आदि-आदि रटे रटाये जवाब मिलते हैं। जबकि मेरे à¤à¤• दूर के रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤° ने लड़के की चाहत में 6 लड़कियां पैदा कि बाद में à¤à¤• लड़का हà¥à¤† लेकिन वह लड़का आज नशे, चोरी आदि में लिपà¥à¤¤ है और उन बूà¥à¥‡ माà¤-बाप की देखà¤à¤¾à¤² लड़कियां ही कर रही हैं। किसके यहाठलड़का पैदा होगा और किसके यहाठलड़की इसका निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤£ हमारे वश में नहीं है और न ही इस बात की कोई गारनà¥à¤Ÿà¥€ है कि जिसके यहाठबेटा है उसकी जिंदगी सà¥à¤–ी है और बेटी वाला दà¥à¤–ी है। जो चीज हमारे वश में न हो उसके लिठकà¤à¥€ विचार नहीं करना चाहिठऔर जो पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से हमें मिला है उसका आननà¥à¤¦ लेना चाहिà¤à¥¤
अलबतà¥à¤¤à¤¾ तो मृतà¥à¤¯à¥ के बाद मोकà¥à¤· की अवधारणा ही कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ मातà¥à¤° है और इस के लिठà¤à¥€ पà¥à¤¤à¥à¤° की अनिवारà¥à¤¯à¤¤à¤¾ महज अधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ फैलाया गया à¤à¥à¤°à¤®à¤œà¤¾à¤² है। à¤à¤¸à¤¾ कोई काम नहीं जो पà¥à¤¤à¥à¤° कर सके और पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ नहीं। आखिर हैं तो दोनों à¤à¤• ही माता-पिता की संतान। पर यह समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ जाता है कि बेटे पर अपने उन पितरों का ऋण है जो उसे इस दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में लाठथे। यह à¤à¥€ कि यह ऋण उतारना उसकी नैतिक जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ है वरना उस के पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ की अतृपà¥à¤¤ आतà¥à¤®à¤¾à¤à¤‚ à¤à¤Ÿà¤•à¤¤à¥€ रहेंगी। मगर पà¥à¤¤à¥à¤° ही कà¥à¤¯à¥‹à¤‚? पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ à¤à¥€ तो इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ संसार में लाई गई हैं तो पितृऋण तो उस पर à¤à¥€ होना चाहिà¤à¥¤ अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ ने मृतà¥à¤¯à¥ के बाद का à¤à¤• कालà¥à¤ªà¤¨à¤¿à¤• संसार रच दिया है। जबकि इस देश में बहà¥à¤¤à¥‡à¤°à¥‡ ऋषि, मà¥à¤¨à¤¿, धरà¥à¤® जà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤¾ à¤à¤¸à¥‡ à¤à¥€ हà¥à¤ हैं जिनको संतान नहीं थी कà¥à¤¯à¤¾ वे सब मोकà¥à¤· के अधिकारी नहीं हैं? आखिर किसने चिता के बाद की दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ देखी है? ‘‘कौन दावे से कह सकता कि मरने के बाद कà¥à¤¯à¤¾ होता है?’’ लेकिन फिर à¤à¥€ पà¥à¤¤à¥à¤° पैदा करने के लिठमानसिक दबाव बनाया जाता है। जिस कारण कोई महिला तांतà¥à¤°à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ की हवस शिकार बनती है तो कोई मौत का?
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