शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के रण का रणबांकà¥à¤‚रा था पंडित लेखराम
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Rajeev ChoudharyDate
13-Mar-2018Category
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13-Mar-2018Download PDF
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शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के रण का रणबांकà¥à¤‚रा था पंडित लेखराम
अमर बलिदानी पंडित लेखराम जी के बलिदान दिवस पर विशेष
जिस समय à¤à¤¾à¤°à¤¤ वरà¥à¤· गà¥à¤²à¤¾à¤®à¥€ की जंजीरों में जकड़ा था. उस समय के सà¥à¤•à¥‚ली इतिहास के आंचल से कà¥à¤› नाम समेटने बैठे तो इतिहास कà¥à¤› गिने चà¥à¤¨à¥‡ नाम देकर अपनी पलक à¤à¤ªà¤•à¤¾ लेता है. लेकिन जब उसे कà¥à¤°à¥‡à¤¦à¥‡à¤‚ तो उसमें à¤à¤¸à¥‡ असंखà¥à¤¯ महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के नाम है जिनके अनà¥à¤¦à¤° वैदिक धरà¥à¤® को बचाने का जूनून था लेकिन सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ की à¤à¥‚ख नहीं थी. वो नाम जिनके पास पैदल, अशà¥à¤µ, हाथी की सेना नहीं थी बस इस सतà¥à¤¯ सनातन धरà¥à¤® को बचाने के लिठविचारों का बल था. हाथ में शसà¥à¤¤à¥à¤° नहीं बस महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जी दिया हà¥à¤† à¤à¤•à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ रूपी शासà¥à¤¤à¥à¤° था जिससे वैदिक धरà¥à¤® के शतà¥à¤°à¥ परासà¥à¤¤ होते जा रहे थे.
कैसे à¤à¤• लेख में उस इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ की महान जीवन गाथा पिरोई जा सकती है जिसने धरà¥à¤® की बलिवेदी पर अपने पà¥à¤°à¤¾à¤£ नà¥à¤¯à¥‹à¤›à¤¾à¤µà¤° कर दिठहो, जिसके लिठअपने पà¥à¤¤à¥à¤° से पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¾ अपना धरà¥à¤® रहा हो. उस अमर हà¥à¤¤à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ के लिठतो जितना लिखे उतना कम है. आज जब à¤à¥€ हवा का रà¥à¤– उस इतिहास की ओर मà¥à¥œà¤¤à¤¾ है तो à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ ही महापà¥à¤°à¥à¤· विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की ओर लेकर जरà¥à¤° जाता है जिनमें à¤à¤• नाम आरà¥à¤¯ मà¥à¤¸à¤¾à¤«à¤¿à¤° पंडित लेखराम है. पर दà¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ इस à¤à¤¾à¤°à¤¤ à¤à¥‚मि का कि लोग आज पोरà¥à¤¨ सà¥à¤Ÿà¤¾à¤°à¥‹à¤‚ के नाम तो जानते है लेकिन à¤à¤¸à¥‡ महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ का नाम तक नहीं जानते. इस महान आरà¥à¤¯ बलिदानी का जनà¥à¤® चैतà¥à¤° शà¥à¤•à¥à¤² 8, समà¥à¤µà¤¤à¥ 1915 (सनॠ1858) को गà¥à¤°à¤¾à¤® सैदपà¥à¤° (जिला à¤à¥‡à¤²à¤®) में सारसà¥à¤µà¤¤ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ परिवार में शà¥à¤°à¥€ तारासिंह मोता तथा à¤à¤¾à¤—à¤à¤°à¥€ देवी के पà¥à¤¤à¥à¤° के रूप में हà¥à¤† था. पंडित लेखराम के दादा शà¥à¤°à¥€ नारायण सिंह महाराज रणजीत सिंह की सेना के वीर योदà¥à¤§à¤¾ थे. पं. लेखराम ने उरà¥à¤¦à¥‚-फारसी की शिकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ की. वे बचपन से ही पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤µà¤¾à¤¨ थे. उनके चाचा पेशावर में पà¥à¤²à¤¿à¤¸ अधिकारी थे. उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने à¤à¤¤à¥€à¤œà¥‡ को पà¥à¤²à¤¿à¤¸ में à¤à¤°à¥à¤¤à¥€ करा दिया. सारà¥à¤œà¥‡à¤¨à¥à¤Ÿ का पदà¤à¤¾à¤° संà¤à¤¾à¤²à¤¨à¥‡ के साथ-साथ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गीता, रामायण तथा अनà¥à¤¯ धारà¥à¤®à¤¿à¤• गà¥à¤°à¤‚थों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ जारी रखा.
इधर लेखराम जी अपने अधà¥à¤¯à¤¨ में वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ थे. कà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤•à¤¾à¤°à¥€ देश की सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ की लड़ रहे थे. हिनà¥à¤¦à¥‚ मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® à¤à¤•à¤¤à¤¾ के गीत गाये जा रहे थे. लेकिन दूसरी ओर सामाजिक सà¥à¤¤à¤° पर मà¥à¤²à¥à¤²à¤¾-मौलवियों का धरà¥à¤®à¤¾à¤‚तरण का कà¥à¤šà¤•à¥à¤° जारी था. ठीक इसी समय पंडित लेखराम ने दयानंद सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जी के अमर गà¥à¤°à¤‚थ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ को पà¥à¤¾ तथा अपना जीवन वैदिक धरà¥à¤® के पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° में लगाने का संकलà¥à¤ª लिया. सनॠ1881 में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अजमेर पहà¥à¤‚चकर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी के दरà¥à¤¶à¤¨ किà¤. उनके पांडितà¥à¤¯ तथा तेजसà¥à¤µà¤¿à¤¤à¤¾ से पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ होकर सरकारी नौकरी तà¥à¤¯à¤¾à¤—कर आरà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤• बन गà¤. पंडित लेखराम ने पेशावर में आरà¥à¤¯ समाज की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की तथा सापà¥à¤¤à¤¾à¤¹à¤¿à¤• पतà¥à¤° “धरà¥à¤®à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶” का पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ शà¥à¤°à¥‚ किया.
यही से उनके जीवन ने à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ अंगड़ाई ली कि मामूली सा पंडित लेखराम धरà¥à¤®à¤¾à¤‚तरण करने वालो वैदिक धरà¥à¤® के विरà¥à¤¦à¥à¤§ पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करने वालों के लिठलाहौर पेशावर आदि सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में खोफ बन गया. पंडित लेखराम ने मà¥à¤²à¥à¤²à¤¾-मौलवियों के आकà¥à¤·à¥‡à¤ªà¥‹à¤‚ का मà¥à¤‚हतोड़ उतà¥à¤¤à¤° देना शà¥à¤°à¥‚ किया. वे जहां लेखनी के धनी थे वहीं à¤à¤• पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¶à¤¾à¤²à¥€ वकà¥à¤¤à¤¾ à¤à¥€ थे. उनके तरà¥à¤•à¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¤¾à¤·à¤£ सà¥à¤¨à¤•à¤° बड़े-बड़े मà¥à¤²à¥à¤²à¤¾-मौलवी व पादरी हतपà¥à¤°à¤ रह जाते थे. अहमदिया समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ के संसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤• मिरà¥à¤œà¤¾ गà¥à¤²à¤¾à¤® अहमद कादयानी तथा उसके समरà¥à¤¥à¤•à¥‹à¤‚ में वैदिक-हिनà¥à¤¦à¥‚ धरà¥à¤® पर आकà¥à¤·à¥‡à¤ª लगाठतो पंडित जी कादियां जा पहà¥à¤‚चे तथा मिरà¥à¤œà¤¾ को शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ की चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ दी. उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उरà¥à¤¦à¥‚ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में “बूसहीन अहमदिया” तथा खबà¥à¤¤ अहमदिया” पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ लिखकर अहमदिया समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ को चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ दी. पंडित लेखराम ने इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¥€à¤•à¤°à¤£ के दà¥à¤·à¥à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ को असफल करने के लिठमà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® बने हजारों वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को शà¥à¤¦à¥à¤§ कर पà¥à¤¨: वैदिक धरà¥à¤® में दीकà¥à¤·à¤¿à¤¤ किया. वे शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के लिठजगह-जगह पहà¥à¤‚च जाते थे. लोग उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ “आरà¥à¤¯ मà¥à¤¸à¤¾à¤«à¤¿à¤°” कहने लगे थे.
1896 की à¤à¤• घटना पंडित लेखराम के जीवन से हमें सरà¥à¤µà¤¦à¤¾ पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ देने वाली बनी रहेगी. पंडित जी पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° से वापिस आये तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पता चला की उनका पà¥à¤¤à¥à¤° बीमार हैं. पर ठीक उसी समय उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पता चला की मà¥à¤¸à¥à¤¤à¤«à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦ में पांच हिनà¥à¤¦à¥‚ मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ होने वाले हैं. लेकिन इस पंडित जी कहा कि मà¥à¤à¥‡ अपने à¤à¤• पà¥à¤¤à¥à¤° से जाति के पांच पà¥à¤¤à¥à¤° अधिक पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ हैं. सवा साल का इकलोता पà¥à¤¤à¥à¤° चल बसा. अपने धरà¥à¤® के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ निषà¥à¤ ां और पà¥à¤°à¥‡à¤® में पंडित जी ने शोक करने का समय कहाठथा. वापिस आकर वेद पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° के लिठवजीराबाद चले गà¤.
कोट छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¤¾ डेरा गाजी खान (अब पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨) में कà¥à¤› हिनà¥à¤¦à¥‚ यà¥à¤µà¤• मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ बनने जा रहे थे. पंडित जी के वà¥à¤¯à¤¾à¤–ान सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ पर à¤à¤¸à¤¾ रंग चड़ा की आरà¥à¤¯ बन गठऔर इसà¥à¤²à¤¾à¤® को तिलांजलि दे दी. इसके बाद जब पंडित जी से à¤à¤• बार पूछा गया कि हिनà¥à¤¦à¥‚ इतनी बड़ी संखà¥à¤¯à¤¾ में मà¥à¤¸à¥à¤²à¤®à¤¾à¤¨ कैसे हो गà¤? तो पंडित जी सात कारण बताये. (1) मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ आकà¥à¤°à¤®à¤£ में बलातपूरà¥à¤µà¤• मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ बनाया गया (2) मà¥à¤—लकाल में जर, जोरू व जमीन देकर कई पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित हिनà¥à¤¦à¥à¤“ को मà¥à¤¸à¥à¤²à¤®à¤¾à¤¨ बनाया गया (3) इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¥€ काल में उरà¥à¤¦à¥‚, फारसी की शिकà¥à¤·à¤¾ à¤à¤µà¤‚ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ की दà¥à¤°à¥à¤—ति के कारण बने (4) हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं में विधवा पà¥à¤¨à¤°à¥à¤µà¤¿à¤µà¤¾à¤¹ न होने के कारण इस कà¥à¤°à¥‚ति ने à¤à¥€ अनेक औरतो को इस कà¥à¤£à¥à¤¡ में धकेला अगर किसी हिनà¥à¤¦à¥‚ यà¥à¤µà¤• का मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ से समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ हà¥à¤† तो उसे जाति से निकल कर मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ बना दिया गया. (5) मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा की कà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿ के कारण कई हिनà¥à¤¦à¥‚ विधरà¥à¤®à¥€ बने (6) मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® वेशà¥à¤¯à¤¾à¤“ं ने कई हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं को फंसा कर मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ बना दिया 7 वां और अंतिम जातिवाद और वैदिक धरà¥à¤® का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° न होने के कारण मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ बने. मातà¥à¤° à¤à¤• लेख में पंडित जी को नहीं समà¤à¤¾ जा सकता पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ लेखराम ने 33 पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ की रचना की. उनकी सà¤à¥€ कृतियों को à¤à¤•à¥€à¤•à¥ƒà¤¤ रूप में कà¥à¤²à¤¯à¤¾à¤¤-à¤-आरà¥à¤¯ मà¥à¤¸à¤¾à¤«à¤¿à¤° नाम से पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ किया गया है.
वैदिक धरà¥à¤® की महतà¥à¤¤à¤¾ पर दिठगठà¤à¤¾à¤·à¤£à¥‹à¤‚ तथा वैदिक धरà¥à¤® पर किठआकà¥à¤·à¥‡à¤ªà¥‹à¤‚ के मà¥à¤‚हतोड़ उतà¥à¤¤à¤° से कटà¥à¤Ÿà¤°à¤ªà¤‚थी मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ चिॠगà¤. परिणाम 6 मारà¥à¤š, 1897 को à¤à¤• मजहबी उनà¥à¤®à¤¾à¤¦à¥€ ने उनके पेट में छà¥à¤°à¤¾ घोंप कर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गंà¤à¥€à¤° रूप से घायल कर दिया. गायतà¥à¤°à¥€ मंतà¥à¤° का जाप करते हà¥à¤ वैदिक धरà¥à¤® के इस दीवाने ने मातà¥à¤° 39 वरà¥à¤· की आयॠमें धरà¥à¤® के बलिवेदी पर चॠगये उन महान हà¥à¤¤à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ को आरà¥à¤¯ समाज का शत-शत नमन. जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ की चिंता नहीं थी उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ चिंता थी तो सिरà¥à¤« वैदिक धरà¥à¤® की...
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