कà¥à¤¯à¤¾ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ अवेसà¥à¤¤à¤¾ की à¤à¤¾à¤·à¤¾ से बनी है ?
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Natraj NachiketaDate
21-Apr-2018Category
शंका समाधानLanguage
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कà¥à¤¯à¤¾ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ अवेसà¥à¤¤à¤¾ की à¤à¤¾à¤·à¤¾ से बनी है? कà¥à¤¯à¤¾ वेदों से जिनà¥à¤¦à¤¾ अवेसà¥à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ है?
अनेकों लोग कहते है कि पारसियों की à¤à¤¾à¤·à¤¾ से वैदिक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ बनी। यदि à¤à¤¸à¤¾ माना जाठतो संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ मूरà¥à¤§à¤¨à¥à¤¯ का अवेसà¥à¤¤à¤¾ में अà¤à¤¾à¤µ नहीं होना चाहिठजबकि मूरà¥à¤§à¤¨à¥à¤¯ का अवेसà¥à¤¤à¤¾ में अà¤à¤¾à¤µ पाया जाता है। मूरà¥à¤§à¤¨à¥à¤¯ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— धातà¥à¤ªà¤¾à¤ में बहà¥à¤¦à¤¾ है -
अडà¥à¤¡ अà¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—े
कडà¥à¤¡ कारà¥à¤•à¤¶à¥à¤¯à¥‡
टà¥à¤µà¥‡à¤ªà¥ƒ कमà¥à¤ªà¤¨à¥‡
मठमदनिवासयो इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ ।
किनà¥à¤¤à¥ पारसी में यह सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ नहीं है। साथ ही संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने वाले छ ,ठऔर ल का à¤à¥€ पारसी में अà¤à¤¾à¤µ है यदि पारसी से संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ मानी जावे तो फिर छानà¥à¤¦à¤¸à¥, छनà¥à¤¦ ये सब कैसे बन गà¤?
अब इस पर कोई यह कहे कि पारसी के ज को छ कर दिया अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥
जनà¥à¤¦ से छनà¥à¤¦ बना तो à¤à¤¸à¥‡ में संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ की उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ पारसी के समकालीन सिदà¥à¤§ हो जाà¤à¤—ी फिर पारसी से संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ बनी à¤à¤¸à¤¾ कहना गलत होगा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि किसी वरà¥à¤£ के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर दूसरे वरà¥à¤£ का विकलà¥à¤ª से उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ तà¤à¥€ हो सकता है जब दूसरा à¤à¥€ उपलबà¥à¤§ हो जैसे कि अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ तकार के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर टकार तà¤à¥€ बोला जाता है जब उनकें पास पहले से ही टकार हो,यदि उनकें पास टकार नहीं होता तो वो तकार से विकलà¥à¤ª ही नहीं कर पाते। अतः ज का छ से विकलà¥à¤ª होना सहीं नहीं है। यदि यह कहें कि छ बना लिया और जनà¥à¤¦ में ज के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— कर लिया तो यह बात à¤à¥€ सहीं नहीं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि à¤à¤¸à¤¾ होने पर संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ में ज का अà¤à¤¾à¤µ होना चाहिठथा लेकिन यहां ज और छ दोनो पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते है। अतः संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ पारसी अवेसà¥à¤¤à¤¾ की à¤à¤¾à¤·à¤¾ से नहीं बनी।
बलà¥à¤•à¤¿ कई शबà¥à¤¦ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ धातà¥à¤“ं के विकार है -
चीजà¥à¤¦à¥€ (ज़िंदा अवेसà¥à¤¤à¤¾ ४४:१६ ) यह शबà¥à¤¦ खबरदार जी ने संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ की चित धातॠसे बना बताया है । धातà¥à¤ªà¤¾à¤ चित संचेतने १०/१४४ में यह पठित है ।
दमानम (अवेसà¥à¤¤à¤¾ ३१:१८ ) इस शबà¥à¤¦ को खबरदार जी ने संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ के तमन (ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ १/६३/८ ) के आधार पर अधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤® अरà¥à¤¥ किया है।
मदा (अवेसà¥à¤¤à¤¾ ४५.१ ) -इसमें खबरदार जी ने मद धातॠबताई है जो कि धातà¥à¤ªà¤¾à¤ मद तृपà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—े (१०/१à¥à¥ª ) में पठित है।
अतः सिदà¥à¤§ है कि संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ पारसी से नहीं बनी है।
अब देखते है कि कà¥à¤¯à¤¾ वेद जिनà¥à¤¦à¤¾à¤…वेसà¥à¤¤à¤¾ से बने तो यह बात à¤à¥€ गलत है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अवेसà¥à¤¤à¤¾ में वेदों का नामोलà¥à¤²à¥‡à¤– होता है लेकिन वेदों में कहीं à¤à¥€ जिनà¥à¤¦à¤¾ अवेसà¥à¤¤à¤¾ का उलà¥à¤²à¥‡à¤– नहीं है जैसे -
वà¤2देना (यसà¥à¤¨ 35/7) -वेदेन
अरà¥à¤¥= वेद के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾
2) वà¤2दा (उशनवैति 45/4/1-2)- वेद
अरà¥à¤¥= वेद
वà¤à¤¦à¤¾ मनो (गाथा1/1/11) -वेदमना
अरà¥à¤¥= वेद मे मन रखने वाला
इससे सिदà¥à¤§ है कि वेद का असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ अवेसà¥à¤¤à¤¾ से पूरà¥à¤µ है।
इतना ही नहीं अवेसà¥à¤¤à¤¾ के रचनाकार जोराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤° से à¤à¥€ पूरà¥à¤µ महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ हो चà¥à¤•à¤¾ है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ में वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ संजà¥à¤žà¤¾ à¤à¤—वान वेदवà¥à¤¯à¤¾à¤¸ के बाद से चली है और वेद तो à¤à¤—वान वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ से à¤à¥€ काफी पहले के है। पारसियों के à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ जो कि जरथà¥à¤°à¥à¤¸à¥à¤Ÿ के समय लिखा गया जिसमें उसका इतिहास है में वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ नामक à¤à¤• बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ का उलà¥à¤²à¥‡à¤– है जिसका जरथà¥à¤°à¥à¤¸à¥à¤Ÿ से वारà¥à¤¤à¤¾à¤²à¤¾à¤ª à¤à¥€ हà¥à¤† था । उस शातीर नामक पारसी गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ में लिखा है -
"अकनॠबिरमने वà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¨à¤¾à¤® अज हिंद आयद ! दाना कि अलà¥à¤• चà¥à¤¨à¤¾ नेरसà¥à¤¤ !!
अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ :- "वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ नाम का à¤à¤• बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤¨ हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ से आया . वह बड़ा ही चतà¥à¤° था और उसके सामान अनà¥à¤¯ कोई बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ नहीं हो सकता ! "
अतः सिदà¥à¤§ है कि पारसियों का अवेसà¥à¤¤à¤¾ तो वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ à¤à¤—वान के à¤à¥€ बाद का है। अतः वेदों का अवेसà¥à¤¤à¤¾ से पूरà¥à¤µ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ होना सिदà¥à¤§ है। इससे वैदिक वाकॠका पारसियो की अवेसà¥à¤¤à¤¾ की à¤à¤¾à¤·à¤¾ (गाथिक) से पूरà¥à¤µ होना सिदà¥à¤§ है।
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