आमरण अनशन कà¤à¥€ à¤à¤• हथियार या मजाक
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Rajeev ChoudharyDate
27-Apr-2018Category
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आमरण अनशन कà¤à¥€ à¤à¤• हथियार या मजाक
रेप के मामलों में सखà¥à¤¤ कानून की मांग को लेकर अनशन पर बैठीं दिलà¥à¤²à¥€ महिला आयोग की अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· सà¥à¤µà¤¾à¤¤à¤¿ मालीवाल ने पासà¥à¤•à¥‹ à¤à¤•à¥à¤Ÿ में हà¥à¤ बदलाव के बाद जूस पीकर अपना अनशन खतà¥à¤® किया à¤à¥‚ख हड़ताल पर बैठी सà¥à¤µà¤¾à¤¤à¤¿ मालीवाल की मांग थी कि रेप के आरोपी को 6 माह के अनà¥à¤¦à¤° फांसी हो जानी चाहिà¤. अब पता नहीं उनका आमरण अनशन आम जनता के कितना à¤à¥€à¤¤à¤° तक असर करेगा पर ये सच है कि अनà¥à¤¨à¤¾ के अनशन में à¤à¥€ कà¥à¤› लोगों ने अपने राजनीतिक करियर की नींव रखने का कारà¥à¤¯ किया था.
देखा जाये अनशन, धरने और पद यातà¥à¤°à¤¾ किसी à¤à¥€ लोकतंतà¥à¤° का à¤à¤• हिसà¥à¤¸à¤¾ होता है. सतà¥à¤¤à¤¾ के शीरà¥à¤· पर बैठे लोगों तक जब अपनी बात न पहà¥à¤‚चे तो इन सब तरीकों को ही माधà¥à¤¯à¤® माना जाता रहा है. मेरे विचार से राजनीति का अनशन से संबंध उतना ही पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ है, जितना योगियों का ईशà¥à¤µà¤° पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठअनà¥à¤¨-जल का तà¥à¤¯à¤¾à¤— करना. यदि किसी के मन में मैल नहीं है और उसका उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ सारà¥à¤¥à¤• है तो अनशन से बà¥à¤•à¤° कोई हथियार नहीं होता. महातà¥à¤®à¤¾ गाà¤à¤§à¥€ से लेकर अनà¥à¤¨à¤¾ हजारे तक, अनशन और धरने का हमारा à¤à¤• लमà¥à¤¬à¤¾ कालखंड रहा है.
साल 1929 में लाहौर जेल के à¤à¥€à¤¤à¤° à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ à¤à¥‚ख हड़ताल शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆ थी जिसकी गूंज आज à¤à¥€ सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ देती है. उस समय कà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤•à¤¾à¤°à¥€ जतिन दास ने à¤à¤¾à¤°à¤¤ के राजनीतिक कैदियों के साथ à¤à¥€ यूरोपीय कैदियों की तरह वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करने की मांग को लेकर à¤à¥‚ख हड़ताल शà¥à¤°à¥‚ की. दास की हड़ताल तोड़ने के लिठबà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ जेल पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ ने काफी कोशिशें कीं. मà¥à¤‚ह और नाक के रासà¥à¤¤à¥‡ जबरदसà¥à¤¤à¥€ खाना डालने की कोशिश à¤à¥€ की गई लेकिन उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हार नहीं मानी. अंत में अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ सरकार को à¤à¥à¤•à¤¨à¤¾ पड़ा था. लेकिन जतिन दास को सà¥à¤µà¤¯à¤‚ की राजनितिक लालसा नहीं थी उनका उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ सिरà¥à¤« सà¤à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ कैदियों को सामान वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° दिलाना था.
किनà¥à¤¤à¥ वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ समय में अनशन हो या धरने पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ सिवाय वोटों के लालच, सà¥à¤µà¤¯à¤‚ के राजनितिक हित पर आन टिके है इनमे समाज और देश का हित विरले ही नजर आता है. हाल में कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ की तरफ से à¤à¤²à¤¾à¤¨ किया गया था कि दलितों पर हो रहे अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤° के ख़िलाफ आवाज उठाने के लिठराहà¥à¤² गांधी राजघाट पर à¤à¤• दिन का उपवास करेंगे. लेकिन जिस दिन उपवास का वकà¥à¤¤ आया, राहà¥à¤² के à¤à¥‚खे रहने से कहीं जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सà¥à¤°à¥à¤–ियां कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸à¥€ नेताओं के छोले-à¤à¤Ÿà¥‚रे बटोर ले उड़े. इसके बाद बारी थी à¤à¤¾à¤œà¤ªà¤¾ की. à¤à¤²à¤¾à¤¨ किया गया कि 12 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² को देश के पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ नरेंदà¥à¤° मोदी और à¤à¤¾à¤œà¤ªà¤¾ के सà¤à¥€ सांसद à¤à¤• दिन का उपवास रखेंगे. यानि के à¤à¤• अनशन के विरोध में दूसरा अनशन.
मेरी दिलà¥à¤²à¥€ महिला आयोग की अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ पूरी सहानà¥à¤à¥‚ति है. पर à¤à¤• समय था जब लोगों ने दिलà¥à¤²à¥€ गैंग रेप से सबसे कà¥à¤°à¥‚र हतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ की रिहाई पर बहाठजा रहे उनके आंसू घड़ियाली और राजनीति से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ बताये थे. कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि निरà¥à¤à¤¯à¤¾ के रेप के बाद पूरे तीन साल का समय था, तब किसी ने कà¥à¤› नहीं किया. न नेताओं ने, न संसद ने और न महिला आयोग ने. हतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ की रिहाई हà¥à¤ˆ उस समय दिलà¥à¤²à¥€ महिला आयोग की अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· सà¥à¤µà¤¾à¤¤à¤¿ मालीवाल 19 दिसंबर को रात में सà¥à¤ªà¥à¤°à¥€à¤® कोरà¥à¤Ÿ गईं. जबकि दिलà¥à¤²à¥€ हाईकोरà¥à¤Ÿ का फैसला 18 दिसंबर की दोपहर को आ गया था. तब सवाल उठा है कि सà¥à¤µà¤¾à¤¤à¤¿ 24 घंटे से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ समय तक कà¥à¤¯à¤¾ कर रहीं थीं, जो दूसरे दिन रात में सà¥à¤ªà¥à¤°à¥€à¤® कोरà¥à¤Ÿ पहà¥à¤‚चीं? इसके बाद निरà¥à¤à¤¯à¤¾ के साथ सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ बरà¥à¤¬à¤°à¤¤à¤¾ करने वाले उस अपराधी को आम आदमी पारà¥à¤Ÿà¥€ की ओर से दस हजार रूपये और सिलाई मशीन à¤à¥‡à¤‚ट की थी. कà¥à¤› à¤à¤¸à¥‡ सवाल है जो इस अनशन पर सहानà¥à¤à¥‚ति के साथ सवाल à¤à¥€ खड़े कर रहें है.
अतीत में देखें तो गांधी जी अहिंसा और सतà¥à¤¯à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹ के तहत कई बार à¤à¥‚ख हड़ताल किया करते थे. उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने जीवनकाल में करीब 15 उपवास किà¤, जिनमें से तीन बार इनकी अवधि 21 दिन रही. इन तीनों उपवासों में गाà¤à¤§à¥€ जी का कोई वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त या राजनितिक लाठनहीं था केवल समाज हित के लिठकिये गये पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ थे. लेकिन आज à¤à¥‚ख हड़ताल और धरने पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ सियासी लाठके लिठकिये जा रहे है. इनमें समाज और देश से कोई सरोकार नहीं है बलà¥à¤•à¤¿ यूठकहिये कि खà¥à¤¦ के सियासी लाठके लिठइस जनता के सबसे मजबूत हथियार की गरिमा को धूमिल किया जा रहा है.
लोकतंतà¥à¤° में जब कोई वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से हताश निराश हो जाता है, तो उसके पास बहà¥à¤¤ सीमित विकलà¥à¤ª होते हैं. वह अपनी मांगों को लेकर धरना, à¤à¥‚ख हड़ताल या सतà¥à¤¯à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹ करता है. à¤à¤• समय पà¥à¤°à¤®à¥à¤– आरà¥à¤¯ समाजी और पूरà¥à¤µ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ चौधरी चरण सिंह ने कहा था कि अनीतियों के खिलाफ जागृत करने के लिठसदन में तरà¥à¤• संगत विरोध और जन जागरण का सहारा लेना चाहिठवे धरना, अनशन या जेल à¤à¤°à¥‹ सतà¥à¤¯à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹ के खिलाफ थे. à¤à¤¸à¥‡ सोच वाले वे शायद अकेले हैं और कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि आजकल पकड़े गठलोग सायंकाल तक छोड़ दिठजाते हैं. अनशन के साथ छà¥à¤ªà¤•à¤° खाना खाने की फोटो वायरल होती है.
शायद इसी वजह से आज की तारीख में जब à¤à¥€ आम लोगों की बातचीत में अनशन या धरना पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ शबà¥à¤¦ का जिकà¥à¤° आता है तो लोगों का पहला सवाल ये होता है कि ये कौनसी पारà¥à¤Ÿà¥€ बनाà¤à¤—ा या आने वाले समय में कहाठसे चà¥à¤¨à¤¾à¤µ लड़ेगा. कोई ये नहीं सोचता कि जो वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ अनशन कर रहा है उसकी तकलीफ कà¥à¤¯à¤¾ है. जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° लोगों के लिठधरना पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ और अनशन का मतलब राजनितिक डà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾, नारेबाजी और अफरातफरी का माहौल होता है. लेकिन इस सबके लिठजिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° कौन हैं?
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