पाकिस्तान के भूगोल में एक ओर लकीर की आहट

पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान की राजधानी इस्लामबाद ने कई विरोध और धरना प्रदर्शन देखे है लेकिन इस बार का पश्तून आन्दोलन बिलकुल अलग है जिसमें न कोई हिंसा है न पथराव सिर्फ कुछ मांग है और आन्दोलन में लगते नारों “ये जो दहशतगर्दी है इसके पीछे वर्दी है” ने पाकिस्तानी फौज और सरकार की साँस उखाड़ दी है. मंजूर पश्तीन की अगुवाई में पश्तून तहाफुज मूवमेंट (पीटीएम) मात्र 22 लोगों द्वारा उठाई गयी आवाज अब लाखों लोगों का आन्दोलन बन चुकी है. ये पश्तून समुदाय के लोगों का गुस्सा हैं,  उनको दशकों से प्रताड़ित किया जाना, संदिग्ध नीतियों के तहत हाशिये पर रखने और अफगानिस्तान में ‘रणनैतिक पैठ’ स्थापित करने की पाकिस्तान की मंशा के विरुद्ध आक्रोश की अभिव्यक्ति हैं यह घटना केवल खबर नही है बल्कि आने वाले समय में यह पाकिस्तान के भूगोल में एक ओर लकीर दिखाई दे रही है.

 

जैसे-जैसे मंजूर पश्तीन की आवाज लगातार मजबूत होती जा रही है वैसे-वैसे पाकिस्तान में बैचेनी पैदा हो रही है. हाल ही में पीटीएम से जुड़े कुछ लेखों को कई वेबसाइटों ने हटा लिया गया. 14 अप्रैल को अंग्रेजी के एक बड़े अखबार “द न्यूज” में वहां के स्तंभकार बाबर सत्तार ने एक लेख लिखा था लेकिन वह प्रकाशित नहीं किया गया. पश्तून आन्दोलन की खबर दिखाने पर जियो न्यूज को भी ऑफ एयर कर दिया गया था. बताया जा रहा है कि इस आन्दोलन की आग उस समय ज्यादा भड़क उठी जब कराची में 13 जनवरी 2018 को नाकीबुल्लाह महसूद नामक पश्तून युवक की बिना किसी न्यायिक कार्यवाही के हत्या कर दी गयी थी. नाकीबुल्लाह, दक्षिणी वजीरिस्तान के मकीन नामक फाटा क्षेत्र का निवासी था 23-वर्षीय नाकीबुल्लाह कपडे की दुकान चलाता था और मॉडल बनने का सपना रखता था. 3 जनवरी 2018 को उसे कुछ लोगों ने पकड़ा और दस दिन बाद एक फर्जी मुठभेड़ में उसकी हत्या कर दी.

 

यही नहीं पिछले दिनों एक पश्तून लीडर उमर खटक ने कुछ खुलासे किये थे जिनमें कहा गया था कि पाकिस्तान की सरकार आतंकी कैम्पों की फंडिंग के लिए पश्तून लड़कियों का यौन दासी के तौर पर इस्तेमाल कर रही है. उमर ने दावा किया था कि पाक फौज ने सैकड़ों पश्तून लड़कियों को किडनैप कर लाहौर में जिस्मफरोशी के काम में झोंक दिया है. उमर ने पाक फौज की पोल खोलते हुए ये भी बताया कि स्वात और वजीरिस्तान में अनगिनत घरों पर बुलडोजर चलवा दिया है और बाजारों को लूट लिया है. पाक सैनिक आए दिन पश्तून लड़कियों से रेप करते हैं. (यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीज) के रिकॉर्ड्स के मुताबिक पाकिस्तान आर्मी के अत्याचारों से तंग आकर करीब 5 लाख लोग ये कहकर अफगानिस्तान पलायन कर गए कि पाकिस्तान कोई देश नहीं है, यह पश्चिमी साम्राज्यवादियों का एक प्रोजेक्ट है. यहाँ स्थानीय जातियों की पहचान खत्म की जा रही है. पाकिस्तानी फौज स्थानीय लोगों को उनके इलाके से बेदखल कर आतंकी कैम्प स्थापित करना चाहती है. पाकिस्तान हमें आए दिन परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी देता है. पश्तून के लोग पाकिस्तान से अलग रियासत भी चाहते हैं.

 

जानकर लोग बताते है कि आतंकवाद को मिटाने के नाम पर पाकिस्तानी सेना ने पिछले कुछ वर्षों में उत्तरी-दक्षिणी वजीरिस्तान समेत अन्य क्षेत्रों में काफी अभियान छेड़े है. इन अभियानों में 20 लाख लोग विस्थापित हुए है एक किस्म से कहे तो पाकिस्तानी सेना अपने ही लोगों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया है. बारूदी सुरंग लगाने, कर्फ्यू लगाने से लेकर सम्पूर्ण फाटा क्षेत्र में अतिरिक्त सुरक्षा पोस्ट लगाने जैसे गैर-वाजिब कदम उठाये गए है. पाक सेना द्वारा पश्तूनों का इस्तेमाल महज अपनी भू-रणनैतिक मंशाओं को पूरा करने के लिए चारे के स्वरुप कर रही है. उन्हें उनकी जमीनों से विस्थापित किया गया और हर स्तर पर उनका दमन और निरादर किया गया है.

 

देखा जाये तो ये विद्रोह तो काफी पुराना था लेकिन आज युवा पश्तून पाकिस्तान के शहरी केन्द्रों में पढाई करते है, विशेषकर कराची और लाहौर में और उन्होंने व्यक्तिगत रूप से पक्षपात का अनुभव किया है. इससे एक प्रकार की राजनैतिक चेतना का प्रवाह हुआ है जो पिछले वर्षों में पश्तूनों के साथ हुए अन्याय के विरुद्ध राजनैतिक मंशा पर सवाल उठाये. अपहरण, मुकदमे, हत्याएं और सैन्य बालों द्वारा ही यातना के विरोध में यह सब लोग एकजुट हुए. मंजूर पश्तीन कहते हैं कि आदिवासी लोगों को चरमपंथियों जैसा समझा जाता रहा है. आज फाटा से 8 हजार लोग सेना द्वारा गायब किये गये है. महिलाओं बच्चों और बूढों पर भी सेना कोई रहम नहीं करती. हम लोग पाक हकुमत से रोजगार, अस्पताल, स्कूल या रुपया पैसा नहीं मांग रहे है बस अपने जीवन की भीख मांग रहे है. हमारी जिन्दगी पाक फौज के जूतों के नीचे दबी है. लेकिन जो भी पाक फौज पर सवाल उठाता है वो मार दिया जाता है. वो कहते है कि पिछले दिनों मौलवी मेराजुदीन ने पाक फौज पर सवाल उठाया था लेकिन इसके तीन दिन बाद उनकी हत्या हो जाती है. आतंकवाद की जंग में हमारा इस्तेमाल टिशु पेपर की तरह किया जा रहा है. कभी हमला हमसे करवाते है तो कभी हमलावर बताकर हमारे ऊपर ही बमबारी कर दी जाती है.

 

वैसे इतिहास गवाह है कि पश्तूनी क्षेत्र के लोगों को जबरन नियंत्रण में रखना कभी संभव नहीं रहा. पाकिस्तान के पश्तून समूहों पर कोई भी पूरी तरह अंकुश नहीं लगा पाया. ना सिर्फ पाकिस्तान और अफगानिस्तान बल्कि ब्रिटिश और अमरीकियों ने भी जब ऐसी कोशिशें की तो उन्हें उल्टा नुकसान उठाना पड़ा. फिलहाल तो पीटीएम पाकिस्तान के अलग-अलग शहरों में रैलियां कर रहा है, लोगों को अपने समर्थन में जुटा रहा है और अपनी मांगों को पुरजोर तरीके से रख रहा है. अब यह देखना बाकी है कि यह आंदोलन पाकिस्तान की राजनीति को किस तरह प्रभावित करता है. पश्तूनी समुदाय के मन में खिंची ये लकीर नक्शे पर उभरती है या फिर अमानवीय तरीकों से दबा दी जाती है.

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