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बड़ा अद्भुत तर्क है, लोग कहते हैं कि
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय|
बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो बताय||

 

कहते हैं गुरु ईश्वर से इसलिए बड़ा है कि गुरु ईश्वर के प्राप्ति का मार्ग बताता है, यदि वह न बताए तो कोई ईश्वर तक नहीं पहुंच सकता, इसलिए गुरु बड़ा है।

 

मैं भी पूछता हूँ कि बताओ, यदि आप राष्ट्रपति से मिलने राष्ट्रपति भवन जाते हैं, और सबसे पहले आपकी भेंट तो किसी कर्मचारी/ चपरासी से ही होगी, और वो किसी तरह आपको राष्ट्रपति तक जाने का रास्ता बताये या स्वयं ले जाकर मिला दे, तो प्रश्न उठता है कि राष्ट्रपति बड़ा या चपरासी(कर्मचारी)?🤣

 

राष्ट्रपति तो सर्वेसर्वा है, उसी प्रकार ईश्वर भी सर्वेसर्वा है, वह निःसन्देह सबसे बड़ा है। à¤‡à¤¸à¤²à¤¿à¤ भी कि उसने आपके गुरु को भी जीवन दिया है, आपके गुरु की श्वासें भी उसकी कृपा से चलती हैं, गुरु का दिया गया वास्तव में ईश्वर का ही दिया ज्ञान है, गुरु तो केवल कर्मचारी की तरह पथ-प्रदर्शक हैं, परन्तु समस्त सत्य का एकमात्र स्रोत वहीं *ईश्वर* ही है।

 

यदि यह कहा जाय कि गुरु ज्ञान न देता तो ईश्वर कभी नहीं मिल सकता, तो भी प्रश्न उठता है कि उसने गुरु को ही जन्म न दिया होता तो फिर कौन क्या करता?

😀

और तो और उसके अनुमति के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता, यदि ईश्वर की इच्छा ही न होती(नियम) तो वह गुरु भी नहीं मिलता, जो आपको उस तक पहुंचाता।

सब बात की एक बात जो महर्षि पतंजलि ने अपने योगशास्त्र में बताई है:-

*पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात्*
अर्थात वह आदि पूर्वजों का भी गुरु और इसका काल से भी अवच्छेद नहीं किया जा सकता।

उसने ही चार-ऋषियों के अन्तस् में समस्त ज्ञान-विज्ञान के आदिस्रोत *वेद* का प्रकाश किया।

इसलिए वह ईश्वर, गुरूओ का भी गुरु *आदिगुरु*, महागुरु है।

इसीलिए ऋग्वेद के पहले मन्त्र में ही कहा है-
*अग्निमिळे पुरोहितम्*

वह सबसे पहला हित करने वाला अग्नि(परमेश्वर) ही है।

अतः सब जगत का बनाने वाले और पालन करने वाले ईश्वर का स्थान ही सर्वोपरि है।

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