देश में एक बार फिर अनियंत्रित भीड़ ने दो लोगों हत्या कर दी। इस भीड़ का शिकार अबकी बार असम के कार्बी आंगलान्ग जिले में दो ऐसे नवयुवक बने है। जो कार्बी के सुदूरवर्ती इलाके डोकमोका में स्थित काथिलांगसो झरना घूमने गए हुए थे। बताया जा रहा है कि भीड़ को शक हुआ कि दोनों युवक बच्चों का अपहरण करने वाले गिरोह के सदस्य हैं। जबकि दोनों मृतक दोस्त थे, जिनमें से एक कारोबारी और दूसरा साउंड इंजीनियर था। देर रात अपनी कार से वापस लौटते हुए पंजूरी गांव के पास भीड़ ने उन्हें बच्चा अपहरण करने वाला समझकर रोक लिया। भीड़ ने दोनों को वाहन से नीचे उतारा और बांधकर उनकी बेरहमी से पिटाई शुरू कर दी। पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची तो दोनों की सांसें चल रही थीं। पुलिस दोनों को अस्पताल ले गई, लेकिन रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया। 

देश में की इस तरह की घटनाएं इतनी तेजी से घटित हो रही हैं कि जब तक हम एक खबर पर पूरी तरह संवेदना भी प्रकट नहीं कर पाते तब तक दूसरी सामने मुंह बाए खड़ी होती है। हम आपस में ही नजर नहीं रख पा रहे हैं कि किसके साथ क्या हो रहा है? मारो, पकड़ो, ये रहा, वो गया, भागने-दौड़ने की आवाजें, गाली, चीखने की आवाजों के साथ जब तक कोई सोचे समझे कि क्या हुआ है तब तक किसी निर्दोष का पंचनामा भरा जा रहा होता है और मरने वाले को उसका कसूर भी नहीं पता होता। 

असम में इन दोनों युवकों की पिटाई करती भीड़ का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ है। वीडियो में देखा जा सकता है कि दोनों युवक छोड़ देने की गुहार लगा रहे हैं। वे कह रहे हैं कि वे भी असम के ही रहने वाले हैं। लेकिन भीड़ पर उनकी गुहार का कोई असर नहीं होता और नीलोत्पल दास एवं अभिजीत नाथ को भीड़ हिंसा का शिकार बना लेती है। इस वीडियो समेत हिंसा भरी इसी तरह की कोई भी वीडियो देख लीजिये आप आसानी से अंदाजा लगा सकते है कि लोगों का विवेक उनके पास नहीं होता।  

अफवाही हिंसा के इस उद्योग का कोई निश्चित ठिकाना नहीं होता। इसका शिकार राजस्थान में भी हो सकता है और दिल्ली में भी। अचानक एक सूचना कहीं से भी वायरल होती है और लोगों के दिमाग अपनी जद में ले लेती है। पिछले महीने महाराष्ट्र का नांदेड़ जिला अचानक हिंसक हो उठा था। पूरे जिले में अफवाह फैल गयी कि बच्चा उठाने वाला एक गिरोह घूम रहा है। इसी बीच लोगों की नजर चार संदेहस्पद लोगों पर पड़ी। जमकर उनकी पिटाई कर दी थी।

पिछले दिनों ही तमिलनाडू के तिरूवन्नमलाई में मुथुमारियम मंदिर में दर्शन को जा रही एक महिला समेत चार रिश्तेदार पर बच्चा उठाने वाले गिरोह का सदस्य समझकर हमला किया जिनमें दो की हालत बेहद गम्भीर थी। वहां भी पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर ये झूठी खबर फैलाई जा रही है कि उत्तर भारत के कुछ बच्चे चुराने वाले गिरोह शहर में घूम रहे है।

पिछले साल झारखण्ड के खरसावां में दो स्थानों पर तीन लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी। उन पर भी बच्चे उठाने का संदेह था। जबकि वह पशु व्यापारी थे। इसी साल 25 मई को कर्नाटक में व्हाट्सएप पर बच्चा चोरी करने वाले के हुलिए के साथ मैसेज लोगों को मिल रहा था। इसे देखने के बाद कुछ लोगों ने वहां राजस्थान के टाइल्स फिटर कालूराम को बच्चा चोर समझकर पीट-पीटकर मार डाला। जमशेदपुर से लेकर मुर्शिदाबाद तक असम से लेकर राजस्थान तक ये भीड़ ही अदालत बनती जा रही है। किसे कैसी मौत देनी है, किस पर क्या आरोप तय करने हैं, ये भीड़ तय कर लेती है। 

इस भीड़ को हांकने के लिए कोई बड़े प्रबंधन की जरूरत नहीं इसे व्हाटएप्प के ग्रुप बनाकर भी हांका जा रहा है इस भीड़ के सामने सरकारें बेबस हैं। संविधान बौना नजर आता है। प्रशाशन भी इसे समझने में लाचार दिख रहा है। इस भीड़ के तरीकों को देखकर लगता है जैसे कोई समूह यह प्रयोग कर रहा हो कि अलग-अलग अफवाहों के कारण यह भीड़ कितनी जगह हिंसा कर सकती है और कितने लोगों को मौत के घाट उतार सकती है।

इन सवालों के जवाब भी तलाश करने होंगे कि आखिर लोगों के अन्दर इतना गुस्सा कहाँ से आ जाता कि भीड़ किसी को घर से निकाल लाती है ये बच्चा चोरी के आरोप लगाकर किसी राह चलते को मार देती है। ये बीफ खाने के शक में किसी को मौत दे सकती है, ये भीड़ मजहब के नाम पर, धर्म के नाम पर तो कभी किसी को डायन का आरोप जड़कर फैसला कर सकती है। इस भीड़ के पास सवाल नहीं होते बस जवाब के नाम पर हिंसा होती है। 

इसे देखकर लगता लगता है कि लोग सोचने समझने की शक्ति खत्म कर चुके हैं। लोगों का संचालन सोशल मीडिया से किया जा रहा हैं। आदर्शो को समाप्त कर कानून से निडर लोग हिंसा से एक दूसरे के चेहरे पोत रहे हैं। इनमें शामिल कोई दूसरे गृह के प्राणी नहीं है। हमारे आस-पास के हिस्से इस भीड़तंत्र में हैं जो किसी को भी लाठी से मार रहे हैं, जो किसी को गोली से मार रहे हैं।

हमें ये देखना पड़ेगा कि यहाँ हर कोई पत्रकार और समाचार चैनल बना हुआ है देश में अलग-अलग स्थानों से झूठी खबरें विभिन्न पोर्टलों के सहारे परोसी जा रही हैं। आप गूगल पर एक सत्य की तलाश कीजिये आपको बीस झूठ की खबरें मिलेगी। कहीं से कोई शेयर हो जाता है, किसी के पास पहुंच जाता है। वो उस लिंक में दो बात खुद की जोड़ता है बड़े ग्रुप में फेंक देता है। देखते-देखते एक झूठ का शिकार लाखों लोग हो जाते हंै और झूठ हिंसा बनकर किसी निर्दोष का रक्त पी जाती है। 

इस सवाल का भी हल खोजना होगा कि एक झूठी खबर पर प्रतिक्रियावादी आक्रामकता जगह क्यों बना रही है, जो लोग आज इस भीड़ के प्रति लगातार सहनशील और खामोश होते चले जा रहे हैं। वो इस भीड़ को ताकतवर बना रहे है यदि भीड़ इसी तरह ताकतवर होती चली गयी एक दिन हमें अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को भी इस भीड़ के हवाले करना पड़ेगा और ये भीड़ राष्ट्र की हत्या करने से भी नही चुकेगी।

 

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