करीब दो साल पहले पंजाब में ड्रग्स को लेकर बनी फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ को लेकर विवाद खड़ा हुआ था। असल में नशे से जुड़े जिस मुद्दे को इस फिल्म ने उठाना चाहा था विवाद से वह बैकग्राउंड में चला गया था। अब दोबारा पिछले एक महीने के दौरान करीब दो दर्जन युवाओं की मौत से दहले पंजाब में इस मुद्दे पर सियासी संग्राम छिड़ गया है। विपक्ष की चौतरफा घेराबंदी के बीच पंजाब कैबिनेट ने ड्रग तस्करों को फांसी की सजा का प्रावधान वाला एक प्रस्ताव मंजूरी के लिए केंद्र को भेजने का फैसला ले लिया है। राजनीति से जुड़े लोग इस फैसले को राजनीति की नजर से देखकर कह रहे हैं कि पंजाब सरकार ने एक तरह से अपने गले का सांप केंद्र के गले में डाल दिया है। अब केंद्र सरकार के रुख पर सबकी नजर रहेगी। यदि केन्द्र इस प्रस्ताव को मंजूरी दे देता है तो प्रदेश में नशे का धंधा करने वालों पर कड़ी नकेल कसी जा सकती है।

असल में पंजाब में नशे की समस्या यूं तो बरसों पुरानी है और इस मुद्दे पर सियासत अक्सर उबाल भी खाती रही है लेकिन, इस बार यह मुद्दा इसलिए भी ज्यादा गर्माया क्योंकि पंजाब में पिछले एक महीने के दौरान करीब 30 लोगों की मौत इस नशे की वजह से हो गई। राज्य में नशे की जड़ों का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अंतर्राष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी तक इसकी चपेट में हैं। बताया जा रहा है कि गुरुदासपुर के काहनूवान इलाके में यह खिलाड़ी शमशान घाट पर युवाओं को नशा बेचते हुए पकड़ा गया था। 

बीते कुछ दशकों में देश और देश के बाहर पंजाब में किसी महामारी की भांति पसरे नशे की इस लत के बारे में बहुत कुछ लिखा और कहा गया है। कभी देश का ब्रेड बास्केट कहा जाने वाले पंजाब में आज लहराती फसलों के बीच नशे की लत आम बात हो चुकी है। राज्य के युवा अफीम, हेरोइन और कोकीन जैसे नशे का शिकार हो रहे हैं। जो मुनाफा कमाने का आसान रास्ता बन रहा है। सिख गुरुओं की अध्यात्मिक भूमि,  गुरु तेगबहादुर जी की वीर भूमि आज नशे के सौदागरों का अड्डा बनती जा रही है। पिछले कुछ समय पहले केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण विभाग ने पंजाब के दस जिलों में सर्वे कराया था, जिसके मुताबिक पंजाब में ड्रग्स और दवाइयों की लत के चपेट में करीब 2.3 लाख लोग थे। जबकि करीब 8.6 लाख लोगों के बारे में अनुमान था कि उन्हें लत तो नहीं है, लेकिन वे नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं। सर्वे से जुड़े लोगों की चिंता यही थी कि इन्हीं में से ज्यादातर लोग बाद में नशे के आदी हो जायेंगे। जो आज जायज होती दिख भी रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक नशा करने वालों में 99 फीसदी मर्द, 89 फीसदी पढ़े लिखे, 54 फीसदी विवाहित लोग हैं। हेरोइन सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला मादक पदार्थ है हेरोइन इस्तेमाल करने वाला एक शख्स इस पर रोजाना करीब 1400 रुपए तक खर्च कर डालता है।

हालाँकि अलग-अलग सर्वे और रिपोर्टें पंजाब समेत देश भर में नशे की समस्या को लेकर गंभीर नतीजों की बात करती रही हैं। लेकिन नतीजा हर बार दलगत राजनीति का शिकार होकर रह गया। अकाली सरकार के समय कांग्रेस आरोप लगाती रही कि सरकार की मिली भगत के कारण राज्य का युवा बर्बाद हो रहा है जिसमें एक बार स्वयं राहुल  गाँधी ने भी कहा था कि पंजाब में 70 फीसदी लोग नशे के शिकार हैं, तो जिस पर काफी बयानबाजी भी हुई थी कि आँकड़े बढ़ा-चढ़ा कर बताए जा रहे हैं। आज राज्य में कांग्रेस की ही सरकार है अब ऐसे ही आरोप वर्तमान सरकार पर अकालियों द्वारा लगाये जा रहे हैं। मसलन कोई भी पार्टी इस समस्या को दलगत राजनीति से बाहर ले जाकर सुलझाती नहीं दिख रही है।

दरअसल पंजाब में पाकिस्तान सीमा से लगे इलाकों में यह समस्या सबसे ज्यादा है, जहाँ से अफगानिस्तान से पाकिस्तान के रास्ते होते हुए भारत में हेरोइन की तस्करी की जाती है। हालाँकि बीएसएफ के हाथों होरोइन की तस्करी पकड़ने के मामले भी सामने आते रहते हैं। किन्तु ये सिलसिला तो कई वर्षों से जारी है। बताया जा रहा है कि कई बार माफिया और उनके गुर्गे तस्करी करते हुए पकड़े भी जाते हैं, लेकिन मिलीभगत के चलते कार्रवाई नहीं की जाती है। जिसके चलते नशे के सौदागर बेखौफ नशे के इस धंधे को चला रहे हैं और लोगों को बर्बादी की ओर धकेल रहे हैं। 

हाल फिलहाल हुई मौतों से भले ही राजनितिक पार्टियाँ अपने नफे नुकसान को देखते हुए बवाल मचा रही हों लेकिन नशे की दलदल में डूबे पंजाब की जमीनी हकीकत यह भी है कि नशे के कारण बर्बाद हुए अमृतसर जिले के गांव ‘मकबूलपुरा’ को विधवाओं का गांव ‘विलेज ऑफ विडोज’ कहा जाने लगा है और उसकी वजह ये है कि यहां के अधिकतर मर्दों की नशे के चलते मौत हो चुकी है। इसके बावजूद भी शराब आदि नशे के पदार्थो को मर्दानगी से जोड़कर बढ़ा-चढ़ा कर पंजाबी गानों में भी पेश किया जा रहा है, उससे ऐसी छवि बनती है कि नशा करना बड़े शान की बात हो। जैसे चार बोतल वोडका, काम मेरा रोज का, मैं नशे में टल्ली हो गया.... आदि-आदि गाने परोसे जा रहे हैं।

आज बड़े किसान और नेता अपने फायदे के लिए नशा बांट रहे हैं। पंजाब के तमाम डेरे और बाबा नशा छुड़ाने के नाम पर अपनी दुकानदारी चमका रहे हैं। किसान ही नहीं, नशे की जद में अब कॉलेज के छात्र, रिक्शा वालों से लेकर, दुकानदार भी शामिल हैं। ऐसे हालात में एक सवाल पंजाब की मिट्टी से जरुर उपजना चाहिए कि भारतीय सेना शामिल होकर दुश्मन के छक्के छुड़ाने वाले पंजाब के गबरू जवान  आज नशे के खिलाफ इस लड़ाई में कमजोर क्यों पड़ते जा रहे है? साथ ही सवाल ये भी है कि जिस पंजाब को मुस्लिम आक्रान्ता नहीं हरा पाए, जिस पंजाब ने अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए, जिस पंजाब ने खालिस्तान समर्थकों से हार नहीं मानी! क्या आज वह पंजाब इस नशे से हार जायेगा?

-राजीव चौधरी

 

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