फिर देश में संविधान का काम ही कà¥à¤¯à¤¾ रह जायेगा?
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Rajeev ChoudharyDate
14-Jul-2018Category
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à¤à¤• बार फिर से ये बहस जोर पकड़ रही है कि देश संविधान से चलेगा या इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¤¿à¤• शरिया कानून से? कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हाल ही में आल इंडिया मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® परà¥à¤¸à¤¨à¤² लॉ बोरà¥à¤¡ की दारà¥à¤² कजा कमेटी के आयोजक काजी तबरेज आलम ने कहा है कि मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ कोरà¥à¤Ÿ कचहरी के चकà¥à¤•à¤° लगाने के बजाय अपने मà¥à¤•à¤¦à¤®à¥‡ दारà¥à¤² कजा (शरई अदालत) के जरिये निपटाà¤à¤‚। इनके इस बयान के बाद इस बहस ने जोर पकड़ लिया है कि जब सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ के बाद नागरिकों के वà¥à¤¯à¤•à¤¿à¤¤à¤¤à¥à¤¤à¥à¤µ के पूरà¥à¤£ विकास के लिठà¤à¤¾à¤°à¤¤ के संविधान में मौलिक अधिकारों और नीति निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤• ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¾à¤µà¤§à¤¾à¤¨ किया गया है संविधान की पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ में नà¥à¤¯à¤¾à¤¯, समानता, धरà¥à¤®à¤¨à¤¿à¤°à¤ªà¥‡à¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ à¤à¤µà¤‚ सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• बहà¥à¤²à¤¤à¤¾ के महतà¥à¤¤à¥à¤µ का सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ उलà¥à¤²à¥‡à¤– है और पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• नागरिक को विधि के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ समान संरकà¥à¤·à¤£ और नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ का अधिकार देता है तो फिर देश में धारà¥à¤®à¤¿à¤• अदालतों की जरूरत मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ को कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ आन पड़ी?
कहीं à¤à¤¸à¤¾ तो नहीं कि संपूरà¥à¤£ विशà¥à¤µ में मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ आगे बà¥à¤•à¤° नित नई मांगें सामने रख रहे हैं और कà¥à¤› मामलों में तो अनà¥à¤¯ मतो या उसी देश के नागरिकों के सामाजिक जीवन शैली को ही चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ देते दिख रहे हैं। जिनमें मधà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤² की शरई अदालत à¤à¥€ à¤à¤• है। मेरे खà¥à¤¯à¤¾à¤² से आज के सारà¥à¤µà¤œà¤¨à¤¿à¤• आधà¥à¤¨à¤¿à¤• जीवन में शरीयत जैसे मधà¥à¤¯à¤¯à¥à¤—ीन कानून के लिठकोई जगह नहीं होनी चाहिठइसका à¤à¤• सामानà¥à¤¯ नियम यह है कि पूरे अधिकार दो परनà¥à¤¤à¥ विशेषाधिकार की माà¤à¤— असà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° कर दी जाये।
आखिर जिस शरई अदालत की मांग काजी तबरेज आलम कर रहे हैं उसमें यह कौन सà¥à¤¨à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ करेगा कि इसकी आड़ में महिलाओं और कमजोर मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤®à¥‹à¤‚ का शोषण नहीं होगा? कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि निकटवरà¥à¤¤à¥€ फैसलों में इसके अचà¥à¤›à¥‡ परिणाम दिखाई नहीं दिठहै। मà¥à¤œà¤«à¥à¤«à¤°à¤¨à¤—र में साल 2005 में कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤† था इमराना घर की चारदीवारी के à¤à¥€à¤¤à¤° ही अपने ससà¥à¤° की हैवानियत का शिकार हà¥à¤ˆ थी जिसे बाद में इसी शरिया अदालत ने इमराना को उसके पिता तà¥à¤²à¥à¤¯ ससà¥à¤° की पतà¥à¤¨à¥€ घोषित किया था, अंत में इसी à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संविधान ने इमराना को नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ दिया और उसके बलातà¥à¤•à¤¾à¤°à¥€ ससà¥à¤° को नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ ने दस साल की सजा सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ थी।
जिसे ये उदहारण पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ लगा हो अà¤à¥€ ताजा उदहारण बरेली का है जहाठनिदा खान नाम की à¤à¤• मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® महिला को शौहर दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ तलाक मिला और दोबारा निकाह के लिठमजबूरी में ससà¥à¤° से हलाला करना पड़ा था, मगर पिछले साल शौहर ने फिर तलाक देकर घर से निकाल दिया। फरियादों और गà¥à¤¹à¤¾à¤° के à¤à¤• लमà¥à¤¬à¥‡ दौर के बाद शौहर फिर दोबारा निकाह के लिठतैयार हà¥à¤† लेकिन इस बार उसने अपने छोटे à¤à¤¾à¤ˆ के साथ हलाला करने की शरà¥à¤¤ रखी। ये सब शरà¥à¤®à¤¨à¤¾à¤• कांड इसी ;शरई अदालतदà¥à¤§ की छाà¤à¤µ में हà¥à¤† है जिसके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° आज मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ को हांकने की कोशिश की जा रही है। कà¥à¤¯à¤¾ कोई सोच à¤à¥€ सकता है कि à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संविधान की नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ à¤à¤¸à¥‡ कृतà¥à¤¯ की इजाजत देती?
इन घिनौने अमानवीय कृतà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के बाद à¤à¥€ वहाबी लौबी à¤à¤¾à¤°à¤¤ से संविधान को नषà¥à¤Ÿ कर शरिया अदालत से चला देना चाह रही है जबकि (शरई अदालत) के पैरोकारों को अपनी मांगों का मूलà¥à¤¯à¤¾à¤‚कन करना चाहिठ(शरई अदालत) की आड़ में पूरà¥à¤µà¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ कृतà¥à¤¯à¥‹à¤‚ और सामयिक आचरण को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ को रखना चाहिà¤? इन पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• उदाहरण से यह बात समठमें नहीं आती कि à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨à¤¾à¤‚ के कथित रहनà¥à¤®à¤¾ बने ये लोग सामाजिक दायरे में समायोजित होना चाहते हैं या फिर इसे नठसिरे से बनाना चाहते हैं। आखिर वह तरीका इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¤¿à¤• कानून के अलावा कोई दूसरा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं हो सकता? किसी à¤à¥€ नागरिक का समान वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ के अंतरà¥à¤—त रहना तो ठीक है परनà¥à¤¤à¥ इसे अपने अनà¥à¤¸à¤¾à¤° चलाना सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ अनà¥à¤šà¤¿à¤¤ है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ के संदरà¥à¤ में जहाठगंगा जमà¥à¤¨à¥€ तहजीब के गीत गाये जाते हैं वहां मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ को संविधान के ढांचे को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करना चाहिठन कि इसकी अवहेलना करनी चाहिà¤à¥¤ जो लोग शरियत के पकà¥à¤· में तरà¥à¤• देते हैं उनसे सिरà¥à¤« à¤à¤• पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ है कि आखिर लोकतानà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤• और आधà¥à¤¨à¤¿à¤• संवैधानिक विधि को लेकर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ समसà¥à¤¯à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ है? जबकि शेष दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ ने अपनी पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤• विधियों को नकार दिया और आधà¥à¤¨à¤¿à¤• संविधान को आतà¥à¤®à¤¸à¤¾à¤¤ किया है।
इस संदरà¥à¤ में देखें तो à¤à¤• ओर आधà¥à¤¨à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ के इस दौर में कà¥à¤› कटà¥à¤Ÿà¤°à¤ªà¤‚थी संगठन अनेकों सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर शरिया अदालत का पà¥à¤°à¤œà¥‹à¤° समरà¥à¤¥à¤¨ करते हà¥à¤ हिंसा à¤à¥€ कर रहे है। शायद यह इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¤µà¤¾à¤¦ का à¤à¤• पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— हो? यदि यह पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— असफल होता दिखता है तो दूसरा पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— शà¥à¤°à¥‚ हो जाता है मज़हब के नाम पर नरम आवाज में अपनी मांग पà¥à¤°à¤œà¥‹à¤° करते हैं कि उनकी आसà¥à¤¥à¤¾ को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखकर मज़हब के आधार पर अलग अदालते होनी चाहिà¤à¥¤ यदि अदालत न मिले तो अपने लिठअलग मà¥à¤²à¥à¤• की मांग रख दी जाये। जैसाकि देश 1947 में मजहब के आधार पर à¤à¥à¤•à¥à¤¤à¤à¥‹à¤—ी है इसमें कानून और विधि के जानकर इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¥€ नरम तरीकों से अपनी बात रखतें और उसके बाद हिंसक ततà¥à¤¤à¥à¤µ सतà¥à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करते हैं या शरिया अदालतों का संचालन करते हैं। जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° हमास ने गाजा पर नियंतà¥à¤°à¤£ करने के बाद किया था।
à¤à¤• तरफ मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ अपने अधिकारों की मांग संविधान के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° करता दिखता है जिसमें कि आरकà¥à¤·à¤£ आदि चीजें मांगता है दूसरा अपने फैसले मधà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤² के शरई कानून में चाहता है कà¥à¤¯à¤¾ यह निसà¥à¤•à¤°à¥à¤· इस बात पर पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ को पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ करता है कि इसà¥à¤²à¤¾à¤® और उसके सामानà¥à¤¯ ततà¥à¤¤à¥à¤µ अपने आप में आधà¥à¤¨à¤¿à¤• संविधान और लोकतंतà¥à¤° से असंगत हैं। जिस कारण आज à¤à¥€ मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® समाज इसà¥à¤²à¤¾à¤® के सातवीं सदी के सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ को पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ करने के लिठपà¥à¤°à¤œà¥‹à¤° कोशिश कर रहा है। जबकि मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अधिक अधिकार की माà¤à¤— के मामलों में पà¥à¤°à¤®à¥à¤– अंतर यह करना चाहिठकि कà¥à¤¯à¤¾ मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® अपेकà¥à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ समाज के दायरे में उपयà¥à¤•à¥à¤¤ बैठती हैं या नहीं! उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ साफ करना चाहिठकि हमें समाज में समायोजित होना या समाज को सà¥à¤µà¤¯à¤‚ में समायोजित करना है? यदि आज दारà¥à¤² कजा (शरई अदालत) को सरकार या संविधान में सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° किया गया तो कल खाप के फैसले, परसों गिरजाघर के फैसले इसके बाद हर à¤à¤• पंथ, हर मजहब, समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ या जाति अपने-अपने तरीकों से फैसलों की मांग करेगा। फिर देश के अनà¥à¤¦à¤° संविधान का काम ही कà¥à¤¯à¤¾ रह जाà¤à¤—ा?
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