कया वेशयावृति हमारी संसकृति का अंग है ?
Author
Dr. Vivek AryaDate
13-Nov-2014Category
शंका समाधानLanguage
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SaurabhUpload Date
14-Nov-2014Download PDF
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कया वेशयावृति को सरकारी मानयता देने से यौन रोगों व अपराधों आदि की रोकथाम होगी ?
शंका- पराचीन काल में राजा लोग वैशयावृति में लिपत थे। हमारे यहा पर कामसूतर वं खजराओ कि मूरतियां हैं जोकि हमारी संसकृति का à¤à¤¾à¤— हैं। वेशयावृति को सरकारी मानयता देने से AIDS, STD, ILLEGAL TRAFFICKING आदि कि रोकथाम होगी।
समाधान- जो राजा लोग वेशयावृति में लिपत थे वे कोई आदरश नहीं थे। हमारे आदरश तो शरी राम हैं जिनहोंने चरितरहीन शूरपनखा का परसताव असवीकार किया। कछ लोगो दवारा खजराओ की नगन मूरतिया अथवा वातसायन का कामसूतर को à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसकृति और परमपरा का नाम दिया जा रहा हैं जबकि सतय यह हैं कि à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसकृति का मूल सनदेश वेदों में वरणित संयम विजञान पर आधारित शदध आसतिक विचारधारा हैं।
à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤•à¤µà¤¾à¤¦ अरथ और काम पर जयादा बल देता हैं जबकि अधयातम धरम और मकति पर जयादा बल देता हैं । वैदिक जीवन में दोनों का समनवय हैं। क ओर वेदों में पवितर धनारजन करने का उपदेश हैं दूसरी ओर उसे शरेषठकारयों में दान देने का उपदेश हैं । क ओर वेद में à¤à¥‹à¤— केवल और केवल संतान उतपतति के लि हैं दूसरी तरफ संयम से जीवन को पवितर बनाये रखने की कामना हैं । क ओर वेद में बदधि की शांति के लि धरम की और दूसरी ओर आतमा की शांति के लि मोकष (मकति) की कामना हैं। धरम का मूल सदाचार हैं। अत: कहा गया हैं आचार परमो धरम: अरथात सदाचार परम धरम हैं। आचारहीन न पननति वेदा: अरथात दराचारी वयकति को वेद à¤à¥€ पवितर नहीं कर सकते।
अत: वेदों में सदाचार, पाप से बचने, चरितर निरमाण, बरहमचरय आदि पर बहत बल दिया गया हैं जैसे- यजरवेद ४/२८ – हे जञान सवरप परठमे दशचरितर या पाप के आचरण से सरवथा दूर करो तथा मे पूरण सदाचार में सथिर करो। ऋगवेद ८/४८/५-६ – वे मे चरितर से à¤à¤°à¤·à¤Ÿ न होने दे। यजरवेद ३/४५- गराम, वन, सà¤à¤¾ और वैयकतिक इनदरिय वयवहार में हमने जो पाप किया हैं उसको हम अपने से अब सरवथा दूर कर देते हैं। यजरवेद २०/१५-१६- दिन, रातरि, जागृत और सवपन में हमारे अपराध और दषट वयसन से हमारे अधयापक, आपत विदवान, धारमिक उपदेशक और परमातमा हमें बचा। ऋगवेद १०/५/६- ऋषियों ने सात मरयादां बनाई हैं. उनमे से जो क को à¤à¥€ परापत होता हैं, वह पापी हैं. चोरी, वयà¤à¤¿à¤šà¤¾à¤°, शरेषठजनों की हतया, à¤à¤°à¥‚ण हतया, सरापान, दषट करम को बार बार करना और पाप करने के बाद छिपाने के लि ूठबोलना। अथरववेद ६/४५/१- हे मेरे मन के पाप! मसे बरी बातें कयों करते हो? दूर हटों. मैं ते नहीं चाहता। अथरववेद ११/५/१०- बरहमचरय और तप से राजा राषटर की विशेष रकषा कर सकता हैं। अथरववेद११/५/१९- देवताओं (शरेषठपरषों) ने बरहमचरय और तप से मृतय (दःख) का नषट कर दिया हैं। ऋगवेद à¥/२१/५- दराचारी वयकति कà¤à¥€ à¤à¥€ परठको परापत नहीं कर सकता। इस परकार अनेक वेद मनतरों में संयम और सदाचार का उपदेश हैं। खजराओ आदि की वयà¤à¤¿à¤šà¤¾à¤° को परदरशित करने वाली मूरतिया ,वातसायन आदि के अशलील गरनथ क समय में à¤à¤¾à¤°à¤¤ वरष में परचलित ह वाम मारग का परिणाम हैं जिसके अनसार मांसाहार, मदिरा वं वयà¤à¤¿à¤šà¤¾à¤° से ईशवर परापति हैं।
कालांतर में वेदों का फिर से परचार होने से यह मत समापत हो गया पर अà¤à¥€ à¤à¥€ à¤à¥‹à¤—वाद के रूप में हमारे सामने आता रहता हैं। यह क कतरक हैं कि वेशयावृति को सरकारी मानयता देने से AIDS आदि बीमारियां कम होगी। क उदहारण लीजिये क विवाहित वयकति सबह से शाम तक मजदूरी कर पैसे कमाता हैं , मेहनत करता हैं, पसीना बहाता हैं। अब कलपना कीजिये वेशयावृति को मानयता मिलने पर वह अपनी बीवी से धंधा करवागा और आराम से बैठकर खायेगा। अब सरकारी कानून के कारण वह सा नहीं कर सकता। क शराबी बाप अपनी बेटी से अपनी नशे की आवशयकता को पूरा करने के लि धंधा करवागा। कलपना करो बाद में समाज में इससे कितना वयà¤à¤¿à¤šà¤¾à¤° फैलेगा। क काल में उततरांचल की पहाड़ी जातियों में अनेक परिवारों में सी कपरथा थी। परिवार की महिलाओं से धंधा करवाया जाता था। लाला लाजपत राय जैसे समाज सधारकों ने उस रकवाया था। आज आप सामाजिक परगति के नाम पर फिर से समाज को उसी गरत में कयों धकेलना चाहते हैं? HIV आदि की रोकथाम ने नाम पर विदेशी शकतियां हमारे देश को à¤à¥‹à¤—वाद के रूप में मानसिक गलाम बनाना चाहती हैं जिससे उनके लि à¤à¤¾à¤°à¤¤ क बड़े उपà¤à¥‹à¤•à¤¤à¤¾ बाजार के रूप में बना रहे वं यहा के लोग आरथिक, मानसिक, सामाजिक गलाम बनकर सदा पीड़ित रहे।
वैदिक विचारधारा इस गलामी की सबसे बड़ी शतर हैं। इसीलि क सनियोजित षड़यंतर के तहत उसे मिटाने का यह क कतसित परयास हैं। समाज हमारी परमपरा और संसकृति चरितर हीनता नहीं अपित बरहमचरय वं संयम हैं।
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