धारà¥à¤®à¤¿à¤• व सामाजिक अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ व पाखणà¥à¤¡à¥‹à¤‚ का कारण अविदà¥à¤¯à¤¾ है
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Manmohan Kumar AryaDate
08-Aug-2018Category
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HindiTotal Views
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RajeevUpload Date
08-Aug-2018Download PDF
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हमारे देश में अनेक पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के धारà¥à¤®à¤¿à¤• व सामाजिक अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ à¤à¤µà¤‚ पाखणà¥à¤¡ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ हैं। इन अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ à¤à¤µà¤‚ पाखणà¥à¤¡à¥‹à¤‚ का कारण देश में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ सà¤à¥€ मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की अविदà¥à¤¯à¤¾ है। इस अविदà¥à¤¯à¤¾ के कारण अनेक पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की कà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¥€ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ हैं और सामाजिक विदà¥à¤µà¥‡à¤· उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होने सहित किनà¥à¤¹à¥€à¤‚ दो समà¥à¤¦à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ में हिंसा à¤à¥€ होती रहती है। अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ व पाखणà¥à¤¡à¥‹à¤‚ का कारण अविदà¥à¤¯à¤¾ है, यह सतà¥à¤¯ होने पर à¤à¥€ कोई मत-मतानà¥à¤¤à¤° इसे सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° नहीं करता। सà¤à¥€ मतों के आचारà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ उनके अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤ƒ अविदà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤µà¤‚ अपने-अपने पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ की सिदà¥à¤§à¤¿ आदि के कारण जानबूà¤à¤•à¤° à¤à¥€ सतà¥à¤¯ वैदिक मत को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° नहीं करते। यह à¤à¥€ तथà¥à¤¯ है कि महाà¤à¤¾à¤°à¤¤à¤•à¤¾à¤² के बाद लोगों के आलसà¥à¤¯ व पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦ के कारण वैदिक धरà¥à¤® का सतà¥à¤¯à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प विकृत व विलà¥à¤ªà¥à¤¤ हो गया था। लोगों ने वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने में पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦ किया जिससे सतà¥à¤¯ वेदारà¥à¤¥ विलà¥à¤ªà¥à¤¤ होते गये। कà¥à¤› सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के लोगों ने अपनी अविदà¥à¤¯à¤¾ के कारण वेदों के मिथà¥à¤¯à¤¾ व à¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ अरà¥à¤¥ à¤à¥€ किये जिससे समाज में मिथà¥à¤¯à¤¾ विशà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ की वृदà¥à¤§à¤¿ हà¥à¤ˆà¥¤ समय बीतने के साथ समाज में अजà¥à¤žà¤¾à¤¨, अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸, पाखणà¥à¤¡ तथा सामाजिक कà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ में वृदà¥à¤§à¤¿ होती गई। बौदà¥à¤§ काल में महातà¥à¤®à¤¾ बà¥à¤¦à¥à¤§ ने मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤ƒ यजà¥à¤ž में पशॠहिंसा à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¯ कà¥à¤ªà¥à¤°à¤¥à¤¾à¤“ं का विरोध किया। उनकी मृतà¥à¤¯à¥ के बाद उनके अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹ ंने बौदà¥à¤§à¤®à¤¤ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की। इसी कालावधि में देश में महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने जैनमत की à¤à¥€ आलोचना की। लोग वैदिक मत छोड़कर नव-बौदà¥à¤§-मत व जैनमत को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करने लगे। कालानà¥à¤¤à¤° में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शंकराचारà¥à¤¯ जी का आविरà¥à¤à¤¾à¤µ हà¥à¤†à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बौदà¥à¤§ व जैन मत की ईशà¥à¤µà¤° के असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ को न मानने के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ को वेद विरà¥à¤¦à¥à¤§ होने के कारण उनसे शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ करके उनकी मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं का खणà¥à¤¡à¤¨ किया और विजयी हà¥à¤à¥¤ इसके परिणाम सà¥à¤µà¤°à¥‚प ततà¥à¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨ जैनी वा बौदà¥à¤§à¤®à¤¤ के राजाओं ने सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शंकराचारà¥à¤¯ के अदà¥à¤µà¥ˆà¤¤à¤®à¤¤ को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° किया। इससे बौदà¥à¤§ व जैन मत पराà¤à¤µ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ और सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शंकराचारà¥à¤¯ का मत देश à¤à¤° में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ हà¥à¤†à¥¤ à¤à¤¸à¤¾ होने पर à¤à¥€ देश व समाज से अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ व अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ आदि समापà¥à¤¤ न हà¥à¤† और अलà¥à¤ªà¤•à¤¾à¤² में ही सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शंकर की मृतà¥à¤¯à¥ के कारण बौदà¥à¤§ व जैन मत पà¥à¤¨à¤ƒ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¶à¤¾à¤²à¥€ होने लगे। बौदà¥à¤§ व जैन मत à¤à¥€ सतà¥à¤¯ पर आधारित न होने के कारण वह à¤à¥€ सरà¥à¤µà¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¯ नहीं हà¥à¤à¥¤ वैदिक मत के अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ व मिथà¥à¤¯à¤¾ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं में वृदà¥à¤§à¤¿ होती गई। इस कारण वह à¤à¥€ वेद की सतà¥à¤¯ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं से बहà¥à¤¤ दूर चले गये। कालानà¥à¤¤à¤° में देश में 18 पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ हà¥à¤† जिससे अनेक पौराणिक मत असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में आये। मà¥à¤–à¥à¤¯ मत शैव, वैषà¥à¤£à¤µ व शाकà¥à¤¤ थे। कालानà¥à¤¤à¤° में इनकी à¤à¥€ अनेक शाखायें हà¥à¤ˆà¤‚ और अनà¥à¤¯ अनेक नये मत पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ हो गये जिनका आधार सतà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ न होकर अविदà¥à¤¯à¤¾ थी। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ (1825-1883) के समय तक देश में मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की वृदà¥à¤§à¤¿ के साथ अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ व कà¥à¤ªà¥à¤°à¤¥à¤¾à¤“ं में à¤à¥€ अà¤à¥‚तपूरà¥à¤µ वृदà¥à¤§à¤¿ हà¥à¤ˆ और आज à¤à¥€ यह कà¥à¤°à¤® बà¥à¤¤à¤¾ ही जा रहा है।
संसार में जितने à¤à¥€ मत-मतानà¥à¤¤à¤° हैं उनमें कà¥à¤› जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ à¤à¥€ हैं, वह सब मतों में सामानà¥à¤¯ हैं। मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की जो मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ व परसà¥à¤ªà¤° विरà¥à¤¦à¥à¤§ हैं, उसका कारण अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ वा अविदà¥à¤¯à¤¾ है। धरà¥à¤® सारà¥à¤µà¤à¥Œà¤®à¤¿à¤• सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को कहते हैं जिनका पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में परमातà¥à¤®à¤¾ ने वेदों में किया है। वेद की सà¤à¥€ बातें व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ सतà¥à¤¯ पर आधारित हैं। हमारे पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ ऋषि मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने वेद के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ की परीकà¥à¤·à¤¾ कर इसे सतà¥à¤¯ व धरà¥à¤® का मूल सिदà¥à¤§ किया था। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने अपने समय में à¤à¥€ वेदों के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को समगà¥à¤°à¤¤à¤¾ व समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£à¤¤à¤¾ से सतà¥à¤¯ पाया और उसका पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° किया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने डिनà¥à¤¡à¤¿à¤® घोष कर कहा कि वेद सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• है। इसके साथ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यह सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ à¤à¥€ दिया कि ‘सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾ (चार वेद) और जो पदारà¥à¤¥ विदà¥à¤¯à¤¾ से जाने जाते हैं उनका आदि मूल परमेशà¥à¤µà¤° है।’ इसका अरà¥à¤¥ यह है कि चार वेद और सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के पदारà¥à¤¥ जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हमारे विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ व वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• विदà¥à¤¯à¤¾ से जानते हैं उन सब पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का आदि मूल अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ रचयिता, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बनानेवाला व पालक परमेशà¥à¤µà¤° है। वेदों के आधार पर ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने ईशà¥à¤µà¤° व जीवातà¥à¤®à¤¾ का सतà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤°à¥‚प à¤à¥€ जनसमà¥à¤¦à¤¾à¤¯ के समà¥à¤®à¥à¤– रखा और घोषणा की कि ‘‘ईशà¥à¤µà¤° सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª, निराकार, सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨, नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥€, दयालà¥, अजनà¥à¤®à¤¾, निरà¥à¤µà¤¿à¤•à¤¾à¤°, अनादि, अनà¥à¤ªà¤®, सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¾à¤°, सरà¥à¤µà¥‡à¤¶à¥à¤µà¤°, सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, सरà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¥à¤¯à¤¾à¤®à¥€, अजर, अमर, अà¤à¤¯, नितà¥à¤¯, पवितà¥à¤° और सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ है। उसी की उपासना करनी योगà¥à¤¯ है।” आज à¤à¥€ कोई मत व उनका बड़ा या छोटा आचारà¥à¤¯ और वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• ऋषि दयाननà¥à¤¦ के इस सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ को à¤à¥à¤ ला नहीं पाया। इससे ईशà¥à¤µà¤° विषयक यह सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§ हà¥à¤† है।
जीवातà¥à¤®à¤¾ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ व पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° की आतà¥à¤®à¤¾ के विषय में ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ के ‘सà¥à¤µà¤®à¤¨à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¨à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶’ में लिखा है कि जो इचà¥à¤›à¤¾, दà¥à¤µà¥‡à¤·, सà¥à¤–, दà¥à¤ƒà¤– और जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¾à¤¦à¤¿ गà¥à¤£à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ अतà¥à¤ªà¤œà¥à¤ž नितà¥à¤¯ है उसी को ‘जीव’ मानता हूं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जीव और ईशà¥à¤µà¤° के सà¥à¤µà¤°à¥‚प के विषय में आगे लिखा कि जीव और ईशà¥à¤µà¤° सà¥à¤µà¤°à¥‚प और वैधरà¥à¤®à¥à¤¯ से à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ और वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¯-वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• और साधरà¥à¤®à¥à¤¯ से अà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जैसे आकाश से मूरà¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨à¥ दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ कà¤à¥€ à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ न था न है, न होगा और न कà¤à¥€ à¤à¤• था, न है, न होगा इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° परमेशà¥à¤µà¤° और जीव को वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¯-वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, उपासà¥à¤¯-उपासक और पिता-पà¥à¤¤à¥à¤° आदि समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ मानता हूं। ऋषि दयाननà¥à¤¦ अà¤à¤¾à¤µ से à¤à¤¾à¤µ का उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होना व à¤à¤¾à¤µ का अà¤à¤¾à¤µ होना नहीं मानते। यह आधà¥à¤¨à¤¿à¤• विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का नियम à¤à¥€ है कि हर पदारà¥à¤¥ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ का कोई à¤à¤• व कà¥à¤› उपादान कारण होते हैं। उस उपादान कारण से ही जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व शकà¥à¤¤à¤¿ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— कर कोई चेतन सतà¥à¤¤à¤¾, ईशà¥à¤µà¤° व मनà¥à¤·à¥à¤¯, नया पदारà¥à¤¥ बना सकते हैं। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने à¤à¥€ दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के आधार पर इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का निमितà¥à¤¤ कारण ईशà¥à¤µà¤° तथा उपादान कारण पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को बताया हैं। वैदिक सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ से à¤à¥€ कारण-कारà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ पà¥à¤·à¥à¤Ÿ होता है। यह à¤à¥€ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ बात है कि किसी वेद में अनà¥à¤¯ मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ की तरह यह नहीं लिखा व कहा है कि ईशà¥à¤µà¤° ने कहा कि ‘हो जा’ या ‘बन जा’ और इतना कहने मातà¥à¤° से ही यह बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ बन गया। à¤à¤¸à¤¾ कहना व मानना अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ व सतà¥à¤¯ का परिहास है। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ के वैदिक सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ का किसी à¤à¥€ मत व वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ ने खणà¥à¤¡à¤¨ नहीं किया। उनमें खणà¥à¤¡à¤¨ की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ है à¤à¥€ नहीं। हमारा मत है कि जो बात तरà¥à¤• व यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ से सिदà¥à¤§ हो वह सतà¥à¤¯ होती है और वही विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ है। ईशà¥à¤µà¤° व जीवातà¥à¤®à¤¾ के समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ में वेद, दरà¥à¤¶à¤¨ और ऋषि दयाननà¥à¤¦ सहित हमारे सà¤à¥€ ऋषि परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ देते हैं। अतः संसार में वेद और वैदिक सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤, जो महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ आदि ऋषियों के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ आदि में वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ हैं, वह पूरà¥à¤£ सतà¥à¤¯ व पूरे विशà¥à¤µ के सà¤à¥€ लोगों के लिठमानà¥à¤¯ व सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤°à¥à¤¯ होने चाहिये। इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मानकर ही देश व समाज सà¥à¤–ी हो सकता है और साथ ही कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो सकता है। समसà¥à¤¤ मानव समाज मिथà¥à¤¯à¤¾ अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ सहित पाखणà¥à¤¡à¥‹à¤‚ से मà¥à¤•à¥à¤¤ à¤à¥€ हो सकता है।
अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ का अरà¥à¤¥ होता है कि किसी असतà¥à¤¯, लाà¤à¤°à¤¹à¤¿à¤¤ अथवा हानिकारक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ को सतà¥à¤¯ सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° कर उसका आचरण करना। ईशà¥à¤µà¤° सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, सरà¥à¤µà¤¾à¤¤à¤¿à¤¸à¥‚कà¥à¤·à¥à¤®, निराकार, सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨, अजनà¥à¤®à¤¾ आदि गà¥à¤£à¥‹à¤‚ वाला है। सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• व निराकार सà¥à¤µà¤°à¥‚प वाले ईशà¥à¤µà¤° की मूरà¥à¤¤à¤¿ व आकृति कदापि नहीं बनाई जा सकती। ईशà¥à¤µà¤° पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर होने से मूरà¥à¤¤à¤¿ के अनà¥à¤¦à¤° व बाहर दोनों सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर होता है। फिर मूरà¥à¤¤à¤¿ के बाहर सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° न करना व उसे दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से ओà¤à¤² करना, मूरà¥à¤¤à¤¿ से बाहर उसका धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ न करना, ईशà¥à¤µà¤° को मूरà¥à¤¤à¤¿ में ही मानना तथा उस पाषाण जड़ मूरà¥à¤¤à¤¿ से अपनी इचà¥à¤›à¤¾à¤“ं की पूरà¥à¤¤à¤¿ व कामनाओं को सफल होना मानना यह घोर अविदà¥à¤¯à¤¾ व अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ और वेदों की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि हम मूरà¥à¤¤à¤¿ की कितनी à¤à¥€ पूजा कर लें, उससे हमें किसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के सà¥à¤– व कामना पूरà¥à¤¤à¤¿ आदि का कोई लाठनहीं होता। इसके सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर यदि हम ईशà¥à¤µà¤° को निराकार, सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° उपलबà¥à¤§ वा विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ तथा सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ मानकर गायतà¥à¤°à¥€ मनà¥à¤¤à¥à¤° आदि से उसका धà¥à¤¯à¤¾à¤¨, पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ व उपासना करते हैं तो इससे ईशà¥à¤µà¤° हमारी पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करता है। फलित जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· à¤à¥€ मिथà¥à¤¯à¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है। इसको मानने से मनà¥à¤·à¥à¤¯ अपनी हानि ही करता है, लाठइससे कà¥à¤› होता नहीं। आज विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ ने विशà¥à¤µ में जो उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ की है वह फलित जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· की उपेकà¥à¤·à¤¾ करके ही की है। हरà¥à¤· का विषय है कि हमारे वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• à¤à¥€ फलित जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· को नहीं मानते। विवाह के अवसर पर जनà¥à¤® पतà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का मिलान फलित जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं के आधार पर करते हैं। इस कारण कई योगà¥à¤¯ वर-वधà¥à¤“ं के विवाह नहीं हो पाते। हमने à¤à¤¸à¥‡ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤·à¥€ à¤à¥€ देखें हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने किसी वृदà¥à¤§ महिला को बताया कि तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ परिवार में पà¥à¤¤à¥à¤° के यहां पà¥à¤¤à¥à¤° उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ न होगा। वह महिला मर गई और उसके बाद उसके पà¥à¤¤à¥à¤° के यहां दो पà¥à¤¤à¥à¤° हो गये। वेदों के ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने à¤à¥€ फलित जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· को मिथà¥à¤¯à¤¾ और देश की गà¥à¤²à¤¾à¤®à¥€ का पà¥à¤°à¤®à¥à¤– कारण माना है।
मृतक शà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§ à¤à¥€ मिथà¥à¤¯à¤¾ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है। मरने के बाद जीवातà¥à¤®à¤¾ का पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® हो जाता है या फिर लाखों व करोड़ों आतà¥à¤®à¤¾à¤“ं में किसी à¤à¤• धरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ व वेदजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ की आतà¥à¤®à¤¾ का मोकà¥à¤· होता है। अनà¥à¤¯ सब आतà¥à¤®à¤¾à¤“ं का पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® होना निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ है। जिस आतà¥à¤®à¤¾ का पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® हो गया उसे à¤à¥‹à¤œà¤¨ जहां उसका जनà¥à¤® हà¥à¤† है, वहां उसके माता-पिता आदि व वह सà¥à¤µà¤¯à¤‚ पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ कर पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करेगा। यहां से बिना पते के à¤à¥‹à¤œà¤¨ वहां कदापि नहीं पहà¥à¤‚च सकता। वरà¥à¤· में à¤à¤• दो बार à¤à¥‹à¤œà¤¨ बनाकर अगà¥à¤¨à¤¿ में डाल देने से मृतक का पूरे वरà¥à¤· के लिठपेट नहीं à¤à¤° सकता। यदि यह मान लें कि मृतक आतà¥à¤®à¤¾ का जनà¥à¤® नहीं हà¥à¤† तो à¤à¥€ उस अजनà¥à¤®à¥€ आतà¥à¤®à¤¾ को तो à¤à¥‹à¤œà¤¨ की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ ही नहीं होगी। à¤à¥‹à¤œà¤¨ की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ तो शरीर को होती है न कि आतà¥à¤®à¤¾ को। अतः मृतक शà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§ à¤à¥€ अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ व पाखणà¥à¤¡ है और इसे कà¥à¤› लोगों ने अपनी सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ सिदà¥à¤§à¤¿ के लिठबनाया हà¥à¤† पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है। जनà¥à¤®à¤¨à¤¾ जातिवाद à¤à¥€ à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़ा अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ व कà¥à¤ªà¤°à¤®à¥à¤ªà¤°à¤¾ है। अतीत में यह बहà¥à¤¤ से निरà¥à¤¦à¥‹à¤· लोगों पर सबल लोगों के अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤° का कारण बना है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने अपने जीवन काल में सबसे पहले इसका विरोध किया था। आज के आधà¥à¤¨à¤¿à¤• यà¥à¤— में जनà¥à¤®à¤¨à¤¾ जातिवाद जारी है। यह लोगों के अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ व अविदà¥à¤¯à¤¾ के कारण ही विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ इसे आज और अà¤à¥€ समापà¥à¤¤ कर देना चाहिये। किसी को à¤à¥€ जनà¥à¤®à¤¨à¤¾ जातिवाचक शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— नहीं करना चाहिये। अपने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के विवाह à¤à¥€ सबको गà¥à¤£, करà¥à¤® व सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ के आधार पर वैदिक धरà¥à¤® के ही à¤à¥€à¤¤à¤° ही करने चाहियें। अविदà¥à¤¯à¤¾ और अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ केवल हिनà¥à¤¦à¥‚ओं में ही नहीं हैं अपितॠबौदà¥à¤§, जैन, ईसाई व मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ सहित सà¤à¥€ मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ हैं। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने सतà¥à¤¯ के निरà¥à¤£à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की अविदà¥à¤¯à¤¾ व अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ का दिगà¥à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ कराया है। सà¤à¥€ समà¤à¤¦à¤¾à¤° व बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सतà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¤à¥à¤¯ का विचार कर अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ और पाखणà¥à¤¡à¥‹à¤‚ सहित मिथà¥à¤¯à¤¾ कà¥à¤ªà¤°à¤®à¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं का तà¥à¤¯à¤¾à¤— करना चाहिये और सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ को पà¥à¤•à¤° à¤à¤•à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° सतà¥à¤¯ वैदिक धरà¥à¤® की शरण में आकर अपने जीवन को सà¥à¤–ी व कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ से यà¥à¤•à¥à¤¤ करना चाहिये। ओ३मॠशमà¥à¥¤
-मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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