खगोल विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का सà¥à¤°à¥‹à¤¤ वेद
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Naveen AryaDate
22-Aug-2018Category
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RajeevUpload Date
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वेद सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• है। सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾ और जो पदारà¥à¤¥ विदà¥à¤¯à¤¾ से जाने जाते हैं, उन सबका आदिमूल परमेशà¥à¤µà¤° है। आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के इन नियमों के माधà¥à¤¯à¤® से सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयानंद न केवल वेदों को सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾ का कोष होने का सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ देते हैं अपितॠउसे परमेशà¥à¤µà¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¤ à¤à¥€ मानते हैं। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° वेदों में मानव कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ के लिठविजà¥à¤žà¤¾à¤¨ बीजरूप में वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ है। वेदों में विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के अनेक पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥‚पों में से à¤à¤• खगोल विदà¥à¤¯à¤¾ को इस लेख के माधà¥à¤¯à¤® से जानने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करेंगे। विशà¥à¤µ इतिहास में सूरà¥à¤¯, पृथà¥à¤µà¥€, चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤®à¤¾ आदि को लेकर अनेक मतमतांतर में अनेक à¤à¥à¤°à¤¾à¤‚तियां पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हैं जो न केवल विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ विरूदà¥à¤§ है अपितॠकलà¥à¤ªà¤¿à¤¤ à¤à¥€ है जैसे पृथà¥à¤µà¥€ चपटी है, सूरà¥à¤¯ का पृथà¥à¤µà¥€ के चारों ओर घूमना, सूरज का कीचड़ में डूब जाना, चाà¤à¤¦ के दो टà¥à¤•à¥œà¥‡ होना, पृथà¥à¤µà¥€ का शेषनाग के सर पर अथवा बैल के सींग पर अटका होना आदि। इन मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं की समीकà¥à¤·à¤¾ के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर वेद वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ खगोल विदà¥à¤¯à¤¾ को लिखना इस लेख का मà¥à¤–à¥à¤¯ उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ रहेगा।
वेदों में विशà¥à¤µ को तीन à¤à¤¾à¤—ों में विà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ किया गया हैं- पृथà¥à¤µà¥€, अंतरिकà¥à¤· (आकाश) à¤à¤µà¤‚ दà¥à¤¯à¥Œ । आकाश का समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ बादल, विदà¥à¤¯à¥à¤¤ और वायॠसे हैं, धà¥à¤²à¥‹à¤• का समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ सूरà¥à¤¯, चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤®à¤¾,गृह और तारों से हैं। पृथà¥à¤µà¥€ गोल है ।
ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ 1/33/8 में पृथà¥à¤µà¥€ को आलंकारिक à¤à¤¾à¤·à¤¾ में गोल बताया गया है। इस मंतà¥à¤° में सूरà¥à¤¯ पृथà¥à¤µà¥€ को चारों ओर से अपनी किरणों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ घेरकर सà¥à¤– का संपादन (जीवन पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨) करने वाला बताया गया है। पृथà¥à¤µà¥€ अगर गोल होगी तà¤à¥€ उसे चारों और से सूरà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ डाल सकता है ।
अब कà¥à¤› लोग यह शंका कर सकते है कि पृथà¥à¤µà¥€ अगर चतà¥à¤°à¥à¤à¥à¤œ होगी तो à¤à¥€ तो उसे चारों दिशा से सूरà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ कर सकता है।
इस शंका का समाधान यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ 23/61-62 मंतà¥à¤° में वेदों पृथà¥à¤µà¥€ को अलंकारिक à¤à¤¾à¤·à¤¾ में गोल सिदà¥à¤§ करते है।
यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ 23/61 में लिखा है कि इस पृथà¥à¤µà¥€ का अंत कà¥à¤¯à¤¾ है? इस à¤à¥à¤µà¤¨ का मधà¥à¤¯ कà¥à¤¯à¤¾ है? यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ 23/62 में इसका उतà¥à¤¤à¤° इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से लिखा है कि यह यजà¥à¤žà¤µà¥‡à¤¦à¥€ ही पृथà¥à¤µà¥€ की अंतिम सीमा है। यह यजà¥à¤ž ही à¤à¥à¤µà¤¨ का मधà¥à¤¯ है। अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ जहाठखड़े हो वही पृथà¥à¤µà¥€ का अंत है तथा यही सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ à¤à¥à¤µà¤¨ का मधà¥à¤¯ है। किसी à¤à¥€ गोल पदारà¥à¤¥ का पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• बिंदॠ(सà¥à¤¥à¤¾à¤¨) ही उसका अंत होता है और वही उसका मधà¥à¤¯ होता है। पृथà¥à¤µà¥€ और à¤à¥à¤µà¤¨ दोनों गोल हैं।
ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ 10/22/14 मंतà¥à¤° में à¤à¥€ पृथà¥à¤µà¥€ को बिना हाथ-पैर वाला कहा गया है। बिना हाथ पैर का अलंकारिक अरà¥à¤¥ गोल ही बनता है। इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ 1/185/2 में à¤à¥€ अंतरिकà¥à¤· और पृथà¥à¤µà¥€ को बिना पैर वाला कहा गया है।
पृथà¥à¤µà¥€ के à¤à¥à¤°à¤®à¤£ का पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£
पृथà¥à¤µà¥€ को गोल सिदà¥à¤§ करने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ यह है कि पृथà¥à¤µà¥€ सà¥à¤¥à¤¿à¤° है अथवा गतिवान है। वेद पृथà¥à¤µà¥€ को सदा गतिवान मानते है।
ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ 1/185/1 मंतà¥à¤° में पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨-उतà¥à¤¤à¤° शैली में पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ पूछा गया है कि पृथà¥à¤µà¥€ और धà¥à¤²à¥‹à¤• में कौन आगे हैं और कौन पीछे हैं अथवा कौन ऊपर हैं और कौन नीचे हैं? उतà¥à¤¤à¤° में कहा गया कि जैसे दिन के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ रातà¥à¤°à¤¿ और रातà¥à¤°à¤¿ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ दिन आता ही रहता है, जैसे रथ का चकà¥à¤° ऊपर नीचे होता रहता है वैसे ही धॠऔर पृथà¥à¤µà¥€ à¤à¤• दूसरे के ऊपर नीचे हो रहे हैं अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ पृथà¥à¤µà¥€ सदा गतिमान है।
अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦ 12/1/52 में लिखा है वारà¥à¤·à¤¿à¤• गति से (वरà¥à¤· à¤à¤°) पृथà¥à¤µà¥€ सूरà¥à¤¯ के चारों ओर चकà¥à¤° काटकर लौट आती है।
पृथà¥à¤µà¥€ आदि गृह सूरà¥à¤¯ के आकरà¥à¤·à¤£ से बंधे हà¥à¤ हैं
ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ 10/149/1 मंतà¥à¤° का देवता सविता है। यहाठपर ईशà¥à¤µà¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पृथà¥à¤µà¥€ आदि गà¥à¤°à¤¹à¥‹à¤‚ को निराधार आकाश में आकरà¥à¤·à¤£ से बांधना लिखा है।
ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ 1/35/2 मंतà¥à¤° में ईशà¥à¤µà¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अपनी आकरà¥à¤·à¤£ शकà¥à¤¤à¤¿ से सूरà¥à¤¯, पृथà¥à¤µà¥€ आदि लोकों को धारण करना लिखा है।
ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ 1/35/9 मंतà¥à¤° में सूरà¥à¤¯ को धà¥à¤²à¥‹à¤• और पृथà¥à¤µà¥€ को अपने आकरà¥à¤·à¤£ से सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ रखने वाला बताया गया है।
ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ 1/164/13 में सूरà¥à¤¯ को à¤à¤• चकà¥à¤° के मधà¥à¤¯ में आधार रूप में बताया गया है à¤à¤µà¤‚ पृथà¥à¤µà¥€ आदि को उस चकà¥à¤° के चारों ओर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ बताया गया है। वह चकà¥à¤° सà¥à¤µà¤¯à¤‚ घूम रहा है à¤à¤µà¤‚ बहà¥à¤¤ à¤à¤¾à¤° वाला अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ जिसके ऊपर समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¥à¤µà¤¨ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है , सनातन अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ कà¤à¥€ न टूटने वाला बताया गया है।
चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤®à¤¾ में पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ का सà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤°
ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ 1/84/15 में सूरà¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पृथà¥à¤µà¥€ और चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤®à¤¾ को अपने पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ से पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ करने वाला बताया गया है।
दिन और रात कैसे होती हैं
ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ 1/35/7 में पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤° शैली में पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ आया है कि यह सूरà¥à¤¯ रातà¥à¤°à¤¿ में किधर चला जाता है तो उतà¥à¤¤à¤° मिलता है पृथà¥à¤µà¥€ के पृषà¥à¤ à¤à¤¾à¤— में चला जाता है। दिन और रातà¥à¤°à¤¿ के होने का यही कारण है।
ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ 10/190/2 में लिखा है ईशà¥à¤µà¤° सूरà¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दिन और रात को बनाता हैं।
अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦ 10/8/23 में लिखा है नितà¥à¤¯ ईशà¥à¤µà¤° के समान दिन और रातà¥à¤°à¤¿ नितà¥à¤¯ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होते हैं।
वेद में काल विà¤à¤¾à¤—
अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦ 9/9/12 में लिखा है वरà¥à¤· को बारह महीनों वाला कहा गया है।
अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦ 10/8/4 में लिखा है ईशà¥à¤µà¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ के लिठà¤à¤• वरà¥à¤· को बारह मास, ऋतà¥à¤“ं और दिनों में विà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ किया गया है।
अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦ 12/1/36 में वरà¥à¤· को 6 ऋतà¥à¤“ं में विà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ किया गया है।
इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से वेदों के अनेक मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में खगोल विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के दरà¥à¤¶à¤¨ होते है। वेदों में विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ विषय पर शोध करने की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ है।
लेख-नवीन केवली
यह अचà¥à¤›à¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है.