एक माँ वह होती है जो हमें जन्म देती है. हमारा पालन-पोषण करती है. दूसरी ‘मां’ वह है जिसे दुनिया धरती माता के नाम से जानती है. यह हमें साँस, खाना-पीना देती है, रहने के लिए स्थान देती है. इसे यूँ कहें कि पैदा होने के बाद दुनिया में जितनी चीजें दिखती हैं, सब कुछ इसी ‘धरती माता की देन है. जब हमारी जन्म देने वाली मां यदि बीमार पड़ जाती हैं, तो हम परेशान हो उठते है हम उसके इलाज के लिए दिन-रात एक कर देते हैं, जबकि इस मां ने दो-चार ही बेटे-बेटियां जन्मे हैं. लेकिन धरती माता जिसके कई करोड़ ‘बेटे-बेटी’ हैं. वह बीमार है और आज पुकार रही है लेकिन कोई संभालने वाला नहीं है.

आखिर क्यों आज हम इस ‘मां’ के दुश्मन बन गए हैं? हरे-भरे वृक्ष काट रहे हैं. इसके गर्भ में रोज खतरनाक परीक्षण कर रहे हैं. इतना जल दोहन किया कि कई हिस्से जलविहीन हो गए हैं. पूरी दुनिया में इस वक्त जितना पानी बचा है उसमें से 97.5 फीसदी समुद्री पानी है जो की खारा है. बाकी 1.5 फीसदी बर्फ के रुप में है. सिर्फ 1 फीसद पानी ही हमारे पास बचा है जो कि पीने योग्य है. साल 2025 तक भारत की आधी आबादी और दुनिया की 1.8 फीसदी आबादी के पास पीने का पानी नहीं होगा और 2030 तक वैश्विक स्तर पर पानी की मांग आपूर्ति के मुकाबले 40 फीसदी ज्यादा हो जाएगी.

इसके बाद यदि आगे बढे तो दिन पर दिन प्राकृतिक संसाधनो जैसे खनिज पदार्थों का उपयोग जैसे कोयला, अभ्रक समेत अन्य खनिज पदार्थों के लिए इस धरा का दोहन जारी है यदि विकसित देशों की खपत के आकडों की माने तो 2050 तक इनका दोहन 140 अरब टन प्रति वर्ष हो जाएगा. यानि धरा बिलकुल खोखली हो जाएगी. सोचिये जब इस धरा के अन्दर जल नहीं होगा ऊपर पेड़ नहीं होंगे तब क्या होगा.? वही होगा जो हम हमेशा सुनते आये है तब प्रकृति में प्रचंड उथल-पुथल होगी. भूकम्प के कारण पूरे देश के देश पृथ्वी के गर्भ में समा जायेंगे. जहाँ-जहाँ उत्पन्न सभ्यताएँ होगी, वे देश महासागर में परिणत हो जायेंगे.

सब जानते है प्रकृति के रुप में भगवान ने मनुष्यों को एक बेहद ही खूबसूरत उपहार दिया है. लेकिन हम इसी उपहार को संजोय रखने के लिए नाकामयाब साबित हो रहे है, हमारी इस फितरत का खामियाजा धरती को भुगतना पड़ रहा है. हमारा पास खुबसूरत प्रकृति के अलावा कई अन्य चीजें जैसे अन्न, पानी, वृक्ष, उर्जा, खनिज पदार्थ आदि है किन्तु अगर हम समय रहते नहीं चेते तो हमारे पास ये पदार्थ भी नहीं रहेंगे. तब हम क्या करेंगे?

कहा जाता आवश्यकता अविष्कार की जननी है. किन्तु यदि हम समय रहते आवश्यकताओं के अविष्कारों को अपना ले तो हम पृथ्वी को या अपनी आने वाली पीढ़ी को काफी हद तक बचा सकते है. आज विधुत उत्पादन में उपयोग होने वाला सबसे बड़ा ईंधन कोयला है जोकि धरती के गर्भ को चीरकर निकाला जा रहा है. लेकिन कब तक? अगले कुछ  सालों में ही कोयला पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा. हम इस तथ्य से भी इनकार नहीं कर सकते हैं कि देश की आबादी में तेजी से वृद्धि हो रही है. देश में अधिकांश बिजली (लगभग 53 प्रतिशत) का उत्पादन कोयले से होता है और जिसके चलते यह भविष्यवाणी की गई है कि वर्ष 2040-50 के बाद देश में कोयले के भंडार समाप्त हो जाएंगे. इसके बाद दुनिया विधुत के लिए क्या इजाद करेगी?

अधिकांश का जवाब होगा पानी! किन्तु ग्लोबल वार्मिंग जलवायु परिवर्तन के कारण नदियों पर जो संकट मंडरा रहा है उसे देखकर तो लगता नहीं! आप स्वयं अपने इर्दगिर्द देखिये आपके देखते-देखते कितनी छोटी-छोटी नहरे और नदियाँ आज या सूख गयी या फिर गंदे नालों में तब्दील हो गयी. इसे देखकर सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारी नदियों का जीवन भी अब लम्बा नहीं बचा. अब अंत में उत्तर हो सकता है कि सौर ऊर्जा शायद भविष्य में यही सबसे उपयुक्त विकल्प हमारे हाथ में होगा.

सौर ऊर्जा का एक अतुलनीय स्रोत होने के साथ-साथ भारत की अन्य गैर-परंपरागत ऊर्जाओं में सबसे बेहतरीन विकल्पों में से एक है. इससे प्रकृति को कोई नुकसान नहीं है इस कारण आज सौर ऊर्जा, भारत में ऊर्जा की आवश्यकताओं की बढ़ती माँग को पूरा करने का सबसे अच्छा तरीका है. इस दिशा में देश की सबसे प्राचीन सामाजिक संस्था आर्य समाज ने एक अच्छी पहल का शुभारम्भ करने जा रही है जिसमें प्रत्येक आर्य समाज मंदिर और आर्य संस्थान अगले कुछ समय में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कर प्रकृति को बचाने में अपना सहयोग प्रदान करेंगे या ये कहें कि धरती माँ को बचाने बेटे की भूमिका निभाएगा.

आंकड़े बताते है कि भारत के लगभग सभी प्रति वर्ग मीटर के हिस्से में, प्रति घंटे 4 से 7 किलोवाट की औसत से सूर्य का प्रकाश प्राप्त होता है. भारत में प्रति वर्ष लगभग 2,300 से 3,200 घंटे धूप निकलती है. इस कारण हम बड़ी मात्रा में सौर ऊर्जा से विधुत उत्पादन कर सकते है. साथ ही हम लोगों से पोलीथीन का प्रयोग समाप्त कर पर्यावरण बचाने में जागरूकता के कार्यों के साथ भूगर्भीय जल का स्तर बढ़ाने के लिए मकानों भवनों में वर्षा जल संग्रह की जागरूकता का भी कार्य करेंगे. वृक्षों के बचाव तथा जल के प्रयोग में भी लोगों को सावधानी बरतने के लिए आग्रह करेंगे. सब जानते है कि लाख कोशिशों के बाद भी दुनिया भर के वैज्ञानिक ‘दूसरी पृथ्वी’ को नहीं ढूंढ सकें. अत: धरती माता के बचाव के लिए सबको आगे आना चाहिए. वरना हमारे पास पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा..

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