कà¥à¤¯à¤¾ वाकई हम à¤à¤¸à¥‡ आधà¥à¤¨à¤¿à¤• कानून के लिठतैयार हैं?
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Rajeev ChoudharyDate
02-Oct-2018Category
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हमारी नैतिक और सामाजिक परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं में विवाह को सात जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ का बंधन माना जाता है, जहाठअगà¥à¤¨à¤¿ के सात फेरे लेकर दो तन, दो मन à¤à¤• पवितà¥à¤° बंधन में बंधते हैं। दो लोगों के बीच यह à¤à¤• सामाजिक या धारà¥à¤®à¤¿à¤• मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ मिलन है। जिसे अब शादी à¤à¥€ कहा जाता है। सà¤à¥€ सà¤à¥à¤¯ समाजों में इसे à¤à¤• पवितà¥à¤° करà¥à¤¤à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ à¤à¥€ समà¤à¤¾ जाता है। किनà¥à¤¤à¥ इन दिनों आई.पी.सी. की धारा 497 चरà¥à¤šà¤¾à¤“ं में बनी हà¥à¤ˆ है। इस धारा के तहत अगर कोई शादीशà¥à¤¦à¤¾ पà¥à¤°à¥à¤· किसी शादीशà¥à¤¦à¤¾ महिला के साथ रजामंदी से संबंध बनाता है तो उस महिला का पति à¤à¤¡à¤²à¥à¤Ÿà¤°à¥€ के नाम पर इस पà¥à¤°à¥à¤· के खिलाफ केस दरà¥à¤œ कर सकता है लेकिन वह अपनी पतà¥à¤¨à¥€ के खिलाफ किसी à¤à¥€ तरह की कोई कारà¥à¤°à¤µà¤¾à¤ˆ नहीं कर सकता था।
कà¥à¤› समय पहले केरल निवासी जोसफ शिन ने धारा 497 के खिलाफ कोरà¥à¤Ÿ में याचिका दायर कर इसे निरसà¥à¤¤ करने की गà¥à¤¹à¤¾à¤° लगाई थी। याचिका में कहा गया है कि धारा 497 के तहत वà¥à¤¯à¤à¤¿à¤šà¤¾à¤° को अपराध की शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में तो रखा गया है लेकिन ये अपराध महज पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ तक ही सीमित है। इस मामले में पतà¥à¤¨à¥€ को अपराधी नहीं माना जाता जबकि अपराध साà¤à¤¾ है तो सजा à¤à¥€ साà¤à¥€ होनी चाहिà¤à¥¤
अब सà¥à¤ªà¥à¤°à¥€à¤® कोरà¥à¤Ÿ ने अडलà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€ यानी वà¥à¤¯à¤à¤¿à¤šà¤¾à¤° को अपराध बताने वाले कानूनी पà¥à¤°à¤¾à¤µà¤§à¤¾à¤¨ को असंवैधानिक करार दिया है। मà¥à¤–à¥à¤¯ नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¾à¤§à¥€à¤¶ दीपक मिशà¥à¤°à¤¾, जसà¥à¤Ÿà¤¿à¤¸ à¤.à¤à¤®. खनविलकर, जसà¥à¤Ÿà¤¿à¤¸ आर.à¤à¤«. नरीमन, जसà¥à¤Ÿà¤¿à¤¸ इंदू मलà¥à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°à¤¾ और जसà¥à¤Ÿà¤¿à¤¸ चंदà¥à¤°à¤šà¥‚ड़ ने अपने फैसले में कहा कि वà¥à¤¯à¤à¤¿à¤šà¤¾à¤° से संबंधित à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ दंड संहिता यानी आई.पी.सी की धारा 497 संविधान के खिलाफ है। सà¥à¤ªà¥à¤°à¥€à¤® कोरà¥à¤Ÿ ने अपने फैसले में कहा कि ये कानून मनमाना है और समानता के अधिकार का सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ उलà¥à¤²à¤‚घन है और सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ की देह पर उसका अपना हक है। इससे समà¤à¥Œà¤¤à¤¾ नहीं किया जा सकता है। यह उसका अधिकार है। उस पर किसी तरह की शरà¥à¤¤à¥‡à¤‚ नहीं थोपी जा सकती हैं।
अब इसके बाद समाज का कितना सà¥à¤µà¤°à¥‚प बदलेगा साफ तौर पर अà¤à¥€ कहा नहीं जा सकता, हाठइशारा किया जा सकता है या à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ कि आगे आने वाला समाज à¤à¤¸à¤¾ होगा। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अà¤à¥€ तक सामाजिक नजरिये से à¤à¤• पà¥à¤°à¥à¤· और महिला के बीच रिशà¥à¤¤à¤¾ शादी के अनà¥à¤°à¥‚प ही समà¤à¤¾ जाता था। किनà¥à¤¤à¥ इस रिशà¥à¤¤à¥‡ को कà¥à¤¯à¤¾ कहें? शायद ‘‘सहावासी-रिशà¥à¤¤à¤¾’’ यानि लोग जब चाहें किसी से à¤à¥€ अनैतिक संबनà¥à¤§ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ कर सकते हैं। à¤à¤²à¥‡ ही कानून की इस धारा की समापà¥à¤¤à¤¿ को à¤à¤• तबका आधà¥à¤¨à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ से जोड़ रहा हो या महिला सशकà¥à¤¤à¤¿à¤•à¤°à¤£ से किनà¥à¤¤à¥ ये à¤à¥€ नहीं नाकारा जा सकता कि यह रिशà¥à¤¤à¥‡ समाज को तोड़ने का कारà¥à¤¯ करेंगे।
हाल ही में देखें तो à¤à¤¾à¤°à¤¤ में कानून बदल रहे हैं। पिछले दिनों ही अदालत ने समलैंगिकों को मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ दी है। अब धारा 497 को à¤à¥€ असंवैधानिक घोषित कर दिया गया है। किनà¥à¤¤à¥ यदि हम à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ समाज का मनोविशà¥à¤²à¥‡à¤·à¤£ करें तो à¤à¤• सहज सवाल यह खड़ा होता है कि कà¥à¤¯à¤¾ वाकई हम à¤à¤¸à¥‡ आधà¥à¤¨à¤¿à¤• कानून के लिठतैयार हैं? कà¥à¤¯à¤¾ हमारा समाज इस कानून को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° कर पाà¤à¤—ा? कà¥à¤¯à¤¾ शादियों को बनाठरखने के लिठकोई कानून हो सकता है, जो विवाह को टूटने से बचाठऔर यदि टूटने से नहीं बचा सकता तो कोई à¤à¤¸à¤¾ करार जो दोनों ही पकà¥à¤·à¥‹à¤‚ के लिठराहत देने वाला हो। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि जब à¤à¥€ शादी टूटती है तो सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ असर निराशà¥à¤°à¤¿à¤¤ की देख-रेख पर ही पड़ता है। जो à¤à¥€ सदसà¥à¤¯ पैसा नहीं कमाता है, उसके लिठजीवन जीना मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤² हो जाता है।
देखा जाये इस कानून की समापà¥à¤¤à¤¿ को महिला सशकà¥à¤¤à¤¿à¤•à¤°à¤£ से जोड़कर देखा जा रहा है। किनà¥à¤¤à¥ मà¥à¤à¥‡ लगता है इस कानून की समापà¥à¤¤à¤¿ से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कमजोर किया गया है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अधिकांश महिलाà¤à¤‚ वितà¥à¤¤à¥€à¤¯ रूप से कमजोर होती हैं, वे लंबी अदालती लड़ाई का à¤à¤¾à¤° वहन नहीं कर पाती हैं। अब उनके सहवासी होने का आरोप संबंध विचà¥à¤›à¥‡à¤¦ में अनाप-शनाप मà¥à¤†à¤µà¤œà¥‡ की मांग को नहीं मानना पड़ेगा
अब कानून को हटा दिठजाने के बाद से ये चरà¥à¤šà¤¾ शà¥à¤°à¥‚ हो गई है कि इससे देश में शादियां खतरे में पड़ जाà¤à¤‚गी, जो जिसके साथ चाहे संबंध बना लेगा या फिर कानून के हट जाने से à¤à¤¾à¤°à¤¤ में शादियां टूटने लगेंगी? पतà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤ पतियों की कदà¥à¤° करनी छोड़ देगी à¤à¤¸à¥‡ सवाल समाज में खड़े हो रहे हैं लेकिन मेरा मानना है जितना कहा जा रहा है उतना तो नहीं होगा। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हमारे यहाठशादी विवाह जैसे पवितà¥à¤° रिशà¥à¤¤à¥‡ सिरà¥à¤« लड़की या लड़के के बीच नहीं बलà¥à¤•à¤¿ दो परिवारों के बीच सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ होते हैं यही सफल विवाहित जीवन मनà¥à¤·à¥à¤¯ के सà¥à¤– की à¤à¤• आधारशिला à¤à¥€ है।
दूसरा à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ समाज में पति हो या पतà¥à¤¨à¥€ अपने शारीरिक सà¥à¤– के बजाय परिवार और अपने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के अचà¥à¤›à¥‡ à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ पर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ देते हैं यानि वैवाहिक जीवन में संतान का à¤à¥€ महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ होता है और पति-पतà¥à¤¨à¥€ के बीच के संबंधों को मधà¥à¤° और मजबूत बनाने में बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की à¤à¥‚मिका रहती है। वैवाहिक जीवन में पति-पतà¥à¤¨à¥€ का à¤à¤• दूसरे के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ पूरा समरà¥à¤ªà¤£ और तà¥à¤¯à¤¾à¤— होता है। à¤à¤•-दूसरे की खातिर अपनी कà¥à¤› इचà¥à¤›à¤¾à¤“ं और आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾à¤“ं को तà¥à¤¯à¤¾à¤— देना या समà¤à¥Œà¤¤à¤¾ कर लेना रिशà¥à¤¤à¥‹à¤‚ को मधà¥à¤° बनाठरखने के लिठजरूरी होता है यही वैवाहिक जीवन का मूल ततà¥à¤¤à¥à¤µ होता है। हाठकà¥à¤› असंसà¥à¤•à¤¾à¤°à¥€ लोग इस कानून की समापà¥à¤¤à¤¿ का सà¥à¤µà¤¯à¤‚ की वासनाओं की पूरà¥à¤¤à¤¿ के लिठलाठजरूर उठाà¤à¤‚गे पर à¤à¤¸à¥‡ लोग तो समाज में पहले से ही मौजूद रहे हैं।
राजीव चौधरी
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