उत्साह, उमंग, नवचेतना के सन्देश देता हुआ

आर्यों का महाकुंभ - अन्तर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन-2018

 

यह विचार कोरी कल्पना से या भावनात्मक दृष्टि से नहीं है यथार्तता है, जन-जन की भावना है। असंभव कुछ नहीं, आवश्यकता है सही कार्य के निर्णय की, कार्य की, सही योजना की, और उसके साथ पूर्ण पुरुषार्थ की। यह सब कहने और सुनने में तो कई बार आता रहा है किन्तु उसका प्रत्यक्ष परिणाम या उसका फल अन्तर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन को देखने पर हुआ। 

उपस्थित आर्यजनों ने अपनी कल्पना से ऊपर अकल्पनीय दृश्य देखकर आश्चर्य तो किया ही पर मुख से अकस्मात निकला आह............ वाह-वाह .........., गजब है........, कितना भव्य है... ऐसा तो कोई सोच भी नहीं सकता था; आदि विचार प्रत्येक आगन्तुक के भावों में या वाणी में और इससे भी अधिक उनकी विस्मयकारी आंखों की और चेहरे की चमक से, प्रसन्नता से प्रदर्शित हो रही थी। 

प्रत्यक्ष रूप से मिलने वाला कोई व्यक्ति मिलता तो सबसे पहला शब्द यही होता बधाई हो, बहुत धन्यवाद इतना बड़ा और भव्य कार्यक्रम तो कभी सोचा ही नहीं, आनन्द आ गया। इस प्रकार की अभिव्यक्ति सभा के पदाधिकारियों या कार्यकर्ताओं को सुनने को मिल रही थीं। आर्यजन आपस में ऐसे मिल रहे थे जैसे किसी पर्व पर प्रसन्न होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति इस आयोजन को सराह रहा था। कई कहते ‘‘भूतो न भविष्यति’’ हम कहते भाई भूत का तो माना जा सकता है किन्तु भविष्य न कहो, 2024 में महर्षि का 200 वां जन्म वर्ष है इसे इससे भी वृहद मनायेंगे। यह सब शब्दों विचारों से पूर्ण भाव भंगिमा का होना स्वाभाविक ही था, इसमें कोई मिथ्या भाव या अतिश्योक्ति नहीं है। 

कार्यक्रम को भव्य विशाल और सार्थकता प्रदान करने में तीन पहलुओं को देखना होगा। पहला है कार्यक्रम का विचार, उसकी योजना और पूरी रूपरेखा निर्मित करना। जिस प्रकार किसी इमारत के लिए एक व्यवस्थित, पूर्व से सोची-विचारी योजना को कागज पर चित्रित किया जाता है जिसे नक्शा कहते हैं, यह नक्शा एक प्रशिक्षित इन्जीनियर के मार्गदर्शन में तैयार होता है, उसके अनुसार भवन का निर्माण होता है, जैसा नक्शा वैसा भवन। ठीक उसी प्रकार इस कार्यक्रम की पूर्व प्लानिंग कई माह से होती रही जिसमें सार्वदेशिक सभा के प्रमुख अधिकारी, दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा के बड़ी संख्या में अधिकारी, अन्य कई आर्य समाज के वरिष्ठ नेता व कार्यकर्ताओं के द्वारा एक लम्बे समय के विचार विमर्श के पश्चात् अनेक प्रबुद्ध विचारशील आर्यजनों ने सभा प्रधान श्री सुरेश चन्द्र जी आर्य के नेतृत्व में इसे अन्तिम रूप दिया। भाई धर्मपाल आर्य को सम्मेलन का संयोजक मनोनीत किया था, उनके साथ ही श्री विनय आर्य की सक्रियता इसकी एक विशेष कड़ी रही। जब योजना अच्छी थी तो उसका व्यवहारिक रूप तो अच्छा अवश्यमेव होना था। 

कार्यक्रम सफलता का दूसरा पहलू था - उस योजना का क्रियान्वयन करने वाले आर्यजन। इसमें पहले पैसा, संसार में पैसा सब कुछ नहीं है, किन्तु बहुत कुछ है, इससे कोई मना नहीं कर सकता। योजना का आधार धन होता है। यदि धन की व्यवस्था प्रचुर मात्रा में नहीं होती तो कितनी भी सुन्दर योजना होती वह योजना, योजना ही रह जाती। परमात्मा की कृपा से महर्षि व वैदिक धर्म अनुयायी भामाषाह बनकर आगे आये और कार्यकर्ताओं को निश्चित कर दिया, इस महान कार्य की तैयारी के लिए। 

इसमें सर्वप्रथम वर्तमान आर्य जगत के सर्वाधिक तन-मन-धन से सहयोगी आर्य समाज के भामाषाह कार्यक्रम के स्वागताध्यक्ष महाशय धर्मपाल जी (एम.डी.एच.) कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार में भी बहुत बड़ा सहयोग रहा। महाशय जी का उत्साह व सहयोग कितना था वह उनकी इस भावना से आप जान सकते हैं-‘‘सम्मेलन में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की ऐसी आवभगत करना जैसे जंवाई राजा की होती है। खाने-पीने में बढ़िया भोजन और शुद्ध घी का उपयोग हो।’’ इसके साथ ही इस श्रृंखला में आर्थिक बड़े सहयोगी की दृष्टि से सभा प्रधान श्री सुरेश चन्द्र आर्य जी, श्री सुरेन्द्र कुमार आर्य जी (जे.बी.एम.), श्री मुंजाल परिवार, श्री, अशोक जी चौहान (एमिटी), श्री दीन दयाल जी गुप्ता (डॉलर), धर्मपाल आर्य। इसके अतिरिक्त प्रान्तीय सभाओं से उनमें सबसे बड़ा सहयोग दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा का प्राप्त हुआ। जिन महानुभावों ने सम्मेलन के पूर्व सहयोग नहीं दिया था, उन्होंने सम्मेलन स्थल पर आकर अपना आर्थिक सहयोग दिया, जिनकी संख्या हजारों में रही। इस यज्ञ में छोटी से छोटी राशि देने वाले भी बड़े उत्साह से राशि देकर अपने को भाग्यशाली मान रहे थे। इस प्रकार आर्थिक सहयोग देने हेतु पूरा आर्य जगत तैयार था। 

इसी का दूसरा पहलू है - कार्यक्रम में उपस्थिति यह एक अद्भुद दृश्य था, जब हजारों-हजारों की संख्या में आर्यजन दिखाई पड़ते। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी नगर या ग्राम में कोई जात्रा-मेला लगा हुआ है, जिसमें बच्चे, जवान, बूढ़े सभी देखने के लिए आए हुए हैं। 

यदि सारी व्यवस्थाएं ठीक हो जाती, विद्वान वक्ता भी उपस्थित हो जाते किन्तु श्रोता के रूप में उपस्थिति कम होती तो ? फिर तो इस कारण से सारा किया गया प्रयास व्यर्थ चले जाता। पूरे कार्यक्रम की सार्थकता, शोभा, बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोताओं के कारण हुई। 

कार्यक्रम की सफलता हेतु उपरोक्त तीनों कारण उपलब्ध थे, इसमें प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से हजारों कार्यकर्त्ताओं का अथक पुरुषार्थ, दानदाताओं, विद्वानों का सहयोग और परमपिता परमात्मा की अपार कृपा रही। इसलिए यह इतना भव्य व सफल हुआ। 

इसी का तीसरा पहलू है कार्यकर्ताओं द्वारा इस योजना को सफल बनाने के लिए प्रयास। इस संबंध में मैं किसका नाम लूं किसका न लूं, यह एक बड़ी उलझन वाली स्थिति है। पूरे कार्यक्रम में जो कार्यकर्ताओं का मनोबल, उत्साह की पराकाष्ठा देखने में आई उसे जुनून शब्द से समझा जा सकता है। तात्पर्य यह कि मनुष्य की उसी स्थिति को जुनून कहा जाता है जिसमें वह कुछ पाने के लिए अथवा कुछ कर गुजरने के लिए अपनी पूरी शक्ति और सब कुछ दांव पर लगाकर भी उसे प्राप्त करने का प्रयास करता है। वही जुनून अन्तर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन की सफलता के लिए जी जान से जुटे कार्यकर्ताओं में देखने को मिला। सक्रियता, उत्साह और लक्ष्य जब तीनों का मिश्रण हो जाए तो असफलता का कोई कारण ही नहीं बनता, जो ऑंखों ने देखा, कानों ने सुना उसकी कल्पना तो हमें पहले ही हो चुकी थी। गांव-गांव, शहर, प्रान्तीय सभाएं और भारत के बाहर कुछ देशों में जाकर प्रत्यक्ष रूप से सम्पर्क करने का परिणाम इतनी विशाल जनसमुह की उपस्थिति एक स्थान पर हुई। निरन्तर कार्यकर्त्ताओं से और आर्यजनों से सम्पर्क बना रहा। बार-बार उन्हें आने के लिए आह्वान किया गया। इसके पश्चात् रातदिन कार्यकर्ता इसमें जुटे रहे, जैसे-जैसे समय आ रहा था वैसे-वैसे कार्यकर्ताओं की सक्रियता जिम्मेदारियां और मन में एक चिन्ता बढ़ती जा रही थी। चिन्ता इसलिए बढ़ रही थी कि जो अनुमान था उससे अघिक उपस्थिति का अनुमान हो गया था। यह भी हो गया था कि इतने सारे व्यक्तियों की व्यवस्था जो कठिन कार्य है वह कहीं बिगढ़ न जाए किन्तु आर्य प्रतिनिधि सभा दिल्ली और दिल्ली की सारी आर्य समाजें उनके सारे सदस्य विशेषकर आर्यवीर दल जो जगबीर सिंह और बृहस्पति जी आर्य के सानिध्य कार्य कर रहा था वह विशेष सहयोगी रहा। 60 बसें जो यात्रियों को लाने ले जाने का कार्य रात-दिन कर रही थीं उससे आर्यवीर दल की बड़ी हिस्सेदारी रही। सभी कार्यकर्ताओं व दिल्ली वासियों ने अतिथि देव की परम्परा को निर्वाह करने में जुट गए और उसमें वे सफल हो गए, इतनी आत्मीयता इतना समर्पण परिवार की परिवार जिस कार्य को पूर्ण करने में लगे हों, वहां ऐसी भव्यता होना आश्चर्य वाली बात नहीं है। इस कार्यक्रम में देश के कौने-कौने से आर्यजन पहुंचे, कार्यकर्ता के रूप में भी उनका सहयोग प्राप्त होता रहा। भावनात्मक और आत्मीक संबंल भी उनसे मिलता रहा। जो इस कार्यक्रम का एक संबंल रहा। 

चौथा बिन्दु था, कार्यक्रम को गरिमा प्रदान करने वाले कार्यक्रम और उनकी प्रस्तुति के लिए आमन्त्रित वक्तागण, विद्वान अतिथि एवं श्रोतागण। 

इस कार्यक्रम में तीनों ही बातों का पूर्ण समावेश था। कार्यक्रम के जो सत्र थे प्रत्येक सत्र समाज, राष्ट्र, वैदिक धर्म कुरीतियों एवं पाखण्ड़ से संबंधित थे और प्रत्येक विषय पर जो वक्ता आमन्त्रित किए गए थे वे बहुत ही विद्वता पूर्ण सामयिक परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए उनके उद्बोधन हुए। स्थापित भजनोपदेशकों की उपस्थिति हुई उपस्थिति की दृष्टि से भारत वर्ष के अनेक क्षेत्र से श्रद्धालु उपस्थित रहे 2000 से अधिक आर्यजनों की 28 देशों से उपस्थिति रही। जिसमें पाकिस्तान, बंगला देश, द.अफ्रिका, मॉरिशस, सूरीनाम, हॉलैण्ड, न्यूजीलैण्ड, सिंगापुर, थाईलैण्ड, कैनेड़ा, फिजी, नेपाल, बर्मा, इंग्लैण्ड, कीनिया, अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि देशों से प्रतिनिधि उपस्थित हुए थे। इतने प्रतिनिधियों का एक उद्देश्य के लिए उपस्थिति होना कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाने के लिए था। 

आगन्तुक महानुभाव - कार्यक्रम में पधारने वाले संन्यासी, विद्वान, भजनोपदेशक एवं सामाजिक व राजनैतिक दृष्टि से पहचान रखने वाले 500 से अधिक महानुभाव पधारे थे। 

वक्ता के रूप में अनेक संन्यासीगण और विद्वानों को आमन्त्रित किया गया था। जिसमें स्वामी धर्मानन्दजी, स्वामी प्रणवानन्दजी, स्वामी देवव्रतजी, स्वामी विवेकानन्दजी, स्वामी सम्पूर्णानन्दजी, स्वामी व्रतानन्दजी, स्वामी सदानन्दजी, स्वामी गोविन्दागिरीजी, स्वामी श्रद्धानन्द जी, स्वामी शारदानन्दजी, स्वामी सुधानन्दजी, स्वामी चिदानन्दजी, स्वामी विदेह योगीजी, स्वामी ब्रह्मानन्दजी, स्वामी धर्ममुनिजी, साध्वी उत्तामायति जी, साध्वी पुष्पाजी। 

विद्वान - डॉ. सोमदेव शास्त्री, डा. वेदपालजी, डॉ. महेन्द्र अग्रवाल जी, डॉ. ज्वलन्दा जी, डॉ. प्रशस्क मित्र जी, आचार्य सत्यानन्द वेदवागीश जी, आचार्य वागीश जी ;एटाद्ध, आचार्य वेद प्रकाश श्रोत्रिय, डॉ. महेश वेदालंकार, आचार्य अग्निव्रत जी, आचार्य सनत कुमार जी, डॉ. जयेन्द्र ;नोएडाद्ध, डॉ. कर्णदेव जी, आचार्य पुनीत शास्त्री जी, डॉ. रामकृष्ण शास्त्री जी, डॉ. वीर पाल विद्यालंकार जी, डॉ. दुलाल शास्त्री जी, डॉ. सूर्या देवी जी, डॉ. नन्दिता जी, डॉ. अन्नपूर्णा जी, डॉ. प्रियवन्दा जी, आचार्या गायत्री जी ;नोएड़ाद्ध, डॉ. पवित्रा विद्यालंकार जी, डॉ. उमा आर्या जी,  

भजनोपदेशक - योगेश दत्त जी, पं. सत्यपाल जी पथिक, नरेश दत्त जी, कुलदीप जी, अंजली जी, कुलदीप विद्यार्थी जी, श्री दिनेश पथिक, घनश्याम प्रेमी जी, जगत वर्मा जी, आचार्य अशोक जी, आचार्य मोहित शास्त्री जी, भानुप्रताप शास्त्री जी, केशवदेव शर्मा जी, कल्याणदेव जी। 

कार्यक्रम का प्रारंभ महाशय धर्मपालजी (एम.डी.एच.) एवं सभा प्रधान श्री सुरेश चन्द्र आर्य के करकमलों से ओ3म् ध्वजारोहण कर किया गया। टाण्डा की कन्याओं ने ध्वज गीत गाया। तत्पश्चात् कार्यक्रम का उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति माननीय राम नाथ जी कोविन्द के माध्यम से हुआ। अपने उद्बोधन में पूर्व परिचय में परिवार के सदस्यों का आर्य समाज से जुड़ने एवं स्वयं को कानपुर के आर्य विद्यालय से शिक्षा ग्रहण करना बताया। इस अवसर पर हिमाचल के राज्यपाल माननीय आचार्य देवव्रतजी, सिक्किम के राज्यपाल माननीय गंगा प्रसाद जी, केन्द्रीय मन्त्री श्री हर्ष वर्धन जी, श्री सत्यपाल सिंह जी, सांसद श्री स्वामी सुमेधानन्द जी, स्वामी गोविन्दगिरी जी आदि की उपस्थिति रही। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ जी, हरियाणा के मुख्यमन्त्री श्री मनोहर खट्टर, वित्तमन्त्री श्री कैप्टन अभिमन्यु, योग गुरु स्वामी रामदेवजी ;पतंजलिद्ध, आचार्य बाल कृष्ण जी तथा समापन के अवसर पर भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी, इसके अतिरिक्त विश्व हिन्दू परिषद, आर. एस. एस. तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्री रमाकान्त गोस्वामी, दिल्ली प्रदेश के उपमन्त्री श्री मनीष सिसोदिया आदि उपस्थित थे। सबने अपने उद्बोधन से उपस्थित आर्यजनों को लाभान्वित किया। 

उपरोक्त कारणों से कार्य की गंभीरता का सृजन हुआ जिसमें सभी क्षेत्र के महानुभावों का पूर्ण योगदान रहा। कार्यक्रम स्थल इतना विशाल था कि जिसमें एक स्वस्थ आदमी को भी पूरी तरह देखने में परेशानी हो रही थी, थकान हो जाती थी, इसलिए वृद्धजनों के लिए या जो पैदल नहीं चल सकते थे उनके लिए 10 ई-रिक्शा की निःशुल्क भ्रमण व्यवस्था की गई थी, जिसमें हजारों व्यक्ति बैठकर वांछित स्थान पर आ-जा रहे थे। कार्यक्रम का पाण्डाल इतना भव्य और विशाल बना, जो दिल्ली की राजधानी में संभवतः नगण्य से स्थानों पर ही देखा जा सकता है, जिसमें बैठने की 12 से 15 हजार व्यक्तियों की क्षमता थी। उपस्थिति का पूर्व अनुमान होने के कारण मुख्य पाण्डाल के बाहर बड़े-बड़े स्क्रीन लगा रखे थे, जिनमें हजारों व्यक्ति पाण्डाल के बाहर भी देखते पाए गए। पाण्डाल पूरी तरह भरा रहा। इसके अतिरिक्त 16 कक्ष अलग से थे जिनमें अलग-अलग विषयों पर विद्वान लोग गोष्ठीयां कर रहे थे। बहुत ही विस्तृत अभूतपूर्व प्रदर्शनी जिसमें हजारों चित्र लगे थे आकर्षण का मुख्य केन्द्र था। 

दक्षिण अफ्रिका की मूल कन्याओं ने वेद मन्त्र पाठ, हवन व भजन तथा साध्वी मैत्रयी द्वारा सन्यास एक विशेष कार्य था। इस अवसर पर सन्यास व वानप्रस्थ दीक्षा ली गई। 

कार्यक्रम की विशेषता - यह थी कि परमात्मा की कृपा से हजारों की दैनिक उपस्थिति में किसी भी प्रकार की कोई दुर्घटना घटित नहीं हुई, कोई अव्यवस्था नहीं हुई। 

प्रत्येक ने यही कहा कि 2012 से भी अच्छी सर्वसुविधा युक्त यह कार्यक्रम रहा। 

साहित्य - के लगभग 200 स्टॉल लगे थे जितना साहित्य व अन्य सामग्री इस अवसर पर वितरित हुई, उतनी कहीं कभी नहीं हुई, यह अपने आप में एक विशेषता रही। 

कार्यक्रम स्थल अभूतपूर्व था - वैसे तो पूरा कार्यक्रम स्थल ही अपने आपमें सुसज्जित, सुन्दर, अकल्पनीय, साजसज्जा को देखते हुए मन्त्रमुग्ध करदेने वाला था। मुख्य द्वार इतना विशाल और आकर्षक था, जिसे रास्ते से गुजरने वाला हर कोई देखने के लिए रूक कर देखता। इसके अतिरिक्त कुछ और विशेष कार्यक्रमों की सूची भी है जो पहली बार हुए। 

दिल्ली के अन्तर्गत स्थित विद्यालय के बच्चों की ओर से बहुत ही सैद्धांतिक तथा आर्य समाज के इतिहास पर अन्धविश्वास निवारण के लिए लघु नाटिकाएं प्रस्तुत की गईं जिसे सभी ने सराहा। 

मुख्य पाण्डाल के अतिरिक्त अलग-अलग छोटे 16 पाण्डाल लगे थे, जिनमें निरन्तर गोष्ठियां चल रही थीं, जिनमें प्रश्न-उत्तर, शंका समाधान, प्रदर्शनी, यज्ञ, विज्ञान आदि पर विद्वान प्रवचन कर रहे थे। 

लेजर शो - महर्षि दयानन्द व आर्य समाज की प्रमुख घटनाओं पर लेजर शो का प्रसारण अद्भुत था, जिसे पहली बार देखा गया। स्थान-स्थान पर महर्षि के चित्र व सन्देश, वेद वाक्य आदि लगाए गए थे। 

वर्ल्ड रेकार्ड बना - विशाल स्थल पर 10,000 यज्ञिकों द्वारा एक साथ यज्ञ करने का पहला अवसर था। विहंगम दृश्य आत्मविभोर कर रहा था। संसार में यह पहला अवसर था जब इतनी बड़ी संख्या में इसे सम्पन्न करवाया गया। इसे गोल्ड वर्ल्ड ने विश्व रेकार्ड में दर्ज किया गया। 

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