इतिहास केवल अतीत के रक्तपात पर नहीं रोता बल्कि कई बार अतीत में हुई गलतियों और भूलों पर भी पश्चाताप करता है् यदि समय पर कर लेता है तो नया इतिहास लिखा जाता है वरना उसी इतिहास में गलतियों के कुछ और सबक के टुकड़े जुड़ जाते हैं। गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा था कि बांह पर तेल लगाकर उसे तिल से भरे बोरे में डालो। जितने तिल आपकी बांह पर लग जायेंगे अगर कोई मुग़ल उतनी कसमें भी खाले तो भी उस पर विश्वास न करना। लेकिन समय के साथ गुरु का कथन धूमिल होता दिख रहा है और 26 नवम्बर को भारत द्वारा गुरदासपुर में डेरा बाबा नानक में करतारपुर गलियारे की आधारशिला रख दी गयी। इस गलियारे के खुलने से इसे पाकिस्तान का सिखों के लिये इमरान की ओर उपहार समझा जा रहा हैं। 

केंद्र सरकार द्वारा गत 22 नवंबर को हुई केबिनेट बैठक में करतारपुर गलियारा बनाने को मंजूरी दे दी थी। इससे पाकिस्तान में सिखों की आस्था से जुड़ें ऐतिहासिक गुरुद्वारा दरबार साहिब को भारत के सीमावर्ती जिले गुरदासपुर से जोड़ने की सिख समुदाय की मांग पूरी होती दिख रही है। दोनों देशों ने अपने-अपने क्षेत्रों में गलियारा बनाने की घोषणा की है। गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर पाकिस्तान के जिला नारोवाल में है ये गुरुद्वारा भारत की सीमा से करीब 3 किलोमीटर दूर है। भारत सरकार ने भारतीय सीमा के नजदीक एक बड़ा टेलिस्कोप लगाया है जिसके जरिए तीर्थयात्री करतारपुर गुरुद्वारे के दर्शन करते आये हैं। यदि गुरु गोविन्द सिंह के उपरोक्त वचनों को भुला दिया जाये तो यह वाकई में यह स्वागत योग्य कदम हैं। कारण सिखों की आस्था पवित्र गुरुद्वारा दरबार साहिब से जुड़ी है और देश की भावना सिखों के साथ।

पर अचानक ये सब क्यों हुआ यह संशय मन में प्रश्न जरूर खड़ें कर रहा हैं क्योंकि वर्ष 1998 से भारत लगातार यह मांग करता चला आ रहा था कि गलियारे को खोल दिया जाये लेकिन पाकिस्तान अपने इंकार पर डटा रहा। क्या अब इसे खालिस्तान की भारत विरोधी नीति रेफरेंडम 2020 का हिस्सा कहा जाये? क्योंकि जिस समय पाकिस्तान में गलियारे का शिलान्यास हो रहा था उस समय वहां खालिस्तानी नेता गोपाल सिंह चावला की उपस्थिति इस शंका को बल प्रदान कर रही है। जिस तरह आज खालिस्तान समर्थक समूह दुनिया के कई देशों में अपनी भारत विरोधी गतिविधियां चला रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा सहित कई देशों में चल रही गतिविधियों के साथ-साथ कुछ महीने पहले ब्रिटेन में खालिस्तान की मांग को लेकर जनमत संग्रह के पक्ष में प्रदर्शन भी किया गया था।

सन् 1971 में पाकिस्तान के दो हिस्से होने के बाद वहां की खुफियां एजेंसी आइएसआई ने बदला लेने के लिए भारतीय पंजाब को किस तरह अलगाववाद और आतंक की भट्टी में झोंक दिया था शायद यह कोई भूलने वाली बात नहीं हैं क्योंकि 80 के दशक का इतिहास आज भी आंसू में लिपटा दिखाई दे जाता है। बहराल देश से प्रेम करने वाले अधिसंख्य पंजाब के लोग आगे बढ़े और सीमापार बैठे दुश्मन के इरादों पर पानी फेर दिया।  आतंकी बीमारी से पंजाब मुक्त हो गया किन्तु ये बात हमें नहीं भूलनी चाहिए कि पाकिस्तान में अभी भी खालिस्तान समर्थकों की तादाद काफी ज्यादा है और उन्हें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का समर्थन भी हासिल है। ऐसे में भारतीय खुफियां एजेंसियों की आशंका है कि इस गलियारे का उपयोग करते हुए खालिस्तान समर्थक पंजाब के युवाओं को उग्रवाद के लिए उकसा सकते हैं। ड्रग्स समेत अन्य मादक पदार्थों को भी इस रास्ते भारत में पहुँचाने का कार्य किया जा सकता हैं। इस कारण गलियारे को हल्के में नहीं लेना चाहिए।

जो लोग आज इस गलियारे को इमरान खान की दोस्ती का बड़ा नजराना समझ रहे हैं उन्हें स्मरण कर लेना चाहिए कि ने 1999 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा इसी अमन की आशा में लाहौर के लिए सदा-ए-सरहद बस  यात्रा शुरू की थी और अपने पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ को गले लगाकर दुनिया को शांति का सन्देश दिया था, किन्तु बदले में भारत को क्या मिला! कारगिल युद्ध जिसमें हमारे सैंकड़ों सैनिकांे ने बलिदान देकर अपनी ही भूमि दुश्मन से मुक्त करानी पड़ी थी। हमें समझना होगा कि सीमापार राजनितिक सत्ता पर बैठा प्रधानमंत्री इमरान खान सिर्फ एक मोहरा भर हैं। पाकिस्तान की असल सत्ता और नीति निर्धारण वहां कि सेना और आईएसआई करती हैं। वहां सत्ताओं पर चेहरे बदलते हैं लेकिन नीति हमेशा से भारत को जख्म देने की रही हैं। ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि पाकिस्तान में अभी तक जितने नेता या तानाशाह सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे किसी एक को पाकिस्तान के सभी संस्थानों का उतना समर्थन प्राप्त नहीं रहा जितना इमरान खान को प्राप्त हैं। इमरान खान के चुनाव में जिस तरह पाकिस्तानी सेना, आईएसआई, कट्टरपंथी मुल्ला-मौलवियों की जमाते और पाकिस्तानी आवाम इमरान का समर्थन कर उसे सत्ता की कुर्सी तक पहुँचाया इससे ध्यान रखना चाहिए कि इमरान इनमें से किसी एक को निराश नहीं करना चाहेगा।

गलियारे का शिलान्यास हो गया है कुछ समय पश्चात् ये रास्ता बनकर भी तैयार हो जायेगा। सिखों की आस्था को कोटि-कोटि प्रणाम और शुभकामनायें। किन्तु हमें गुरु गोविन्द के कथन के साथ इतिहास के ये सबक भी याद रखने होंगे कि बरसो पहले भाई मतिदास को आरे से किसके द्वारा चिरवाया गया था। किसनें भाई दयालदास को खौलते पानी में डाला था। नहीं भूलना चाहिए कि गुरू तेग बहादुर औरंगजेब के सामने नहीं झुके तो शीश उतार लिया गया और इसके बाद भाई सतीदास के बदन पर रूई लपेट कर आग लगा दी गई थी कारण इन सब सिख बहादुर वीरों, गुरुओं ने मुगलों की मित्रता को स्वीकार नहीं किया था।

 

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