यदि पिछले दस से पन्द्रह वर्ष का विश्लेष्ण इस आधार पर किया जाये कि हमने क्या खोया और क्या पाया तो हमें खुशी इस बात की होगी कि देश में आर्थिक प्रगति की, भौतिक सुख प्राप्त किये, आधुनिक दुनिया की दौड़ में शामिल हुए किन्तु साथ ही दुःख इस बात का भी जरुर होगा कि हमने बच्चों से उनका बचपन छीन लिया भौतिकता दी पर नैतिकता छीन ली, उन्हें बड़े-बड़े स्कूल दिए पर संस्कार छीन लिए यानि अपनी भारतीयता की मूल जड़ छीनकर उन्हें आधुनिकता की शाखा पकड़ा दी.

असल में बच्चे हमारी परंपराओं के, हमारी सांस्कृतिक विरासतों के रक्षक और देश का भविष्य होते हैं पर बच्चे में नैतिक मूल्यों की कमी उनके चरित्र को तबाह कर देती है और वे छोटी उम्र में ही चोरी, बेइमानी और झूठ-धोखा करने लगते हैं. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ऐसे बच्चे बड़े होने पर देश और समाज का क्या भला करेंगे? आज अगर बच्चें को नर्सरी क्लास में किसी अच्छे स्कूल में दाखिला नहीं होता तो बच्चे को ही कोसा जाता है. थोडा सा खाना कपड़ों पर गिर जाए, तो बच्चे के साथ ऐसा बर्ताव होता है कि उसने बड़ा अपराध कर दिया. खेलते हुए बच्चा कपड़े गंदे कर लाए तो भयंकर डांट पड़ती है. अब बच्चा मिट्टी में नहीं खेलेगा, तो देश की मिट्टी, देश के संस्कार से जुड़ेगा कैसे? बच्चों को हर पल नसीहत दी जाती है पेड़ पर मत चढ़ना,  मिटटी में मत खेलना, अंधेरे में मत जाओ, भूत आ जाएगा. जबकि पहले राजा-महाराजाओं के लड़के 14-15 साल की उम्र में घोड़े पर सवार होकर लड़ाई के लिए निकल जाते थे. चलो आज युद्ध नहीं कम से कम उन्हें खेलने तो दिया जाएँ. पर नहीं अब 15 साल के बच्चों को मां पल्लू में छुपाए रखती है.

इसमें एक तो बीमारी सबसे पहले यह पाल की एक ही बच्चा पैदा करेंगे और उसे लेकर हर पल ये भय रखेंगे कि इसे कहीं कुछ हो ना जाये.जरा सोचिए बच्चा अकेला है उसके पास भाई नहीं, बहन नहीं, वो बिलकुल अकेला हैं, भाई बहन की जगह टेडी बियर या फिर घर में कुत्ते बिल्ली पालकर पूरी करने की कोशिश की जा रही है. कहते हैं महंगाई है एक बच्चे का पालन-पोषण होता है. अब कोई इनसे पूछे क्या कुत्ते-बिल्ली पालने में खर्चा नहीं होता या फिर उसका मन लगाने के लिए जो हर महंगे खिलोने खरीदे जा रहे है वो मुफ्त मिलते है? इसी कारण पिछले 10 वर्षों में जो पीढ़ी तैयार हुई उसके लिए केवल मैं और मेरा तक सीमित कर दिया गया.

बच्चे का अपना कमरा हैं, जिन्हें मां-बाप सजाकर रखते हैं और रिश्तेदारों को दिखाकर गर्व महसूस करते हैं. वे नहीं जानते कि घर में बच्चों को अपनापन महसूस कराना कितना जरूरी है. अकेलेपन के कमरों में कैद बच्चों की सेहत ख़राब हो रही है. और ये सेहत सिर्फ एक बच्चे की ही नहीं बल्कि इस समाज की इस देश की हो रही है. पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता था सदाचार की शिक्षा दी जाती थी परंतु आधुनिक व वैज्ञानिक बनाने की होड़ ने नौनिहालों को नैतिक मूल्यों से दूर कर दिया. हम विज्ञान के विरोधी नहीं पर  बच्चों में नैतिक मूल्यों के विकास से मतलब है उन्हे अच्छे संस्कार देना और अपनी संस्कृति से रूबरू करवाना जिससे वे अपने साथ-साथ पूरे समाज को सही रास्ते पर ले जा सके.

प्रायः पहले देखने में आता है कि बच्चे चचेरे भाई बहनों को भी भाई या बहन नहीं बल्कि चाचा का बेटा या बेटी कहकर संबोधन करते हैं पहले ऐसा नहीं था चाचा, ताऊ, मामा, मौसा आदि के बच्चे भाई या बहन ही कहलाते थे. पर जब आज का वह बच्चा अकेला है तो वह इन सब रिश्तों से अनभिग्य है. आने वाला समय उसे कहाँ से रिश्ते देगा, उसके बच्चे बुआ मामा आदि शब्दों को भी भूल जायेंगे. आखिर हम अपनी कथित सोसायटी को दिखाने के लिए क्यों रिश्तों को दफन करने में लगे है.

दरअसल जब बच्चे भाई-बहनों के के साथ खेलते हैं तो यह उनमें रिश्तों और समाजीकरण का अहसास पैदा होता है. बच्चे का पहला स्कूल उसका घर होता है, तो सबसे पहले घर का माहौल स्नेहशील होना चाहिए. घर का माहौल खुशनुमा होना, घर में बड़ों को आदर होना, बोल-चाल में सभ्यता और सौम्यता, एक-दूसरे के प्रति लगाव जैसी बातों से बच्चे प्रेरित होते हैं और इन बातों को बड़ी जल्दी सीखते हैं. अकेला बच्चा अपराध जल्दी सीखता है वह मन में बहुत सारे सवाल पाल लेता हैं. उसके मन को पढ़िए वरना उसका मन इंटरनेट पर उपलब्ध कोई वेबसाइट अपने ढंग से पढ़ और उसे गलत चीजें सीखा रही होगी. बच्चा जिसके सम्पर्क में आता है, उसी का अनुसरण करता हैं. आज के टीवी कार्यक्रम और इंटरनेट साफ-साफ बताते हैं कि अपने सुख-विलास को पूरा करना ही सब कुछ है. वे विलासिता से लेकर मार-पीटवाले और खून-खराबेवाले सीनों को ऐसे दिखाते हैं, मानो ये आम बात हों. इस कारण नैतिक मूल्यों के गिरने से जो अंजाम दिख रहे है वह रोंगटे खड़े कर देने वाले है.

आज हमें बचपन बचाना है ताकि कल हम देश के भविष्य को मुस्कुराता हुआ देख सके. हम उन्हें आधुनिकता से दूर करने की बात नहीं कर रहे है पर उन्हें आधुनिकता में अपने देश के वीरों, महावीरों, महापुरुषों के जीवन से जुडी अच्छी कामिक्स, कहानियां बच्चों को पढने के लिए प्रेरित करें क्योंकि ये स्वस्थ्य मनोरंजन का साधन होने के साथ-साथ उनके कोमल मतिष्क पर बड़ी जल्दी असर करती हैं. नैतिक मूल्यों की जानकारी बच्चों को सभ्य, चरित्रवान, कर्तव्यनिष्ठ एवं माता-पिता के प्रति सेवा भावना रखने वाली बनाती है.

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