दलित, मंदिर और à¤à¤—वान बस à¤à¤• समाधान
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Rajeev ChoudharyDate
29-Dec-2018Category
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जिस देश में à¤à¤—वान की जातियों को लेकर राजनीतिक हलकों में खींचतान जारी हो वहां à¤à¤•à¤¾à¤à¤• इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ की जाति से संबधित कोई खबर आ जाये तो इसमें हैरत में पड़ने की कोई बड़ी बात नहीं हैं। अब à¤à¤• खबर है कि देश के कà¥à¤› पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित मंदिरों में आज à¤à¥€ दलितों से à¤à¥‡à¤¦à¤à¤¾à¤µ जारी है। कहा जा रहा है, à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ की जाति से जà¥à¥œà¥€ शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¤à¤¾ और अपवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ की पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¨ पंथी सोच अà¤à¥€ à¤à¥€ देश के कà¥à¤› पà¥à¤°à¤®à¥à¤– मंदिरों में अंदर तक घर की हà¥à¤ˆ है, जहां देवी-देवताओं की पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ को बचाठरखने के लिठदलितों का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है। इनमें à¤à¤• मंदिर आसà¥à¤¥à¤¾ की नगरी वाराणसी का काल à¤à¥ˆà¤°à¤µ मंदिर है, यहां दलितों के à¤à¤—वान के छूने पर रोक है. दूसरा ओडिशा की राजधानी à¤à¥à¤µà¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° में 11वीं सदी के पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित लिंगराज मंदिर में à¤à¥€ दलित à¤à¤•à¥à¤¤ à¤à¤¸à¥€ ही पाबंदियों का सामना कर रहे हैं। तीसरा उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड में जागेशà¥à¤µà¤° मंदिर, शिव के इस मंदिर में à¤à¥€ दलितों का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है। इसके बाद à¤à¤¸à¥‡ ही à¤à¤• दो मंदिर और à¤à¥€ हैं, जहाठदलितों के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ पर रोक मानी जा रही है।
अकà¥à¤¸à¤° à¤à¤¸à¥€ खबरें हमें निराशा पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करती हैं à¤à¤¸à¥‡ मंदिरों के कथित ठेकेदारों की बीमार सोच पर तरस खाने के साथ-साथ 21 वीं सदी में à¤à¤¸à¥‡ à¤à¥‡à¤¦à¤à¤¾à¤µ मन में दà¥à¤ƒà¤– à¤à¥€ पैदा करता हैं, हालाà¤à¤•à¤¿ इसी बीच कà¥à¤› सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ खबरें à¤à¥€ आती रहती हैं जैसे इसी वरà¥à¤· केरल में सदियों पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ परंपरा को तोड़ते हà¥à¤ छह दलितों को आधिकारिक तौर पर तà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¤•à¥‹à¤° देवसà¥à¤µà¤® बोरà¥à¤¡ का पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ नियà¥à¤•à¥à¤¤ किया गया है। वैसे तो मंदिरों में बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को ही पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ बनाने की परंपरा रही है, लेकिन यह पहला मौका था जब दलित समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ के लोगों को पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ बनाया गया है।
परनà¥à¤¤à¥ यह कोई तà¥à¤²à¤¨à¤¾ का सवाल नहीं कि आखिर इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ को जातियों में बांटकर उनके साथ à¤à¥‡à¤¦à¤à¤¾à¤µ कर रहे पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€à¤—ण उस à¤à¤—वान को कैसे मà¥à¤‚ह दिखाते होंगे जिसने इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ को बनाने में कोई à¤à¥‡à¤¦ नहीं किया। यह सही है कि देश में किसी à¤à¥€ मंदिर में दलितों के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ पर घोषित तौर पर कोई पाबंदी नहीं है, लेकिन रह-रहकर दलितों के मंदिर पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ पर आपतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ उठती à¤à¥€ रहती हैं, à¤à¤¸à¥€ खबरें à¤à¥€ आती रहती है, ये आपतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ कà¤à¥€ परंपरा के नाम पर सामने आती हैं, तो कà¤à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं के नाम पर। जहाठà¤à¤¸à¥€ कथित परंपराओं-मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं को खतà¥à¤® करने में धरà¥à¤®à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की विशेष à¤à¥‚मिका होनी चाहिठथी, लेकिन उनमें से बहà¥à¤¤ कम à¤à¤¸à¥‡ रहे, जो सामाजिक समरसता के लिठसकà¥à¤°à¤¿à¤¯ हà¥à¤, अब तो आम हिंदू के लिठयह जानना मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤² है कि आखिर ये बड़े-बड़े धरà¥à¤®à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ करते कà¥à¤¯à¤¾ हैं?
मà¥à¤à¥‡à¤‚ नहीं पता इन लोगों के धारà¥à¤®à¤¿à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की सीमा कितनी है, इनकी सोच का दायरा कितना बड़ा है, ये लोग धरà¥à¤® को कितनी गति देने की इचà¥à¤›à¤¾ रखतें है किनà¥à¤¤à¥ इतना जरà¥à¤° पता है कि à¤à¤¸à¥‡ कथित धरà¥à¤®à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को अपने इतिहास का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ जरà¥à¤° नà¥à¤¯à¥‚न है। यदि à¤à¤• à¤à¥€ दिन ये लोग अपना इतिहास उठाकर पॠलेंगें तो शायद जान पाà¤à¤‚गे कि इस जातिवाद और छà¥à¤†à¤›à¥‚त के कारण ही हम अफगानिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ से सिमटते-सिमटते दिलà¥à¤²à¥€ तक रह गये। इस सब के बाद à¤à¥€ हम नहीं समठरहे हैं। आज à¤à¥€ देश के कोने-कोने से आ रही धरà¥à¤®à¤¾à¤‚तरण की खबरों के बीच जहाठधरà¥à¤®à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯à¥‹à¤‚, शंकराचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ महंतों को हिंदू समाज को दिशा दिखानी चाहिà¤, लेकिन लगता है कि खà¥à¤¦ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दिशा दिखाने की जरूरत है। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि घटनाओं या खबरों पर ये लोग मौन रहकर अपनी मूक सà¥à¤µà¥€à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ सी पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ जो कर रहे हैं?
2016 की वो खबर सबको याद होगी जब उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤‚खंड के चकराता के पोखरी गांव के शिलà¥à¤—à¥à¤° देवता मंदिर में दलितों को मंदिर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दिलाने गठसांसद को ही लोगों ने पीट दिया था, तो सोचिà¤, साधारण आदमियों की कà¥à¤¯à¤¾ दशा होगी। बात सिरà¥à¤« दलित मंदिर पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ के अधिकार की नहीं है ये अधिकार तो हमारा कानून à¤à¥€ हमें देता है। बात है सामाजिक चेतना की, अपने इतिहास से सीखने की और इसमें जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पनà¥à¤¨à¥‡ पलटने की à¤à¥€ जरूरत नहीं सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ के विचारों को उनके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लिखित पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ को पढने से ही जà¥à¤žà¤¾à¤¤ हो जायेगा कि अतीत के कालखंड में हमने जातिवाद के कारण धारà¥à¤®à¤¿à¤• रूप से कितना नà¥à¤•à¤¸à¤¾à¤¨ उठाया है। किस तरह सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ ने मन के कपाट खोलकर समरसता का दीप जलाया था।
आज à¤à¤• ओर तो हिंदू समाज के धरà¥à¤®à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ दलितों के धरà¥à¤®à¤¾à¤‚तरण पर चिंता जताते दिखते हैं। दूसरी ओर वे à¤à¤¸à¥€ अपà¥à¤°à¤¿à¤¯ घटनाओं की अनदेखी करते हैं। जबकि हिंदà¥à¤“ं के बड़े धरà¥à¤®à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सà¥à¤µà¤¯à¤‚ सामने आकर यह दिवार गिरानी होगी, à¤à¤• वैचारिक आधà¥à¤¨à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ लानी होगी, इसके आये बिना तो इस समसà¥à¤¯à¤¾ का निरà¥à¤£à¤¾à¤¯à¤• हल होने से रहा। जब वो सà¥à¤µà¤¯à¤‚ सामने आयेंगे तब अंध परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं और à¤à¥‚ठी मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं के नाम पर इस दीवार को सजाने वाले छोटे-मोटे पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ खà¥à¤¦ पीछे हट जायेंगे। इस समसà¥à¤¯à¤¾ में सबसे पहला समाधान मन में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करने से आरमà¥à¤ करना होगा, मंदिर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ तो सà¥à¤µà¤¯à¤‚ अपने आप हो जायेगा वरना इस तरह की खबरें बनती रहेगी और पà¥à¤•à¤° दà¥à¤ƒà¤– वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ होते रहेंगे।
लेख-राजीव चौधरी
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