“वैदिक धरà¥à¤® की रकà¥à¤·à¤• गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² शिकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¥€â€
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Manmohan Kumar AryaDate
09-Feb-2019Category
लेखLanguage
HindiTotal Views
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Vikas KumarUpload Date
09-Feb-2019Download PDF
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वैदिक धरà¥à¤® सनातन धरà¥à¤® है। इसका आरमà¥à¤ ईशà¥à¤µà¤° पà¥à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से हà¥à¤† है जिसे वेद कहते हैं। वेद संखà¥à¤¯à¤¾ में चार हैं जिनके नाम ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦, यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦, सामवेद और अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦ हैं। इन चार वेदों में ईशà¥à¤µà¤° ने मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को उनके जà¥à¤žà¤¾à¤¨, करà¥à¤® व उपासना सहित करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की शिकà¥à¤·à¤¾ दी है। इसके साथ ही ईशà¥à¤µà¤°, जीवातà¥à¤®à¤¾ व पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿, इन तीन मूल अनादि ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ वेदों से होता है। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में वेदों के आधार पर ऋषियों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤£à¥€à¤¤ दरà¥à¤¶à¤¨ व उपनिषदॠआदि अनेक गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ उपलबà¥à¤§ हैं। इनसे à¤à¥€ वेद विषयक अनेक विषयों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ जी का ‘सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶’ मà¥à¤–à¥à¤¯ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ है। इस गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ में वेदों सहित वेद के अनेक विषयों से समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¿à¤¤ सामगà¥à¤°à¥€ उपलबà¥à¤§ है जिससे वेदों का पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ समगà¥à¤°à¤¤à¤¾ से जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता है। à¤à¤¸à¤¾ अदà¥à¤à¥à¤¤ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ इससे पूरà¥à¤µ नहीं लिखा गया। वेद के संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में होने तथा इस à¤à¤¾à¤·à¤¾ की जानकारी न रखने वाले बनà¥à¤§à¥à¤“ं को वेद का पठन पाठन करने में असà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ होती है। अतः वेदों पर आधारित तथा वेद की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं से यà¥à¤•à¥à¤¤ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ ही वेद समà¥à¤®à¤¤ धरà¥à¤®à¤—à¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ है जिससे मनà¥à¤·à¥à¤¯ को वैदिक धरà¥à¤® को जानने व पालन में सहायता मिलती है।
संसार में अनेक गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ को मत-पनà¥à¤¥-समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ का गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ व धरà¥à¤®à¤—à¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ à¤à¥€ कहा जाता है। मत-पनà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के यह सà¤à¥€ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ मà¥à¤¨à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ रचित हैं और विदà¥à¤¯à¤¾-अविदà¥à¤¯à¤¾ दोनों से यà¥à¤•à¥à¤¤ हैं। अविदà¥à¤¯à¤¾ ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ का सबसे बड़ा शतà¥à¤°à¥ है और मनà¥à¤·à¥à¤¯ की सरà¥à¤µà¤¾à¤‚गीण उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ में बाधक है। यह मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि यदि किसी गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ में थोड़ी à¤à¥€ अविदà¥à¤¯à¤¾ है तो वह विष ये यà¥à¤•à¥à¤¤ à¤à¥‹à¤œà¤¨ के समान तà¥à¤¯à¤¾à¤œà¥à¤¯ है। संसार में वेद ही à¤à¤¸à¥‡ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ हैं जो ईशà¥à¤µà¤° पà¥à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होने से अविदà¥à¤¯à¤¾ से सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ मà¥à¤•à¥à¤¤ है। वेद के बाद 6 दरà¥à¤¶à¤¨ व 11 उपनिषदें वेदानà¥à¤•à¥‚ल ऋषिकृत रचनायें हैंं। इनका à¤à¥€ अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ व अनà¥à¤¸à¤°à¤£ करना लाà¤à¤ªà¥à¤°à¤¦ है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ रचित सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ वैदिक सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ à¤à¤µà¤‚ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ में सरलतम à¤à¤µà¤‚ सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• लाà¤à¤ªà¥à¤°à¤¦ है। इसके अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ से वेद, दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¤µà¤‚ उपनिषद की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं का à¤à¥€ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हो जाता है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ जी उनà¥à¤¨à¥€à¤¸à¤µà¥€à¤‚ शताबà¥à¤¦à¥€ के उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤°à¥à¤§ में वेदों का यथारà¥à¤¥ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ रखने वाले सबसे बड़े महापà¥à¤°à¥à¤· थे। उनके गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ की अनेक विशेषताओं में से à¤à¤• विशेषता यह à¤à¥€ है कि यह लोकà¤à¤¾à¤·à¤¾ हिनà¥à¤¦à¥€ में लिखा गया है। इसे संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ से अपरिचित और केवल देवनागरी के अकà¥à¤·à¤°à¥‹à¤‚ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ रखने वाला साधारण मनà¥à¤·à¥à¤¯ à¤à¥€ जान व समठसकता है। आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ का अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करके सà¤à¥€ मत-पनà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ व आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से किसी à¤à¥€ धारà¥à¤®à¤¿à¤• व सामाजिक विषय में वारà¥à¤¤à¤¾à¤²à¤¾à¤ª व संवाद कर वैदिक धरà¥à¤® की शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ ता को सिदà¥à¤§ कर सकता है।
वैदिक धरà¥à¤® à¤à¤µà¤‚ ससà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के आधार व मूल गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ वेद हैं और इतर वेदानà¥à¤•à¥‚ल गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ उपनिषद, दरà¥à¤¶à¤¨, मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿, रामायण à¤à¤µà¤‚ महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ आदि हैं। यह सà¤à¥€ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में हैं। अतः वैदिक धरà¥à¤® का यथारà¥à¤¥ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के लिये संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ आवशà¥à¤¯à¤• है जिससे वेदों के सतà¥à¤¯ अरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ को जाना जा सके व साधारण लोगों को उसका जà¥à¤žà¤¾à¤¨ कराया जा सके। वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ कराने के लिये ही सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में हमारे ऋषियो ंने गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥‹à¤‚ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ कर यà¥à¤µà¤¾ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ वा बालक-बालिकाओं को संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾, वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ व वेदों के अरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ कराया था। समय बीतने के साथ अनà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं व विषयों का विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ उपलबà¥à¤§ हà¥à¤†à¥¤ यह समसà¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥‹à¤‚ में बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤¾à¤¯à¤¾ जाने लगा। पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल में गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥‹à¤‚ में पà¥à¤¨à¥‡ वाले संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ के विदà¥à¤µà¤¾à¤¨, योगी, महातà¥à¤®à¤¾, मà¥à¤¨à¤¿ व ऋषि बनते थे। वह इस सतà¥à¤¯ को जानते थे कि पंचà¤à¥‚तों से बना यह संसार नाशवान है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ का शरीर à¤à¥€ पंचà¤à¥‚तों से बना होने से यह à¤à¥€ नाशवान व मृतà¥à¤¯à¥ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने वाला है। इन तथà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को जानने के कारण अधिकांश लोग समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ सामाजिक जीवन वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ करते हà¥à¤ à¤à¥€ आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• जीवन पर विशेष धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ à¤à¤µà¤‚ बल देते थे। इसी कारण हमारा धरà¥à¤® व संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ पूरे विशà¥à¤µ में पà¥à¥€ व जानी जाती थी तथा विशà¥à¤µ à¤à¤° के लोग वेद और ऋषियों से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ लेते थे। सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में इससे जà¥à¥œà¥‡ तथà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का दिगà¥à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ वा संकेत किया गया है।
महाà¤à¤¾à¤°à¤¤à¤•à¤¾à¤² तक वेद व संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ का विशà¥à¤µ à¤à¤° में पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° था। संसार में वेद व उपनिषदों आदि के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ के अतिरिकà¥à¤¤ धरà¥à¤® विषयक अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ का अनà¥à¤¯ कोई गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ नहीं था। महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ यà¥à¤¦à¥à¤§ के बाद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का पतन हà¥à¤† और देश विदेश में वेदों का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° व पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° बनà¥à¤¦ हो गया। इसके परिणामसà¥à¤µà¤°à¥à¤ª ही विशà¥à¤µ में अनेक अवैदिक मतों का विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ आविरà¥à¤à¤¾à¤µ हà¥à¤†à¥¤ इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ईशà¥à¤µà¤° का पà¥à¤¤à¥à¤° व सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤µà¤¾à¤¹à¤• à¤à¥€ कहा जाता है। आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ के अरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤°à¥à¤ª व वैदिक जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के आधार पर विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ विषयों का निरà¥à¤£à¤¯ करता है। उसके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° समसà¥à¤¤ जीवातà¥à¤®à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚, मनà¥à¤·à¥à¤¯ आदि पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ व जीव-जनà¥à¤¤à¥ ईशà¥à¤µà¤° के पà¥à¤¤à¥à¤° व पà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ ही हैं। जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर ईशà¥à¤µà¤° के वेद के सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° करता है जैसा कि हमारे ऋषियों, विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚, ऋषि दयाननà¥à¤¦, सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦, पं. लेखराम जी, पं. गà¥à¤°à¥à¤¦à¤¤à¥à¤¤ विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ आदि ने किया, इससे यह लोग à¤à¥€ ईशà¥à¤µà¤° के सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤µà¤¾à¤¹à¤• ही हैं। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में à¤à¥€ जो वैदिक विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ वेदों के सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ का जन-जन में पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° कर रहे हैं, वह à¤à¥€ ईशà¥à¤µà¤° के सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करने वाले व ईशà¥à¤µà¤° के सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤µà¤¾à¤¹à¤• कहे व माने जा सकते हैं। आज परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¤¸à¥€ हैं कि वेदमत का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° कम व मत-पनà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° अधिक है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ जी ने à¤à¤• नियम दिया है कि अविदà¥à¤¯à¤¾ का नाश और विदà¥à¤¯à¤¾ की वृदà¥à¤§à¤¿ करनी चाहिये। अविदà¥à¤¯à¤¾ का अरà¥à¤¥ मत-पनà¥à¤¥à¥‹à¤‚ में निहित अविदà¥à¤¯à¤¾ à¤à¥€ समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ है। अतः इस अविदà¥à¤¯à¤¾ का निवारण वेद व उसकी मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं का यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿, तरà¥à¤•, पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£, शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥, चरà¥à¤šà¤¾ व संवाद आदि के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° कर ही किया जा सकता है। इसके साथ ही वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ मूलसंहिताओं à¤à¤µà¤‚ अरà¥à¤¥ सहित सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रहे, इसकी à¤à¥€ आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ है। इस कारà¥à¤¯ को समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ करने के लिये गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥‹à¤‚ की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ है जो वेद व वैदिक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ का वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ सहित अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ व अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¨ करायें। इन गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥‹à¤‚ का उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ व वेद के विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करना ही हो सकता है जिससे वेदों के सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥, वेदों के सतà¥à¤¯ रहसà¥à¤¯, ईशà¥à¤µà¤°-जीवातà¥à¤®à¤¾-पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ विषयक जà¥à¤žà¤¾à¤¨, मनà¥à¤·à¥à¤¯ के करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¿à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व करà¥à¤®à¤•à¤¾à¤£à¥à¤¡ विषयक जानकारी सामानà¥à¤¯ जनता तक पहà¥à¤‚चती रहे।
गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥€à¤¯ शिकà¥à¤·à¤¾ पर विचार करते हैं तो हमें गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² वही पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है कि जहां ऋषि दयाननà¥à¤¦ समरà¥à¤¥à¤¿à¤¤ आरà¥à¤· वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ पाणिनी-अषà¥à¤Ÿà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€-महाà¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ वेदमनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के अरà¥à¤¥ करने योगà¥à¤¯à¤¤à¤¾ व दकà¥à¤·à¤¤à¤¾ से समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो। यदि कोई विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ किसी गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² में पà¥à¤•à¤° सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤• बनता है तो उसमें वेद, उपनिषद, दरà¥à¤¶à¤¨, मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿, रामायण व महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ के शà¥à¤²à¥‹à¤•à¥‹à¤‚ का बिना टीकाओं व à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ व पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करने की योगà¥à¤¯à¤¤à¤¾ होनी चाहिये। हम जानते हैं कि हमारे सà¤à¥€ गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² अपने विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को इस सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ तक नहीं ले जा पाते। इसमें गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² के विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की à¤à¥€ इस सà¥à¤¤à¤° का वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ न बनने की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ व संकलà¥à¤ª का अà¤à¤¾à¤µ à¤à¥€ मà¥à¤–à¥à¤¯ होता है। अतः गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² के विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ की वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ का आचारà¥à¤¯ तो बनना ही चाहिये जिससे वह अनà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤¾ सके और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वेदों व वैदिक साहितà¥à¤¯ का उतà¥à¤¤à¤® विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ बना सके। यदि हमारे गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² अपने गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥‹à¤‚ में वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ तैयार कर रहे हैं तो वह निशà¥à¤šà¤¯ ही पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा के पातà¥à¤° है। आरà¥à¤¯à¤œà¤—त को à¤à¤¸à¥‡ गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥‹à¤‚ की à¤à¤°à¤ªà¥‚र सहायता à¤à¤µà¤‚ सहयोग करना चाहिये। à¤à¤¸à¥‡ गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥‹à¤‚ में विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की संखà¥à¤¯à¤¾ अनà¥à¤¯ शिकà¥à¤·à¤£ संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं व गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥‹à¤‚ से à¤à¤²à¥‡ ही कम हो, परनà¥à¤¤à¥ वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ के आचारà¥à¤¯ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ का आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ में होना वेद की रकà¥à¤·à¤¾ व पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° के लिये आवशà¥à¤¯à¤• है। यदि à¤à¤¸à¤¾ नहीं होगा तो à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥€à¤¯ शिकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¥€ शिथिल व अवà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤ हो सकती है। अतः आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œà¥‹à¤‚ को संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ के उचà¥à¤š कोटि के विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ व वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£à¥‹à¤‚ के आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का पोषण, समà¥à¤®à¤¾à¤¨ व उनकी जीविका पर विशेष धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ देना चाहिये। संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ का कोई à¤à¥€ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ व आचारà¥à¤¯ उपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ नहीं होना चाहिये। गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥‹à¤‚ में शिकà¥à¤·à¤¿à¤¤ योगà¥à¤¯ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥‹à¤‚ में रखकर बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ का योगà¥à¤¯à¤¤à¤® विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ बनाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ करना चाहिये और उनसे धरà¥à¤®à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶ सहित अनेक विषयों पर लेखन व शोधपूरà¥à¤£ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ लिखवानी चाहियें जिससे उनकी विदà¥à¤¯à¤¾ सफल होकर देश व समाज में वेदों का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¶à¤¾à¤²à¥€ पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° व पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° हो सके।
धरà¥à¤® पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ काल संकà¥à¤°à¤®à¤£ काल कहा जा सकता है। आज हमारा पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° व पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ मनà¥à¤¦à¤¿à¤°à¥‹à¤‚ की चार दिवारी, इसके सतà¥à¤¸à¤‚गों व उतà¥à¤¸à¤µà¥‹à¤‚ तक ही सीमित हो गया है। हमारे विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ को विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ व विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ में जाकर वेद के विषयों की आधà¥à¤¨à¤¿à¤• परिपà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤·à¥à¤¯ में पà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤‚गिकता, उपयोगिता व सारà¥à¤¥à¤•à¤¤à¤¾ पर à¤à¥€ चरà¥à¤šà¤¾ करनी चाहिये। योग à¤à¤µà¤‚ आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤° à¤à¥€ किया जाना चाहिये। योगमय जीवन ही वैदिक जीवन है। इसको अपना कर ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ अपनी सरà¥à¤µà¤¾à¤‚गीण उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ कर सकता है। कोई à¤à¥€ आधà¥à¤¨à¤¿à¤• विदà¥à¤¯à¤¾ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हेय नहीं है परनà¥à¤¤à¥ आधà¥à¤¨à¤¿à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के साथ हमें वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होना चाहिये। इसके साथ हम ईशà¥à¤µà¤° सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿-पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾-उपासना व यजà¥à¤ž से à¤à¥€ जà¥à¥œà¥‡ हà¥à¤ होने चाहियें। à¤à¤¸à¤¾ जीवन ही इस जीवन व परजनà¥à¤® में हमें सà¥à¤– व शानà¥à¤¤à¤¿ दे सकता है। अतः सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¯ ऋषि दयाननà¥à¤¦ के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करते हà¥à¤ हम वेद à¤à¤µà¤‚ समसà¥à¤¤ वैदिक साहितà¥à¤¯ के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ से जà¥à¥œà¥‡ रहें और अपनी योगà¥à¤¯à¤¤à¤¾ व कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ से लेखन व मौखिक पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वैदिक धरà¥à¤® व संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करते रहें। गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥€à¤¯ शिकà¥à¤·à¤¾ से अधिक से अधिक वेदों के विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ किये जाने चाहियें। à¤à¤¸à¥‡ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ जो वैदिक धरà¥à¤® व संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की रकà¥à¤·à¤¾ का वà¥à¤°à¤¤ लें वही आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की रीॠका काम कर सकते हैं। इनको आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ में समà¥à¤®à¤¾à¤¨ व रकà¥à¤·à¤£ मिलना चाहिये। à¤à¤¸à¤¾ होने पर ही विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ वेदों का कारà¥à¤¯ करेंगे। हमने गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² के उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ विषयक कà¥à¤› चरà¥à¤šà¤¾ की है। इस विषय में पाठक अनेक पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के सà¥à¤à¤¾à¤µ दे सकते हैं। ओ३मॠशमà¥à¥¤
-मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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