“वेद à¤à¤µà¤‚ आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के सà¤à¥€ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ सतà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ सारà¥à¤µà¤à¥Œà¤®à¤¿à¤• हैंâ€
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Manmohan Kumar AryaDate
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Vikas KumarUpload Date
15-Apr-2019Download PDF
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सारा संसार जानता है कि वेद संसार की आदिकालीन वा सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ हैं जिसमें अधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®, सामाजिक वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ à¤à¤µà¤‚ धरà¥à¤® विषयक सतà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ निहित है। यह à¤à¥€ सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ है कि संसार के सà¤à¥€ मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ व नासà¥à¤¤à¤¿à¤• मतों के आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ व उनके सà¤à¥€ अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के पूरà¥à¤µà¤œ à¤à¤¾à¤°à¤¤ निवासी à¤à¤µà¤‚ वेदों के मानने वाले थे। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ जी ने सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में लिखा है कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ से महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ यà¥à¤¦à¥à¤§ परà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का ही सारे विशà¥à¤µ पर चकà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ राजà¥à¤¯ था।
अनà¥à¤¯ देशों में माणà¥à¤¡à¤²à¤¿à¤• राजा रहते थे और à¤à¤¾à¤°à¤¤ के चकà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ राजाओं को कर दिया करते थे। हमारे देश के राजा à¤à¥€ पूरे विशà¥à¤µ में शिकà¥à¤·à¤¾ आदि सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤“ं की पूरà¥à¤¤à¤¿ करते थे। महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ के बात à¤à¤¾à¤°à¤¤ का समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ धीरे धीरे पूरे विशà¥à¤µ से समापà¥à¤¤ होता गया। कालानà¥à¤¤à¤° में à¤à¤¾à¤°à¤¤ सहित समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¥‚मणà¥à¤¡à¤² में अविदà¥à¤¯à¤¾ फैल गई। à¤à¤¸à¥‡ समय में à¤à¤¾à¤°à¤¤ सहित पूरे विशà¥à¤µ में विदà¥à¤¯à¤¾ व अविदà¥à¤¯à¤¾ से यà¥à¤•à¥à¤¤ अनेक मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤µ हà¥à¤†à¥¤ ऋषि दयाननà¥à¤¦ (1825-1883) ने अपने समय में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ का उलà¥à¤²à¥‡à¤– कर अपने विशà¥à¤µ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में उनकी समीकà¥à¤·à¤¾ की है।
इसके साथ ही उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वैदिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं का à¤à¥€ अपने गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में उलà¥à¤²à¥‡à¤– किया है जो कि विदà¥à¤¯à¤¾, तरà¥à¤• à¤à¤µà¤‚ यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर आधारित होने के सहित सबके लिये कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤µà¤‚ विशà¥à¤µ समाज में धरà¥à¤® की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से à¤à¤•à¤°à¥‚पता व समानता सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करने में महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¤µà¤‚ आवशà¥à¤¯à¤• है। यदि सारा संसार वेद की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को धरà¥à¤® के रूप में अपना लें तो संसार में धरà¥à¤® व मत-मतानà¥à¤¤à¤° के नाम पर होने वाले सà¤à¥€ विवाद à¤à¤µà¤‚ संघरà¥à¤· समापà¥à¤¤ हो सकते हैं। इसके लिये सबको अपना अपना सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ तà¥à¤¯à¤¾à¤— करना होगा व वैदिक मत को समà¤à¤¨à¤¾ होगा जिसके लिये कोई सहमत à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤ होने को ततà¥à¤ªà¤° नहीं है।
यह सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ कब तक रहेगी, निशà¥à¤šà¤¯ से नहीं कहा जा सकता। à¤à¤• समय à¤à¤¸à¤¾ अवशà¥à¤¯ आ सकता है कि जब उस समय की नई पीà¥à¥€ ईशà¥à¤µà¤° व जीवातà¥à¤®à¤¾ आदि विषयक वेद के सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° कर ले और मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ को à¤à¥€ जान कर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ उससे मà¥à¤•à¥à¤¤ होने के लिठकटिबदà¥à¤§ हो। यह संसार ईशà¥à¤µà¤° का बनाया हà¥à¤† व उसी से संचालित à¤à¤µà¤‚ नियंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ हैं। हम सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ तो उसकी आजà¥à¤žà¤¾ का पालन अपने अपने पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से कर रहे हैं। ऋषि दयाननà¥à¤¦ व उससे पूरà¥à¤µ à¤à¥€ अनेक ऋषियों व महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने वही कारà¥à¤¯ किया था जो कि ऋषि दयाननà¥à¤¦ जी ने अपने समय में किया है। सà¤à¥€ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ सजà¥à¤œà¤¨ पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ का करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है कि वह सà¤à¥€ मतों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर धरà¥à¤® के सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ का निशà¥à¤šà¤¯ करें और उनका वैशà¥à¤µà¤¿à¤• सà¥à¤¤à¤° पर पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करें जिससे पूरे विशà¥à¤µ में à¤à¤• सतà¥à¤¯ मत, जो अविदà¥à¤¯à¤¾ व अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से पूरà¥à¤£à¤¤à¤¯à¤¾ मà¥à¤•à¥à¤¤ हो, सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करने में सफलता मिल सके।
वेद और आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की संसार को पà¥à¤°à¤®à¥à¤– देन तà¥à¤°à¥ˆà¤¤à¤µà¤¾à¤¦ à¤à¤µà¤‚ करà¥à¤®-फल वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ का सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ है। तà¥à¤°à¥ˆà¤¤à¤µà¤¾à¤¦ का अरà¥à¤¥ है कि संसार में तीन अनादि व नितà¥à¤¯ सतà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं। यह सतà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं ‘ईशà¥à¤µà¤°, जीव और पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿’। ईशà¥à¤µà¤° सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प, निराकार, सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨, नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥€, दयालà¥, अजनà¥à¤®à¤¾, अननà¥à¤¤, निरà¥à¤µà¤¿à¤•à¤¾à¤°, अनादि, अनà¥à¤ªà¤®, सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¾à¤°, सरà¥à¤µà¥‡à¤¶à¥à¤µà¤°, सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, सरà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¥à¤¯à¤¾à¤®à¥€, अजर, अमर, अà¤à¤¯, नितà¥à¤¯ पवितà¥à¤° और सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ है।
ईशà¥à¤µà¤° अनादि सतà¥à¤¤à¤¾ है। इसका आदि अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ आरमà¥à¤ नहीं है। यह नाशरहित है। इसका कà¤à¥€ नाश नहीं हो सकता। इसके मूल सà¥à¤µà¤°à¥‚प में कà¤à¥€ किसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का परिवरà¥à¤¤à¤¨ नहीं होता। इस ईशà¥à¤µà¤° से ही यह विशà¥à¤µ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में आया है। परमातà¥à¤®à¤¾ इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का निमितà¥à¤¤à¤•à¤¾à¤°à¤£ हैं। अनादि, असंखà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ अननà¥à¤¤, à¤à¤•à¤¦à¥‡à¤¶à¥€, सूकà¥à¤·à¥à¤®, आंखों से अदृशà¥à¤¯ जीवों वा जीचवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं के पूरà¥à¤µ जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के सà¥à¤– व दà¥à¤ƒà¤– रूपी फल देने के लिये ईशà¥à¤µà¤° ने इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना की है। ईशà¥à¤µà¤° की सतà¥à¤¤à¤¾, सà¥à¤µà¤°à¥‚प व गà¥à¤£-करà¥à¤®-सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ को विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से जानने के लिये ऋषि दयाननà¥à¤¦ के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ सहित वेद, दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¤µà¤‚ उपनिषदों का सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ व अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करना चाहिये।
जीवातà¥à¤®à¤¾ का ईशà¥à¤µà¤° à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से पृथक असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ है। जीवातà¥à¤®à¤¾ à¤à¥€ à¤à¤• चेतन ततà¥à¤µ है जो अनादि, अनà¥à¤¤à¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨, नितà¥à¤¯, सूकà¥à¤·à¥à¤®, à¤à¤•à¤¦à¥‡à¤¶à¥€, ससीम, जनà¥à¤®-मरण में बंधा हà¥à¤†, शà¥à¤ व अशà¥à¤ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ को करने वाला तथा ईशà¥à¤µà¤° की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से उन करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल à¤à¥‹à¤—ने वाला, मनà¥à¤·à¥à¤¯ आदि अगणित योनियों में करà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° जनà¥à¤® लेने वाला à¤à¤µà¤‚ मनà¥à¤·à¥à¤¯ योनि में वेद का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर तथा उसके अनà¥à¤°à¥à¤ª करà¥à¤® कर बनà¥à¤§à¤¨à¥‹à¤‚ से मà¥à¤•à¥à¤¤ होकर मोकà¥à¤· को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने वाला है।
मनà¥à¤·à¥à¤¯ जनà¥à¤® के समय केवल पूरà¥à¤µ जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के संसà¥à¤•à¤¾à¤° लेकर आता है और शà¥à¤ व अशà¥à¤ संसà¥à¤•à¤¾à¤° लेकर ही संसार से जाता है। वह न तो कोई धन या à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• पदारà¥à¤¥ लेकर आता है और न मृतà¥à¤¯à¥ के समय किसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की समà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ या पदारà¥à¤¥ लेकर जाता है। यहां तक की उसका शरीर à¤à¥€ यहीं छूट जाता है जिसे समाज के लिये हानिकारक होने के कारण विजà¥à¤ž लोग अनà¥à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ करà¥à¤® करके अगà¥à¤¨à¤¿ के समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ कर देते हैं। अगà¥à¤¨à¤¿ में इस लिये समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करते हैं जिससे शरीर के पांचों à¤à¥‚त अपने कारण ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ में विलीन हो जायें और मृतक शरीर के रोगकारक किटाणॠनषà¥à¤Ÿ हो जायें। à¤à¥‚मि में गाड़ने से यह लाठनहीं होता तथा यह कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ वेद विरà¥à¤¦à¥à¤§ होने से तà¥à¤¯à¤¾à¤œà¥à¤¯ है। अतः मनà¥à¤·à¥à¤¯ को अपरिगà¥à¤°à¤¹à¥€, तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ में रà¥à¤šà¤¿ रखने सहित ईशà¥à¤µà¤°à¥‹à¤ªà¤¾à¤¸à¤¨à¤¾ à¤à¤µà¤‚ परोपकार के कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को करते रहना चाहिये।
वेदों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर उसके अनà¥à¤°à¥à¤ª आचरण à¤à¤µà¤‚ साधना करनी चाहिये जिससे मनà¥à¤·à¥à¤¯ वा जीवातà¥à¤®à¤¾ का यह जनà¥à¤® व परजनà¥à¤® दोनों में कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ हो। वैदिक दरà¥à¤¶à¤¨ की नींव ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वेद, ऋषियों के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚, सतà¥à¤¯, यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ व तरà¥à¤• पर आधारित है। अनà¥à¤¯ मतों में à¤à¤¸à¤¾ नहीं है। बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ तरà¥à¤• व वितरà¥à¤• कर सतà¥à¤¯ का निरà¥à¤£à¤¯ करती है। हम जिस मत को à¤à¥€ माने, हमें सतà¥à¤¯ व तरà¥à¤• से सिदà¥à¤§ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को ही मानना चाहिये।
असतà¥à¤¯ व तरà¥à¤•à¤¹à¥€à¤¨ बातों का तà¥à¤¯à¤¾à¤— करने सहित अनà¥à¤¯ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ व पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को किसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की पीड़ा व कषà¥à¤Ÿ नहीं देना चाहिये। इस दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से मांसाहार घोर पाप सिदà¥à¤§ होता है। मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को अहिंसा व पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ से अरà¥à¤œà¤¿à¤¤ सातà¥à¤µà¤¿à¤• à¤à¥‹à¤œà¤¨ का ही à¤à¤•à¥à¤·à¤£ व सेवन करना चाहिये। à¤à¤¸à¤¾ करने से ही ईशà¥à¤µà¤° हमें जनà¥à¤® जनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ में सà¥à¤– देगा अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ हमें अपने अशà¥à¤ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के दà¥à¤ƒà¤– रूपी फल अवशà¥à¤¯ à¤à¥‹à¤—ने होंगे यह निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ होता है। यह à¤à¥€ जान लें कि ईशà¥à¤µà¤° केवल à¤à¤• है जबकि जीवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं की संखà¥à¤¯à¤¾ अननà¥à¤¤ हैं। हम जीवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं की संखà¥à¤¯à¤¾ न तो गणना कर सकते हैं न उनकी संखà¥à¤¯à¤¾ को अनà¥à¤¯ किसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से नहीं ही जान सकते। ईशà¥à¤µà¤° के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ में जीवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं की संखà¥à¤¯à¤¾ की पूरी पूरी जानकारी होती है।
सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में तीसरा अनादि व नितà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ है। यह पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ सूकà¥à¤·à¥à¤® है परनà¥à¤¤à¥ ईशà¥à¤µà¤° सबसे सूकà¥à¤·à¥à¤® तथा सूकà¥à¤·à¥à¤®à¤¤à¤¾ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से जीवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ ईशà¥à¤µà¤° व पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के मधà¥à¤¯ में है। पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ तà¥à¤°à¤¿à¤—à¥à¤£à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• है। तà¥à¤°à¤¿à¤—à¥à¤£ सतà¥à¤µ, रज व तम कहलाते हैं। पà¥à¤°à¤²à¤¯ के बाद पà¥à¤°à¤²à¤¯ की अवधि पूरà¥à¤£ होने पर परमातà¥à¤®à¤¾ ईकà¥à¤·à¤£ व पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ में हलचल उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करते हैं जिससे सृषà¥à¤Ÿà¤¿ रचना की पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ आरमà¥à¤ होती है। पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का पहला विकार महतà¥à¤¤à¤¤à¥à¤µ बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ कहलाता है।
इसके बाद दूसरा विकार अहंकार होता है। अहंकार से पांच तनà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में आती हैं। फिर सूकà¥à¤·à¥à¤® à¤à¥‚त और दश इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¤µà¤‚ गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹à¤µà¤¾à¤‚ मन, पांच तनà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤“ ंसे पृथिवà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ पांच à¤à¥‚त बनते हैं। इन सबके असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में आने व सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ पूरà¥à¤£ हो जाने पर मनà¥à¤·à¥à¤¯ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ होती है। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से सृषà¥à¤Ÿà¤¿ वा बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में आता है। यह समसà¥à¤¤ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ निमितà¥à¤¤ कारण परमातà¥à¤®à¤¾ à¤à¤µà¤‚ उपादान कारण पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से आविरà¥à¤à¥‚त है। यही जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ है। जो लोग ईशà¥à¤µà¤° को नहीं मानते वह कहीं न कहीं à¤à¥‚ल करते हैं जिसका कारण अविदà¥à¤¯à¤¾ ही माना जा सकता है। à¤à¤¸à¥‡ लोगों को यह à¤à¥€ नहीं पता होता कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ में à¤à¤• अविनाशी चेतन सतà¥à¤¤à¤¾ आतà¥à¤®à¤¾ है जो अपने अतीत के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल à¤à¥‹à¤—ने के लिये जनà¥à¤® लेती है और इस जनà¥à¤® में जो नये करà¥à¤® करती है उसके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ही उसके आगे के जनà¥à¤® होते हैं। ऋषि दयाननà¥à¤¦ पà¥à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ वैदिक तà¥à¤°à¥ˆà¤¤à¤µà¤¾à¤¦ का सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ पूरà¥à¤£à¤¤à¤¯à¤¾ तरà¥à¤• à¤à¤µà¤‚ यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¸à¤‚गत होने से मानà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤°à¥à¤¯ है।
महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ वेदजà¥à¤ž थे। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वेदों का तलसà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶à¥€, सतà¥à¤¯, यथारà¥à¤¥ à¤à¤µà¤‚ गहन जà¥à¤žà¤¾à¤¨ था। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के दस नियमों की रचना की है। यह नियम à¤à¥€ सारà¥à¤µà¤à¥Œà¤®à¤¿à¤• à¤à¤µà¤‚ सतà¥à¤¯ नियम हैं। सबको इनका अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर परीकà¥à¤·à¤¾ करनी चाहिये और इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपनाना चाहिये।
हम समà¤à¤¤à¥‡ हैं कि विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के समान ही आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के नियम व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ à¤à¥€ पूरà¥à¤£à¤¤à¤¯à¤¾ सतà¥à¤¯ हैं। इसमें शंका व à¤à¥à¤°à¤® की किंचित à¤à¥€ समà¥à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ नहीं हैं। पहला नियम अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ हैं जो विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ रखता है। नियम है कि सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾ और जो पदारà¥à¤¥ विदà¥à¤¯à¤¾ से जाने जाते हैं उनका आदि मूल परमेशà¥à¤µà¤° है। विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ ईशà¥à¤µà¤° को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° नहीं करता परनà¥à¤¤à¥ उसके पास इस पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ का उतà¥à¤¤à¤° नहीं है कि जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से पूरà¥à¤£ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना कब व किसने किस पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ से की है। इसका सही उतà¥à¤¤à¤° वही है जो इस नियम में कहा गया है।
परमेशà¥à¤µà¤° ही सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं और जो पदारà¥à¤¥ विदà¥à¤¯à¤¾ से संयà¥à¤•à¥à¤¤ होकर बने हैं, उनका आदि व मूल है। दूसरा नियम ईशà¥à¤µà¤° विषयक है जिसका उलà¥à¤²à¥‡à¤– हम उपरà¥à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में कर चà¥à¤•à¥‡ हैं। तीसरा नियम अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ हैं। इस नियम में कहा गया है कि वेद सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• है। वेद का पà¥à¤¨à¤¾ पà¥à¤¾à¤¨à¤¾ और सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¾ सब आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ (वा मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚) का परम धरà¥à¤® है। विचार करने पर यह नियम à¤à¥€ पूरà¥à¤£ सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§ होता है।
सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में यदि परमातà¥à¤®à¤¾ ने अमैथà¥à¤¨à¥€ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ किये गये बिना माता-पिता व आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ वाली सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ व शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को चार ऋषियों के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ न दिया होता तो मनà¥à¤·à¥à¤¯ कà¤à¥€ à¤à¥€ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤µà¤¾à¤¨ नहीं हो सकते थे। इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ वेदों को ईशà¥à¤µà¤° से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर व इनके अरà¥à¤¥ जानकर हमारे आदि पूरà¥à¤µà¤œ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ बने थे।
वेद की पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• बात सतà¥à¤¯ है तथा इसका पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• शबà¥à¤¦ व उसके अरà¥à¤¥ अलौकिक अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ ईशà¥à¤µà¤° से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ हैं। आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ का चौथा नियम है कि सतà¥à¤¯ के गà¥à¤°à¤¹à¤£ करने और असतà¥à¤¯ को छोड़ने में सरà¥à¤µà¤¦à¤¾ उदà¥à¤¯à¤¤ रहना चाहिये। सारा संसार इस नियम को मानता है परनà¥à¤¤à¥ इस पर आचरण बहà¥à¤¤ कम लोग करते हैं। इसी कारण से संसार में दà¥à¤ƒà¤– व मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के जीवन सà¥à¤¤à¤°, शिकà¥à¤·à¤¾ व बल आदि में अनà¥à¤¤à¤° है। पांचवा नियम है कि सब काम धरà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सतà¥à¤¯ और असतà¥à¤¯ को विचार करके करने चाहियें। यह नियम à¤à¥€ अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ हैं और इसके लिये सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को वेद, ऋषियों के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ तथा विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की शरण लेनी चाहिये।
अनà¥à¤¯ पांच नियम à¤à¥€ अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ हैं à¤à¤µà¤‚ मानवमातà¥à¤° के लिये कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•à¤¾à¤°à¥€ हैं। हम पाठकों से आगà¥à¤°à¤¹ करेंगे कि वह सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶, ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¾à¤¦à¤¿à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯à¤à¥‚मिका सहित ऋषि दयाननà¥à¤¦ के सà¤à¥€ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ और वेद, दरà¥à¤¶à¤¨, उपनिषद, विशà¥à¤¦à¥à¤§ मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ आदि का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करें। वह पायेंगे कि वेद की जो मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं वही आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की à¤à¥€ हैं। यही वैदिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ सतà¥à¤¯à¤§à¤°à¥à¤® की परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ हैं।
वेदों à¤à¤µà¤‚ ऋषि दयाननà¥à¤¦ के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में निहित सà¤à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ सतà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ सारà¥à¤µà¤à¥Œà¤®à¤¿à¤• हैं। इन गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ व इनकी मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं के पालन से ही विशà¥à¤µ में शानà¥à¤¤à¤¿ à¤à¤µà¤‚ संसार के सब मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ सहित सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ हो सकता है। इसी के साथ लेख को विराम देते हैं। ओ३मॠशमà¥à¥¤
--मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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