राजनेता जब आप इस शब्द को आप सुनते हैं तो आपके मन में कैसी फीलिंग आती है?  कैसी भी आती होगी पर मुझे नहीं लगता है समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान के लिए सही फिलिंग आती हो। कल परसों उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान उत्तर प्रदेश की रामपुर सीट पर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही अभिनेत्री जया प्रदा को लेकर जो कहा वह सब मुझे लिखते बोलते शर्म महसूस हो रही है कि जयाप्रदा के नीचे का अंडरवेअर खाकी रंग का है।

अनेकों नेता और देश के लोग इनके इस बयान से गुस्सा भी हुए और पलटवार भी किया। किन्तु मेरी आजम खान से सभ्यता और संस्कार की अपेक्षा बहुत पहले तब खत्म हो गयी थी जब इन्होने अपने राष्ट्र अपनी भारत माता को डायन तक कह डाला था। हालाँकि देखा जाये तो अभिनेत्री से नेता बनी जयाप्रदा आजम खान की कलाई पर राखी बांधती रही है। लेकिन इसके बावजूद भी एक बहन के प्रति उनके ये शब्द भारतीय समाज हमारे संस्कार हमारी संस्कृति के विरुद्ध ही नहीं बल्कि रिश्ते नातों की गरिमा पर भी चोट करती है।

उनका यह बयान उनकी भूल और बड़बोलेपन से बिलकुल तौलकर न देखा जाये क्योंकि इससे पहले भी जयाप्रदा को आजम ने ‘नचनिया’ से लेकर ‘घुँघरू वाली’ तक कहा था। पूरे शहर में उनकी फिल्मों के अंतरंग दृश्यों के पोस्टर तक लगाए गए। लेकिन जयाप्रदा घूम घूम कर वोटरों के बीच आजम खान को भैया कहती रहीं। लेकिन एक भाई क्या होता है बहन के प्रति उसका स्नेह, राजनीति और रिश्तों की गरिमा आजम खान को कौन समझाए?

शायद में नाहक ही दुखी हो रहा हूँ क्योंकि मैं अपने संस्कृति और सभ्यता के आईने से इस अश्लील बयान को देख रहा हूँ पर जिसने यह बयान दिया उनकी संस्कृति और सभ्यता में शायद भाई बहन का रिश्ता पवित्र न समझा जाता हो और यह बयान गंगा जमुना तहजीब भूलकर अपनी मजहबी संस्कृति के अनुरूप दिया हो? क्योंकि यह कोई नई मानसिकता नहीं है, जायसी के अनुसार अलाउद्दीन पद्मिनी को अपने विजयी अभियान के पहले खुद देखने आता है, तो वह अपने साथ एक शीशा लेकर आता है और उसमें पद्मिनी को देखता है। वो रतन सिंह से कहता है कि वो पद्मिनी को अपनी बहन की तरह मानता है। लेकिन देखकर फिर उसी बहन पर गन्दी निगाह रख लेता है बस यही है इनकी वो मजहबी मानसिकता जो शुरू से चली आ रही है तो इसमें ज्यादा दुखी होने की बात नहीं हैं।

हाँ यह जरुर है कि यदि महिला सम्मान की बात हो तो यह कोई अकेला नेता नहीं है अगर देश की राजनीति में देखें तो रिश्तों से अलग भी महिला राजनेता पुरुष नेताओं के हाथों अश्लील, अभद्र और अपमान जनक टिप्पणओं की शिकार होती रही हैं। 2017 में शरद यादव ने वोट मांगते हुए कहा था कि वोट की इज्जत आपकी बेटी की इज्जत से ज्यादा बड़ी होती है। अगर बेटी की इज्जत गई तो सिर्फ गांव और मोहल्ले की इज्जत जाएगी लेकिन अगर वोट एक बार बिक गया तो देश और सूबे की इज्जत चली जाएगी। इनके इस बयान के बावजूद भी हमारे देश की संसद ने इन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरुस्कार दिया यह हमारे लिए शायद जरुर शर्म का विषय है।

वैसे देखा जाएँ चुनावी रैलियों में अकसर राजनीतिक बयानबाजी में महिलाओं को निशाना बनाया जाता रहा है। लेकिन अन्य कई मौको और मुद्दों पर भी कई राजनेता अपनी मानसिकता का दिखावा करने से बाज नहीं आते साल 2012 में दिल्ली में निर्भया गैंगरेप के बाद जब छात्राओं ने बड़ी संख्या में विरोध प्रदर्शन किया था तब कांग्रेस सांसद अभिजीत मुखर्जी ने हाथ में मोमबत्ती जला कर सड़कों पर आने वाली ये सजी संवरी महिलाएं पहले डिस्कोथेक में गईं और फिर इस गैंगरेप के ख़िलाफ विरोध दिखाने इंडिया गेट पर पहुंची। ऐसा ही एक बयान कांग्रेस के वरिष्ट नेता दिग्विजय सिंह ने अपनी पार्टी की महिला नेता मीनाक्षी नटराजन के बारे में कहा था कि मीनाक्षी जी का काम देख कर मैं यह कह सकता हूँ कि वह 100 टका टंच माल हैं।

कुछ समय पहले समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने बलात्कार जैसे घिनोने कृत्य पर कहा था कि लडकें है और लड़कों से गलती हो जाती हैं। साल 2012 में गुजरात चुनावों के नतीजों पर चल रही एक टीवी बहस के दौरान काँग्रेस सांसद संजय निरुपम ने स्मृति ईरानी को कहा था, ष्कल तक आप पैसे के लिए ठुमके लगा रही थीं और आज आप राजनीति सिखा रही हैं।

कहा जाता है ऐसे बयानों के बावजूद अकसर ये राजनेता हल्की फुल्की फटकार के बाद बच निकलते हैं। यानि नेता किसी भी पार्टी या दल से जुड़ें हो महिलाओं के बारे में आपत्तिजनक बयान देना सामान्य बात हो गयी है। जबकि सितम्बर 2017 में ठाणे की एक अदालत ने कहा था कि छम्मकछल्लो शब्द का इस्तेमाल करना‘ एक महिला का अपमान करने’ के बराबर है। भारतीय समाज में इस शब्द का अर्थ इसके इस्तेमाल से समझा जाता है। आम तौर पर इसका इस्तेमाल किसी महिला का अपमान करने के लिए किया जाता है। और इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 509 के तहत अपराध किया है। किन्तु ऐसे अपराध चुनाव आयोग और संविधान की नजर में देश के नेताओं पर लागू क्यों नहीं होते? ऐसे में मेरा तमाम राजनितिक दलों से अनुरोध है महिला आरक्षण की बात बाद में कर लेना पहले महिलाओं को सम्मान देना सीख लें।

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  • Muslim Dharm ki manyatayen aur esaki sanskriti to aisi hi hai. Jaha log apani beti aur chacha ki ladaki se bhi vivah kar sakate hai. prantu, Bhartiya sanskriti me pala badha muslim bhi utana kattar aur neech soch ka nahi hota hai kyoki Bharat me sabhi sampraday wale hai aur sab ek dusare ka samman karte hai. Ek neta ko jo desh kee janta ka representative hota hai usake khayalat bhi bahut unche hone chahiye aur aisi mansikata wale ko to neta hona hi nahi chahiye.

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