हिमादास का पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ नहीं सिरà¥à¤« जाति देखी
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Vinay AryaDate
27-Jul-2019Category
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RajeevUpload Date
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थोड़े दिन पहले की ही बात है जब गूगल पर बेडमिनà¥à¤Ÿà¤¨ खिलाडी पीवी सिंधॠके पदक जीतने बाद इंटरनेट पर उनकी जाति खूब टटोली गयी थी। उस समय इसकी निंदा हà¥à¤ˆ थी लेकिन à¤à¤• बार फिर इंटरनेट पर देश की यà¥à¤µà¤¾ धावक हिमा दास के à¤à¤• महीने के à¤à¥€à¤¤à¤° ही पांच सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ पदक जीतने के बाद उनकी जाति à¤à¥€ खोजी जा रही है। देखकर लगता है आज जिन सबसे बड़ी बीमारी से à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जूठरहे है वो मधà¥à¤®à¥‡à¤¹ या केंसर नहीं बलà¥à¤•à¤¿ जातीय पहचान, गरà¥à¤µ और शरà¥à¤®à¤¿à¤‚दगी की बीमारी है। जिसके निदान की कोई दवा, कोई टीका, अà¤à¥€ कोसो दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है। ये तय है आने वाले समय में ये बीमारी कम होने के बजाय और जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ समाज में दिखाई देगी।
हिमा दास को लेकर हमने सिरà¥à¤« इतना पà¥à¤¾ सà¥à¤¨à¤¾ था कि असम के छोटे से गाà¤à¤µ की गरीब किसान की बेटी हिमा दास ने बीस दिन के अनà¥à¤¦à¤° पांच गोलà¥à¤¡ मेडल जीतकर देश का नाम गरà¥à¤µ से ऊंचा कर दिया। हमने कई बार उनका वो वीडियो देखा जब वह पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—िता जीतने के बाद रà¥à¤•à¤•à¤°, साà¤à¤¸ लेने की बजाय à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ दरà¥à¤¶à¤•à¥‹ से हाथ से इशारा कर à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ गौरव का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• तिरंगा मांग रही थी, ताकि वो उसे लहराकर इस देश की शान को और बà¥à¤¾ सके। पर वह राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ खà¥à¤¶à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ देर न टिक सकी बेशक उसके हाथों में तिरंगा था किनà¥à¤¤à¥ सोशल मीडिया पर बैठे लोगों ने फटाफट गूगल पर उसकी जाति टटोलनी शà¥à¤°à¥‚ की ताकि वह पोसà¥à¤Ÿ डालकर अपने जातीय गरà¥à¤µ को चार चाà¤à¤¦ लगा सके। उसके गà¥à¤°à¥à¤ª उसकी फà¥à¤°à¥‡à¤‚डलिसà¥à¤Ÿ के लोग à¤à¥€ जान सके कि ये महारथी कितने कमाल का है कितनी जलà¥à¤¦à¥€ उसकी जाति खोद लाया।
इसके बाद खेल शà¥à¤°à¥‚ हो गया सोशल मीडिया पर कà¥à¤› पोसà¥à¤Ÿ घà¥à¤®à¤¨à¥‡ लगी, जिनमें कहा जा रहा था कि दलित होने की वजह से हिमा दास को सरकार ने उचित इनाम व समà¥à¤®à¤¾à¤¨ नहीं दिया। इसमें केवल आम लोग शामिल नहीं थे बलà¥à¤•à¤¿ जाने माने हाल ही में à¤à¤¾à¤œà¤ªà¤¾ से कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ में गये नेता उदित राज à¤à¥€ शामिल थे जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने टà¥à¤µà¥€à¤Ÿ में लिखा, कि “हिमा दास के सरनेम मे दास की जगह मिशà¥à¤°à¤¾, तिवारी, शरà¥à¤®à¤¾ ये सब लगा होता तो सरकारें करोड़ों रà¥à¤ªà¤ दे देती और मीडिया पूरे दिन देश के सà¤à¥€ चैनलों में चलाते.”
हालाà¤à¤•à¤¿ हिमा को लेकर यह नया तमाशा नहीं है। इससे पहले à¤à¥€ जब उसनें विशà¥à¤µ अंडर-20 à¤à¤¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤¿à¤•à¥à¤¸ चैंपियनशिप की 400 मीटर दौड़ सà¥à¤ªà¤°à¥à¤§à¤¾ में पहला सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर गोलà¥à¤¡ जीता था तब à¤à¥€ सोशल मीडिया पर इसी तरह का जातीय पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° किया गया था। उनकी जाति से संबंधित अनेकों पोसà¥à¤Ÿ की गयी थी। à¤à¤• पोसà¥à¤Ÿ में तो उनके साथ à¤à¤¾à¤°à¤¤ की पूरà¥à¤µ à¤à¤¥à¤²à¥€à¤Ÿ पीटी उषा खड़ी थी और पोसà¥à¤Ÿ में लिखा था कि “मूलनिवासी ही कोच है. मूलनिवासी ही धावक है। आप समठजाइठसफलता इनकी ईमानदारी की वजह से मिली है। अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ मनà¥à¤µà¤¾à¤¦à¥€ तो हर जगह चोर ठगी करते हैं।”
इन पोसà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ से हमें अहसास हà¥à¤† कि जिसके पास जैसा चशà¥à¤®à¤¾ है, वह वैसा à¤à¤¾à¤°à¤¤ देख रहा है और जिसके पास जिस रंग की सà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¥€ है, वह वैसा ही à¤à¤¾à¤°à¤¤ लिख रहा है। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इन दिनों देश à¤à¤• मूलनिवासी नाम की नई बीमारी से à¤à¥€ पीड़ित दिखाई दे रहा है। इस मूलनिवासी शबà¥à¤¦ के नाम पर पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ षडà¥à¤¯à¤‚तà¥à¤° को नठरूप में उठाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ जारी है। इसमे थà¥à¤¯à¥‹à¤°à¥€ है, कई सिदà¥à¤¦à¤¾à¤‚त है। à¤à¤• ओर जातीय गरà¥à¤µ है, दूसरी ओर जातीय अपशबà¥à¤¦ है। à¤à¤• तरफ जातीय का अहंकार है, दूसरी तरफ शरà¥à¤®à¤¿à¤‚दगी हैं। लोगों की रगों में यह सब इस कदर à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† है कि पूरा रकà¥à¤¤ निचोड़ लो तो à¤à¥€ à¤à¤• बूंद बच ही जायेगा। यही वो à¤à¤• दो बूंद है जिसने कà¤à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ समाज को à¤à¤•à¤œà¥à¤Ÿ होकर विदेशी आकà¥à¤°à¤¾à¤‚ताओं से मà¥à¤•à¤¾à¤¬à¤²à¤¾ à¤à¥€ नहीं करने दिया।
आज सà¤à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ के सामने यह पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ जरà¥à¤° मà¥à¤‚ह खोले खड़ा है कि आखिर शिकà¥à¤·à¤¿à¤¤ और आधà¥à¤¨à¤¿à¤• होते समाज में जाति लोगों का पीछा नहीं छोड़ रही या लोग ही इसका पीछा नहीं छोड़ना चाह रहे है। जहाठतक हमने समाज का विशà¥à¤²à¥‡à¤·à¤£ किया तो सामाजिक सà¥à¤¤à¤° पर जाति परेशानी का विषय पाया किनà¥à¤¤à¥ राजनितिक सà¥à¤¤à¤° पर यह à¤à¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ का विषय पाया। साफ देखा जाये तो जाति à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ समाज जातियों में विà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ है। हर समाज के वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को उसका हिसà¥à¤¸à¤¾ होने पर गरà¥à¤µ है। वह या उसके समाज का कोई और वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ खà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¿ या बड़ी उपलबà¥à¤§à¤¿ हासिल करता है तो उसे इस बात का बड़ा गरà¥à¤µ होता है कि उसके समाज के आदमी ने अपने लोगों का नाम रोशन किया।
इस वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ को हमारे समाज में पलने-बà¥à¤¨à¥‡ वाला हर बचà¥à¤šà¤¾ अपनी उमà¥à¤° के साथ ही समà¤à¤¨à¥‡ à¤à¥€ लगता है। जब वह सà¥à¤•à¥‚ल जाता है तो उसकी समà¤à¤¦à¤¾à¤°à¥€ और बॠजाती है। कदम-कदम पर वह अहसास करने लगता कि इस सीà¥à¥€à¤¦à¤¾à¤° ढांचे में वह किस नंबर की सीà¥à¥€ पर खड़ा है। इतिहास उठाकर देखिठजब à¤à¤¾à¤°à¤¤ में अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ ने घà¥à¤¸à¤¨à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ किया था तो कैसे हमने धीरे-धीरे अपनी सतà¥à¤¤à¤¾ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सौंप दी। इसके उलट जब चीन में अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ ने घà¥à¤¸à¤¨à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ किया तो à¤à¤²à¥‡ ही चीन की सेना हार गई लेकिन वहां गांव के गांव लोग अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ फौज से छापामार यà¥à¤¦à¥à¤§ करने लगे। लेकिन किसे कहे इस हमà¥à¤®à¤¾à¤® में सà¤à¥€ नंगे हैं। कà¥à¤¯à¤¾ हमारे पास मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‡ नहीं हैं, सिरà¥à¤« जातियां है। हमारी जाति का बà¥à¤°à¤¾ आदमी à¤à¥€ हमें पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¾ है और दूसरी जाति का अचà¥à¤›à¤¾ आदमी à¤à¥€ हमें पसंद नहीं है। कà¥à¤¯à¤¾ यह कबीलाई मानसिकता है। इससे छà¥à¤Ÿà¤•à¤¾à¤°à¤¾ कैसे पाया जा सकता है और कà¥à¤¯à¤¾ इस कबीलाई मानसकिता से राषà¥à¤Ÿà¥à¤° का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हो सकता है.?
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