पंजाब में बढ़ते नशे पर पिछले दिनों एक फिल्म आई थी उड़ता पंजाब जिसमें पंजाब को युवाओं को नशे में लिप्त दिखाया गया था. लेकिन हाल ही पंजाब में जो कुछ अंदर खाने चल रहा है उसे देखकर लगता है जल्द ही एक फिल्म बंटता पंजाब भी बना देनी चाहिए. इन दिनों इंग्लैड के सभी चर्चो के प्रमुख केंटबरी के आर्कबिशप जस्टिन बेल्बी भारत भ्रमण पर है और इस यात्रा के दौरान वो पंजाब के अमृतसर भी गये यहाँ पहुंचकर जस्टिन वेल्बी अमृतसर में जलियांवाला बाग स्मारक पर जाकर दंडवत मुद्रा में लेट गए और उन्होंने जलियांवाला बाग नरसंहार के लिए माफी मांगते हुए कहा कि यहां जो अपराध हुआ, उससे मैं शर्मशार और दुखी हूं। एक धार्मिक नेता के तौर पर मैं इस त्रासदी पर शोक व्यक्त करता हूं।

आर्चबिशप जस्टिन बेल्बी की यह तस्वीर देश विदेश के कई प्रतिष्ठित अखबारों में भी छपी। सभी जानते है कि देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में सामूहिक नरसंहार का नाम आते ही हमारे सामने जलियांवाला बाग कांड का चित्र उभर कर सामने आता है। जिसमें करीब 400 लोग ब्रिटिश सरकार की गोलियों का शिकार हुए थे। वहां कि दीवारों पर आज भी लगे गोलियों के निशान हम भारतीयों के दर्द को ताजा कर देते है।

यह दुखद घटना साल 1919 में हुई थी इस घटना के अब सौ वर्ष पूरे होने पर इस वर्ष ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री टेरीजा मे ने ब्रिटिश संसद में जलियांवाला बाग हत्याकांड पर अफसोस जताया संसद में संवेदना भी जताई थी, लेकिन माफी मांगने से इनकार कर दिया था। इसलिए अब जस्टिन बेल्बी का पंजाब पहुंचकर माफी मांगना संदेहास्पद है। आखिर क्यों जिस घटना के लिए इंग्लेंड सरकार माफी मांगने को तैयार नहीं है उसके लिए उनके धर्मगुरु क्यों माफी मांग रहे है? कहीं इसका सिर्फ यही एक कारण तो नहीं कि ईसाई धर्मांतरण की फसल लिए आज इन लोगों को पंजाब की जमीन इन लोगों को उपजाऊ लग रही है?

इसमें कोई दौराय नहीं है कि अब पंजाब में ईसाई धर्मांतरण का खेल खुलेआम हो रहा है। बड़े शहरों से लेकर दूर-दराज के गांवों तक में चंगाई सभा जैसे आयोजनों की भरमार हो गई है। धर्मांतरण का शिकार सिखों और हिंदुओं को बनाया जा रहा है। जबकि मुस्लिम बहुल इलाकों में ईसाई संगठनों की गतिविधियां न के बराबर हैं। ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों को लेकर सोशल मीडिया पर लिखने वालों की पोस्ट पर नजर डालें तो पंजाब में धर्मांतरण के सारे खेल के पीछे लालच का भी बड़ा हाथ है। कई लोगों ने बताया है कि गरीब लोगों को मुफ्त इलाज, नौकरी और पैसे का लालच देकर ईसाई एजेंसियां अपने चंगुल में फंसा रही हैं। कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जब मां-बाप तो सिख बने रहे, लेकिन उनका कोई एक लड़का लालच में पड़कर ईसाई बन गया। ईसाई मिशनरियां नौकरी की तलाश कर रहे बेरोजगार नौजवानों को विदेश भेजने का झांसा देकर उन्हें ईसाई बना रही हैं।

क्योंकि पिछले कुछ सालों में ढेरों नए चर्च खुल गए हैं और जगह-जगह बाइबिल और ईसाई धर्मांतरण साहित्य बांटते लोगों को देखा जा सकता है। कुछ चर्च तो ऐसी जगहों पर खुले हैं जहां 5-5 किलोमीटर के दायरे में एक भी ईसाई नहीं रहता। जिस तरह से ईसाई मिशनरियों की सक्रियता बढ़ी है उसे देखते हुए यही लगता है कि इन्हें विदेशों से बड़ी रकम और सहयोग मिल रहा है। कई ईसाई धर्म प्रचारक तो बाकायदा सिखों की तरह पगड़ी भी बांधते हैं। सिखों और पंजाबियों की तरह के नाम वाले ये प्रचारक भोले-भाले लोगों को मुर्ख बनाने में जुटे हैं। अनपढ़ और गांवों के लोगों के बीच जाकर ईसाई मिशनरी वाले लोगों को बताते हैं कि उनकी सारी मुसीबतों के पीछे असली कारण उनकी धार्मिक परंपराएं, उनके गुरु, त्यौहार और देवी-देवता हैं। इसके लिए लोगों को तरह-तरह के लालच भी दिए जाते हैं। ज्यादातर लोगों को यह एहसास भी नहीं होने दिया जाता कि उन्हें धर्मांतरण की तरफ ले जाया जा रहा है। कभी बीमारी के इलाज के नाम पर तो कभी नौकरी-रोजगार के नाम पर लोगों को ईसाई मिशनरियों से जोड़ने का काम जोरशोर से चल रहा है।

दिन पर दिन बढती चंगाई सभाओं के आयोजन देखकर लग रहा है जैसे नागालैंड के बाद पंजाब दूसरा राज्य है जिसे यीशु के प्रोजेक्ट की सबसे उन्नत चारागाह के रूप में चिन्हित किया गया है। वरना द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश शासन ने अपने सैनिकों अपने लोगों के लिए चावल की जमाखोरी कर ली थी, जिसकी वजह से 1943 में बंगाल में आए सूखे में तीस लाख से अधिक बंगाली लोग मारे गए थे उसके लिए तो आर्चबिशप जस्टिन बेल्बी ने माफी नहीं मांगी। केवल पंजाब पहुंचकर ही आर्चबिशप जस्टिन बेल्बी का दिल क्यों पसीजा?

वजह साफ है वास्तव में पंजाब भारत की मुकुटमणि है। इस पंजाब को दुनिया ने भारत और आर्यों के सबसे गौरवशाली सभ्यता के विकसित होने का मूल निवास कहा। इसी पंजाब में सिन्धु घाटी सभ्यता विकसित हुई थी। यही पंजाब भारत भूमि पर आक्रमण करने आने वालों के आगे ढाल बनकर हमेशा खड़ा रहता था। जब पूरा का पूरा समाज विधर्मी छाया से संतप्त था पंजाब से ही सिख पंथ की भक्ति-धारा उठी थी जिसने मतांतरण के प्रवाह को लगभग रोक दिया था। यही पंजाब है जहाँ वेदों में वर्णित सर्वाधिक नदियाँ दृष्टिगोचर होती हैं। पंजाब वही है जहाँ गुरू गोविंद सिंह जी ने भारत-भूमि और धर्म की रक्षा के लिये खालसा सजाई थी। इसी पंजाब से गुरु गोविंद सिंह जी ने श्री राम जन्मस्थान के रक्षा का संकल्प लिया था। इसी पंजाब से गोरक्षा के लिए रामसिंह कूका और उनके भक्तों ने गर्दनें कटवाई थी। इसी पंजाब से बंदा सिंह बैरागी और हरिसिंह नलवा ने हमारे पूर्वजों की रक्षा के लिये तलवारे उठाई थी।

इतने आक्रमणों और विभाजनों को झेलने के बाबजूद भी आज जो संपन्न और सबसे जिंदादिल लोग पंजाब के है तो क्यों न उसे ही शिकार बनाया जाये। इसी वजह से आर्चबिशप जस्टिन बेल्बी जलियावाला में दंडवत लेटे हुए है। परन्तु यह याद रखने योग्य बात है कि भारत में जहाँ-जहाँ ईसाई धर्म प्रचार सफल हुआ है, वहाँ-वहाँ पृथकतावादी आंदोलन खड़े होते हैं? इस प्रश्न का उत्तर अपने मन में खोजना होगा। अभी पंजाब और वहाँ के लोग इस संकट से बेखबर हैं। जबकि चंगाई सभाओं के नाम पर पास्टर धर्मांतरण की इस फसल को बेखोफ सींच रहे हैं।

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