इससे बड़ा झूठ कुछ और नहीं हो सकता है कि नागरिकता (संशोधन) बिल भारत के उस मूल विचार (आइडिया ऑफ इंडिया) के ख़िलाफ है, जिसकी बुनियाद हमारे देश के स्वाधीनता संग्राम सेनानियों ने रखी थी। कई बोद्धिक सेकुलर लिबरल और वामपंथी लोग सवाल उठा रहे है। आखिर ऐसे वक्त जब देश की जीडीपी गिर रही है, रोजगार कम हो रहे है प्याज टमाटर के भाव आसमान छू रहे है तब नागरिकता संशोधन बिल लाने की इतनी जल्दबाजी केंद्र सरकार क्यों दिखा रही है।

आपने भी संसद में इस बिल को लेकर लम्बी-लम्बी बहस देखी होगी किसी का लोकतंत्र मर रहा किसी का संविधान तड़फ रहा था तो किसी आइडिया ऑफ इंडिया खतरें में था। लेकिन अगर कुछ खतरें में नहीं था तो वो थे लाखों वो हिन्दू जो आज भी पड़ोसी देशों में जानवरों का जीवन जी रहे है। इसे थोडा समझने के लिए एक साल पीछे अगर हम चले तो 25 मार्च 2018 पाकिस्तान के सिंध प्रांत के मातली जिले में माशाअल्लाह शादी हाल नज्द मदरसा में शामियाना सजा, था अतिथियों का जमावड़ा हुआ, फूलों की सजावट और इत्र की बौछारें हुई भी हुई। शामियाने  के प्रवेश द्वार पर लिखा गया दावते-ए-इस्लाम।

जमीन पर दरियाँ बिछी थी उसके ऊपर कुर्सियां लगी हुई थी ठीक सामने मंच के इस छोर से उस छोर तक मुल्ला मौलवियों का जमावड़ा था। नीचे दरी पर 50 हिन्दू परिवारों के 500 महिलाएं पुरुष और बच्चें बैठे थे जिनका सामूहिक जबरन धर्मपरिवर्तन कराया जा रहा था। अचानक खुशी से फुले पीर मुख्तयार जान सरहदी, पीर सज्जाद जान सरहदी और पीर साकिब जान सरहदी ने कलमा पढ़ा जिसे सभी हिंदुओं को दोहराने को कहा गया। इन लोगों ने पर्दे में बैठी महिलाओं व बच्चों के भी नाम लेकर उन्हें इस्लाम कबूल करने को  कहा. सभी हिंदू दुखी मन और छलकती आँखों से कलमा दोहराते रहे। फिर वहां मौजूद लोगों ने उन्हें नए मुस्लिम बनने की मुबारकबाद दी। जो लोग कलमा पढ़ रहे थे, उनके चेहरों पर खुशी नहीं थी. वे बच्चों और पर्दों में बैठी महिलाओं के साथ मजबूरी में इस्लाम कबूल कर रहे थे।

बहुत सोच रहे होंगे कि पाकिस्तान में हुए इस धर्मपरिवर्तन से नागरिकता संशोधन बिल का क्या लेना देना तो पूरा किस्सा जानिए दरअसल इस धर्मपरिवर्तन का कारण ये था कि इनमें से अधिकांश वे थे, जो भारत में शरण लेने आए थे। परंतु लम्बी अवधि का वीजा और नागरिकता नहीं मिलने के कारण उन्हें पाकिस्तान लौटना पड़ा था।

राजस्थान की सीमा के उस पार धर्म परिवर्तन का यह पूरा सिलसिला ठीक उसी दौरान चल रहा था जब जिनेवा में यूएन मानवाधिकार परिषद के 37 वें सत्र में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सिंध प्रांत में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर होने वाले अत्याचारों और जबरन धर्म परिवर्तन, हिन्दुओ की लड़कियों और महिलाओं के अपहरण पर चिंता जताई जा रही थी। इसका संचालन मुस्लिम कनेडियन कांग्रेस के फाउंडर व लेखक तारिक फतेह कर रहे थे।

बात केवल इन 500 हिन्दुओ की नहीं है यदि देखा जाये राजस्थान में पिछले तीन सालों में 1379 हिंदू विस्थापितों को पाकिस्तान लौटना पड़ा। ऐसे लोगों का पाकिस्तान में जबरन धर्म परिवर्तन हो रहा था। खबर है अभी भी राजस्थान में लम्बी अवधि के वीजा के लिए 15000 विस्थापित दिल्ली और संबंधित जिलों के एसपी ऑफिस के चक्कर लगा रहे हैं. केवल राजस्थान में 5000 विस्थापित नागरिकता के इंतजार में है।

ऐसा नहीं है कि हमारे देश में जगह कम है बल्कि यहाँ बहुत बड़ी संख्या में विस्थापित रहते आये है। इनमें लाखों की तादात में तिब्बती शरणार्थियों के अलावा लगभग 40 हजार रोहिंग्या मुसलमान, जिनके पास न वीजा है न पासपोर्ट और करोड़ो की संख्या में बंगलादेशी मुसलमान, अफगान हो या इराकी शरणार्थियों समेत भारत दुनिया का सबसे बढ़िया ठिकाना बनता जा रहा हैं। यानि अपने देश की अनूठी परम्पराओं का लुत्फ आज सम्पूर्ण विश्व उठा रहा है. परम्पराओं, परिपाटियों एवं एतिहासिक उदहारण की आड़ में इनकी सेवा हमारे विपक्षी बखूबी रहे हैं।

लेकिन जब बात पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थियों की होती है तो कथित धार्मिक जगत से लेकर राजनितिक जगत में एक अजीब सी खामोशी छा जाती है। उनके पास वैध वीजा और पासपोर्ट होते हुए भी रहने नहीं दिया जाता किन्तु जैसे ही रोहिंग्या की बात आती है कई पत्रकारों से लेकर उनके समर्थन में पूरा विपक्ष कूद पड़ा, कई धार्मिक संगठन सामने आये इन्हें मासूम, परिस्थिति का शिकार, मजलूम और न जाने कितने भावनात्मंक शब्दों से इनका शरणार्थी अभिषेक किया गया। परन्तु जब पाकिस्तान से अपना धर्म बचाकर भागे हिन्दू भारत में शरण मांगते है तो यह लोग अपने कान और आँख बंद लेते है।

1971 के युद्ध के दौरान और बाद लगभग नब्बे हजार हिंदू राजस्थान के शिविरों में आ गए। ये लोग थरपारकर इलाके में थे जिस पर भारतीय सेना का कब्जा हो गया था। 1978 तक उन्हें शिविरों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। बाद में भुट्टो सरकार के साथ समझोता हुआ पाकिस्तान को  इलाका वापस दे दिया लेकिन पाकिस्तान ने उन लोगों को वापस लेने में कोई रुचि नहीं दिखाई। फिर 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद पाकिस्तान में जो प्रतिक्रिया हुई उसके परिणाम में अगले पांच साल के दौरान लगभग सत्रह हजार पाकिस्तानी हिंदू भारत चले आये। इस बार अधिकांश पलायन करने वालों का संबंध पंजाब से था। 1965 और 1971 में पाकिस्तान से आने वाले हिंदूओं को आख़िरकार अटल सरकार में भारतीय नागरिकता मिल गई लेकिन बाबरी मस्जिद की प्रतिक्रिया के बाद आने वाले पाकिस्तानी हिंदूओं को अब तक नागरिकता नहीं मिल सकी है।

पाकिस्तान के हिंदू कहते है कि आज पाकिस्तान का हिंदू न घर का है न घाट का। वहां धर्म बदलने की मजबूरी, यहां रोजी-रोटी और न जाने कब खदेड़ दिए जाने का खतरा हर समय मंडराता है। थारपारकर व उमरकोट इलाकों में जबरन धर्म परिवर्तन के मामले ज्यादा आ रहे हैं। जब कोई रास्ता नहीं बचता तो लोगों के सामने दो ही रास्ते बचते है या तो धर्म बचा ले या जीवन! अधिकांश लोग जीवन ही बचाना मुनासिफ समझते है। जो लोग आज बिल का विरोध कर रहे है जिन्हें आज सिर्फ मुसलमान डरे हुए दिखायी दे रहे है ये वही लोग है जिन्होंने बटवारे में लाखों हिन्दुओं को सिर्फ सत्ता पाने के लिए मौत के मुंह में फेंक दिया था।

 


 

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