इतिहास के पन्नों को कूड़े से ढेर से ढक दे या सोने चांदी के आभूषणों से लेकिन समय के साथ एक वो खुद ही सच कह उठता है कि मैं दबा नहीं, दबाया गया हूँ। हाल ही में तुर्की के एक प्राचीन म्युजिएम जिसका नाम हागिया सोफिया है उसे लेकर विश्व भर में चर्चा बनी हुई है बताया जा रहा है आने वाली 24 जुलाई को उसमें सामूहिक रूप से नमाज अदा की जाएगी। लेकिन इस नमाज पर विवाद हो गया है क्योंकि वेटिकन के पॉप फ्रांसिस ने कहा है कि तुर्की की राजधानी इस्तांबुल के हागिया सोफिया म्युजिएम में नमाज पढना गलत है क्योंकि वह एक चर्च है जिसे वापस मस्जिद में बदलने के तुर्की सरकार के फैसले से उन्हें दुख पहुँचा है।

असल में मुसलमानों के लिए हागिया सोफिया मस्जिद है और ईसाइयों के लिए चर्च। आखिर किस्सा क्या है क्योंकि चर्च मस्जिद नहीं हो सकता है और मस्जिद चर्च नहीं हो सकती लेकिन बात इस्लाम की आये तो कुछ भी हो सकता है। क्योंकि राम मंदिर बाबरी वाला विवाद तुर्क लुटेरों ने सभी जगह खड़ा किया हुआ है अपना ज्ञान था नहीं, यूरोप के चर्च तोड़कर मस्जिद बना दी और भारत में मंदिर तोड़कर उनके ऊपर मीनारे खड़ी कर दी।

पिछले 1500 सालों से सिर्फ इनकी यही कलाकारी रही है। अधिकांश जगह दूसरों के उपासना स्थल तोड़कर उन्हें अपना बनाना, चाहें इसमें राम जी का मंदिर हो या हागिया सोफिया चर्च जिसका लगभग 1,500 साल पहले एक ईसाई चर्च के रूप में निर्माण हुआ था।  सम्राट जस्टिनियन ने सन 532 में एक भव्य चर्च के निर्माण का आदेश दिया था। उन दिनों इस्तांबुल को कॉन्सटेनटिनोपोल या कस्तुनतुनिया के नाम से जाना जाता था। लेकिन सन 1453 में इस्लाम को मानने वाले ऑटोमन साम्राज्य ने विजय के बाद इसे एक मस्जिद में बदल दिया था।

हालाँकि 1453 से 1934 तक हागिया सोफिया को मस्जिद के रूप में रखा गया लेकिन 1934 में आधुनिक तुर्की के निर्माता कहे जाने वाले मुस्तफा कमाल पाशा ने देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित करने के बाद, इसे मस्जिद से म्यूजियम में तब्दील कर दिया था। अब फिर तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने कहा कि हागिया सोफिया में 24 जुलाई को पहली नमाज पढ़ी जाएगी। घोषणा के कुछ समय बाद ही वहाँ से अजान सुनाई दी और तुर्की के तमाम मुख्य चैनलों पर इसे प्रसारित किया गया। हागिया सोफिया का सोशल मीडिया अकाउंट भी बंद कर दिया गया है।

ये तुर्की की हागिया सोफिया चर्च की बात है। अब अगर भारत आये तो यहाँ तो अनेकों हागिया सोफिया जैसी घटनाये है, लेकिन धर्मनिरपेक्षता के लिहाफ में सब कुछ दबा दबा सा नजर आता है, हालाँकि साल 2018 में शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने इस लिहाफ को उतार फेंका था और एक चिठ्ठी लिखी थी। ये चिठ्ठी रिजवी ने देश के मुसलमानों के लिए लिखी थी। रिजवी ने 27 फरवरी 2018 के अपने पत्र में नौ मस्जिदों का जिक्र किया था जो मंदिर तोड़कर बनाई गयी है। इनमें सबसे ऊपर सन 1528 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने राम मंदिर तोड़ कर वहां मस्जिद बनवाई। दूसरा केशव देव मंदिर, मथुरा का है जिसे औरंगजेब ने 1670 में ध्वस्त किया, तीसरा जौनपुर की अटाला मस्जिद है जिसे फिरोज शाह तुगलक ने 1377 में अटाला देव मंदिर को ध्वस्त कर के बनाया, चौथा काशी विश्वनाथ मंदिर, बनारस है। जिसे तोड़कर मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1699 में ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई, गुजरात के रूद्र महालय मंदिर को 1410 में अलाउद्दीन खिलजी ने तोड़ कर जामा मस्जिद बनवाई, अहमदाबाद की भद्राकाली मंदिर को 1552 में अहमद शाह ने तुड़वा कर जामा मस्जिद बनवाई, पश्चिम बंगाल की अदीना मस्जिद का उल्लेख किया है। जिसे सिकंदर शाह ने 1373 में बनवाया। रिजवी के मुताबिक मध्य प्रदेश की विजय मंदिर को तोड़कर औरंगजेब ने 1669 में बीजामंडल मस्जिद में बदल दिया। आखिर में दिल्ली की कुतुब मीनार स्थित कुव्वातुल इस्लाम मस्जिद हैं जिसे 1206-1210 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मंदिर तोड़ कर बनवाया था।

ये इतिहास ऐसा है जिसे सब जानते है लेकिन अंधी धर्मनिरपेक्षता और संविधान की आड़ में सब कुछ दबा दिया गया। हालाँकि बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने इस्लाम पर खुलकर विचार व्यक्त किए हैं, उन्होंने पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया लिखा है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में मुस्लिम आक्रांता हिंदुओं के खिलाफ घृणा का राग गाते हुए आए थे।  à¤‰à¤¨à¥à¤¹à¥‹à¤‚ने न केवल घृणा ही फैलाई, बल्कि वापस जाते हुए हिंदू मंदिर भी जलाए, उनकी नजर में यह एक नेक काम था वे लिखते हैं कि अजमेर में चढ़ाई के दौरान मोहम्मद गोरी ने मंदिरों के स्तंभ और नींव तोड़कर वहां मस्जिदें बना दीं। वहां इस्लाम के कायदे-कानून वाले मदरसे और प्रतीक खड़े कर दिए। बताया जाता है कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1,000 से अधिक मंदिर तोड़े और उसके बाद उनकी नींव पर ही मस्जिदें खड़ी कर दीं, उसने दिल्ली में जामा मस्जिद बनाई और इसमें वह पत्थर और सोना लगाया जो मंदिर तुड़वाकर प्राप्त किया था। फिर उन पर कुरान की आयतें लिपिबद्ध करवा दीं। इस भयावह कारनामे की चर्चा और प्रमाणों का मिलान बताता है कि दिल्ली की जामा मस्जिद के निर्माण में 27 मंदिरों की सामग्री लगी है।

रिजवी ने अपने पत्र में साफ लिखा था की उन्होंने इतिहासकारों से अध्ययन करके ये सूची बनायी है। उनके अनुसार कब्जा करके, बलपूर्वक किसी भी ऐसी मस्जिद में नमाज पढ़ने की इजाजत इस्लाम नहीं देता है. फिर ऐसी मस्जिदों को हिंदुओं को सौप देना चाहिए. ये गैर इस्लामिक है।

क्योंकि इस सम्बन्ध में औरंगजेब की जीवनी में ही कुछ घटनाओं का जिक्र है, जो इन तथाकथित इतिहासकारों की पोल खोलता है। औरंगजेब पर साकी मुस्तक खान द्वारा लिखित पुस्तक मसीर-ई-आलमगीरी  में एक घटना का जिक्र है, जिसे आज के जमाने के किसी व्यक्ति ने नहीं लिखा है. ये घटना रविवार 24 मई  1689  की है, उस दिन खान जहाँ बहादुर जोधपुर से मंदिरों को तबाह कर के लौटा, औरंगजेब की जीवनी में लिखा हुआ है कि खान जहाँ बहादुर द्वारा मंदिरों को ध्वस्त किए जाने, उन्हें लूटने और प्रतिमाओं को विखंडित किए जाने पर बादशाह बहुत खुश हुआ. बादशाह को बहादुर के इन कृत्यों पर गर्व महसूस हुआ।

मसीर-ई-आलमगीरी  के अनुसार, खान जहाँ बहादुर जोधपुर से कई गाड़ियों में भर कर हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ लाया था। ये प्रतिमाएँ उन मंदिरों की थीं, जिन्हें मुगलों ने उसके नेतृत्व में लूटा और तबाह किया। इन लूटी गई प्रतिमाओं को बादशाह औरंगजेब के सामने पेश किया गया, जिस देख कर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ। इनमें एक से बढ़ कर एक प्रतिमाएँ थीं, कुछ सोने-चाँदी के थे, कुछ पीतल की थीं तो कुछ ताँबे से गढ़े गए थे। इनमें कई ऐसी मूर्तियाँ भी थीं, जो पत्थरों की थीं और उन पर उत्तम नक्काशियाँ की गई थीं।

ये केवल एक या दो घटना नहीं है ऐसी घटनाओं से इतिहास भरा हुआ है, क्योंकि इस्लाम में कोई प्राचीनता तो है नहीं आनन फानन में खड़ा किया गया संगठन था, जबरदस्ती जोड़े गये लोगों को पूजा स्थल की जरुरत महसूस हुई तो ईसाइयों के चर्च, यहूदियों के सिनेगॉग, हिन्दुओं के मंदिर, पारसियों के अग्नि मंदिर जिन्हें आतिश बेहराम कहा जाता है। उन्हें तोडा गया और बौधो के मठ तोड़े गये और कमाल देखिये फिर उन लोगों को उन्ही के पूजा स्थलों को पकड़ा दिया। यानि खाने पीने के लिए लूट की गयी तो पूजा उपासना के स्थलों तक लुटा गया और इतिहासकारों ने इन्हें कलाकार और चित्रकार बतलाया। किसी ने अकबर को महान और किसी ने औरंगजेब जैसे लुटेरे को टोपी सिलने वाला मासूम बादशाह बताया।

शायद फिल्म अभिनेत्री कोइना मित्रा ने राम जन्म भूमि फैसले के बाद असदुद्दीन ओवैसी को सही जवाब दिया था। जब ओवैसी ने कहा था कि “उन्हें बाबरी मस्जिद वापस चाहिए” इस पर कोइना मित्रा ने ओवैसी पर जवाबी हमला करते हुए कहा कि पहले हमारे तोड़े गए चालीस हजार हिंदू मंदिरों को वापस लौटाओ।


 

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