बच्चों का शोषण किसी भी रूप में और कहीं भी हो सकता है लेकिन पिछले कुछ सालों में जिस तरह दक्षिण एशिया में खासकर मदरसे शोषण का केंद्र बनकर उभरते जा रहे है इससे यह बात साफ हो जाती कि मजहबी पढाई के पीछे मदरसों के अन्दर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.

वहां मासूमों की बेबसी है, आंसू और चीखें है लेकिन मजहबी चहारदीवारी के अन्दर घुटकर दम तोड़ देने वाली कहानियाँ है, पिछले दिनों लखनऊ के एक मदरसे में लंबे समय से शोषित हो रही 51 छात्राओं को मुक्त कराया गया था और उन्हें प्रताड़ित करने के आरोप में मदरसा संचालक को गिरफ्तार करके जेल भेजा गया था.

अब इसी तरह मजहबी लोकतांत्रिक देश पाकिस्तान के मदरसों के बंद कमरों से दिल दहलाने वाली कहानियां बाहर आ रही हैं, इन बंद कमरों में लंबी दाढ़ी, सिर पर टोपी, हाथ में तसबीह धरे लोग न जाने कितने मासूमों की जिंदगी में रोजाना जहर घोल रहे हैं, बच्चे मदरसों की इन काल कोठरियों से छूटकर जब बाहर आते हैं तो उन्हें सामान्य होने में वर्षों लग जाता है..

असल में पाकिस्तान में 22 हजार मदरसे हैं, जिनमें 20 लाख से अधिक बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं, यहां पढ़ाने वाले अधिकांश मौलवी और मौलानाओं का व्यवहार बच्चों के प्रति वहशियाना ही होता है, चूंकि मदरसों पर नजर रखने के लिए पाकिस्तान में कोई केंद्रीय निकाय या केंद्रीय प्राधिकरण नहीं है, इस लिए बच्चे-बच्चियों को प्रताड़ित करने वाले मौलवी, मौलानाओं का कोई बाल बांका नहीं कर पाया. उनके शिकार बच्चों के मां-बाप पहले तो लाज शर्म से कोर्ट-कचहरी जाना पसंद नहीं करते. यदि कोई हिम्मत दिखाता भी है तो उनकी सुनवाई नहीं होती, कई बार जब कोई इनके खिलाफ आगे बढ़ने की कोशिश करता है तो मौलवियों द्वारा उस पर इस्लाम की निंदा या अपमान का आरोप लगा दिया जाता है, एक बार को इन्सान वहां फांसी से बच सकता है लेकिन ईशनिंदा के आरोप लगने पर पूरे परिवार की जान आफत में जाती है इसी कारण जब मामले की जांच की जाती है तो बच्चों के परिवार वाले दबाव या किसी मजबूरी के तहत पीछे हट जाते हैं.

दरअसल पाकिस्तान के मौलवी अक्सर रूढ़ीवादी परिवार के बच्चों को शिकार बनाते है, ताकि शर्म से कोई बखेड़ा न कर सके. मदरसों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चे पढ़ते हैं, जिनके मां-बाप रोजी-रोटी के चक्कर में हर तरह के विवाद से दूर रहना चाहते हैं, हालांकि ऐसी घटनाओं में निरंतर आ रही वृद्धि के चलते इस वर्ष 31 जनवरी को पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में बड़ा प्रदर्शन हुआ था, इसके बावजूद दागी मदरसों या मौलवियों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.

इसके अलावा पाकिस्तान में शिक्षा और शिक्षण संस्थानों की स्थिति बड़ी दयनीय है, इसे सिंध प्रांत के स्कूल की दशा से भी समझा जा सकता है, सिंध के 17,701 सरकारी स्कूल में मात्र एक विज्ञान का टीचर है तथा अन्य स्कूलों में भी देखें तो केवल 9 प्रतिशत में विज्ञान शिक्षक हैं, ऐसे में पाकिस्तान के मदरसों एवं मजहबी स्कूलों की दशा क्या होगी, आसानी से समझा जा सकता है कि वहां से आतंक की फौज निकलेगी या शिक्षकों की. 

पाकिस्तान के मदरसों में बच्चों से दुष्कर्म के थानों में दर्ज मामलों का अध्ययन करने वाले पत्रकार जार खान, असीम तनवीर और रियाज खान ने इस पर एक व्यापक रिपोर्ट तैयार की है। इसके मुताबिक, पूरे पाकिस्तान के मदरसों में पढ़ाने वाले मौलवियों पर यौन उत्पीड़न, बलात्कार और शारीरिक शोषण का आरोप है। कई पुलिस अधिकारी मानते हैं कि मुकदमा दर्ज कराने के बावजूद अभिभावकों के पीछे हट जाने से आज तक पाकिस्तान के किसी मदरसे के मौलवी को सजा नहीं हो पाई है। इस देश में मौलवी सियासी और सामाजिक तौर पर भी अब काफी शक्तिशाली हो चुके हैं, जिस पर हाथ डालना किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं है। ताजा उदाहरण बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच मुल्लाकृमौलवियों के दबाव में लॉकडाउन के बीच नमाज के लिए मस्जिदों को खोलने के लिए इमरान खान सरकार को राजी होना पड़ा था. मुल्ला-मौलवियों के दबाव के चलते ही सुप्रीम कोर्ट से ईशनिंदा के आरोप से बरी होने के बावजूद एक ईसाई महिला को पाकिस्तान छोड़कर जाना पड़ा था.

ये किस्से महज एक दो या चार नहीं है, समाचार एजेंसी एपी की रिपोर्ट देखें तो पाकिस्तान के अखबारों में बीते 10 साल में मौलवियों या उलेमाओं के यौन दुर्व्यवहार के 359 मामलों की रिपोर्टिंग हुई. नाबालिगों के साथ होने वाले यौन दुर्व्यवहार के खिलाफ लड़ने वाली संस्था साहिल की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर मुनीजे बानो के अनुसार कहे तो यह तो सिर्फ हिमखंड का सिरा है. अगर मदरसों के अन्दर रहकर देखें तो हालात इतने खराब है कि शोषित बच्चों की संख्या सैंकड़ों हजारों में मिल जाएगी. वहां पर मानवाधिकार मामलों के वकील सैफ उल मुल्क ने एक बार कहा था कि मुल्लाओं से आज हर कोई घबराता है. उन पर यौन दुर्व्यवहार का आरोप लगाने का मतलब है कि न्याय दुर्लभ बन जाएगा. गरीब डर जाते हैं, वे कुछ नहीं कहते. पुलिस मुल्लाओं की मदद करती है. पुलिस गरीबों की मदद नहीं करती और गरीब भी इस बात को जानते हैं, इसीलिए वो पुलिस के पास जाते ही नहीं हैं.ष् और ऐसे एक या दो दर्जन मामले नहीं हैं. सैकड़ों हैं. धर्म की राजनीति में पाकिस्तान के ज्यादातर आरोपी मौलवियों के कुकर्म धुल जाते हैं.

राजीव चौधरी

 


 

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