तीन दशक में लम्बे अन्तराल के बाद देश को नई शिक्षा नीति-2020 को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने प्रेस वार्ता कर इसकी जानकारी दी। इससे पहले 1986 में शिक्षा नीति लागू की गई थी। 1992 में इस नीति में कुछ संशोधन किए गए थे। यानी 34 साल बाद देश में एक नई शिक्षा नीति लागू की जा रही है।

बताया जा रहा है कि पूर्व इसरो प्रमुख के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति ने इसका मसौदा तैयार किया था, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने इसे मंजूरी दी है। इस नई शिक्षा नीति में स्कूल शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किए गए हैं।

खबर है कि नई शिक्षा नीति में पाँचवी क्लास तक मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की बात कही गई है। इसे क्लास आठ या उससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सेकेंडरी लेवल से होगी। हालांकि नई शिक्षा नीति में यह भी कहा गया है कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाएगा। साल 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100ः जीईआर के साथ माध्यमिक स्तर तक एजुकेशन फॉर ऑल का लक्ष्य रखा गया है। यानि अभी स्कूल से दूर रह रहे दो करोड़ बच्चों को दोबारा मुख्य धारा में लाया जाएगा। इसके लिए स्कूल के बुनियादी ढांचे का विकास और नवीन शिक्षा केंद्रों की स्थापनी की जाएगी।

अगर देखा जाये नई शिक्षा नीति की लम्बे अरसे से देश को तलाश थी इस कारण इस नई शिक्षा नीति की अगर सराहना की जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि बहुत सारे पॉइंट ऐसे है जिसकी देश को महती आवयश्कता थी। क्योंकि इससे सामाजिक और आर्थिक नजरिए से वंचित समूहों की शिक्षा पर विशेष जोर दिया जाएगा। छठी क्लास से वोकेशनल कोर्स शुरू किए जाएंगे। इसके लिए इसके इच्छुक छात्रों को छठी क्लास के बाद से ही इंटर्नशिप करवाई जाएगी। इसके अलावा म्यूजिक और आर्ट्स को बढ़ावा दिया जाएगा। इन्हें पाठयक्रम में लागू किया जाएगा। सबसे बड़ी बात यह कि जीडीपी का छह फीसद शिक्षा में लगाने का लक्ष्य जो अभी 4.43 फीसद है। इसके अलावा नई शिक्षा का लक्ष्य 2030 तक 3-18 आयु वर्ग के प्रत्येक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करता है।

इसके अतिरिक्त नई शिक्षा नीति में छात्रों को ये आजादी भी होगी कि अगर वो कोई कोर्स बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में दाख़िला लेना चाहें तो वो पहले कोर्स से एक ख़ास निश्चित समय तक ब्रेक ले सकते हैं और दूसरा कोर्स ज्वाइन कर सकते हैं और उच्च शिक्षा में कई बदलाव किए गए हैं। जो छात्र रिसर्च करना चाहते हैं उनके लिए चार साल का डिग्री प्रोग्राम होगा। जो लोग नौकरी में जाना चाहते हैं वो तीन साल का ही डिग्री प्रोग्राम करेंगे। लेकिन जो रिसर्च में जाना चाहते हैं वो एक साल के एमए के साथ चार साल के डिग्री प्रोग्राम के बाद सीधे पीएचडी कर सकते हैं। उन्हें अब एमफिल की जरूरत नहीं होगी।

अगर भाषाओँ को इस शिक्षा नीति में देखें तो सभी भारतीय भाषाओं के लिए संरक्षण, विकास और उन्हें और जीवंत बनाने के लिए नई शिक्षा नीति में पाली, फारसी और प्राकृत भाषाओं के लिए एक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसलेशन एंड इंटरप्रिटेशन (आईआईटीआई), राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना करने, उच्च शिक्षण संस्थानों में संस्कृत और सभी भाषा विभागों को मजबूत करने और ज्यादा से ज्यादा उच्च शिक्षण संस्थानों के कार्यक्रमों में, शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषाध् स्थानीय भाषा का उपयोग करने की सिफारिश की गई है।

यानि देखा जाये तो नई शिक्षा नीति में बहुत कुछ है और बहुत कुछ बदलाव भी किये गये लेकिन एक कसक ह्रदय के अंदर ये है कि इसमें हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति गुरुकुलों के लिए कोई विशेष बात नहीं की गयी। ये हम इसलिए कह रहे है कि मनुष्य वैसा ही होता है, जैसी शिक्षा उसे मिलती है, और जैसी शिक्षा मिलती है वैसे ही वहां के लोगों की मानसिकता और समाज होता है। आज हमारा राष्ट्र यदि समस्याओं से ग्रस्त है तो इसका अर्थ यह है कि समाज और राष्ट्र विकसन के लिए एक आदर्श शिक्षण व्यवस्था नहीं है। आज की शिक्षण पद्धति भौतिकतावाद को चरम पर ले जानेवाली, व्यक्तिगतता को महत्व देनेवाली तथा स्वार्थ को जन्म देनेवाली है। जो शिक्षा न रहकर बाजारू बन गयी है। दूसरा प्रत्येक राष्ट्र का एक उद्देश होता है और उस उद्देश को प्राप्त कर राष्ट्र को चरम स्तर पर ले जाना प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है।  हर व्यक्ति का उद्देश उस देश की शिक्षा पद्धति तय करती है। इसका अर्थ यह हुआ कि राष्ट्र को उसके उद्देश तक पहुंचाने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है और गुरुकुलों प्रणाली से उत्तम व्यवस्था दूसरी नहीं हो सकती है ऐसा हमारा मानना है।

विद्या विक्रय नहीं की जा सकती है, बल्कि दी जाती है. इसलिए गुरुकुल पूर्णतः निःशुल्क होते हैं।  गुरुकुल में कर्तव्य को प्रधानता है। इसलिए आचार्य कर्तव्य समझकर शिक्षा देते हैं। इसलिए समाज और सरकार का भी कर्तव्य बनता है कि वह अपनी क्षमता से थोड़ा अधिक देकर स्वयं को कृतार्थ करें क्योंकि गुरुकुल से निकलकर छात्र समाज उत्कर्ष के लिए ही कार्य करेंगे। कारण यहाँ ज्ञान के साथ अनुभव भी प्रदान किया जाता है।

इसे एक उदहारण स्वरूप देखें तो अंग्रेजी पद्धति का प्रभाव होने के कारण जानकारी को ज्ञान माना जाने लगा है। लेकिन भारत में अनुभव को ही ज्ञान माना गया है। जब हमारी गाड़ी ख़राब हो जाती है तब गाड़ी को वर्कशॉप में ठीक करने ले जाया जाता है। एक बात विचार करें कि क्या वह ख़राब गाड़ी वर्कशॉप  का इंजिनियर ठीक करता है या आज की भाषा में आठवी या दसवी पढ़ा हुआ कारीगर? उत्तर मिलेगा कारीगर क्यों ? क्योंकि कारीगर ने अनुभव लेते-लेते सीख लिया। जब तक गाड़ी ठीक करनी नहीं आयेगी तब तक जानकारी लेकर क्या करेंगे ? अनुभव दे दिया तो जानकारी अपनेआप मिल जाएगी। गुरुकुलों में छात्रों को अनुभव देकर सिखाया जाता है। क्योंकि अनुभव किया हुआ ज्ञान जीवन पर्यंत याद रहता है। इसलिए हमें गुरुकुल पद्धति को जीवित ही रखना बल्कि इसे बहुत आगे लेकर जाना है क्योंकि यही शिक्षा पद्धति अपने सिंहासन पर बैठकर विश्व को मार्गदर्शन करनेवाली है। यही शिक्षा पद्धति मेकॉले पुत्रों की प्रथा को तोड़कर महर्षि पुत्रों का निर्माण करने वाली है। इस कारण हमारा सरकार से अनुरोध है कि नई शिक्षा नीति को आज के आधुनिक नजरिये से सही कहा जा सकता है लेकिन इससे भविष्य का भारत अनुभववान, ज्ञानवान और संस्कारवान नहीं हो सकता। मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक जी से अनुरोध है कि गुरुकुलों की शिक्षा और पद्धति पर पर भी ध्यान दिया जाये तभी यह भारत विश्वगुरु बन सकता है।

विनय आर्य

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  • Reshma Arora

    Studying with Discipline through Community services inculcates values of Education; basics of Civility are imbibed when practical implementatioon early on is allowed for; Gurus are able to evaluate via online systems, the progress of students; senior specialisations as engineering, medical, artists, ministers etc. are honourable when virtues of true co-operation are inculcated through Education. Gurukul renders scope for eco-friendly living, environment care, respect for Instructor, syllabus that is humane and tapasya. Sanskrit towns are models for Gurukuls because the vocabulary is self-instructing.

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