जब हम देशभकत महापरूषों को याद करते हैं तो उनमें से क अगरणीय नाम वीर विनायक दामोदर सावरकर जी का आता है। सावरकर जी ने देश भकति के क नहीं अनेको से कारय किये जिससे यह देश हमेशा के लि उनका ऋणी है। उनकी माता राधा बाई धनय हैं जिसने वीर सावरकर जी जैसे निरभीक, देश भकत और धरम वीर पतर को जनम दिया था। वीरसावरकर जी अपनी माता के पतर तो थे ही परनत वह भारतमाता के भी अनयतम पतर थे। वेदों में कहा है कि माता भूमि पतरो अहम पृथिवयाः अरथात भूमि मेरी माता है और मैं इसका पतर हूं। वेद की इस सूकति का अरथ समने वाले भारत में बहत कम लोग हैं। भूमि हमारी माता कयों है, यदि इस पर विचार करें तो यह जञात होता है कि माता के दगध पान की ही तरह भूमि माता भी हमें अनन, जल, निवास, वसतर, सरकषा, औषधि, बनध व बानधवों से पूरण कर सख व आननद परदान करती है। माता व पिता के जिन परजनन ततवों से हमारा शरीर असतितव में आता है वह भी हमारी परिय भूमि माता की ही देन हैं। भूमि माता के यदि उपकारों का चिनतन करें तो हम पाते हैं कि हमारी माता के समान अथवा कछ अधिक ही भूमि माता के हम पर उपकार हैं। अपनी माता का ऋण तो हम सेवा सतकार कर कछ चका सकते हैं, परनत भूमि माता का ऋण तो किसी परकार से भी चकाया नहीं जा सकता। भूमि माता के ऋण को चकाने का केवल क ही तरीका है और वह वही है जैसा महरषि दयाननद जी ने किया अरथात देशोपकार के कारयों को करके। उनहोंने अपने सभी हितों व सखों को देश व ईशवर की परजा अरथात संसार के सभी मनषयों के सख व हित के लि बलिदान किया। इसी का कछ अनकरण देशभकत वीरों ने किया जिनहोंने हसंते हसंते फांसी के फनदों को चूमा और देशभकति के अनेक कारय किये तथा असीम दःख उठाये। यह आजादी किनहीं क या दो वयकति या महापरूषों की देन नहीं है अपित महरषि दयाननद सहित अनेकों महापरूषों व देशवासियों के देशभकतिपूरण कारयों का परिणाम है। देशों की इसी शरृंखला में परथम पंकति के क परमख महापरूष वीर सावरकर जी हैं जो देशभकति के अनेकानेक परातःसमरणीय बलिदान की भावना से पूरण कारयों को करके जीवित बलिदानी ही नहीं बने अपित उनहोंने सैकड़ों करानतिकारियों को बौदधिक दृषटि से तैयार कर भारत माता के ऋण को उतारा है। आईये, उनके जीवन की कछ घटनाओं को समरण कर उनहें अपने शरदधासमन अरपित करते हैं।

वीर विनायक दामोदर सावरकर जी का बचपन का नाम तातया था। आपका जनम 28 मई, सन, 1883 को गराम भागूर जिला नासिक, महाराषटर में हआ था। घर में आपके माता-पिता और तीन भाई थे। घर में परतिदिन भगवती दरगा की पूजा होने के साथ रामायण व महाभारत की कहानियां भी बचचों को सनने को मिलती थी। महाराणा परताप व वीर शिवाजी के वीरतापूरण परसंग भी आपको माता-पिता से सनने को मिलते थे। 10 वरष की आय में आपकी माता राधा बाई जी का देहानत हो गया। आप गांव के पराइमरी सकूल में पढ़ते थे। बचपन में शसतर चलाने का अभयास भी करते थे। कशती का शौक भी आपको हो गया था। इनहीं दिनों आपके इलाके में पलेग फैला। क क करके बिना औषधोपचार के लोग मरने लगे। अंगरेजों ने इस बीमारी की रोकथाम के लि कोई विशेष परयास नहीं किया जिससे सावरकर जी और कषेतर के लोगों में सरकार के परति रोष उतपनन हआ। इसी कारण चाफेकर बनधओं ने वहां के अंगेरज कमिशनर की हतया कर दी। अंगरेजों दवारा मकदमें का नाटक किया गया और इन वीर चाफेकर पतरों को फांसी दे दी गई। इससे वयथित वीर सावरकर जी ने निरणय किया कि इस अनयाय का बदला अवशय लेंगे। बड़े होकर आप नासिक जिले के फगरयसन कालेज में पढ़ने के लि गये। यहां आपने मितर-मेला नाम की देशभकत यवकों की क संसथा बनाई। इसका सदसय बनने के लि यवकों को यह घोषणा करनी पड़ती थी कि आवशयकता पड़ने पर वह देश पर अपना सरवसव नयोछावर कर दंेगे। सभी सदसय लोकमानय बाल गंगाधर तिलक दवारा परकाशित देशभकति से पूरण समचार पतर केसरी व अनय पतर-पतरिकाओं को पढ़ते थे। महाराणा परताप व वीर शिवाजी की जयनतियां भी आपके दवारा मनाई जाती थी। 22 मारच सन 1901 को इंगलैणड की महारानी विकटोरिया का देहावसान हआ। अंगरेजों दवारा देश भर में शोक मनाये जाने की घोषणा की गई। तातया ने मितर-मेला संगठन की बैठक बलाई और उसमें भाषण दिया। आपने भाषण में कहा कि महारानी विकटोरिया हमारे देशवासियों की शतर थी, उनहोंने हमें गलाम बनाया हआ है। हम उनके लि शोक कयों मनायें? समाचार पतरों में इससे समबनधित समाचार परकाशित होने से अंगेरजों को इस घटना का पता चला और सावरकर जी को फगरयसन कालेज से निकाल दिया गया। लोकमानय तिलक को इस घटना का पता चलने पर उनके मंह से निकला कि लगता है कि महाराषटर में शिवाजी ने जनम ले लिया है। इसके बाद तिलक जी ने सावरकर जी को बलाकर उनके शौरय की परशंसा की और उनहें आशीरवाद सहित सहयोग का आशवासन दिया।

देश के लोगों में देशभकति की भावना भरने के लि तिलक जी के आशीरवाद से आपने विदेशी वसतरों की होली जलाने का आनदोलन चलाया जो अपेकषा के अनरूप सफल रहा। देश भर में सथान सथान पर विदेशी वसतरों की होली जलाई गई जिससे देशवासी अंगरेजों की गलामी से घृणा करने लगे। इस पर लोकमानय तिलक जी ने कहा कि यह आग विदेशी सामराजय को भसम करके ही दम लेगी। बी.. पास करने के बाद आपने लनदन जाकर वहां से वकालत करने का निरणय लिया। 9 जून सन 1906 को आप लनदन के लि रवाना ह और वहां पहंच कर महरषि दयाननद के साकषात शिषय व करानतिकारियों के आदयगरू तथा आरय पणडित की उपाधि से अलंकृत पणडित शयामजी कृषण वमरमा के इणडिया हाउस में निवास किया जहां पहले से अनेक करानतिकारी यवक रहा करते थे। यहां आकर आपने पहला काम अंगरेजों दवारा लिखित भारत के इतिहास को पढ़ा। आप ने अपनी अनतरदृषटि से जान लिया कि यह इतिहास पकषपातपूरण है जिसमें भारतीयों से नयाय नहीं किया गया है। आपने भारतीयों का सचचा इतिहास देशवासियों के सामने लाने का निरणय किया। आपने कछ ही काल में कई पसतकों की रचना कर डाली। आपकी क परमख कृति सन 1857 का भारत का परथम सवातनतरय समर है जिस पर परकाशन से पूरव ही अंगरेजों ने परतिबनध लगा दिया गया। परकाशन से पूरव किसी पसतक पर परतिबनध की विशव इतिहास की यह परथम घटना थी। नेताजी सभाष चनदर बोस तथा करानतिकारी शहीद भगत सिंह जी ने इस पसतक को पढ़ा और इसे भारी संखया में छपवाकर यवकों में निःशलक वितरण कराया। यह पसतक लनदन में लिखी गई और वहां से परतिबनध लगने पर भी कैसे सरकषित भारत पहंच गई, यह क रहसय है। हमने यह पसतक पढ़ी है और हम अनभव करते हैं कि परतयेक भारतीय को यह पसतक अवशय पढ़नी चाहिये। इतने अधिक तथयों को इकटठा करना और अलप समय में उसे इतिहास के मापदणडों के अनसार रोचक रूप में परसतत करना क आशचरयजनक घटना है जिसका अनमान पसतक को पढ़कर ही लगाया जा सकता है।

आप इटली के परसिदध करानतिकारी मैजिनी से इतने अधिक परभावित थे कि आपने इन पर क पसतक की ही रचना कर डाली। विदेशों में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों को देश भकति की शिकषा देने के लि आपने सन 1857 की करानति के समृति दिवस के अवसर पर इसके परमख तीन अमर हतातमाओं वीर कवंर सिंह, मंगल पाणडे तथा महारानी लकषमी बाई को समरण करने का निरणय किया और विदेशी विशवविदयालयों में पढ़ने वाले विदयारथियों को साव दिया कि वह इस दिन अपने कोट पर क बिलला लगायें जिस पर लिखा हो कि सन 1857 की करानति के शहीदों की जय। इस घटना से इंगलैणड की सरकार चौंक गई और वीर सावरकर जी के विरूदध खफिया निगरानी और बढ़ा दी गई। भारतीय यवक मदनलाल ढ़ीगरा जी ने लनदन में वीर सावरकर जी से देशभकति पर चरचा की। ढ़ीगराजी ने करजन वायली की हतया की योजना पर आपसे विसतृत बातचीत की तथा दोनों में इसकी सहमति हई। 11 जलाई सन 1909 को लनदन के जहांगीर हाल में क बैठक में भारतीयों पर अतयाचारों के दोषी करजन वायली उपसथित थे। पूरव जानकारी परापत करके मदनलाल ढ़ीगरा और वीर सावरकार आदि करानतिकारी वहां पहंच गये। बैठक के दौरान पराणवीर मदन लाल ढ़ीगरा की पिसतौल से गोली चली और करजन वायली वहीं ढेर हो गये। क अंगरेज ने ढीगरा जी को पकड़ने की कोशिश की और वह भी उनकी पिसतौल की गोली से अपने पराण गंवा बैठा। इस घटना के परिणाम सवरूप भारतमाता के वीर सपूत व यवकों के परेरणासरोत बने शरी मदनलाल ढ़ीगरा जी को 16 अगसत सन 1909 को लनदन में फांसी दे दी गई। करजन वायली की हतया के विरोध में क निनदा परसताव पारित करने के लि कछ दिन बाद सर आगा खां ने लनदन में क बैठक का आयोजन किया। शोक परसताव परसतत हआ जिसमें कहा गया कि हम सब सरवसममति से करजन वायली की हतया की निनदा करते हैं। इसके विरोध में वहां बैठे वीर सावरकर खडे़ ह और दृणता से बोले कि सरवसममति से नहीं, मैं इस परसताव का विरोध करता हूं। इस अदभद शौरय पूरण घटना से अंगरेजों को करजन वायली की हतया में वीर सावरकर का हाथ होने का शक हआ। उन पर निगरानी अब पहले से अधिक कड़ी कर दी गई। मितरों के परामरश से वह पेरिस चले गये परनत वहां मन न लगने पर परिणाम की चिनता कि बिना लनदन लौट आये।

वीर सावरकर जी के पेरिस से लनदन वापिस आते ही पलिस ने उनहें गिरफतार कर लिया। 15 सितमबर, 1910 को उन पर मकदमा चला और 23 जनवरी 1911 को उनहें आजीवन कारावास का दणड सनाया गया। इसके बाद मेरिया नामक जहाज में बैठा कर उनहें भारत भेजने का परबनध किया गया। जहाज के चलने पर वह चिनतन मनन में खो ग। उनहें जहाज में क अंगरेज पतरकार से पता चला कि देश की आजादी के लि आनदोलन करने के कारण उनके दो भाई भी भारत की जेलों में हैं। इस पर उनकी परतिकरिया थी कि मे गरव है कि मेरा पूरा परिवार ही भारत माता को दासता की बेडि़यों से मकत कराने के कारय में संलगन है। जेलों में पड़कर जीवन समापत करने की अपेकषा उनहोंने भारत माता के लि कछ ठोस कारय करने के बारे में सोचा। इसके लि उनहोंने जहाज से भागने का विचार किया। वह शौचालय में गये और उसके रोशनदान को उखाड़कर उससे समदर में कूद पड़े। अंगरेज पलिस उन पर गोलियों की बौछार करने लगी और वह तैर कर आगे बढ़ रहे थे और अधिकांश समय पानी के अनदर ही रहते थे। इस सथिति में उनहोंने पास के किसी दवीप में पहंचने का निरणय किया। वह फरांस के क दवीप पर पहंच गये जहां के सिपाही ने सावरकर जी के गिरफतार करने के निवेदन को अनसना कर उनहें बरिटिश सैनिको को सौंप दिया। यदि पलिस फरांस का सिपाही उनहें गिरफतार कर लेता तो अनतराषटरीय नियमों के अनसार वह अंगरेज सैनिकों की गिरफतारी से वह बच सकते थे। गिरफतार कर उनके शरीर पर बेडि़या डाल दी गई जिससे वह हिल-डल न सकें। इस परकार से बनदी बनाकर उनहें क नाव से उसी जहाज, जिससे वह कूदे थे, पर लाकर भारत पहंचाया गया जहां उन पर फिर मकदमा चला और उनहें कालापानी की सजा दी गई। उनकी सजा दो जनमों के कारावास की थी जिसके अनतरगत उनहें 50 वरषों तक कालापानी में बिताने थे। दो जनमों की सजा सनाये जाने पर भी सावरकर जी मसकराये थे और अंगरेज जज को उनहोंने कहा था कि आप ईसाई लोग तो बाइबिल के अनसार दो जनम मानते ही नहीं हैं फिर आपका मे दो जनमों का कारावास देना हासयापद ही है।

इस सजा को काटने के लि उनहें अणडमान निकोबार की पोरटबलेयर सथित कालापानी की जेल में भेज दिया गया। कालापानी में वीर सावरकर जी को कोलहू में बैल के सथान पर जतना पड़ता था और परतिदिन 30 पौंड तेल निकालना पड़ता था। बीच बीच में गरमी से लोग मूरछित भी हो जाते थे। सा होने पर कोड़ो से कैदियों की पिटाई होती थी। खाने की सथिति सी थी कि बाजरे की रोटी व सवादरहित सबजी जिसे निगलना मशकिल होता था। पीने के लि परयापत पानी भी नहीं मिलता था। दिन में भी शौच आने पर अनमति नहीं मिलती थी और बात बात पर गांलिया दी जाती थी। से यातना गरह में रहकर क महान चिनतक और देशभकत ने 10 वरषों तक जीवन वयतीत किया। कालापानी में वीर सावरकर जी ने जो यातनायें सहन की उसे हमारे सतता का सख भोगने वाले सोच भी नहीं सकते। वीर सावरकर जी का बलिदान किसी भी सतयागरही से कहीं अधिक बड़ा बलिदान था, सा हम अनभव करते हैं। हमने पोरट बलेयर जाकर कालापानी की उस जेल को देखा है जिसमें सावरकर जी रहे और उन यातनाओं को भी अनभव किया है जो उनको दी गईं थी। आज भी वह कोलहू, वहां का फांसी घर जो सावरकर जी के कमरे के सममख था तथा वहां के सभी सथानों को देखा है। हम चाहेंगे कि सभी देशभकतों को कालापानी की जेल को देश का परमखतम तीरथ सथान मानकर वहां जाना चाहिये और भारतमाता के उन वीर सपूतों को अपनी शरदधांजलि देनी चाहिये जहां सावरकरजी सहित अनेक देशभकतों ने घोर यातनायें सहन की थी। इतना और बता दें कि वहां सायं के समय क लाइट णड साउणड शो होता है जिसे देखकर रोंगटे खडें हो जाते हैं। यह कारयकरम देशभकतों को दी जाने वाली यातनाओं को परभावशाली रूप से समरण कराने में सकषम है। परतयेक देशभकत के लि यह दरशनीय है। इस लाइट णड साउंड शो को यूटयूब से डाउनलोड कर भी देखा जा सकता है।

 

                वीर सावरकर जी 10 वरषों तक कालापानी की जेल में रहे। क दिन जेल में ही इनकी अपने बड़े भाई शरी गणेश सावरकर जी से भेंट हो गई। जेल के कड़े नियमों के कारण दोनों आपस में बातचीन नहीं कर पाये परनत दोनों के बीच क क पतर का आदान परदान हआ जिसमें दोनों ने अपनी संकषिपत भावनायें वयकत की। सावरकर जी को कविता लिखने का शौक था। इन विपरीत परिसथितियों में भी आपने कविताओं की रचना की और उनहें कणठागर किया। जेल की दीवारों पर भी कील से देश परेम की कवितायें लिख डालीं। जेल के अंगरेज परशासन ने जेल के सभी हिनदू कैदियों को परेशान करने के लि उन पर मसलिम संतरी रख दिये और उनहें भड़़काया कि यह हिनदू काफिर हैं। यदि वह उनको यातना देंगे तो उनहें धारमिक दृषटि से जननत à

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