कà¥à¤¯à¤¾ सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ का अधिकार हैं ?
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Dr. Vivek AryaDate
19-Nov-2014Category
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03-Feb-2016Download PDF
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सतà¥à¤¯ सनातन वैदिक धरà¥à¤® के शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹ में , महिलाओ के वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने के असंखà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ है। इन असंखà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹ को अनदेखा करते हà¥à¤¯à¥‡ कà¥à¤› अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€à¤œà¤¨ "गिने चà¥à¤¨à¥‡ कà¥à¤› पà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ शà¥à¤²à¥‹à¤•à¥‹" के आधार पर , सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹ को अनाधिकारिणी सिदà¥à¤§ करने का मूरà¥à¤–तापूरà¥à¤£ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करते रहते है। यह लोग विदà¥à¤¯à¤¾ के लिà¤, विदà¥à¤¯à¤¾ की देवी सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जो सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ देह धारिणी है, उनकी उपासना करते है और सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ को वेदपाठसे वंचित करने की बात करते... है। मतलब पहले विदà¥à¤¯à¤¾ के लिठसà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जी की शरण मे जाना, और विदà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ ये 'फतवा' जारी कर देना कि सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ को अधिकार नहीं है , हासà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤ªà¤¦ है।
यह मूढ़ कà¤à¥€ ये कà¥à¤¯à¥‹ नहीं सोचते कि यदि सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को वेदमनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का अधिकार नहीं, तो पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤•à¤¾à¤² में सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ वेदों की मनà¥à¤¤à¥à¤°à¤¦à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€- ऋषिकाà¤à¤ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ हà¥à¤ˆà¤‚? यदि वेद की वे अधिकारिणी नहीं तो यजà¥à¤ž आदि धारà¥à¤®à¤¿à¤• कृतà¥à¤¯à¥‹à¤‚ तथा षोडश संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ किया जाता है? विवाह आदि अवसरों पर सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के मà¥à¤– से वेदमनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ कराया जाता है? बिना वेदमनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के नितà¥à¤¯ सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ और हवन सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ कैसे कर सकती हैं? यदि सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ अनधिकारिणी थीं तो अनसूया, अहलà¥à¤¯à¤¾, अरà¥à¤¨à¥à¤§à¤¤à¥€, मदालसा आदि अगणित सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ वेदशासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में पारंगत कैसे थीं? जà¥à¤žà¤¾à¤¨, धरà¥à¤® और उपासना के सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• अधिकारों से नागरिकों को वंचित करना कà¥à¤¯à¤¾ अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯ à¤à¤µà¤‚ पकà¥à¤·à¤ªà¤¾à¤¤ नहीं है। जब सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€, पà¥à¤°à¥à¤· की अरà¥à¤§à¤¾à¤‚गिनी है तो आधा अंग अधिकारी और आधा अनधिकारी किस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° रहा?
खैर इन पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹ के उतà¥à¤¤à¤° तो इनसे नहीं देते बनेंगे, किनà¥à¤¤à¥ अब शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹ से ही इनके इस असतà¥à¤¯à¤®à¤¤ के खंडन, और इस सतà¥à¤¯ --" सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹ को वेदमंतà¥à¤°à¥‹ के उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ का, अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ का, यजà¥à¤žà¤¾à¤¦à¤¿ करने का, आचारà¥à¤¯à¤¾ बनने का अधिकार था व है , इसकी सिदà¥à¤§à¤¿ हेतॠपà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किठजाते है, विचारशील वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ इससे समठसकते है कि सतà¥à¤¯ कà¥à¤¯à¤¾ है ---
ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ १०। ८५ में समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ की ऋषिका ‘सूरà¥à¤¯à¤¾- सावितà¥à¤°à¥€’ है। ऋषि का अरà¥à¤¥ निरà¥à¤•à¥à¤¤ में इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° किया है—‘‘ऋषिरà¥à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤¤à¥à¥¤ सà¥à¤¤à¥‹à¤®à¤¾à¤¨à¥ ददरà¥à¤¶à¥‡à¤¤à¤¿ (२.११)। ऋषयो मनà¥à¤¤à¥à¤°à¤¦à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤°: (२.११ दà¥. वृ.)।’’ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का दà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾ उनके रहसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को समà¤à¤•à¤° पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करने वाला ऋषि होता है। ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ की ऋषिकाओं की सूची बृहदॠदेवता के दूसरे अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ में इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° है—
घोषा, गोधा, विशà¥à¤µà¤µà¤¾à¤°à¤¾, अपाला, उपनिषदà¥, निषदà¥, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤œà¤¾à¤¯à¤¾ (जà¥à¤¹à¥‚), अगसà¥à¤¤à¥à¤¯ की à¤à¤—िनी, अदिति, इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ और इनà¥à¤¦à¥à¤° की माता, सरमा, रोमशा, उरà¥à¤µà¤¶à¥€, लोपामà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ और नदियाà¤, यमी, शशà¥à¤µà¤¤à¥€, शà¥à¤°à¥€, लाकà¥à¤·à¤¾, सारà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤œà¥à¤žà¥€, वाकà¥, शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾, मेधा, दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾, रातà¥à¤°à¥€ और सूरà¥à¤¯à¤¾- सावितà¥à¤°à¥€ आदि सà¤à¥€ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤¨à¥€ हैं।
ऋ गà¥à¤µà¥‡à¤¦ के १०- १३४, १०- ३९, ४०, १०- ९१, १०- ९५, १०- १०à¥, १०- १०९, १०- १५४, १०- १५९, १०- १८९, ५- २८, ८- ९१ आदि सूकà¥à¤¤ की मनà¥à¤¤à¥à¤°à¤¦à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿà¤¾ ये ऋषिकाà¤à¤ हैं।
à¤à¤¸à¥‡ अनेक पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ मिलते हैं, जिनसे सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ होता है कि सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ à¤à¥€ पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ की तरह वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ व यजà¥à¤ž करती और कराती थीं। वे यजà¥à¤ž- विदà¥à¤¯à¤¾ और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®- विदà¥à¤¯à¤¾ में पारंगत थीं।
तैतà¥à¤¤à¤¿à¤°à¥€à¤¯ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£’’ में सोम दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ‘सीता- सावितà¥à¤°à¥€’ ऋषिका को तीन वेद देने का वरà¥à¤£à¤¨ विसà¥à¤¤à¤¾à¤°à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• आता है—
तं तà¥à¤°à¤¯à¥‹ वेदा अनà¥à¤µà¤¸à¥ƒà¤œà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤à¥¤ अथ ह सीता सावितà¥à¤°à¥€à¥¤ सोमठराजानं चकमे। तसà¥à¤¯à¤¾ उ ह तà¥à¤°à¥€à¤¨à¥ वेदानॠपà¥à¤°à¤¦à¤¦à¥Œà¥¤ -तैतà¥à¤¤à¤¿à¤°à¥€à¤¯ बà¥à¤°à¤¾à¥¦à¥¨/३/१०/१,३
इस मनà¥à¤¤à¥à¤° में बताया गया है कि किस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° सोम ने सीता- सावितà¥à¤°à¥€ को तीन वेद दिये।
दà¥à¤µà¤¿à¤µà¤¿à¤§à¤¾: सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾:। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤¨à¥à¤¯: सदà¥à¤¯à¥‹à¤µà¤§à¥à¤µà¤¶à¥à¤šà¥¤ ततà¥à¤° बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤¨à¥€à¤¨à¤¾à¤®à¥à¤ªà¤¨à¤¯à¤¨à¤®à¥, अगà¥à¤°à¥€à¤¨à¥à¤§à¤¨à¤‚ वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨à¤‚ सà¥à¤µà¤—ृहे च à¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¤¾à¤šà¤°à¥à¤¯à¥‡à¤¤à¤¿à¥¤ सदà¥à¤¯à¥‹à¤µà¤§à¥‚नां तूपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¥‡ विवाहे कथञà¥à¤šà¤¿à¤¦à¥à¤ªà¤¨à¤¯à¤¨à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤‚ कृतà¥à¤µà¤¾ विवाह: कारà¥à¤¯:। —हारीत धरà¥à¤® सूतà¥à¤°
बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤¨à¥€ और सदà¥à¤¯à¥‹à¤µà¤§à¥‚ ये दो सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ होती हैं। इनमें से बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤¨à¥€- यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤, अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°, वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ तथा सà¥à¤µà¤—ृह में à¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¤¾ करती हैं। सदà¥à¤¯à¥‹à¤µà¤§à¥à¤“ं का à¤à¥€ यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤ आवशà¥à¤¯à¤• है। वह विवाहकाल उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होने पर करा देते हैं।
शतपथ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ में याजà¥à¤žà¤µà¤²à¥à¤•à¥à¤¯ ऋषि की धरà¥à¤®à¤ªà¤¤à¥à¤¨à¥€ मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ को बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤¨à¥€ कहा है—
तयोरà¥à¤¹ मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤¨à¥€ बà¤à¥‚व। —शत०बà¥à¤°à¤¾à¥¦ १४/à¥/३/१
अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤¨à¥€ थी।
बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤¨à¥€ का अरà¥à¤¥ बृहदारणà¥à¤¯à¤• उपनिषदॠका à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ करते हà¥à¤ शà¥à¤°à¥€ शंकराचारà¥à¤¯ ने ‘बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¤¨à¤¶à¥€à¤²’ किया है।
शतपथ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ १४। १। ४। १६ में, यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ के ३à¥à¥¤ २० मनà¥à¤¤à¥à¤° ‘तà¥à¤µà¤·à¥à¤Ÿà¤®à¤¨à¥à¤¤à¤¸à¥à¤¤à¥à¤µà¤¾ सपेम’ इस मनà¥à¤¤à¥à¤° को पतà¥à¤¨à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ करने का विधान है। तैतà¥à¤¤à¤¿à¤°à¥€à¤¯ संहिता के १। १। १० ‘सà¥à¤ªà¥à¤°à¤œà¤¸à¤¸à¥à¤¤à¥à¤µà¤¾ वयं’ आदि मनà¥à¤œà¥à¤žà¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बà¥à¤²à¤µà¤¾à¤¨à¥‡ का आदेश है। आशà¥à¤µà¤²à¤¾à¤¯à¤¨ गृहà¥à¤¯ सूतà¥à¤° १। १। ९ के ‘पाणिगà¥à¤°à¤¹à¤£à¤¾à¤¦à¤¿ गृहà¥à¤¯....’ में à¤à¥€ इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° यजमान की अनà¥à¤ªà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में उसकी पतà¥à¤¨à¥€, पà¥à¤¤à¥à¤° अथवा कनà¥à¤¯à¤¾ को यजà¥à¤ž करने का आदेश है। काठक गृहà¥à¤¯ सूतà¥à¤° ३। १। ३० à¤à¤µà¤‚ २à¥à¥¤ ३ में सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठवेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨, मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤šà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ à¤à¤µà¤‚ वैदिक करà¥à¤®à¤•à¤¾à¤£à¥à¤¡ करने का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ है। लौगाकà¥à¤·à¥€ गृहà¥à¤® सूतà¥à¤° की २५वीं कणà¥à¤¡à¤¿à¤•à¤¾ में à¤à¥€ à¤à¤¸à¥‡ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ मौजूद हैं।
सूरà¥à¤¯ दरà¥à¤¶à¤¨ के समय à¤à¥€ वह यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ के ३६। २४ मनà¥à¤¤à¥à¤° ‘तचà¥à¤šà¤•à¥à¤·à¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µà¤¹à¤¿à¤¤à¤‚’ को सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ही उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ करती है। विवाह के समय ‘समञà¥à¤œà¤¨’ करते समय वर- वधू दोनों साथ- साथ ‘अथैनौ समञà¥à¤œà¤¯à¤¤: .....’ इस ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ १०। ८५। ४ॠके मनà¥à¤¤à¥à¤° को पढ़ते हैं। à¤à¤¤à¤°à¥‡à¤¯ ५। ५। २९ में कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ गनà¥à¤§à¤°à¥à¤µ गृहीता का उपाखà¥à¤¯à¤¾à¤¨ है, जिसमें कनà¥à¤¯à¤¾ के यजà¥à¤ž à¤à¤µà¤‚ वेदाधिकार का सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿà¥€à¤•à¤°à¤£ हà¥à¤† है।
कातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨ शà¥à¤°à¥Œà¤¤ सूतà¥à¤° १। १। à¥, ४। १। २२ तथा २०। ६। १२ आदि में à¤à¤¸à¥‡ सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ आदेश हैं कि अमà¥à¤• वेद- मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ करे। लाटà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨ शà¥à¤°à¥Œà¤¤ सूतà¥à¤° में पतà¥à¤¨à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ससà¥à¤µà¤° सामवेद के मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के गायन का विधान है। शांखायन शà¥à¤°à¥Œà¤¤ सूतà¥à¤° के १। १२। १३ में तथा आशà¥à¤µà¤²à¤¾à¤¯à¤¨ शà¥à¤°à¥Œà¤¤ सूतà¥à¤° १। ११। १ में इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के वेद- मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤šà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ के आदेश हैं। मनà¥à¤¤à¥à¤° बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ के १। २। ३ में कनà¥à¤¯à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वेद- मनà¥à¤¤à¥à¤° के उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ की आजà¥à¤žà¤¾ है। यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ मे आता है , ---
कà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¿à¤¨à¥€ घृतवती पà¥à¤°à¤¨à¥à¤§à¤¿: सà¥à¤¯à¥‹à¤¨à¥‡ सीद सदने पृथिवà¥à¤¯à¤¾:। अà¤à¤¿à¤¤à¥à¤µà¤¾ रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ वसवो गृणनà¥à¤¤à¥à¤µà¤¿à¤®à¤¾à¥¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® पीपिहि सौà¤à¤—ायाशà¥à¤µà¤¿à¤¨à¤¾à¤§à¥à¤µà¤°à¥à¤¯à¥‚ सादयतामिहतà¥à¤µà¤¾à¥¤ —यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ १४। २
अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤, हे सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€! तà¥à¤® कà¥à¤²à¤µà¤¤à¥€ घृत आदि पौषà¥à¤Ÿà¤¿à¤• पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का उचित उपयोग करने वाली, तेजसà¥à¤µà¤¿à¤¨à¥€, बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¤à¥€, सतà¥à¤•à¤°à¥à¤® करने वाली होकर सà¥à¤–पूरà¥à¤µà¤• रहो। तà¥à¤® à¤à¤¸à¥€ गà¥à¤£à¤µà¤¤à¥€ और विदà¥à¤·à¥€ बनो कि रà¥à¤¦à¥à¤° और वसॠà¤à¥€ तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा करें। सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिये इन वेदमनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के अमृत का बार- बार à¤à¤²à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° पान करो। विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥ तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ शिकà¥à¤·à¤¾ देकर इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की उचà¥à¤š सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ पर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित कराà¤à¤à¥¤
यह सरà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¤¿à¤¤ है कि यजà¥à¤ž, बिना वेदमनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के नहीं होता और यजà¥à¤ž में पति- पतà¥à¤¨à¥€ दोनों का समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ रहना आवशà¥à¤¯à¤• है। रामचनà¥à¤¦à¥à¤° जी ने सीता जी की अनà¥à¤ªà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में सोने की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ रखकर यजà¥à¤ž किया था। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ को à¤à¥€ सावितà¥à¤°à¥€ की अनà¥à¤ªà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ पतà¥à¤¨à¥€ का वरण करना पड़ा था, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यजà¥à¤ž की पूरà¥à¤¤à¤¿ के लिये पतà¥à¤¨à¥€ की उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ आवशà¥à¤¯à¤• है। जब सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ यजà¥à¤ž करती है, तो उसे वेदाधिकार न होने की बात किस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° कही जा सकती है? देखिये—
अ यजà¥à¤žà¥‹ वा à¤à¤· योऽपतà¥à¤¨à¥€à¤•:। —तैतà¥à¤¤à¤¿à¤°à¥€à¤¯ सं० २। २। २। ६
अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ बिना पतà¥à¤¨à¥€ के यजà¥à¤ž नहीं होता है।
अथो अरà¥à¤§à¥‹ वा à¤à¤· आतà¥à¤®à¤¨: यतॠपतà¥à¤¨à¥€à¥¤
—तैतà¥à¤¤à¤¿à¤°à¥€à¤¯ सं० ३। ३। ३। ५
अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥- पतà¥à¤¨à¥€ पति की अरà¥à¤§à¤¾à¤‚गिनी है, अत: उसके बिना यजà¥à¤ž अपूरà¥à¤£ है।
अब महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ से कà¥à¤› पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करते है ---
à¤à¤¾à¤°à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤œà¤¸à¥à¤¯ दà¥à¤¹à¤¿à¤¤à¤¾ रूपेणापà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ à¤à¥à¤µà¤¿à¥¤ शà¥à¤°à¥à¤¤à¤¾à¤µà¤¤à¥€ नाम विà¤à¥‹ कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¥€à¥¥ —महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ शलà¥à¤¯ परà¥à¤µ ४८। २
अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤, à¤à¤¾à¤°à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤œ की शà¥à¤°à¥à¤¤à¤¾à¤µà¤¤à¥€ नामक कनà¥à¤¯à¤¾ थी जो बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¤¿ थी। कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ के साथ- साथ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¤¿ शबà¥à¤¦ लगाने का तातà¥à¤ªà¤°à¥à¤¯ यह है कि वह अविवाहित और वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने वाली थी।
अतà¥à¤°à¥ˆà¤µ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥€ सिदà¥à¤§à¤¾ कौमार- बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¤¿à¥¤ योगयà¥à¤•à¥à¤¤à¤¾ दिवं याता, तप: सिदà¥à¤§à¤¾ तपसà¥à¤µà¤¿à¤¨à¥€à¥¥ —महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ शलà¥à¤¯ परà¥à¤µ ५४। ६
अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤, योग सिदà¥à¤§à¤¿ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कà¥à¤®à¤¾à¤° अवसà¥à¤¥à¤¾ से ही वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने वाली तपसà¥à¤µà¤¿à¤¨à¥€, सिदà¥à¤§à¤¾ नाम की बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¤¿ मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ˆà¥¤
महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ शानà¥à¤¤à¤¿ परà¥à¤µ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ ३२० में ‘सà¥à¤²à¤à¤¾’ नामक बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤¨à¥€ संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¿à¤¨à¥€ का वरà¥à¤£à¤¨ है, जिसने राजा जनक के साथ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ किया था। इसी अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ के शà¥à¤²à¥‹à¤•à¥‹à¤‚ में सà¥à¤²à¤à¤¾ ने अपना परिचय देते हà¥à¤ कहा—
पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¥‹ नाम राजरà¥à¤·à¤¿à¤µà¥à¤°à¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤‚ ते शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤°à¤®à¤¾à¤—त:। कà¥à¤²à¥‡ तसà¥à¤¯ समà¥à¤¤à¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨à¤¾à¤‚ सà¥à¤²à¤à¤¾à¤‚ नाम विदà¥à¤§à¤¿ मामà¥
साऽहं तसà¥à¤®à¤¿à¤¨à¥ कà¥à¤²à¥‡ जाता à¤à¤°à¥à¤¤à¤°à¥à¤¯à¤¸à¤¤à¤¿ मदà¥à¤µà¤¿à¤§à¥‡à¥¤ विनीता मोकà¥à¤·à¤§à¤°à¥à¤®à¥‡à¤·à¥ चरामà¥à¤¯à¥‡à¤•à¤¾à¤®à¥à¤¨à¤¿à¤µà¥à¤°à¤¤à¤®à¥à¥¥ —महा०शानà¥à¤¤à¤¿ परà¥à¤µ ३२०। १८१। १८३
मैं सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ कà¥à¤² में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ सà¥à¤²à¤à¤¾ हूà¤à¥¤ अपने अनà¥à¤°à¥‚प पति न मिलने से मैंने गà¥à¤°à¥à¤“ं से शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ की शिकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करके संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया है।
अब वालà¥à¤®à¥€à¤•à¤¿ रामायण से पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ देखिये ----
देही शोकसनà¥à¤¤à¤ªà¥à¤¤à¤¾ हà¥à¤¤à¤¾à¤¶à¤¨à¤®à¥à¤ªà¤¾à¤—मतà¥à¥¤ —वालà¥à¤®à¥€à¤•à¤¿à¥¦ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° ५३। २६
अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥- तब शोक सनà¥à¤¤à¤ªà¥à¤¤ सीताजी ने हवन किया।
‘तदा सà¥à¤®à¤¨à¥à¤¤à¥à¤°à¤‚ मनà¥à¤¤à¥à¤°à¤œà¥à¤žà¤¾ कैकेयी पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥à¤µà¤¾à¤š ह।’ —वा० रा० अयो० १४। ६१
वेदमनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को जानने वाली कैकेयी ने सà¥à¤®à¤¨à¥à¤¤à¥à¤° से कहा।
सा कà¥à¤·à¥Œà¤®à¤µà¤¸à¤¨à¤¾ हृषà¥à¤Ÿ नितà¥à¤¯à¤‚ वà¥à¤°à¤¤à¤ªà¤°à¤¾à¤¯à¤£à¤¾à¥¤ अगà¥à¤¨à¤¿à¤‚ जà¥à¤¹à¥‹à¤¤à¤¿ सà¥à¤® तदा मनà¥à¤¤à¥à¤°à¤µà¤¤à¥ कृतमंगला॥ —वा० रा० २। २०। १५
वह रेशमी वसà¥à¤¤à¥à¤° धारण करने वाली, वà¥à¤°à¤¤à¤ªà¤°à¤¾à¤¯à¤£, पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤®à¥à¤–ी, मंगलकारिणी कौशलà¥à¤¯à¤¾ मनà¥à¤¤à¥à¤°à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° कर रही थी।
तत: सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤à¥à¤¯à¤¯à¤¨à¤‚ कृतà¥à¤µà¤¾ मनà¥à¤¤à¥à¤°à¤µà¤¿à¤¦à¥ विजयैषिणी। अनà¥à¤¤:पà¥à¤°à¤‚ सहसà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤à¤¿: पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ शोकमोहिता॥ —वा० रा० ४। १६। १२
तब मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को जानने वाली तारा ने अपने पति बाली की विजय के लिये सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤à¤¿à¤µà¤¾à¤šà¤¨ के मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का पाठकरके अनà¥à¤¤:पà¥à¤° में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया।
इसके अतिरिकà¥à¤¤ वसिषà¥à¤ सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ à¤à¥€ सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹ के वेदमंतà¥à¤°à¥‹ के उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ व अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ का समरà¥à¤¥à¤¨ ही करती है ।
वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ शासà¥à¤¤à¥à¤° के à¤à¥€ कतिपय सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ पर à¤à¤¸à¥‡ उलà¥à¤²à¥‡à¤– हैं, जिनसे सिदà¥à¤§ होता है कि वेद का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨- अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¨ à¤à¥€ सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° रहा है। देखिग
‘इडशà¥à¤š’ ३। ३। २१ के महाà¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ में लिखा है— ‘उपेतà¥à¤¯à¤¾à¤§à¥€à¤¯à¤¤à¥‡à¤½à¤¸à¥à¤¯à¤¾ उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¾’
अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जिनके पास आकर कनà¥à¤¯à¤¾à¤à¤ वेद के à¤à¤• à¤à¤¾à¤— तथा वेदांगों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करें, वह उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ या उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¾ कहलाती है।
आचारà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤£à¤¤à¥à¤µà¤‚। —अषà¥à¤Ÿà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ ४। १। ४९
इस सूतà¥à¤° पर सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ कौमà¥à¤¦à¥€ में कहा गया है—
आचारà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¯ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ आचारà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥€ पà¥à¤‚योग इतà¥à¤¯à¥‡à¤µà¤‚ आचारà¥à¤¯à¤¾ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€à¥¤
अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जो सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ वेदों का पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨ करने वाली हो, उसे आचारà¥à¤¯à¤¾ कहते हैं।
à¤à¤¸à¥‡ ही अनà¥à¤¯ à¤à¥€ अनेकों पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ है जो सिदà¥à¤§ करते है कि सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¥€ वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने का अधिकार शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¸à¤®à¥à¤®à¤¤ है।
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