शरदधापूरण परेरक वयकतितव : सवामी रामेशवराननद सरसवती
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Manmohan Kumar AryaDate
16-Aug-2014Category
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16-Sep-2014Download PDF
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हमें सवामी रामेशवराननद सरसवती जी के दरशन करने, उनके परवचन सनने व उनकी त शि खरणी छनद सवरचित पदयों को उनके ही शरीमख से सनने, अपने à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ पेटरोलियम संसथान, देहरादून में सन 1980 में उनका परवचन कराने व उनके साथ कछ समय वयतीत करने का सअवसर परापत हआ है। मई, 1995 में à¤à¥€ हमें उन पर क लेख लिखने का अवसर मिला था जो तब देहरादून से परकाशित परमख दैनिक पतर ‘दून दरपण’ में परकाशित हआ था। इस बीच परयापत कालावधि बीत चकी है परनत हमें लगता है कि वह वरतमान पीढ़ी के लेखकों व पाठकों दवारा विसमृत हो चके हैं। सवामीजी का वयकतितव व शारीरिक सवरूप हमें बाहय दृषटि से सवामी दयाननद जी से मिलता-जलता लगता था। लगà¤à¤— 6 फीट का ऊंचा कद, सवसथ शरीर , गौर वरण की विशाल व à¤à¤µà¤¯ मूरति के समान आकृति वाले सवामीजी को देखकर उनके मख मणडल पर दिवय कानति व ओज के दरश न होते थे। हमने उनहें हंसते ह à¤à¥€ देखा है। उस अवसर हमने जो उनहें देखा था वह अनदाज व उस परकार की हंसी हमने केवल सवामी विदयाननद ‘विदेह’ की ही देखी है। वह अपने सिर पर जो केसरी पगड़ी बांधते थे वह अदà¤à¤¤ व आकरषक दिखाई देती थी। उनके साथ लगà¤à¤— सन 1980 में वयतीत कि गये कछ कषण हमें अपने जीवन के आननददायक परमख कषण लगते हैं। उनका साननिधय वसतत: किसी दिवय परूष की संगति व उपासना के समान लगता था। अतः उनके कछ संसमरण जो उनके जीवन व कारयों से समबनधित हैं, हम परसतत कर रहे हैं। सवामी रामेशवराननद सरसवती क से सनत थे जिनहोंने महरषि दयाननद को अपना आदरश मानकर उनको अपने जीवन में चरितारथ करने का परयास किया था। उनका जीवन à¤à¥€ महरषि दयाननद से मिलता-जलता वैदिक आदरशों व देश के हित के कारयों के लि समरपित था। उनमें हमें वैदिक धरम व देश के लि बलिदान होने की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ का अनà¤à¤µ होता है। वह आरय समाज वा वैदिक धरम के परसि़दध व परमख संनयासी, विदवान, उपदेशक, परचारक व शिकषा जगत को समरपित जीवन के धनी थे। वह से गिने-चने संनयासी, विदवान व नेता थे जिनहोंने राजनीति के कषेतर में à¤à¥€ अपना परà¤à¤¾à¤µ अंकित व परदरशित किया था। बिना किसी दल का टिकट लि वह आरय समाज की विचारधारा व अपने निजी वयकतितव के आधार पर हरयाणा के करनाल निरवाचन कषेतर से सांसद चने गये थे। ‘‘ओउम का धवज’’ ही उनका णडा था और आरय समाज की विचारधारा के अनसार समाज का निरमाण करना, देश की पराणपण से सेवा तथा पकषपात को समापत कर सबके परति नयायसंगत वयवहार करना ही उनका राजनैतिक जेंडा था।
सवामी रामेशवराननद सरसवती देश के उन संतों में रहे हैं जिनहोंने ने महरषि दयाननद सरसवती दवारा परदरशित वैदिक मानयताओं वं समाजोतथान के कारयां को जीवन के अनतिम कषणों तक किया । सवामी रामेशवराननद बहआयामी वयकतितव के धनी थे। इनके जीवन का अधययन कर कहा जा सकता है कि देश परेम वं समजौथान की जो पवितर à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ इनमें थी वह इनके पूरव वरती महरषि दयाननद और उनके अनयायियों के अतिरिकत अनय सनयासियों में दृषटिगोचर नहीं होती।
सवामी रामेशवराननद का जनम सन 1890 ई. में क कृषक जाट परिवार में उततर परदेश के बलनदशहर जनपर के गांव करेव में हआ था। बालयकाल में ही माता-पिता का देहानत हो जाने के कारण मन में वैरागय उतपनन हो गया और 15 वरष क आय में वह घर छोड़कर काशी पहंच गये। काशी में आपको क गजराती संनयासी सवामी कृषणाननद का सतसंग सलठहआ जिनहोंने रामसवरूप को संनयास की दीकषा देकर सवामी रामेशवराननद सरसवती नाम दिया। संनयास दीकषा के पशचात तीरथ सथानों का à¤à¤°à¤®à¤£ करते ह सवामी जी दिलली पहंचे जहा आरय समाज के à¤à¤œà¤¨à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶à¤• सवामी à¤à¥€à¤·à¤® जी महाराज के विचारों से परà¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ ह और उनहें अपना गरू सवीकार किया।
मनषय के जीवन का लकषय मोकष है जिसकी परापती विदया से होती है। वेदवाकय ‘विदयामृतमषनते’ इसकी पषटि करता है। सवामी à¤à¥€à¤·à¤®à¤œà¥€ ने सवामी रामेशवराननद को विदयारजन का परामरश दिया जिसे शिरोधारय कर सवामीजी ने गरूकल महाविदयालय, लापर, साध आशरम, हरदआगंज, गरूकल सिकनदराबाद, दयाननद बरहमा महाविदयालय, लाहोर आदि अनेक अधययन संसथानों में रहकर उस समय के परसिदध आचारयों से संसकृत वयाकरण, वेद वं शासतरों का जञान परापत किया। सन 1935 ई. में आपने अधययन पूरा कर लिया और सारवजनिक जीवन में पदारपण किया। पराधीन à¤à¤¾à¤°à¤¤ में देश में शिकषा की समचित वयवसथा नहीं थी। देश की विशालता की तलना में जो शिकषा संसथान थे, वह अतयनत कम थे। वेदों के जञान के लि आरष वयाकरण का पारगामी जञान वं योगाà¤à¤¯à¤¾à¤¸ आवषयक है। इस कारय को पराथमिकता देकर सवामी रामेशवराननद जी ने सवामी à¤à¥€à¤·à¤®à¤œà¥€ महाराज की परेरणा वं अपने शिषय आचारय धरमवीर शासतरी के सहयोग से करनाल के निकट घरैणडा में क गरूकल की सथापना दिनांक 17 अपरैल सन 1939 को की। इस गरूकल के माधयम से न केवल विदयारथियों का शारीरिक वं बौधिक विकास ही हआ है अपित सवतनतरता आनदोलन में करानतिकारियों की शरणसथली à¤à¥€ यह सथान रहा है। सवतनतरता से पूरव हैदराबाद देश की क परमख रियासत थी जिसके शासक नवाब उसमान अली ने अपनी बहसंखयक हिनदू परजा के धारमिक अधिकारों पर अनेक परतिबनध लगाकर उनका उतपीड़न किया। इस अनयाय क विरूदध आरय समाज को राषटरीय सतर पर सतयागरह की घोषणा की। अपनी परकार का यह अपूरव सतयागरह था जिसमें देश के कोने-2 से आरयवीरों के जतथे पहंचें और रियासत की परजा के धारमिक वं मानवीय अधिकारों के समरथ न में सतयागरह किया। निरकंश धरमानध नवाब व उसकी पलिस ने अंहिस सतयागरहियों पर à¤à¥€ जलम कि और उनहें जेलों में बनद कर अमानशिक यातनायें दी। इस सतयागरह में सन 1939 में सवामी रामेशवराननद जी à¤à¥€ 72 आरयवीरों का जतथा लेकर गये। उनहें वहां नांदेड़, औरंगाबाद , हैदराबाद आदि जेलों में रखा गया और यातनायें दी गई। जेल के दिनों में सवामी रामेशवराननद 24 घनटों में केवल क मटठी पर चने खाकर ही अपना निरवाह करते थे। सवामी जी का संघरष सफल हआ और नवाब को कना पड़ा।
सन 1947 में देश के आजाद हो जाने पर à¤à¤¾à¤°à¤¤ के परथम केनदरीय गृहमनतरी सरदार वललठà¤à¤¾à¤ˆ पटेल ने इस सतयागरह के लि आरय समाज की परसंशा करते ह कहा था कि यदि आरय समाज रासता न बनाता तो सवातनतरयोततर हैदराबाद का à¤à¤¾à¤°à¤¤ में विलय कठिन था। आरय समाज के संसथापक महरषि दयाननद ने सन 1875 में उदघोष किया था कि अचछे से अचछे विदेशी राजय की तलना में सवराजय सरवोपरि उततम होता है। यही कारण था कि आरय समाज के अनयायी सवतनतरता संगराम में अगरणीय रहे। सवतनतरता के इतिहास में अंगरेजों ने जिन दो देश à¤à¤•à¤¤à¥‹à¤‚ को ‘जलावतन अरथात देश निकाला’ दिया वह दोनों, लाला लाजपत राय और सरदार अजीत सिंह, महरषि दयाननद के अनयायी व आरयसमाजी थे। कांगरेस के परमाणिक इतिहास लेखक सर सीता à¤à¤¿à¤ªà¤Ÿà¤Ÿà¤¾à¤°à¤®à¥ˆà¤¯à¤¾ ने कहा है कि सवतनतरता आनदोलन में जेल जाने वालों में आरय समाजियों की संखया 80 परतिशत थी। अतः यह सवाà¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• था कि सवामी रामेशवराननद à¤à¥€ सवराजय आनदोलन में संघरष करते। सवामीजी ने महातमा गांधी दवारा चलाये गये सà¤à¥€ आनदोलनों में सकरिय à¤à¤¾à¤— लिया। आपने ऋषिकेश वं समीपवरती गांवों में घूम -2 कर नमक कानून का विरोध किया और जन जागृति उतपनन की। गिरफतारी के बाद आपको देहरादून जेल में रखा गया। पं. जवाहरलाल नेहरू à¤à¥€ उन दिनों देहरादून जेल में थे। क और आपसे चककिया चलाने, पतथर तोड़ने वं मल-मूतर-विषठा ढोने का कारय लिया गया वहीं आपकी हणटर वं लाठियो से पिटाई à¤à¥€ की गई फिर à¤à¥€ आपने कà¤à¥€ उफ तक न की। सन 1942 के आनदोलन में à¤à¥€ आपने गरूकल घरोणडा के बरहमचारियों को साथ लेकर समीपसथ रेलवे लाइन की पटरियां उखाड़ने का साहसपूरण कारय किया। आपके इस कारय को अंगरेजो ने विदरोह की संजञा दी और इस कारण सवामीजी को सजा देने के साथ गरूकल को जबत करने के आदेश दिये गये। यह सब कारय सवामी जी ने जनमदातरी à¤à¤¾à¤°à¤¤ मां के परति करतवय à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से किये और आजादी के पशचात दूसरे महतवाकांकषी नेताओं की तरह सममान वं पद की मांग नहीं की। 14 अगसत सन 1947 को अंगरेजों व जिनना की मसलिम लीग की मांग के आधार पर देश का विà¤à¤¾à¤œà¤¨ होकर à¤à¤¾à¤°à¤¤ व पाकिसतान दो देश बनाये गये। पाकिसतान से हिनदू शरणारथीयों के à¤à¤¾à¤°à¤¤ में आगमन पर आपने शिविर सथापित किये और उनके परति सहानà¤à¥‚ति परदरषित करने के साथ उनके à¤à¥‹à¤œà¤¨, वसतर वं आवास की वयवसथा की जिससे वह निशचित हो सकें। पंजाब में जब हिनदी à¤à¤¾à¤·à¤¾ की उपेकषा वं उसकों समापत करने के उददेषय से सूबे की सरकार ने आरयà¤à¤¾à¤·à¤¾ हिनदी के साथ अनचित सौतेला वयवहार किया तो आरय समाज ने हिनदी को उचित सथान परदान करने की मांग की।
जब पंजाब की निरंकश सरकार ने आरय समाज की इस देश की हितकारी संविधान-सममत मांग को नहीं माना तो आरय समाज ने पंजाब में ‘हिनदी-सतयागरह’ की घोषणा की। इस आनदोलन में à¤à¥€ सवामी रामेशवराननद अगरणीय नेताओं में रहे। आपने 6 जून 1957 को अपने सहयोगी हिनदी à¤à¤•à¤¤ सतयागरहियों के साथ पंजाब, सचिवालय, चणडीगढ़ पर धरना दिया। अनेक बार सतयागरह करने के परिणामसवरूप आप कई बार गिरफतार किये गये। आपको नाà¤à¤¾ तथा पटियाला जेलों में नजरबनद रखा गया। आनदोलन में आपको इतना पीटा गया कि आपका शरीर कषत-विकषत हो गया। हिनदी के परशन पर आपने 13 फरवरी 1961 को पं. जवाहरलाल नेहरू से क घणटा तक वारता की थी।
सन 1961 में मासटर तारासिंह ने जब देश से पृथक पंजाबी सूबे की मांग की और सवतनतरता दिवस 15 अगसत, 1961 से अमृतसर में अनशन किया तो देश की कता व अंखणडता की रकषा के लि सवामी रामेषवराननद सरसवती जी ने à¤à¥€ दिलली में लालकिले के सामने आरयसमाज दीवानहाल में 16 अगसत सन 1961 से आमरण अनशन किया। नेहरूजी के आशवाशन पर 31 अगसत 1961 को आपने अनशन समापत किया। अनषन के दिनों में सवामी रामेशवराननद को मारने के à¤à¥€ कई असफल परयास किये गये। आरय संनयासी के लि वह सà¤à¥€ कारय करणीय हैं जिनसे देश समाज सदृण हो वं उननति परापत करें। आजादी के पषचात देश के करणधार कई राषटरीय समसयाओं को हल करने में असफल सिदध ह। इन समसयाओं में गोहतया व पश हतया पर परतिबनध वं हिनदी को पूरे देस में राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ वं समपरक à¤à¤¾à¤·à¤¾ के रूप में लागू करना, जनम पर आधारित जाति-पांति वयवसथा का उनमूलन, गण-करम-सवà¤à¤¾à¤µ पर आधारित पकषपातरहित नयायपूरण वरण -वयवसथा का परवरतन, अनिवारय वं निःशलक वैदिक मूलय परधान गरूकलीय शिकषा, संसकृत को मखय सथान देकर उसके पठन-पाठन की देश à¤à¤° में वयवसथा, सादगी सरल जीवन को वयवहारिक करना आदि समसयायें व कारय सममिलित थे। से ही अनेक उददेशयों की पूरति के लि सवामीजी ने सन 1962 के संसदीय निरवाचन में हरयाणा के करनाल कषेतर से चनाव लड़ा और परसिदध पतरकार शरी वीरेनदर को पराजित कर à¤à¤¾à¤°à¥€ बहमत से विजयी ह। संसद में आपके सतत परयासों से अंगरेजी à¤à¤¾à¤·à¤¾ के à¤à¤¾à¤·à¤£à¥‹à¤‚ के ततकाल व तवरित आधनिक अनवाद-उचचारण-धवनि यनतर सथापित किये गये। इन धवनि-यनतरों दवारा संसद सदसयों को अंगरेजी में दि गये à¤à¤¾à¤·à¤£ का ततकाल हिनदी अनवाद सनाई दिया करता था।
इस यनतर की सथापना करने के निरणय की 3 सितमबर सन 1963 को लोक सà¤à¤¾à¤§à¤¯à¤•à¤· सरदार हकम सिंह ने घोषणा की थी। आरय समाज व सनातन धरमियों के लि गोरकषा का परशन सरवाधिक महतवपूरण है। गोरकषा का महतव को पराधीन à¤à¤¾à¤°à¤¤ में सबसे पहले यदि किसी ने समा तो वह महरषि दयाननद सरसवती थे । गोरकषा आनदोलन की सरवपरथम शरआत à¤à¥€ महरषि दयाननद ने ही की थी जब उनहोंने देश à¤à¤° में अपने अनयायियों से हसताकषर करवाकर विदेशी सरकार से ततकाल गोहतया बनद कराने की मांग की थी। अनेक अंगरेज अधिकारियों को à¤à¥€ सवामीजी ने गोरकषा वषयक अपने तरकों से सहमत कराया था। अन अंगरेज वरिषठअधिकारियों में से कछ ने तो गो-मांस का सेवन न करने का वचन सवामीजी को दिया था। सवामी रामेशवराननद अपने संसदीय जीवन में इस विषय में सचेत रहे और परयास किया कि गोहतया बंद हो । 7 नवमबर, 1966 को गोरकषा के पकष में गोà¤à¤•à¤¤à¥‹à¤‚ ने लोकसà¤à¤¾ को घेराव किया। इस आनदोलन के परतयकषदरशी डा. शिवकमार शासतरी ने इसका उललेख कर लिखा था कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार गोà¤à¤•à¤¤à¥‹à¤‚ ने विशाल परदरशन को देख कर कांप उठी। असामाजिक ततवों दवारा आगजनी तोड़फोड़ का बहाना बनाकर निहतथी गोà¤à¤•à¤¤ जनता पर लाठी चारज हआ, अनधाधंध गोलियां चली। सवामी रामेशवराननद ततकाल बनदी बनाये गये। इस घटना से दिलली में सननाटा था, गोरकषक देशà¤à¤•à¤¤à¥‹à¤‚ की लाशे ठिकाने लगा दी गईं। गोहतया के सनदरठमें यह जञातवय है कि गाय से हमें दगध, गोबर, गोमूतर, चरम, बैल आदि मिलते हैं। गोदगध का कोई विकलप नहीं है। यह न केवल अनन का विकलप है अपित अनेक साधय व असाधय रोगों से रकषा à¤à¥€ करता है। इसी परकार से गोरकषा का धारमिक, समाजिक तथा मानवीय महतव है। गोरकषा देश की आरथिक समृदधि की रीढ़ है। गोहतया करना अमानवीय वं घृणित कारय है जिससे मनषय कृतघन सिदध होता है। गोहतया को सहना à¤à¥€ पापकरम है। हमारे शंकराचाररयों को इस परशन पर धयान देना चाहिये। गायों से परापत बैलों, गोबर व गोमूतर आदि से कृषि वं खादयानन के उतपादन में ऊंचे लकषय परापत किये जा सकते हैं। न केवल सवामी रामेशवराननद ने गोरकषा वं हिनदी रकषा के लि कारय किया अपित अपने चनाव कषेतर के यमना नगर की गोपाल पेपर मिल के शरमिकों की समसयाओं को हल कराने में à¤à¥€ महतवपूरण योगदान दिया। सवामीजी ने सांसद बनने पर संसकृत में शपथ गरहण कर महरषि दयाननद के समरपित à¤à¤•à¤¤ होने का परिचय दिया था। सवामीजी, आरय समाज की वेदी हो या à¤à¤¾à¤°à¤¤ की संसद, अपने वयाखयान से पूरव वेदमनतरों बोला करते थे। सन 1970 के लगà¤à¤— आपका आरय समाज देहरादून में वृकषों में जीव है या नहीं, विषय पर शासतरारथ हआ था जिसमें आपका पकष सफल रहा था। सवानीय à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ पेटरोलियम संसथान में à¤à¥€ सन 1980 में ईशवर के सवरूप पर आपका वयाखयान हआ था। अपने अपने जीवनकाल में अनेक पसतकें लिखीं। आप क अचछे कवि à¤à¥€ रहें हैं। पं. राजेंदर जिजञास जी ने आरय समाज के परमख विदवानों व सनयासियों के जीवन चरितर लिखकर क कीरतिमान सथापित किया है। हमनें à¤à¥€ 50 से अधिक आरय समाज के विदवानों के जीवनपरक लेखों को लिखा है जो समय समय पर सथानीय व आरय जगत की पतर पतरिकाओं में परकाशित ह हैं। हम शरी जिजञासजी से सवामी रामेशवराननद सरसवती के जीवन पर कोई लेख या लघ पसतिका लिखने की विनती करते हैं। कई वरष पूरव सापताहिक पतर, आरय सनदेश, दिलली ने सवामी रामेशवराननद सरसवती पर अपना क à¤à¤µà¤¯ विशाशांक निकाला था। उस काल में व उसके बाद उन पर कोई महतवपूरण लेख देखने को नहीं मिला।
‘‘जातसय हि धरवों मृतà¥
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