शहीद भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद तथा रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारियों ने राष्ट्र की आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए और पुस्तक में उन्हें आतंकवादी के रूप में पढ़ाया जा रहा है। इस तरह का शर्मनाक उदाहरण पूरे विश्व के इतिहास में मिलना कठिन है। आजाद भारत के 68 साल बाद भी sशहीद भगत सिंह को आतंकवादी कहा जा रहा है| विश्वास तो  à¤¨à¤¹à¥€à¤‚ होता है, लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के हिंदी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय की ओर से प्रकाशित “भारत का स्वतंत्रता संघर्ष” पुस्तक में एक पुरे अध्याय में भगतसिंह राजगुरु और सुखदेव को क्रांतिकारी शहीद का दर्जा नहीं दिया गया है बल्कि साफ शब्दों में आतंकवादी कहकर संबोधित किया गया है। इस पुस्तक में संसोधन की लम्बे समय से मांग कर भगतसिंह के छोटे भाई सरदार कुलवीर सिंह के पोते यादवेन्द्र सिंह ने केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिखा है| कि हम सब आहत है उस शब्द को हटाया जाये| सब लोगों को जानकर हैरानी होगी कि इस पुस्तक के लेखक प्रसिद्ध इतिहासकार विपिन चंद्र, मृदुला मुखर्जी, आदित्य मुखर्जी व् सुचेता महाजन ने मिलकर लिखा है|

अजीब विडम्बना है 1990 में पुस्तक का पहला संस्करण छपा था लेकिन तमाम विरोध के बावजूद भी आज तक कोई सरकार संसोधन नहीं करा पाई| यह एक अकेली पुस्तक नहीं है|  कुछ साल पहले आगरा से प्रकाशित माडर्न इंडिया नाम की पुस्तक जिसके लेखक कोई केएल खुराना थे। उन्होंने भी पुस्तक में लिखा है कि... उनमें से बहुतों ने हिंसा का मार्ग अपना लिया और वे आतंकवाद के जरिये भारत को स्वतंत्रता दिलाना चाहते थे| महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पुस्तक का बड़ी संख्या में उपयोग बीए,एमए के विद्यार्थियों के अलावा प्रशासनिक सेवा परीक्षा में बैठने वाले करते हैं।

शहीद ए आज़म भगत सिंह सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के लोगों और बुद्धिजीवियों के बीच भी काफी लोकप्रिय हैं। भारत की तरह ही पाकिस्तान में भी भगत सिंह की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं है| लाहौर में भगत सिंह के गांव के लिए जहां से सड़क मुड़ती है वहां भगत सिंह की एक विशाल तस्वीर लगी है। कराची की जानी मानी लेखिका ज़ाहिदा हिना ने अपने एक लेख में उन्हें पाकिस्तान का सबसे महान शहीद करार दिया है। 1947 में देश का बंटवारा हुआ और अलग पाकिस्तान बन गया लेकिन वहां के लोगों के दिलों में भगत सिंह जैसी हस्तियों के लिए सम्मान में जऱा भी कमी देखने को नहीं मिलती। आखिर भारत सरकार की ऐसी कौनसी मज़बूरी है| जो आतंकियों का सम्मान और शहीदों का अपमान होता है| यह दंश केवल भगतसिंह ही नही पश्चिम बंगाल के स्कूली पाठ्यक्रम में स्वतंत्रता आंदोलन के शहीदों खुदीराम बोस, जतीन्द्रनाथ मुखर्जी प्रफुल्ल चंद्र चाकी को आतंकवादी बताया जाता है। क्या सरकारे जान बूझकर देश के लिए मर मिटने वालों को अपमानित करना चाहती है? जिस तरह पार्टियाँ आज देश के दुश्मनों को शहीद बता रही है उसे सुनकर देश पर मरने मिटने वालों की आत्मा क्या कहती होगी केरल चुनाव में कांग्रेस नीत यू.डी.एफ सद्दाम हुसैन और अफजल के नाम पर उनकी फांसी के पोस्टर दिखाकर वोट मांग रही थी| क्या यह पार्टियाँ की सोच बन गयी है कि देश के अन्दर भगतसिंह, राजगुरु, अशफाक उल्लाखां की फांसी और युद्ध में शहीद वीर अब्दुल हमीद के नाम पर वोट नहीं मिलेंगे ?

असल सवाल यह है कि क्या आजादी के इतने वर्षो बाद भी हम एक ऐसे भारत का निर्माण नहीं कर पाए जिसमे कम से कम देशभक्तों और देश की खातिर बेमिसाल बलिदान देने वाले दीवानों के देश को लेकर देखे स्वपन तो दूर बात राष्ट्रीय स्तर पर उनका उनका सम्मान कर पाए? क्या कोई सरकार देश पर न्योछावर होने वाले वीरों को सम्मान दिला पायेगी? आतंकी ओसामा बिन लादेन का उल्लेख ‘ओसामा जी के नाम से करने वाले दल  à¤…पने सत्ताकाल में हुतात्मा भगतसिंह एवं राजगुरु के आतंकी होने की बात इतिहास के पुस्तकों में घुसेड कर बच्चों को सिखा रहे थे, उनको हमेशा अपमानित करते थे। आज वे फिर, कन्हैया को भगतसिंह कहकर पुनः सारे देशभक्तों का अपमान कर रहे थे ! अगर शहीदों के साथ इस देश में ऐसे ही सलूक होते रहे तो कौन माँ अपने बच्चों को भगतसिंह, आजाद, करतार सिंह सराभा, सावरकर इत्यादि बनने की प्रेरणा देगी??

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