Appeal from Prime minister and state government to save gurukul

Appeal from Prime minister and state government to save gurukul

13 Oct 2017
Jharkhand, India
Sarvadeshik Arya Pratinidhi Sabha

जिस गुरुकुल में महामना पं मदन मोहन मालवीय से लेकर, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, आचार्य विनोबा भावे का इसके प्रांगण में पदार्पण हुआ हो, जो स्थान महावीर प्रसाद द्विवेदी, भगवतीचरण वर्मा, मैथलीशरण गुप्त, पंडित रामचंद्र शुक्ल, आचार्य हजारी प्रसाद दिवेदी, रामधारी सिंह दिनकर जैसे अनेक साहित्कारों विद्वानों के आगमन की भूमि एवं तीर्थस्थली रही हो आज उस आध्यामिक सांस्कृतिक धरोहर को सरकार रोंद रही है। आर्य समाज ये हमला स्वीकार नहीं करेगा। हम विकास के विरोधी नहीं हैं लेकिन अपनी विरासत की रक्षा करने के लिए कटिबद्ध हैं। सांस्कृतिक भावना से छेड़छाड़ मंजूर नहीं है। विकास के लिए जमीन अधिग्रहण के मामले में सभ्यता और संस्कृति के  à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ के साथ समझौता नहीं किया जा सकता आवश्यकता पड़ी तो जबरदस्त आन्दोलन होगा। गुरुकुल की रक्षा हर कीमत पर करेंगे। समाज की शैक्षिक और सामाजिक उन्नति के लिए झारखण्ड देवघर में 100 वर्षीय पुरातन धरोहर गुरुकुल महाविद्यालय वैधनाथ धाम को आज विकास के नाम पर तोड़ा जा रहा है। ये बुलडोजर गुरुकुल पर नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति पर चला है। जो गुरुकुल वैदिक परम्परा से परिपूर्ण, भेदभाव से ऊपर उठकर बच्चों को उच्च कोटि की शिक्षा दे रहा हो जो गुरुकुल राष्ट्र के लिए अपने प्राण तक न्योछावर करने वाले वीर, विद्वान और चरित्रवान नागरिक पैदा कर रहा हो। उस सांस्कृतिक विरासत (गुरुकुल) को विकास के नाम पर खत्म करने का कार्य किया जा रहा है।

इस गुरुकुल की स्थापना आचार्य रामचंद्र द्विवेदी ने 1919 में की थी। उनका उद्देश्य था कि सामाजिक शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को शारीरिक, मानसिक, नैतिक और उनका आत्मिक उन्नयन कर राष्ट्र और समाज के लिए सुयोग्य नागरिक बनाना। अध्ययन और अध्यापन चरित्र और सांस्कृतिक व्यवस्था, अनुशासन उत्कृटता और दक्षता का प्रतीक इस गुरुकुल में अनेकों भारतीय महापुरुषों के पांव पड़े और उनसे जुड़े किस्से यह शिक्षा का मंदिर समेटे हुए है। शनिवार 7 अक्टूबर को गुरुकुल महा विद्यालय का हवाई पट्टी के विस्तारीकरण के नाम पर एक हिस्सा जेसीबी से गिरा दिया गया। जबकि इस ऐतिहासिक शिक्षण संस्थान की जमीन के अधिग्रहण का मामला झारखण्ड हाईकोर्ट में लम्बित पड़ा है। इस दौरान गुरुकुल प्रबन्धन डीसी देवघर, एसडीओ देवघर, मुख्यमंत्री झारखण्ड और तो और प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक पत्राचार के माध्यम से इस धरोहर को बचाने की गुहार लगा चुका है। लेकिन इसके बावजूद विकास का ढोंग दिखाकर झारखंड सरकार महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती की 100 साल पुरानी सांस्कृतिक, धार्मिक विरासत को तोड़ने का प्रयास जारी है। सरकार की ओर से जिलाधिकारी द्वारा गुरुकुल प्रबंध को लगाताार आश्वासन दिए जा रहे थे कि गुरुकुल के भवन को नहीं तोड़ा जाएगा। बावजूद इसके गुरुकुल के ऐतिहासिक भवन को तोड़ने का कार्य झारखण्ड सरकार द्वारा किया जा रहा है।  à¤—ुरुकुल महाविद्यालय की जमीन को अनवाद प्रति कदीम दिखाकर गलत अधिग्रहण नीति को तैयार किया गया है। गुरुकुल के मुख्यभवन जहाँ शिक्षण भवन, यज्ञशाला, छात्रावास पुस्तकालय एवं अन्य भवन है वहां शिक्षण का कार्य निरंतर चल रहा है। लेकिन लूट के अर्थशास्त्र में सियासत की आँखें इतनी पथरीली हो गयी हैं à¤•à¤¿ शिक्षा के मंदिर को तोड़कर उसकी जगह कंक्रीट के जंगल उगाना चाह रही है। गुरुकुल हमारा इतिहास है, हमारी पहचान, हमारी शिक्षा पद्दति गुरुकुल के माध्यम से जानी जाती है। हम जब तक अपनी इस अति प्राचीन पद्दति के साथ जुड़े हुए हैं तब तक हम आर्य वैदिक समाज के लोग हैं। संस्कृति और पद्दति उजड़ने के बाद हमारा अस्तित्व-पहचान, भाषा- संस्कृति और इतिहास अपने आप मिट जाएगी। क्या स्वामी जी की सांस्कृतिक विरासत (गुरुकुल देवघर झारखंड) को बचाने का कार्य नहीं होना चाहिए? ताकि आनेवाली पीढ़ी हमें यह न कहे कि इस प्राचीन शिक्षा पद्दति एवं उस के माध्यम से सदियों तक विश्व को रास्ता दिखाने संस्कृति को बर्बाद कर विकास और  à¤­à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ गणतंत्र का निर्माण किया गया। एक बेहतर राष्ट्र के निर्माण में सिर्फ सीमेंट, कंक्रीट ही योगदान नहीं होता बल्कि उसमें नैतिक, आचरणशील, मनुष्यों का सबसे बड़ा योगदान होता है। मानव के निर्माण में सिर्फ पर्यावरण ही सबसे बड़ा घटक तत्व नहीं होता। अपितु उसके साथ-साथ उसकी शिक्षा, उसके संस्कार, भी हिस्सा लेते हैं। इसलिए अच्छे वातावरण में भी इन्सान पतित हो सकता है लेकिन अच्छी शिक्षा और संस्कार के माध्यम से बुरे पर्यावरण में भी वह ऊँचा  à¤‰à¤  सकता है। कल तक वहां पढ़ने वाले जो बच्चे हाथ में कलम थामते थे अब वह हाथ बेबस हैं। आज वही हाथ गुरुकुल के टूटे प्राचीन भवन की दीवारें और बिखरी खपरैल को समेट रहे हैं। क्योंकि वहां विकास के नाम पर उनके सपनों को तोड़ा जा रहा है। विकास की इसी अविरल धारा में सिर्फ गुरुकुल ही नहीं बल्कि वैदिक कालीन सभ्यता को नष्ट किया जा रहा है। क्या राष्ट्र निर्माण की आड़ में संस्कृति विनाश का यह कदम उचित है? इस संकट पर सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान श्री सुरेशचन्द्र आर्य, मन्त्री श्री प्रकाश आर्य, दिल्ली सभा के प्रधान श्री धर्मपाल आर्य, एवं आर्य केन्द्रीय सभा दिल्ली के प्रधान महाशय धर्मपाल आर्य जी ने प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द, राज्यपाल श्रीमती द्रौपदी मुरमू, एवं मुख्यमन्त्री श्री रघुबरदास को पत्र लिखकर विकास के

नाम पर इस विध्वंशसकारी कार्य को तत्काल रोकने एवं सरकार की ओर से पुनर्निर्माण करने की मांग करते हुए कहा कि आर्यसमाज विकास का कभी विरोधी नहीं रहा, किन्तु नैतिक मूल्यों एवं संस्कृति पर कुठाराघात करता विकास हमें कतई मंजूर नहीं। उन्होंने विश्व की समस्त आर्यसमाजों, आर्य संस्थाओं एवं आर्यजनों से प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल  à¤à¤µà¤‚ मुख्यमन्त्री महोदयों को विरोध पत्र भेजने की अपील भी की।

- विनय आर्य, महामन्त्री

Mahashay Dharmapal elected unanimously elected chief

Departure of delegation to Myanmar IAMS 2017