शहीद à¤à¤—त सिंह के जीवन की आखिरी सà¥à¤¬à¤¹


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Rajeev ChoudharyDate
25-Mar-2017Category
संसà¥à¤®à¤°à¤£Language
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Sandeep AryaUpload Date
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किसी को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि 16 साल बाद उनकी शहादत à¤à¤¾à¤°à¤¤ में बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ के अंत का à¤à¤• का
लाहौर सेंटà¥à¤°à¤² जेल में 23 मारà¥à¤š, 1931 की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ किसी और दिन की तरह ही हà¥à¤ˆ थी. फ़रà¥à¤• सिरà¥à¤«à¤¼ इतना सा था कि सà¥à¤¬à¤¹-सà¥à¤¬à¤¹ ज़ोर की आà¤à¤§à¥€ आई थी.
लेकिन जेल के क़ैदियों को थोड़ा अजीब सा लगा जब चार बजे ही वॉरà¥à¤¡à¥‡à¤¨ चरत सिंह ने उनसे आकर कहा कि वो अपनी-अपनी कोठरियों में चले जाà¤à¤‚. उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कारण नहीं बताया.
उनके मà¥à¤‚ह से सिरà¥à¤«à¤¼ ये निकला कि आदेश ऊपर से है. अà¤à¥€ क़ैदी सोच ही रहे थे कि माजरा कà¥à¤¯à¤¾ है, जेल का नाई बरकत हर कमरे के सामने से फà¥à¤¸à¤«à¥à¤¸à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ गà¥à¤œà¤¼à¤°à¤¾ कि आज रात à¤à¤—त सिंह, राजगà¥à¤°à¥ और सà¥à¤–देव को फांसी दी जाने वाली है.
उस कà¥à¤·à¤£ की निशà¥à¤šà¤¿à¤‚तता ने उनको à¤à¤•à¤à¥‹à¤° कर रख दिया. क़ैदियों ने बरकत से मनà¥à¤¹à¤¾à¤° की कि वो फांसी के बाद à¤à¤—त सिंह की कोई à¤à¥€ चीज़ जैसे पेन, कंघा या घड़ी उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ लाकर दें ताकि वो अपने पोते-पोतियों को बता सकें कि कà¤à¥€ वो à¤à¥€ à¤à¤—त सिंह के साथ जेल में बंद थे.
बरकत à¤à¤—त सिंह की कोठरी में गया और वहाठसे उनका पेन और कंघा ले आया. सारे क़ैदियों में होड़ लग गई कि किसका उस पर अधिकार हो. आखिर में डà¥à¤°à¥‰ निकाला गया.
अब सब क़ैदी चà¥à¤ª हो चले थे. उनकी निगाहें उनकी कोठरी से गà¥à¤œà¤¼à¤°à¤¨à¥‡ वाले रासà¥à¤¤à¥‡ पर लगी हà¥à¤ˆ थी. à¤à¤—त सिंह और उनके साथी फाà¤à¤¸à¥€ पर लटकाठजाने के लिठउसी रासà¥à¤¤à¥‡ से गà¥à¤œà¤¼à¤°à¤¨à¥‡ वाले थे.
à¤à¤• बार पहले जब à¤à¤—त सिंह उसी रासà¥à¤¤à¥‡ से ले जाठजा रहे थे तो पंजाब कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ के नेता à¤à¥€à¤®à¤¸à¥‡à¤¨ सचà¥à¤šà¤° ने आवाज़ ऊà¤à¤šà¥€ कर उनसे पूछा था, "आप और आपके साथियों ने लाहौर कॉनà¥à¤¸à¤ªà¤¿à¤°à¥‡à¤¸à¥€ केस में अपना बचाव कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं किया."
à¤à¤—त सिंह का जवाब था, "इनà¥à¤•लाबियों को मरना ही होता है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उनके मरने से ही उनका अà¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨ मज़बूत होता है, अदालत में अपील से नहीं."
वॉरà¥à¤¡à¥‡à¤¨ चरत सिंह à¤à¤—त सिंह के ख़ैरख़à¥à¤µà¤¾à¤¹ थे और अपनी तरफ़ से जो कà¥à¤› बन पड़ता था उनके लिठकरते थे. उनकी वजह से ही लाहौर की दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ादास लाइबà¥à¤°à¥‡à¤°à¥€ से à¤à¤—त सिंह के लिठकिताबें निकल कर जेल के अंदर आ पाती थीं. à¤à¤—त सिंह को किताबें पढ़ने का इतना शौक था कि à¤à¤• बार उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने सà¥à¤•ूल के साथी जयदेव कपूर को लिखा था कि वो उनके लिठकारà¥à¤² लीबनेख़ की 'मिलिटà¥à¤°à¤¿à¤œà¤¼à¤®', लेनिन की 'लेफ़à¥à¤Ÿ विंग कमà¥à¤¯à¥à¤¨à¤¿à¤œà¤¼à¤®' और अपटन सिनकà¥à¤²à¥‡à¤¯à¤° का उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ 'द सà¥à¤ªà¤¾à¤ˆ' कà¥à¤²à¤¬à¥€à¤° के ज़रिठà¤à¤¿à¤œà¤µà¤¾ दें.
à¤à¤—त सिंह जेल की कठिन ज़िंदगी के आदी हो चले थे. उनकी कोठरी नंबर 14 का फ़रà¥à¤¶ पकà¥à¤•ा नहीं था. उस पर घास उगी हà¥à¤ˆ थी. कोठरी में बस इतनी ही जगह थी कि उनका पाà¤à¤š फिट, दस इंच का शरीर बमà¥à¤¶à¥à¤•िल उसमें लेट पाà¤.
à¤à¤—त सिंह को फांसी दिठजाने से दो घंटे पहले उनके वकील पà¥à¤°à¤¾à¤£ नाथ मेहता उनसे मिलने पहà¥à¤‚चे. मेहता ने बाद में लिखा कि à¤à¤—त सिंह अपनी छोटी सी कोठरी में पिंजड़े में बंद शेर की तरह चकà¥à¤•र लगा रहे थे.
उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤¸à¥à¤•रा कर मेहता को सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया और पूछा कि आप मेरी किताब 'रिवॉलà¥à¤¯à¥à¤¶à¤¨à¤°à¥€ लेनिन' लाठया नहीं? जब मेहता ने उनà¥à¤¹à¥‡ किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे मानो उनके पास अब ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ समय न बचा हो.
मेहता ने उनसे पूछा कि कà¥à¤¯à¤¾ आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे? à¤à¤—त सिंह ने किताब से अपना मà¥à¤‚ह हटाठबग़ैर कहा, "सिरà¥à¤«à¤¼ दो संदेश... सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ मà¥à¤°à¥à¤¦à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦ और 'इंक़लाब ज़िदाबाद!"
इसके बाद à¤à¤—त सिंह ने मेहता से कहा कि वो पंडित नेहरू और सà¥à¤à¤¾à¤· बोस को मेरा धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ पहà¥à¤‚चा दें, जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मेरे केस में गहरी रà¥à¤šà¤¿ ली थी. à¤à¤—त सिंह से मिलने के बाद मेहता राजगà¥à¤°à¥ से मिलने उनकी कोठरी पहà¥à¤‚चे.
राजगà¥à¤°à¥ के अंतिम शबà¥à¤¦ थे, "हम लोग जलà¥à¤¦ मिलेंगे." सà¥à¤–देव ने मेहता को याद दिलाया कि वो उनकी मौत के बाद जेलर से वो कैरम बोरà¥à¤¡ ले लें जो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤› महीने पहले दिया था.
मेहता के जाने के थोड़ी देर बाद जेल अधिकारियों ने तीनों कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारियों को बता दिया कि उनको वकà¥à¤¼à¤¤ से 12 घंटे पहले ही फांसी दी जा रही है. अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ छह बजे की बजाय उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ उसी शाम सात बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाà¤à¤—ा.
à¤à¤—त सिंह मेहता दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दी गई किताब के कà¥à¤› पनà¥à¤¨à¥‡ ही पढ़ पाठथे. उनके मà¥à¤‚ह से निकला, "कà¥à¤¯à¤¾ आप मà¥à¤à¥‡ इस किताब का à¤à¤• अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ à¤à¥€ ख़तà¥à¤® नहीं करने देंगे?"
à¤à¤—त सिंह ने जेल के मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® सफ़ाई करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ बेबे से अनà¥à¤°à¥‹à¤§ किया था कि वो उनके लिठउनको फांसी दिठजाने से à¤à¤• दिन पहले शाम को अपने घर से खाना लाà¤à¤‚.
लेकिन बेबे à¤à¤—त सिंह की ये इचà¥à¤›à¤¾ पूरी नहीं कर सके, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि à¤à¤—त सिंह को बारह घंटे पहले फांसी देने का फ़ैसला ले लिया गया और बेबे जेल के गेट के अंदर ही नहीं घà¥à¤¸ पाया.
थोड़ी देर बाद तीनों कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारियों को फांसी की तैयारी के लिठउनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया. à¤à¤—त सिंह, राजगà¥à¤°à¥ और सà¥à¤–देव ने अपने हाथ जोड़े और अपना पà¥à¤°à¤¿à¤¯ आज़ादी गीत गाने लगे-
कà¤à¥€ वो दिन à¤à¥€ आà¤à¤—ा
कि जब आज़ाद हम होंगें
ये अपनी ही ज़मीं होगी
ये अपना आसमाठहोगा.
फिर इन तीनों का à¤à¤•-à¤à¤• करके वज़न लिया गया. सब के वज़न बढ़ गठथे. इन सबसे कहा गया कि अपना आखिरी सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करें. फिर उनको काले कपड़े पहनाठगà¤. लेकिन उनके चेहरे खà¥à¤²à¥‡ रहने दिठगà¤.
जैसे ही जेल की घड़ी ने 6 बजाय, क़ैदियों ने दूर से आती कà¥à¤› पदचापें सà¥à¤¨à¥€à¤‚. उनके साथ à¤à¤¾à¤°à¥€ बूटों के ज़मीन पर पड़ने की आवाज़े à¤à¥€ आ रही थीं. साथ में à¤à¤• गाने का à¤à¥€ दबा सà¥à¤µà¤° सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ दे रहा था, "सरफ़रोशी की तमनà¥à¤¨à¤¾ अब हमारे दिल में है..."
सà¤à¥€ को अचानक ज़ोर-ज़ोर से 'इंक़लाब ज़िंदाबाद' और 'हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ आज़ाद हो' के नारे सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ देने लगे. फांसी का तख़à¥à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ था लेकिन फांसी देने वाला काफ़ी तंदà¥à¤°à¥à¤¸à¥à¤¤. फांसी देने के लिठमसीह जलà¥à¤²à¤¾à¤¦ को लाहौर के पास शाहदरा से बà¥à¤²à¤µà¤¾à¤¯à¤¾ गया था.
à¤à¤—त सिंह इन तीनों के बीच में खड़े थे. à¤à¤—त सिंह अपनी माठको दिया गया वो वचन पूरा करना चाहते थे कि वो फाà¤à¤¸à¥€ के तख़à¥à¤¤à¥‡ से 'इंक़लाब ज़िदाबाद' का नारा लगाà¤à¤‚गे.
लाहौर ज़िला कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ के सचिव पिंडी दास सोंधी का घर लाहौर सेंटà¥à¤°à¤² जेल से बिलà¥à¤•à¥à¤² लगा हà¥à¤† था. à¤à¤—त सिंह ने इतनी ज़ोर से 'इंकलाब ज़िंदाबाद' का नारा लगाया कि उनकी आवाज़ सोंधी के घर तक सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ दी.
उनकी आवाज़ सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही जेल के दूसरे क़ैदी à¤à¥€ नारे लगाने लगे. तीनों यà¥à¤µà¤¾ कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारियों के गले में फांसी की रसà¥à¤¸à¥€ डाल दी गई. उनके हाथ और पैर बांध दिठगà¤. तà¤à¥€ जलà¥à¤²à¤¾à¤¦ ने पूछा, सबसे पहले कौन जाà¤à¤—ा?
सà¥à¤–देव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी à¤à¤°à¥€. जलà¥à¤²à¤¾à¤¦ ने à¤à¤•-à¤à¤• कर रसà¥à¤¸à¥€ खींची और उनके पैरों के नीचे लगे तख़à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को पैर मार कर हटा दिया. काफी देर तक उनके शव तख़à¥à¤¤à¥‹à¤‚ से लटकते रहे.
अंत में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ नीचे उतारा गया और वहाठमौजूद डॉकà¥à¤Ÿà¤°à¥‹à¤‚ लेफ़à¥à¤Ÿà¤¿à¤¨à¥‡à¤‚ट करà¥à¤¨à¤² जेजे नेलà¥à¤¸à¤¨ और लेफ़à¥à¤Ÿà¤¿à¤¨à¥‡à¤‚ट करà¥à¤¨à¤² à¤à¤¨à¤à¤¸ सोधी ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मृत घोषित किया.
à¤à¤• जेल अधिकारी पर इस फांसी का इतना असर हà¥à¤† कि जब उससे कहा गया कि वो मृतकों की पहचान करें तो उसने à¤à¤¸à¤¾ करने से इनकार कर दिया. उसे उसी जगह पर निलंबित कर दिया गया. à¤à¤• जूनियर अफ़सर ने ये काम अंजाम दिया.
पहले योजना थी कि इन सबका अंतिम संसà¥à¤•ार जेल के अंदर ही किया जाà¤à¤—ा, लेकिन फिर ये विचार तà¥à¤¯à¤¾à¤—ना पड़ा जब अधिकारियों को आà¤à¤¾à¤¸ हà¥à¤† कि जेल से धà¥à¤†à¤ उठते देख बाहर खड़ी à¤à¥€à¤¡à¤¼ जेल पर हमला कर सकती है.
इसलिठजेल की पिछली दीवार तोड़ी गई. उसी रासà¥à¤¤à¥‡ से à¤à¤• टà¥à¤°à¤• जेल के अंदर लाया गया और उस पर बहà¥à¤¤ अपमानजनक तरीके से उन शवों को à¤à¤• सामान की तरह डाल दिया गया.
पहले तय हà¥à¤† था कि उनका अंतिम संसà¥à¤•ार रावी के तट पर किया जाà¤à¤—ा, लेकिन रावी में पानी बहà¥à¤¤ ही कम था, इसलिठसतलज के किनारे शवों को जलाने का फैसला लिया गया.
उनके पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ शरीर को फ़िरोज़पà¥à¤° के पास सतलज के किनारे लाया गया. तब तक रात के 10 बज चà¥à¤•े थे. इस बीच उप पà¥à¤²à¤¿à¤¸ अधीकà¥à¤·à¤• कसूर सà¥à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ सिंह कसूर गाà¤à¤µ से à¤à¤• पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ जगदीश अचरज को बà¥à¤²à¤¾ लाà¤.
अà¤à¥€ उनमें आग लगाई ही गई थी कि लोगों को इसके बारे में पता चल गया. जैसे ही बà¥à¤°à¤¿à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ सैनिकों ने लोगों को अपनी तरफ़ आते देखा, वो शवों को वहीं छोड़ कर अपने वाहनों की तरफ़ à¤à¤¾à¤—े. सारी रात गाà¤à¤µ के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया.
अगले दिन दोपहर के आसपास ज़िला मैजिसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‡à¤Ÿ के दसà¥à¤¤à¤–़त के साथ लाहौर के कई इलाकों में नोटिस चिपकाठगठजिसमें बताया गया कि à¤à¤—त सिंह, सà¥à¤–देव और राजगà¥à¤°à¥ का सतलज के किनारे हिंदू और सिख रीति से अंतिम संसà¥à¤•ार कर दिया गया.
इस ख़बर पर लोगों की कड़ी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ आई और लोगों ने कहा कि इनका अंतिम संसà¥à¤•ार करना तो दूर, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पूरी तरह जलाया à¤à¥€ नहीं गया. ज़िला मैजिसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‡à¤Ÿ ने इसका खंडन किया लेकिन किसी ने उस पर विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ नहीं किया.
इस तीनों के समà¥à¤®à¤¾à¤¨ में तीन मील लंबा शोक जà¥à¤²à¥‚स नीला गà¥à¤‚बद से शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤†. पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ ने विरोधसà¥à¤µà¤°à¥‚प अपनी बाहों पर काली पटà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾à¤ बांध रखी थीं और महिलाओं ने काली साड़ियाठपहन रखी थीं.
लगà¤à¤— सब लोगों के हाथ में काले à¤à¤‚डे थे. लाहौर के मॉल से गà¥à¤œà¤¼à¤°à¤¤à¤¾ हà¥à¤† जà¥à¤²à¥‚स अनारकली बाज़ार के बीचोबीच रूका.
अचानक पूरी à¤à¥€à¤¡à¤¼ में उस समय सनà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤¾ छा गया जब घोषणा की गई कि à¤à¤—त सिंह का परिवार तीनों शहीदों के बचे हà¥à¤ अवशेषों के साथ फिरोज़पà¥à¤° से वहाठपहà¥à¤‚च गया है.
जैसे ही तीन फूलों से ढ़के ताबूतों में उनके शव वहाठपहà¥à¤‚चे, à¤à¥€à¤¡à¤¼ à¤à¤¾à¤µà¥à¤• हो गई. लोग अपने आà¤à¤¸à¥‚ नहीं रोक पाà¤.
वहीं पर à¤à¤• मशहूर अख़बार के संपादक मौलाना ज़फ़र अली ने à¤à¤• नज़à¥à¤® पढ़ी जिसका लबà¥à¤¬à¥‹à¤²à¥à¤†à¤¬ था, 'किस तरह इन शहीदों के अधजले शवों को खà¥à¤²à¥‡ आसमान के नीचे ज़मीन पर छोड़ दिया गया.'
उधर, वॉरà¥à¤¡à¥‡à¤¨ चरत सिंह सà¥à¤¸à¥à¤¤ क़दमों से अपने कमरे में पहà¥à¤‚चे और फूट-फूट कर रोने लगे. अपने 30 साल के करियर में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सैकड़ों फांसियां देखी थीं, लेकिन किसी ने मौत को इतनी बहादà¥à¤°à¥€ से गले नहीं लगाया था जितना à¤à¤—त सिंह और उनके दो कॉमरेडों ने.
किसी को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि 16 साल बाद उनकी शहादत à¤à¤¾à¤°à¤¤ में बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ के अंत का à¤à¤• कारण साबित होगी और à¤à¤¾à¤°à¤¤ की ज़मीन से सà¤à¥€ बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ सैनिक हमेशा के लिठचले जाà¤à¤‚गे.
साà¤à¤¾à¤° बीबीसी (ये लेख मालविंदर सिंह वड़ाइच की किताब 'इटरà¥à¤¨à¤² रेबल', चमनलाल की 'à¤à¤—त सिंह डॉकà¥à¤¯à¥‚मेंटà¥à¤¸' और कà¥à¤²à¤¦à¥€à¤ª नैयर की किताब 'विदाउट फियर' में पà¥à¤°à¤•ाशित सामागà¥à¤°à¥€ पर आधारित है.)
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