The Arya Samaj | Article : उततराखणड का गांधी

जयाननद भारतीय

वरतमान उततराखणड के पौड़ी जनपद के अरकंडाई (धार की) नामक गांव में शरी छविलाल और शरीमती रैबेली के क कृषक परिवार में 19 अकटूर, सन 1881 को क बालक का जनम हआ था जिसका पयार का घरेलू नाम जेबी रखा गया था जो बाद में इस जीवन गाथा के नायक जयाननद भारतीय कहलाये। पारिवारिक पृषठभूमि अतयनत साधारण होने के कारण उनकी कोई औपचारिक शिकषा नहीं हो पायी और किसी परकार वे केवल अकषर जञान ही परापत कर सके थे। यवा होने पर वे खेती बाड़ी में रचि लेने लगे और साथ ही जागरी (गीत व संगीत के दवारा देवी-देवताओं को परसनन करने का पेशा) का काम सीख कर उसमें दकष हो गये। यवा अवसथा में इनका अनमेल विवाह होने के कारण पतनी से शीघर ही समबनध विचछेद हो गये और पनः विवाह करने पर इनकी धरम पतनी क कनया को जनम देकर कछ वरषों  à¤•à¥‡ बाद चल बसीं। अब इनहोंने कभी विवाह न करने का संकलप लिया और अपने पिता से अनमति लेकर नैनीतल, देहरादून और मसूरी आदि सथानों पर रोजगार की तलाश में गये। इनके दवारा अंगरेजों की नौकरी भी की गई जिसके दौरान इनहोंने साफ-सफाई, उचित कारय-वयवहार आदि गण सीखे। यहीं इनहोंने लिखने-पढ़ने की अचछी आदतें सीखीं और आरय समाज के समपरक में आ। वहां पर क आरय सजजन शरी टीकाराम ककरेती ने इनहें  महरषि दयाननद सरसवती दवारा रचित कालजयी गरनथ सतयारथपरकाश यह कहते ह दिया कि सबसे पहले इसका तृतीय अधयाय पढ़ें और आगे के अधयाय बाद में पढ़ें। शरी भारतीय ने सा ही किया।

सतयारथपरकाश के तीवर परकाश ने इन पर सा परभाव डाला कि इनके जीवन की धारा ही बदल गई। जहां पहले वे देवी-देवताओं  के ूठे आडमबर के मकड़ जाल में फंसें थे अब इससे उनहें घोर घृणा हो गई कयूंकि सचचे परम पिता परमेशवर से उनका परिचय हो चका था। जनमना जाति-पांति के आडमबर से भी वह भली परकार अवगत हो चके थे। वे अब सम चके थे कि पढ़ने-लिखने, विकास करने और समानता का अधिकार मनषय मातर को है। वे सन 1911 में गरकल कांगडी हरिदवार जाकर महातमा मंशीराम से मिले। उनसे उनहोंने यजञेापवीत, आरयसमाज और शरेषठ करमों के बारे में विसतार से जञान परापत किया। महातमा मंशीराम ने 10, जलाई 1911 को गरकल के आचारय शरी रामदेव से उनका यजञोपवीत करवाया और उनका शदध नाम जयाननद भारतीय रखा गया। वे गरकल में रहकर अधययन करना चाहते थे परनत उनकी बड़ी उमर के कारण यह समभव नहीं था, इसलि मन मसोस कर वह गरकल से विदा ह। महातमा मंशीराम के उपदेशों से परभावित होकर उनहोंने दरगण और दवरयसनों को छोड़ने और शेष जीवन आरयसमाज के परचार-परसार, दीन-दलितों की सेवा और समाज के उतथान के लि अरपित करने का संकलप लिया। उस दौरान परवतीय कषेतर में कृषि योगय भूमि बहत कम होने, उसमें ढलान के कारण परतयेक वरष मिटटी व उपज के लि लाभकारी ततवों के बह जाने के कारण बहत कम अनन पैदा होता था जिससे सभी निवासियों की आरथिक सथिति कमजोर थी परनत शिलपकला में निपण लोगों के पास भूमिहीन होने या केवल रहने योगय ही भूमि उपलबध होने के कारण विपननता अधिक थी और वे अपने जीवन निरवाह के लि अनय तथाकथित उचच वरणों के लोगों पर निरभर रहते थे जो न केवल उनका आरथिक और सामाजिक शोषण करते थे अपित उनहें अपना दास समते ह हेय दृषटि से देखते थे।

आरयसमाज के पारस पतथर के सपरश से शरी भारती का जीवन सवरणमय हो गया। अब वह किसी भी परकार के तिरसकार को न सवयं सहने को तैयार थे और न अपने अनय दलित, दीन, दःखी बनधओं को ही तिरसकारित व परताडि़त हआ देख सकते थे। उनके मन में जो चिनगारी उठी थी वह धीरे-धीरे पूरे गढ़वाल कषेतर में फैल गई। जहां उनका यह परचार व सेवा कारय जोर-शोर से चल रहा था, वहीं आजीविका का कोई साधन न होने के कारण आरथिक विपननता सदैव बनी रहती थी, इसलि वे परथम विशव यदध के अवसर पर फौज में भरती होकर सेवा का अवसर नहीं गंवा सकते थे। वे 10 मारच, 1918 को सेना में भरती हो गये परनत अपने साथ सतयारथपरकाश और संसकार विधि जो उनके जीवन के अभिनन अंग थे को भी ले ग। रातरि के समय वे सैनिकों के लि सतयारथपरकाश का पाठ किया करते थे। जरमनी में क हिनदू सैनिक की मृतय हो जाने पर उनहोंने अपने अधिकारियों की अनमति लेकर उसकी अनतयेषटि वैदिक रीति से वेद मनतरों का पाठ करते ह की थी। उनके विचारो का साथी सैनिकों पर बहत परभाव पड़ा और उनमें से क सैनिक शरी रघवर दयाल ने तो सेवा निवृति के बाद आरय समाज की बहत सेवा भी की थी। माता-पिता के अतयनत आगरह के आगे उनहें अनत में कना पड़ा और तीसरी वे बार विवाह के बनधन में बंध गये। उनका यह विवाह सफल रहा और उनके तीन पतर ह। इस परकार क पतरी और तीन पतरों के वे पिता बने। पतरी शानति और क पतर शरी परमाननद को उनहोंने गरकल में शिकषा दिलाई थी। उनका क पतर सेना में भी नियकत हआ था। शरी भारतीय ने सेना से सेवा निवृति के बाद भी आरयसमाज के परचार-परसार और समाज के दःखी वरग की सेवा व सधार का करय जारी रखा। उनके गांव के पौराणिक लोगों को उनके आतम जागरण से किये जाने वाले यह सब काम पसनद नहीं थे। उनहें मारग से भटकाने के लि क चाल चली गई और गांव में देवपूजा का कारयकरम रखा गया। उस कषेतर के लोगों की यह मानयता थी और अब भी है कि देवपूजा का विरोध करने वाले और इसमें सममिलित न होकर इसकी अवमानना करने वालों का घोर अनिषट होता हैं। उनहें भी कई धमकियां व परताड़नां दी गयीं परनत देवपूजा और उसमें बकरों व भेड़ों की बलि दिये जाने का शरी भारतीय ने घोर विरोध किया। उस समय इस इलाके में दगडडा क वयायसायिक मणडी के रूप में वयसत सथान था जहां तिबबत से ढाकरी वयापारी चोर, फरण आदि मसाले लाते थे और यहां से नमक, गड़ , तमबाकू आदि ले जाते थे। शरी भारतीय जी ने मखयतः दगडडा को अपना कारय कषेतर बनाया परनत वे दूर-दूर तक परवतीय कषंतरों में दलित- दरबलों की उननति और आरय सिदधानतों की जयोति जलाने के लि भरमण करते रहते थे। इन यातराओं में यजञोपवीत के महतव पर अतयधिक बल देते थे। उनके इस परचार कारय विशेष रूप से दलितों को जनेऊ पहना कर  पवितर कर दविज बनाने से उचच वरण के मतानध लोगों के मन में उनके परति रोश व परतिकार की भावनां भड़क उठीं और उनहें घाटी में धकेल कर या जहर देकर मारने के कई परयास ह परनत दयाननद का यह वीर सेनानी करतवय मारग पर डटा रहा। अनय देश भकतों की तरह उनमें भें भी देश परेम की भावना कूट-कूट कर भरी थी। वे राषटरीय कांगरेस में सकरिय सदसय के रूप में आजादी के आनदोलन में कूद पड़े। दगडडा में 30 मई, 1930 सरव परथम राजनीतिक सममेलन हआ था। शराब की भटटियों पर पिकेटिंग की गई और भूमि-बनदोबसत में किये जा रहे अतयाचारों का घोर विरोध किया गया। इसी वरष 28 अगसत को भारतीय जी ने राजकीय विदयालय जहरीखाल के भवन पर तिरंगा णडा फहराया और अपने भाषणों से छातरों को विरोध के लि परेरित किया था।

1 फरवरी, सन 1932 को कांगरेस के गैर कानूनी घोषित किये जाने के कारण उतपनन परिसथितियों को देखते ह धारा 144 लगाई गई थी। भारतीय जी दवारा इसका उललंघन करने पर उनहें पकड़ कर जेल में बनद कर दिया और उनहें छः माह के कठोर करावास की सजा दी गई थी। सन 1932 में ही अंगरेज गवरनर सर विलियम मैलकम हैली का पौड़ी में सवागत किया जाना था। कांगरेस के गैर कानूनी घोषित हो जाने से उनका विरोध करने का किसी में  साहस न था परनत इस कथा के नायक के मन में तो कछ और ही भावनां हिलोरे ले रहीं थीं। 6 सितमबर, सन 1932 को पौड़ी में गवरनर को क अभिननदन पतर भेंट किया जाना था। इन पंकतियों के लेखक ने बचपन में अनेक बार इस वृतानत को सना था। भारतीय जी कछ दिन पूरव ही जेल से छूट कर लौटे थे। वे घटना से क दिन पूरव रात के समय लकते-छिपते अपने मितर शरी मायाराम आरय जो कलकटेªà¤Ÿ पौड़ी में लिपिक थे और तारा लौज पौड़ी में निवास करते थे, के घर पहंच गये। वे अकसर जब भी पौड़ी आते तो उनके निवास पर ही ठहरते थे जहां शरी बलदेव सिहं आरय आदि अनेक सवतनतरता सेनानी आकर ठहरते व देश की आजादी के विषय में आपस में विचार-विमरष किया करते थे। शरी आरय क निषठावान आरयसमाजी व देशभकत थे जो आरयसमाज व राषटर के लि समरपित थे परनत अंगरेजों की सरकार के अधीन सेवामें रहने के कारण खलकर सामने नहीं आ सकते थे। रातरि को वहां पर विशराम करने के उपरानत सबह होते ही शरी भारतीय चले गये थे परनत जाते ह क काली छतरी जो उनहोंने बड़ी हिफाजत से रखवाई थी, को ले जाना नहीं भूले थे। उस छतरी के अनदर ही उनहोंने क णडा छिपा रखा था। (सव0 शरी शानतिपरकाश ‘परेम’ परभाकर ने उनकी जीवनी में कोतवाल सिहं नेगी के घर उनका ठहरना लिखा है। सा लगता है कि शरी आरय के सरकारी सेवक होने के कारण लोगों से उनके घर रहने का तथय शरी भारती ने छिपाया होगा) 6 सितमबर 1932 को भारतीय जी आसतीन के अनदर तिरंगा छिपाकर ले गये थे और जैसे ही गवरनर अभिननदन पतर के परतयततर में धनयवाद देने हेत खड़ा हआ, भारतीय जी ने णडा निकाल कर उसे डणडे पर लगाते ह हाथ में ऊंचा उठा कर  हवा में फहराया और ‘ मैलकम हैली गो बैक ’....‘ भारत माता की जय ’..... ‘ अमन सभा मरदाबाद’ आदि नारे लगाने लगे। सरकारी सिपाहियों ने उनहें जकड़ लिया और उनके ऊपर कमबल या चादर डालकर उनकी आवाज बनद करने की कोशिष की परनत उनके दवारा नारे लगाना बनद न हआ। उनहें ततकाल थाने में ले जाकर बनद कर दिया गया। वहां पर उनके लमबे-लमबे बालों को खींच कर कई दिन तक उनहें यातनायें दी गयीं परनत उनहोंने  यह नहीं बताया कि वे कहां ठहरे थे और इस विदरोह में उनके साथी कौन-कौन थे। नयायालय ने इन पर तीन सौ रपये अरथदणड करते ह इस शरत पर छोड़ने की पेशकश की कि वे राजय के शभ-चिनतक बने रहने की गारनटी देंगे और क साल तक पलिस की निगरानी में जमानत पर रहेंगे परनत भारतीय जी ने इन शरतों पर रिहा होने से इनकार कर दिया, फलतः उनहें क वरष का कठोर कारावास का दणड दिया गया था। भारत छोड़ो आनदोलन में भी उनकी सकरिय भूमिका रही और उन पर देशदरोह का मकदमा चलाया गया जिसमें उनहें दो वरष के कठोर कारावास का दणड दिया गया। इस परकार उनको अपरैल 1944 तक छः बार जेल भेजा गया और अनेक यातनायें दी गईं परनत यह वीर सेनानी निरनतर राषटर सेवा में लगा रहा। शरी भारतीय जी का संकषिपत जीवन परिचय देते समय उनके दवारा गढ़वाल के शिलपकारों के डोला-पालकी आनदोलन में निभाई गई भूमिका का उललेख करना आवशयक है। जैसा कि पूरव में वरणित किया जा चका है, गढ़वाल के तथाकथित उचच वरण के लोग इनहें अपना गलाम समते थे, न केवल इनके साथ अछूत मानते ह बरताव करते बलकि उनहें सामानय मानवीय अधिकार भी देने को तैयार नहीं थे। गढ़वाल आदि परवतीय कषेतरों में दरगम मारग होने के कारण सभी जातियों के लोग वर-वधू को डोला-पालकी में ले जाते थे परनत शिलपकारों का सा करना उनको गंवारा न था। जब महरषि दयाननद के विचारों से इनमें जागरूकता फैली और इनहोंने भी अपने दूलहा-दलहनों को डोला-पालकी में ले जाना परारमभ किया तो अनेक सथानों पर अनय तथाकथित उचच वरण के लोगों ने घोर विरोध और मारपीट की जिसके फलसवरूप कई गिरफतारियां और मकदमे बाजी हईं। अब ये शिलपकार लोग जाग उठे थे और कने के लि तैयार नहीं थे इसलि कई वरषों तक संघरष चलता रहा। इस संघरष में शरी भारतीय ने बहत मखय भूमिका निभाई थी। वे कई बार महातमा गांधी, शरी जवाहरलाल नेहरू, महामना मदन मोहन मालवीय और पं0 गोबिनद बललभ पनत से मिले और इस समसया का निदान करने हेत अपरैल, 1946 में क अभूतपूरव आरय सममेलन दगडडा में कराया। ये सब परयास  अनततोगतवा सफल ह और उततर परदेश सरकार दवारा इस दमन को रोकने के लि डोला-पालकी ैकट बनाया गया।

सवतनतरता की परापति के बाद भी वे आरयसमाज के सिदधानतों के परचार-परसार और दीन, दखियों की सेवा में लगे रहे। जहां उनके अनय साथियों ने आजादी के बाद मनतरी आदि पद सवीकार कर जीवन आराम और सविधाओं के साथ बिताया वहीं इस निषठावान सेनानी ने कोई भी सविधा लेना सवीकार नहीं किया। विपननता में जीवन बिताते ह बीमार होकर 9 सितमबर, 1952 को राषटर भकत महरषि दयाननद और शरदधाननद के इस करमवीर सेनानी ने अपनी इहलौकिक जीवन यातरा पूरण की और अननत यातरा पर चल पड़ा। उनके देहावसान के बाद सव. शरी हेमवती ननदन बहगणा ने कहा था, ‘‘ सवराज के लि छः बार जेल यातना से लेकर भरी सभा में अंगरेज गवरनर को तिरंगा ंणडा दिखाकर गढ़वाल की मरयादा को ऊंचा उठाने वाले शरी भारतीय जी सामंती समाज की देन गरीबी, अशिकषा, जातीय भेद और जलमों की शिकार दबी; थकी शिलपी जनता की आवाज और ढाल बन गये ’’। भले ही कई अनाम शहीदों की तरह शासन और परशासन की ओर से उनहें कोई मानयता नहीं दी गई जबकि सवतनतरता संगराम में भाग लेने वाले सामानय कारय करताओं के नाम पर सड़कों और विशवविदयालयों के नाम हैं। इस राषटर सेवक को हम शत.शत नमन करते हैं। वे सदा हमारे हृदयों में अमर रहेंगे।

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  • लेख परसंशनीय है। आपने सही मायने में शरी जयाननद भारतीय जी का शरादध किया है।

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  • लेख परसंशनीय है। आपने सही मायने में शरी जयाननद भारतीय जी का शरादध किया है।

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  • लेख परसंशनीय है। आपने सही मायने में शरी जयाननद भारतीय जी का शरादध किया है।

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