आतà¥à¤®à¤¾ और परमातà¥à¤®à¤¾
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Naveen AryaDate
02-Jan-2018Category
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HindiTotal Views
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RajeevUpload Date
02-Jan-2018Download PDF
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आतà¥à¤®à¤¾ और परमातà¥à¤®à¤¾
वैदिक सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° तीन सतà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ नितà¥à¤¯ सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° की गयी हैं। ईशà¥à¤µà¤°, आतà¥à¤®à¤¾ और पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¥¤ इनमें ईशà¥à¤µà¤° और आतà¥à¤®à¤¾ चेतन हैं, जबकि पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ जड़ है। इन तीनों में कà¥à¤› समानतायें à¤à¥€ हैं और कà¥à¤› à¤à¥‡à¤¦ à¤à¥€à¥¤ तीनों की समानता यह है कि तीनों अनादि, नितà¥à¤¯ व सतà¥à¤¤à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• हैं। à¤à¥‡à¤¦ यह है कि ईशà¥à¤µà¤° à¤à¤• है, आतà¥à¤®à¤¾ अनेक(असंखà¥à¤¯) हैं। ये दोनों ही किसी का उपादान कारण नहीं बनतीं परनà¥à¤¤à¥ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ जड़ होने से अनà¥à¤¯ à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• वसà¥à¤¤à¥à¤“ं का उपादान कारण बनती है । पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ लेख में हम आतà¥à¤®à¤¾ और परमातà¥à¤®à¤¾ के विषय में ही विचार करेंगे।
आतà¥à¤®à¤¾ का सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª :- नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ दरà¥à¤¶à¤¨ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° “इचà¥à¤›à¤¾à¤¦à¥à¤µà¥‡à¤·à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨à¤¸à¥à¤–दà¥à¤ƒà¤–जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¾à¤¨à¤¿ आतà¥à¤®à¤¨à¥‹ लिंगमिति” अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ इचà¥à¤›à¤¾, दà¥à¤µà¥‡à¤·, पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨, सà¥à¤–, दà¥à¤ƒà¤– और जà¥à¤žà¤¾à¤¨ आतà¥à¤®à¤¾ के लकà¥à¤·à¤£ हैं। इनके माधà¥à¤¯à¤® से आतà¥à¤®à¤¾ के असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ का बोध होता है। “पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¾à¤ªà¤¾à¤¨à¤¨à¤¿à¤®à¥‡à¤·à¥‹à¤¨à¥à¤®à¥‡à¤·à¤œà¥€à¤µà¤¨ मनोगातीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¤µà¤¿à¤•à¤¾à¤°à¤¾à¤ƒ सà¥à¤–दà¥à¤ƒà¤–ेचà¥à¤›à¤¾à¤¦à¥à¤µà¥‡à¤·à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤¨à¤¾à¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¨à¥‹ लिंगानि” (वैशेषिक दरà¥à¤¶à¤¨ – ३.२.४.) अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ पà¥à¤°à¤¾à¤£ को बाहर निकालना, पà¥à¤°à¤¾à¤£ को बाहर से à¤à¥€à¤¤à¤° लेना, आà¤à¤– मींचना, आà¤à¤–ें खोलना, पà¥à¤°à¤¾à¤£ धारण करना, निशà¥à¤šà¤¯ करना, सà¥à¤®à¤°à¤£ करना और अहंकार करना, चलना सब इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को चलाना, कà¥à¤·à¥à¤§à¤¾-तृषा, हरà¥à¤·-शोक आदि का होना जीव के लकà¥à¤·à¤£ है। “जनà¥à¤®à¤¾à¤¦à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¤à¤ƒ पà¥à¤°à¥à¤·à¤¬à¤¹à¥à¤¤à¥à¤µà¤®à¥” (सांखà¥à¤¯ –1.149) अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ संसार में à¤à¤• ही काल में किसी का जनà¥à¤® हो रहा है, किसी की मृतà¥à¤¯à¥ हो रही है, इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देख कर यही जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि आतà¥à¤®à¤¾à¤à¤‚ अनेक हैं। “इदनीमिव सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° नातà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤šà¥à¤›à¥‡à¤¦:” (सांखà¥à¤¯ – 1.151) अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ वरà¥à¤¤à¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ समय में पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ का अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ अà¤à¤¾à¤µ न होना ही इस बात का पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ है कि आतà¥à¤®à¤¾à¤à¤‚ मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤•à¤¾à¤² को à¤à¥‹à¤— कर पà¥à¤¨à¤ƒ जनà¥à¤® लेती हैं।
इस विषय में महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥-पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में लिखते हैं कि “ दोनों (आतà¥à¤®à¤¾-परमातà¥à¤®à¤¾) चेतन सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª हैं, सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ दोनों का पवितà¥à¤° है, अविनाशी और धारà¥à¤®à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ आदि है परनà¥à¤¤à¥ परमेशà¥à¤µà¤° के सृषà¥à¤Ÿà¤¿-उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿, सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿,पà¥à¤°à¤²à¤¯, सबको नियम में रखना, जीवों को पाप-पà¥à¤£à¥à¤¯ रूप फलों का देना आदि धरà¥à¤®à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ करà¥à¤® हैं और जीव के संतानोतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿, उनका पालन,शिलà¥à¤ª-विदà¥à¤¯à¤¾ आदि अचà¥à¤›à¥‡ बà¥à¤°à¥‡ करà¥à¤® करना है।
“आतà¥à¤®à¤¾ परिछिनà¥à¤¨ है, जीव का सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª अलà¥à¤ªà¤œà¥à¤ž, अलà¥à¤ª अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सूकà¥à¤·à¥à¤® है” (सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥-पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶) । आतà¥à¤®à¤¾ जब शरीर धारण करती है तà¤à¥€ उसका नाम जीवातà¥à¤®à¤¾ होता है। वह अपने दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कृत करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल सà¥à¤µà¤¯à¤‚ à¤à¥‹à¤—ती है, “स ही ततà¥à¤«à¤²à¤¸à¥à¤¯ à¤à¥‹à¤•à¥à¤¤à¥‡à¤¤à¤¿” अनà¥à¤¯ नहीं। आतà¥à¤®à¤¾ अचà¥à¤›à¥‡-बà¥à¤°à¥‡ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ को करने में सà¥à¤µà¤¤à¤¨à¥à¤¤à¥à¤° हैं “सà¥à¤µà¤¤à¤¨à¥à¤¤à¥à¤°à¤ƒ करà¥à¤¤à¤¾” किनà¥à¤¤à¥ कृत करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के फल à¤à¥‹à¤—ने में पराधीन है इसीलिठअचà¥à¤›à¥‡ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल सà¥à¤– और बà¥à¤°à¥‡ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल दà¥à¤ƒà¤– रूप में à¤à¥‹à¤—ना पड़ता है। यह संकà¥à¤·à¥‡à¤ª में आतà¥à¤®à¤¾ का सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª है।
परमातà¥à¤®à¤¾ का सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª :- महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जी के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤°, ईशà¥à¤µà¤° सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤‚दसà¥à¤µà¤°à¥à¤ª, निराकार,सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨,नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥€,दयालà¥,अजनà¥à¤®à¤¾,अननà¥à¤¤,निरà¥à¤µà¤¿à¤•à¤¾à¤°,अनादि,अनà¥à¤ªà¤®,सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¾à¤°, सरà¥à¤µà¥‡à¤¶à¥à¤µà¤°,सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•,सरà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¥à¤¯à¤¾à¤®à¥€,अजर,अमर,अà¤à¤¯,नितà¥à¤¯,पवितà¥à¤° और सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ है। इसके अतिरिकà¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में अनेकों गà¥à¤£ वाचक नाम से ईशà¥à¤µà¤° के सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª को दरà¥à¤¶à¤¾à¤¯à¤¾ है, जैसे कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•à¤¾à¤°à¥€ होने से शिव और दà¥à¤·à¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ को पीड़ा देने से रूदà¥à¤° आदि।
योग दरà¥à¤¶à¤¨ में बताया गया है कि “कà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤•à¤°à¥à¤®à¤µà¤¿à¤ªà¤¾à¤•à¤¾à¤¶à¤¯à¥ˆ: अपरामृषà¥à¤Ÿ: पà¥à¤°à¥à¤·à¤µà¤¿à¤¶à¥‡à¤·: ईशà¥à¤µà¤°à¤ƒ” अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ अविदà¥à¤¯à¤¾ आदि पांच कà¥à¤²à¥‡à¤¶, सकाम करà¥à¤®, उन करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के फल, और संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ से रहित जीवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं से à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª वाला ईशà¥à¤µà¤° होता है । और à¤à¥€ कहा - “स à¤à¤· पूरà¥à¤µà¥‡à¤·à¤¾à¤®à¤ªà¤¿ गà¥à¤°à¥à¤ƒ कालेनानवचà¥à¤›à¥‡à¤¦à¤¾à¤¤à¥” ( योग.) वह ईशà¥à¤µà¤° गà¥à¤°à¥à¤“ं का à¤à¥€ गà¥à¤°à¥, आदि गà¥à¤°à¥ है। “तसà¥à¤¯ वाचकः पà¥à¤°à¤£à¤µà¤ƒ” अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ उस परमेशà¥à¤µà¤° का मà¥à¤–à¥à¤¯ नाम है ‘ओ३म॒, उसी की उपासना करनी चाहिये ।
वेद में कहा à¤à¥€ गया है – “न दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯à¥‹ न तृतीयशà¥à¤šà¤¤à¥à¤°à¥à¤¥à¥‹ नापà¥à¤¯à¥à¤šà¥à¤¯à¤¤à¥‡” ...( अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦ ) अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ ईशà¥à¤µà¤° केवल à¤à¤• ही है, न दो है न तीन है, इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° दो, तीन आदि संखà¥à¤¯à¤¾ का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥‡à¤§ करके अनेक ईशà¥à¤µà¤° के मत का खणà¥à¤¡à¤¨ कर दिया है । “मा चिदनà¥à¤¯à¤¤à¥ विशंसत सखायो मा रिषनà¥à¤¯à¤¤...अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ हे विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹ ! वà¥à¤¯à¤°à¥à¤¥ के चकà¥à¤•à¤° में मत पड़ो, परमैशà¥à¤µà¤°à¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¥€ परमातà¥à¤®à¤¾ को छोड़ कर और किसी की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ मत करो। तà¥à¤® सब मिल कर केवल à¤à¤• आनंद वरà¥à¤·à¤• परमेशà¥à¤µà¤° की ही सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करो । “à¤à¤• à¤à¤µ नमसà¥à¤¯à¥‹ विकà¥à¤·à¥à¤µà¥€à¤¡à¥à¤¯” ( अथरà¥à¤µ.) अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ à¤à¤• ही ईशà¥à¤µà¤° नमसà¥à¤•à¤¾à¤° करने योगà¥à¤¯ है। “à¤à¤•à¥‹ विशà¥à¤µà¤¸à¥à¤¯ à¤à¥à¤µà¤¨à¤¸à¥à¤¯ राजा”- (ऋग.) अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ विशà¥à¤µ का à¤à¤• ही राजा ईशà¥à¤µà¤° है। “ईशा वासà¥à¤¯à¤®à¤¿à¤¦à¤‚ सरà¥à¤µà¤‚”...( यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦.) ईशà¥à¤µà¤° सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है।
ईशà¥à¤µà¤° के मà¥à¤–à¥à¤¯ कारà¥à¤¯ :-
१.सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ करना ।
२.सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का पालन वा संचालन करना ।
३.पà¥à¤°à¤²à¤¯ का समय आने पर सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का विनाश करना ।
४.सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठमें वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ देना ।
५.समसà¥à¤¤ जीवों को उनके करà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° सà¥à¤–-दà¥à¤ƒà¤– रूप फल देना ।
आतà¥à¤®à¤¾ के कारà¥à¤¯ – आतà¥à¤®à¤¾ अपने गत करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° बार-बार जनà¥à¤® लेकर संसार में रहता हà¥à¤† शà¥à¤à¤¾à¤¶à¥à¤ करà¥à¤® करता है। पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• जनà¥à¤® में उसे à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ माता-पिता आदि पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते हैं। कà¤à¥€ कोई किसी का बचà¥à¤šà¤¾ बनता है तो कà¤à¥€ कोई किसी का माता-पिता आदि । संसार में रहते हà¥à¤ चेतन व अचेतनों से अनेक पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ को जोड़ता और तोड़ता है । à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ योनियों में जाता हà¥à¤† तदनà¥à¤¸à¤¾à¤° सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करता, पालन करता है।
परनà¥à¤¤à¥ आतà¥à¤®à¤¾à¤“ं के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ सà¤à¥€ योनियों को तीन विà¤à¤¾à¤—ों में बाà¤à¤Ÿ सकते हैं। पहला है à¤à¥‹à¤— योनि, दूसरा है करà¥à¤®-à¤à¥‹à¤— योनि और तीसरा है करà¥à¤® योनि। à¤à¥‹à¤— योनि वह है जहाठकेवल पिछले करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का ही फल à¤à¥‹à¤—ना पड़ता है, बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿-विवेकपूरà¥à¤µà¤• करà¥à¤® करने की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ नहीं होती ।इस योनि में मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤ƒ जीवातà¥à¤®à¤¾ खाना,पीना,सोना,सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ पैदा करना आदि कारà¥à¤¯ करता है। इस योनि में किये गठअचà¥à¤›à¥‡-बà¥à¤°à¥‡ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल अगले जनà¥à¤® में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं होता कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इसमें जीवातà¥à¤®à¤¾ के करà¥à¤® सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के आशà¥à¤°à¤¿à¤¤ होते हैं, इसीलिठपाप-पà¥à¤£à¥à¤¯, उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿-अवनति आदि का कोई पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ ही नहीं उठता। जीवातà¥à¤®à¤¾ जब मनà¥à¤·à¥à¤¯ शरीर को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है, तब उसे पिछले जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल à¤à¥€ à¤à¥‹à¤—ना होता है और नये करà¥à¤® à¤à¥€ करने पड़ते हैं इसीलिठइस योनि को ही करà¥à¤®-à¤à¥‹à¤— योनि कहा जाता है। इस योनि में जीव को ईशà¥à¤µà¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤• विशेष पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती है जिससे वह सही-गलत का विवेचन करने में समरà¥à¤¥ हो पता है। तदनà¥à¤¸à¤¾à¤° कृत करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल सà¥à¤–-दà¥à¤ƒà¤– रूप में उसे à¤à¥‹à¤—ना पड़ता है। उसके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इस जनà¥à¤® में किये गठअचà¥à¤›à¥‡-बà¥à¤°à¥‡ करà¥à¤® ही आगामी जनà¥à¤® का कारण बनते हैं। तीसरे पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के करà¥à¤® योनि वाले जीव वो होते हैं जिनको कोई फल à¤à¥‹à¤—ना नहीं होता परनà¥à¤¤à¥ वे केवल सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के उपकार के लिठही जनà¥à¤® लेते, जो कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठमें उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो कर अनà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करते हैं।
मनà¥à¤·à¥à¤¯ योनि में जीवातà¥à¤®à¤¾ के मà¥à¤–à¥à¤¯ करà¥à¤® कà¥à¤› निमà¥à¤¨à¤²à¤¿à¤–ित हैं –
क. सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® इस योनि में जीवातà¥à¤®à¤¾ का लकà¥à¤·à¥à¤¯ ईशà¥à¤µà¤° पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होता है ।
ख. जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ और अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की समापà¥à¤¤à¤¿ करना।
ग. वेद का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करना à¤à¤µà¤‚ वेदानà¥à¤•à¥à¤² जीवन-यापन करना ।
घ. ऋषियों के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¥‹à¤•à¥à¤¤ आशà¥à¤°à¤®-वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ तथा वरà¥à¤£-वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ का पालन करना।
ङ. पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण और देव-ऋण से उऋण होना ।
च. धà¥à¤¯à¤¾à¤¨-उपासना, पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¾à¤¯à¤¾à¤® आदि दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ आतà¥à¤®à¤¾ की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ करना ।
छ. मन-वचन-करà¥à¤® से à¤à¤• रूपता रखते हà¥à¤ सतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤°à¤£ करना ।
ज. परोपकार की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ को अधिक से अधिक बà¥à¤¾à¤¨à¤¾ ।
आतà¥à¤®à¤¾ और परमातà¥à¤®à¤¾ के मधà¥à¤¯ में समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ :- आतà¥à¤®à¤¾ और परमातà¥à¤®à¤¾ दोनों ही पृथक-पृथक नितà¥à¤¯ सतà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं फिर à¤à¥€ अनादि कल से होने के कारण दोनों का समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ à¤à¥€ अनादि है जैसे कि : -
ईशà¥à¤µà¤° पिता और जीवातà¥à¤®à¤¾ पà¥à¤¤à¥à¤°
ईशà¥à¤µà¤° माता और जीवातà¥à¤®à¤¾ पà¥à¤¤à¥à¤°
ईशà¥à¤µà¤° गà¥à¤°à¥ और जीवातà¥à¤®à¤¾ शिषà¥à¤¯
ईशà¥à¤µà¤° मितà¥à¤° और जीवातà¥à¤®à¤¾ मितà¥à¤°
ईशà¥à¤µà¤° सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ और जीवातà¥à¤®à¤¾ सेवक
ईशà¥à¤µà¤° उपासà¥à¤¯ और जीवातà¥à¤®à¤¾ उपासक
ईशà¥à¤µà¤° वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• और जीवातà¥à¤®à¤¾ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¯ ....इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ और अनेक पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ हैं ।
यह अचà¥à¤›à¥€ जानकारी है। धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦