The Arya Samaj | Article : आजाद था, आजाद हूँ और आजाद रहूँगा

आजाद था, आजाद हूँ और आजाद रहूँगा

अमर क्रन्तिकारी चंद्रशेखर आजाद के शहीद दिवस पर विशेष

 

इलाहबाद के एल्फ्रेड पार्क में देश की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों लड़ते हुए से 27 फरवरी 1931 को बची हुई आखिरी गोली स्वयं पर दाग के आत्म बलिदान करने वाले महान क्रन्तिकारी चंद्रशेखर नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अहम् स्थान रखता है.

 

इनके पिता पंडित सीताराम तिवारी उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदर गांव के रहने वाले थे लेकिन भीषण अकाल के चलते गाँव छोड़ना पड़ा और भाबरा में जा बसे चंद्रशेखर आजाद का प्रारंभिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र भाबरा में व्यतीत हुआ जहाँ अपने भील सखाओं के साथ धनुष-बाण चलाना सीख लिया था. आजाद बचपन से ही भारत को स्वतंत्र कराना चाहते थे. अपनी माता जगरानी से काशी में संस्कृत पढ़ने की आज्ञा लेकर घर से निकले. उस समय गांधी जी के असहयोग आंदोलन का आरम्भिक दौर था, मात्र चैदह वर्ष की आयु में बालक चंद्रशेखर ने इस आंदोलन में भाग लिया.  चंद्रशेखर गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित किया गया.  चंद्रशेखर से उनका नाम पूछा गया तो उन्होंने अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतंत्रता और घर श्जेलखानाश् बताया. उन्हें अल्पायु के कारण कारागार का दंड न देकर 15 कोड़ों की सजा हुई. हर कोड़े की मार पर, ‘वन्दे मातरम्‌श् कहने वाले आजाद के शब्दों ने युवाओं में क्रांति का जोश भर दिया. इस घटना के बाद चन्द्रशेखर सीताराम तिवारी को सार्वजनिक रूप से चंद्रशेखर श्आजादश् कहा जाने लगा.

 

1922 में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया गया. इससे चंद्रशेखर आजाद बहुत आहत हुए.  उन्होंने देश का स्वंतत्र करवाने की मन में ठान ली. एक युवा क्रांतिकारी  ने उन्हें हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन क्रांतिकारी दल के संस्थापक राम प्रसाद बिस्मिल से परिचित करवाया. आजाद  बिस्मिल से बहुत प्रभावित हुए. चंद्रशेखर आजाद के समर्पण और निष्ठा की पहचान करने के बाद बिस्मिल ने चंद्रशेखर आजाद को अपनी संस्था का सक्रिय सदस्य बना लिया.  चंद्रशेखर आजाद अपने साथियों के साथ संस्था के लिए धन एकत्रित करते थे. अधिकतर यह धन अंग्रेजी सरकार से छीनकर एकत्रित किया जाता था. काकोरी ट्रेन कांड भी इसी उद्देश्य का हिस्सा था.

 

1925 में काकोरी कांड के बाद अशफाक उल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल सहित कई अन्य मुख्य क्रांतिकारियों को मृत्यु-दण्ड दिया गया था. इसके बाद चंद्रशेखर ने इस संस्था का पुनर्गठन किया. भगवतीचरण वोहरा के संपर्क में आने के पश्चात् चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के भी निकट आ गए. भगत सिंह के साथ मिलकर चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजी हुकूमत को भयभीत करने और भारत से खदेड़ने का हर संभव प्रयास किया. चंद्रशेखर आजाद ने एक निर्धारित समय के लिए झांसी को अपना गढ़ बना लिया. झांसी से पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में वह अपने साथियों के साथ निशानेबाजी किया करते थे. अचूक निशानेबाज होने के कारण चंद्रशेखर आजाद दूसरे क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के छ्द्म नाम से बच्चों के अध्यापन का कार्य भी करते थे. वह धिमारपुर गांव में अपने इसी छद्म नाम से स्थानीय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए थे. झांसी में रहते हुए चंद्रशेखर आजाद ने गाड़ी चलानी भी सीख ली थी.

 

फरवरी 1931 में जब चंद्रशेखर आजाद गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने सीतापुर जेल गए तो विद्यार्थी ने उन्हें इलाहाबाद जाकर जवाहर लाल नेहरू से मिलने को कहा. कहा जाता है कि चंद्रशेखर आजाद जब नेहरू से मिलने आनंद भवन गए तो उन्होंने चंद्रशेखर की बात सुनने से भी इनकार कर दिया था. गुस्से में वहाँ से निकलकर चंद्रशेखर आजाद अपने साथी सुखदेव राज के साथ एल्फ्रेड पार्क चले गए. वे सुखदेव के साथ आगामी योजनाओं के विषय पर विचार-विमर्श कर ही रहे थे कि पुलिस ने उन्हें घेर लिया.  आजाद ने अपनी जेब से पिस्तौल निकालकर गोलियां दागनी शुरू कर दी. आजाद ने सुखदेव को तो भगा दिया पर स्वयं अंग्रेजों का अकेले ही सामना करते रहे. दोनों ओर से गोलीबारी हुई लेकिन जब चंद्रशेखर के पास मात्र एक ही गोली शेष रह गई तो उन्हें पुलिस का सामना करना मुश्किल लगा. चंद्रशेखर आजाद ने  यह प्रण लिया हुआ था कि वह कभी भी जीवित पुलिस के हाथ नहीं आएंगे. इसी प्रण को निभाते हुए एल्फ्रेड पार्क में 27 फरवरी 1931 को उन्होंने वह बची हुई गोली स्वयं पर दाग के आत्म बलिदान कर लिया. पुलिस के अंदर चंद्रशेखर आजाद का भय इतना था कि किसी को भी उनके मृत शरीर के के पास जाने तक की हिम्मत नहीं थी. उनके मृत शरीर पर गोलियाँ चलाकर पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही चंद्रशेखर की मृत्यु की पुष्टि की गई. लेकिन इसके बाद भी केसरिया मिट्टी से वो सिंहनाद गूंजता रहा आजाद था, आजाद हूं और आजाद रहूंगा. इस महान अमर क्रन्तिकारी चंद्रशेखर आजाद के शहीद दिवस पर आर्य समाज का शत-शत नमन…..

 

 

 

ALL COMMENTS (0)