आजाद था, आजाद हूठऔर आजाद रहूà¤à¤—ा


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Rajeev ChoudharyDate
27-Feb-2018Category
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आजाद था, आजाद हूठऔर आजाद रहूà¤à¤—ा
अमर कà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤•ारी चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद के शहीद दिवस पर विशेष
इलाहबाद के à¤à¤²à¥à¤«à¥à¤°à¥‡à¤¡ पारà¥à¤• में देश की सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ के लिठअंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ लड़ते हà¥à¤ से 27 फरवरी 1931 को बची हà¥à¤ˆ आखिरी गोली सà¥à¤µà¤¯à¤‚ पर दाग के आतà¥à¤® बलिदान करने वाले महान कà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤•ारी चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र नाम à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ संगà¥à¤°à¤¾à¤® के इतिहास में अहमॠसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ रखता है.
इनके पिता पंडित सीताराम तिवारी उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के उनà¥à¤¨à¤¾à¤µ जिले के बदर गांव के रहने वाले थे लेकिन à¤à¥€à¤·à¤£ अकाल के चलते गाà¤à¤µ छोड़ना पड़ा और à¤à¤¾à¤¬à¤°à¤¾ में जा बसे चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद का पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚à¤à¤¿à¤• जीवन आदिवासी बाहà¥à¤²à¥à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° à¤à¤¾à¤¬à¤°à¤¾ में वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ हà¥à¤† जहाठअपने à¤à¥€à¤² सखाओं के साथ धनà¥à¤·-बाण चलाना सीख लिया था. आजाद बचपन से ही à¤à¤¾à¤°à¤¤ को सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° कराना चाहते थे. अपनी माता जगरानी से काशी में संसà¥à¤•ृत पà¥à¤¨à¥‡ की आजà¥à¤žà¤¾ लेकर घर से निकले. उस समय गांधी जी के असहयोग आंदोलन का आरमà¥à¤à¤¿à¤• दौर था, मातà¥à¤° चैदह वरà¥à¤· की आयॠमें बालक चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र ने इस आंदोलन में à¤à¤¾à¤— लिया. चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र गिरफà¥à¤¤à¤¾à¤° कर लिठगठऔर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मजिसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‡à¤Ÿ के समकà¥à¤· उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ किया गया. चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र से उनका नाम पूछा गया तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपना नाम आजाद, पिता का नाम सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ और घर शà¥à¤œà¥‡à¤²à¤–ानाशॠबताया. उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अलà¥à¤ªà¤¾à¤¯à¥ के कारण कारागार का दंड न देकर 15 कोड़ों की सजा हà¥à¤ˆ. हर कोड़े की मार पर, ‘वनà¥à¤¦à¥‡ मातरमà¥à¤¶à¥ कहने वाले आजाद के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ ने यà¥à¤µà¤¾à¤“ं में कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति का जोश à¤à¤° दिया. इस घटना के बाद चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र सीताराम तिवारी को सारà¥à¤µà¤œà¤¨à¤¿à¤• रूप से चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र शà¥à¤†à¤œà¤¾à¤¦à¤¶à¥ कहा जाने लगा.
1922 में गांधी जी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ असहयोग आंदोलन को सà¥à¤¥à¤—ित कर दिया गया. इससे चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद बहà¥à¤¤ आहत हà¥à¤. उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने देश का सà¥à¤µà¤‚ततà¥à¤° करवाने की मन में ठान ली. à¤à¤• यà¥à¤µà¤¾ कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारी ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ रिपबà¥à¤²à¤¿à¤•न à¤à¤¸à¥‹à¤¸à¤¿à¤à¤¶à¤¨ कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारी दल के संसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤• राम पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ बिसà¥à¤®à¤¿à¤² से परिचित करवाया. आजाद बिसà¥à¤®à¤¿à¤² से बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ हà¥à¤. चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद के समरà¥à¤ªà¤£ और निषà¥à¤ ा की पहचान करने के बाद बिसà¥à¤®à¤¿à¤² ने चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद को अपनी संसà¥à¤¥à¤¾ का सकà¥à¤°à¤¿à¤¯ सदसà¥à¤¯ बना लिया. चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद अपने साथियों के साथ संसà¥à¤¥à¤¾ के लिठधन à¤à¤•तà¥à¤°à¤¿à¤¤ करते थे. अधिकतर यह धन अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ सरकार से छीनकर à¤à¤•तà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया जाता था. काकोरी टà¥à¤°à¥‡à¤¨ कांड à¤à¥€ इसी उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ का हिसà¥à¤¸à¤¾ था.
1925 में काकोरी कांड के बाद अशफाक उलà¥à¤²à¤¾ खां, रामपà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ बिसà¥à¤®à¤¿à¤² सहित कई अनà¥à¤¯ मà¥à¤–à¥à¤¯ कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारियों को मृतà¥à¤¯à¥-दणà¥à¤¡ दिया गया था. इसके बाद चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र ने इस संसà¥à¤¥à¤¾ का पà¥à¤¨à¤°à¥à¤—ठन किया. à¤à¤—वतीचरण वोहरा के संपरà¥à¤• में आने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद à¤à¤—त सिंह, सà¥à¤–देव, राजगà¥à¤°à¥ के à¤à¥€ निकट आ गà¤. à¤à¤—त सिंह के साथ मिलकर चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद ने अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ हà¥à¤•ूमत को à¤à¤¯à¤à¥€à¤¤ करने और à¤à¤¾à¤°à¤¤ से खदेड़ने का हर संà¤à¤µ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया. चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद ने à¤à¤• निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ समय के लिठà¤à¤¾à¤‚सी को अपना गॠबना लिया. à¤à¤¾à¤‚सी से पंदà¥à¤°à¤¹ किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में वह अपने साथियों के साथ निशानेबाजी किया करते थे. अचूक निशानेबाज होने के कारण चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद दूसरे कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारियों को पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£ देने के साथ-साथ पंडित हरिशंकर बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ के छà¥à¤¦à¥à¤® नाम से बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¨ का कारà¥à¤¯ à¤à¥€ करते थे. वह धिमारपà¥à¤° गांव में अपने इसी छदà¥à¤® नाम से सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोगों के बीच बहà¥à¤¤ लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ हो गठथे. à¤à¤¾à¤‚सी में रहते हà¥à¤ चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद ने गाड़ी चलानी à¤à¥€ सीख ली थी.
फरवरी 1931 में जब चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद गणेश शंकर विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ से मिलने सीतापà¥à¤° जेल गठतो विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इलाहाबाद जाकर जवाहर लाल नेहरू से मिलने को कहा. कहा जाता है कि चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद जब नेहरू से मिलने आनंद à¤à¤µà¤¨ गठतो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र की बात सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ से à¤à¥€ इनकार कर दिया था. गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡ में वहाठसे निकलकर चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद अपने साथी सà¥à¤–देव राज के साथ à¤à¤²à¥à¤«à¥à¤°à¥‡à¤¡ पारà¥à¤• चले गà¤. वे सà¥à¤–देव के साथ आगामी योजनाओं के विषय पर विचार-विमरà¥à¤¶ कर ही रहे थे कि पà¥à¤²à¤¿à¤¸ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ घेर लिया. आजाद ने अपनी जेब से पिसà¥à¤¤à¥Œà¤² निकालकर गोलियां दागनी शà¥à¤°à¥‚ कर दी. आजाद ने सà¥à¤–देव को तो à¤à¤—ा दिया पर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ का अकेले ही सामना करते रहे. दोनों ओर से गोलीबारी हà¥à¤ˆ लेकिन जब चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र के पास मातà¥à¤° à¤à¤• ही गोली शेष रह गई तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤²à¤¿à¤¸ का सामना करना मà¥à¤¶à¥à¤•िल लगा. चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद ने यह पà¥à¤°à¤£ लिया हà¥à¤† था कि वह कà¤à¥€ à¤à¥€ जीवित पà¥à¤²à¤¿à¤¸ के हाथ नहीं आà¤à¤‚गे. इसी पà¥à¤°à¤£ को निà¤à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ à¤à¤²à¥à¤«à¥à¤°à¥‡à¤¡ पारà¥à¤• में 27 फरवरी 1931 को उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वह बची हà¥à¤ˆ गोली सà¥à¤µà¤¯à¤‚ पर दाग के आतà¥à¤® बलिदान कर लिया. पà¥à¤²à¤¿à¤¸ के अंदर चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद का à¤à¤¯ इतना था कि किसी को à¤à¥€ उनके मृत शरीर के के पास जाने तक की हिमà¥à¤®à¤¤ नहीं थी. उनके मृत शरीर पर गोलियाठचलाकर पूरी तरह आशà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤ होने के बाद ही चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र की मृतà¥à¤¯à¥ की पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ की गई. लेकिन इसके बाद à¤à¥€ केसरिया मिटà¥à¤Ÿà¥€ से वो सिंहनाद गूंजता रहा आजाद था, आजाद हूं और आजाद रहूंगा. इस महान अमर कà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤•ारी चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद के शहीद दिवस पर आरà¥à¤¯ समाज का शत-शत नमन…..
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