चिंता दलितों की है या वोटों की
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Rajeev ChoudharyDate
27-Apr-2018Category
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चिंता दलितों की है या वोटों की
अकà¥à¤¸à¤° राजनेताओं का दलित पà¥à¤°à¥‡à¤® तà¤à¥€ जागता है जब चà¥à¤¨à¤¾à¤µ नजदीक हों. लेकिन हकीकत ये है कि ये सियासी लोग दलितों की वोट तो चाहते हैं लेकिन उनकी चिंता नहीं करते. à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ आबादी में दलितों का à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़ा हिसà¥à¤¸à¤¾ है. आंकड़ों के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• लगà¤à¤— 16.6 à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ आबादी अनà¥à¤¸à¥‚चित जाति की है. इसके अलावा लगà¤à¤— 8.6 à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ आबादी अनà¥à¤¸à¥‚चित जनजाति की है. इसीलिठजà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° नेता दलितों को वोट बैंक की तरह ही इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² करते आये हैं.
सà¥à¤µà¤¤à¤¨à¥à¤¤à¥à¤°à¤¤à¤¾ से पहले और सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ के बाद à¤à¤¾à¤°à¤¤ में बहà¥à¤¤ दलित नेता हà¥à¤ जिनमें जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤¬à¤¾ फà¥à¤²à¥‡, पेरियार, बाबा अमà¥à¤¬à¥‡à¤¡à¤•à¤°, बाबॠजगजीवन राम, कांशीराम, मायावती और अब 14 वें राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤ªà¤¤à¤¿ महामहिम रामनाथ कोविंद. आज देश के पà¥à¤°à¤¥à¤® नागरिक के पद से लेकर देश की संसद में करीब 50 से अधिक दलित सांसद, कई राजà¥à¤¯à¤¸à¤à¤¾ सांसद के अलावा कई सौ दलित विधायक विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की विधानसà¤à¤¾à¤“ं में दलित समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿à¤¤à¥à¤µ कर रहे है. इसके बावजूद à¤à¥€ अचानक से बीते कà¥à¤› वकà¥à¤¤ में देश में दलितों पर अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥‹à¤‚ को लेकर कई छोटे-बड़े पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ हà¥à¤. राजनीति हà¥à¤ˆ आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨ हà¥à¤, उनके के हितों का मà¥à¤–ोटा लगाये हà¥à¤ छोटे बड़े दलित गैर दलित नेता बाहर आये और दलित उतà¥à¤ªà¥€à¤¡à¤¨ को सीधे कथित उचà¥à¤š वरà¥à¤— से जोड़कर अपने करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से इतिशà¥à¤°à¥€ कर लेते ली.
इससे सब से à¤à¤¸à¤¾ लगता है जैसे समूचे वरà¥à¤— का उतà¥à¤ªà¥€à¤¡à¤¨ हो रहा है और करने वाला à¤à¤• समूचा कथित उचà¥à¤š वरà¥à¤— है.? कई बार धरà¥à¤®à¤¾à¤‚तरण की धमकी à¤à¥€ दी जाती है पर कà¥à¤¯à¤¾ धरà¥à¤®à¤¾à¤‚तरण के अलावा कोई अनà¥à¤¯ विकलà¥à¤ª नहीं है हालाà¤à¤•à¤¿ धरà¥à¤® परिवरà¥à¤¤à¤¨ के शिकार जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° वे ही लोग होते हैं जी गरीब हैं और दलित और आदिवासी समà¥à¤¦à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ से समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ रखते हैं. यह बात अलग है कि धरà¥à¤® परिवरà¥à¤¤à¤¨ के बावजूद वे या तो दलित मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® या फिर दलित इसाई कहलाते हैं. कà¥à¤² मिलाकर धरà¥à¤® परिवरà¥à¤¤à¤¨ करने के बावजूद à¤à¥€ उनकी सामाजिक और आरà¥à¤¥à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में कोई सà¥à¤§à¤¾à¤° नहीं होता है. देश के कई हिसà¥à¤¸à¥‹à¤‚ में आदिवासियों को बड़े सà¥à¤¤à¤° पर इस धरà¥à¤® से उस धरà¥à¤® में खींचने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ चलता रहता है. उनके मोकà¥à¤· चिंता सबको होती है लेकिन सामाजिक सà¥à¤§à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ की चिंता किसी को नहीं.
अà¤à¥€ पिछले दिनों à¤à¤¾à¤œà¤ªà¤¾ के राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¤µà¤•à¥à¤¤à¤¾ और पूरà¥à¤µ सांसद विजय सोनकर शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ जी ने अपने लेख था कि दलित समसà¥à¤¯à¤¾ का à¤à¤•à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° उपाय इनको हिनà¥à¤¦à¥‚ समाज में आतà¥à¤®à¤¸à¤¾à¤¤ करने का है, न की धरà¥à¤®à¤ªà¤°à¤¿à¤µà¤°à¥à¤¤à¤¨ करा शिया-सà¥à¤¨à¥à¤¨à¥€ या पà¥à¤°à¥‹à¤Ÿà¥‡à¤¸à¥à¤Ÿà¥‡à¤‚ट- कैथोलिक जैसे अलग समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ बनाना. लगà¤à¤— आठसौ बरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से यह दà¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯à¤ªà¥‚रà¥à¤£ कà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¥à¤¯ कà¥à¤› लोगों के साथ हà¥à¤†. à¤à¤• सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨à¥€, धरà¥à¤®à¤¾à¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨à¥€ कौम को यह सजा मà¥à¤—ल काल में मिली वरना वे à¤à¥€ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ और कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ ही थे. जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आज दलित के रूप में चिनà¥à¤¹à¤¿à¤¤ किया गया है.
वासà¥à¤¤à¤µ में à¤à¤• बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ à¤à¥€ निरà¥à¤§à¤¨ हो सकता है. आवास रहित हो सकता है. कपड़े का उसको à¤à¥€ आà¤à¤¾à¤µ हो सकता है, यानी मूलà¤à¥‚त आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ की वसà¥à¤¤à¥à¤à¤‚ वसà¥à¤¤à¥à¤“ं से वंचित हो सकता है. à¤à¤¸à¥€ ही अनà¥à¤¯ जातियों की à¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ है. परनà¥à¤¤à¥ कà¥à¤¯à¤¾ कोई बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£, कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯, वैशà¥à¤¯ या अनà¥à¤¯ सामानà¥à¤¯ वरà¥à¤— या जाति के लोग दलित हो सकते हैं? दलित का मतलब सामाजिक वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में निमà¥à¤¨ à¤à¤µà¤‚ असà¥à¤ªà¥ƒà¤¶à¥à¤¯ माना जाता है. यह सामानà¥à¤¯ लोगों की सोच बदल जाये तो आरकà¥à¤·à¤£ का कोई ओचितà¥à¤¯ ही नहीं रह जायेगा.
देखा जाà¤à¤ तो पिछले 30 से 35 सालों में देश में दलित राजनीति करने वाले नेताओं के हालात खूब अचà¥à¤›à¥€ तरह बदल गठहैं. कानून, संविधान का अधिकार पा कर दलित समाज का à¤à¤• तबका à¤à¤²à¥‡ ही आगे बॠगया हो, पर समाज का à¤à¤• बड़ा हिसà¥à¤¸à¤¾ बेहद खराब हालत में जी रहा है. वह ईंट à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ पर मजदूरी से लेकर खेतों आदि में आज à¤à¥€ मेहनत मजदूरी करते आसानी से दिख रहा है. इनमें अधिकांश दलितों के बचà¥à¤šà¥‡ सà¥à¤•à¥‚ल ही नहीं जा पाते हैं. वे बचपन से ही मेहनत मजदूरी करने लगते हैं. कई जगह कम उमà¥à¤° में पूरी खà¥à¤°à¤¾à¤• न मिलना और हाडतोड़ मेहनत उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कई तरह की बिमारियों की तरफ à¤à¥€ खींच ले जाती है.
इस से à¤à¤• बात साफ समठमें आ रही है कि राजनीतिक सतà¥à¤¤à¤¾ à¤à¤° पाने से à¤à¥€ दलित समाज का फायदा नहीं होने वाला है. अंबेडकर से लेकर कांशीराम तक सà¤à¥€ दलित महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ की यह सोच थी कि राजनीतिक सतà¥à¤¤à¤¾ से सामाजिक वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ बदलेगी. इस बात को जमीनी धरातल पर देखें, तो यह बात खरी नहीं उतरती है. 4 बार बसपा की पà¥à¤°à¤®à¥à¤– मायावती मà¥à¤–à¥à¤¯à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ रहीं. साल 2007 से ले कर साल 2012 तक बहà¥à¤®à¤¤ की सरकार चलाने के बाद à¤à¥€ बसपा दलितों को पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤œà¤¨à¤• हक नहीं दिला पाई. उलà¥à¤Ÿà¤¾ मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ लगवाने, पारà¥à¤• बनवाने जैसे कामों में लग गईं. रामदास अठावले, रामविलास पासवान à¤à¥€ केंदà¥à¤° सरकार में मंतà¥à¤°à¥€ हैं. मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में शिवराज सिंह चौहान लंबे समय से सरकार में हैं लेकिन मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में à¤à¥€ हालातों में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया तो किस आधार पर कहें दलित राजनीति से दलितों का कायाकलà¥à¤ª हो जायेगा?
दलित महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ की राजनीतिक सतà¥à¤¤à¤¾ से सामाजिक वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ बदलने की सोच काफी हद तक सही थी. परेशानी का सबब यह बन गया कि दलित नेताओं ने सतà¥à¤¤à¤¾ पाते ही समाजिक सà¥à¤§à¤¾à¤° के मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‹à¤‚ को पीछे छोड़ दिया. उस दिशा में कोई पहल नहीं हो सकी. शायद इसी कारण आजादी के 70 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के बाद à¤à¥€ दलित समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ à¤à¤• बड़ा हिसà¥à¤¸à¤¾ सिरà¥à¤« मतदाता बनकर रह गया. आज जब हम देश के दलित-आदिवासियों और अनà¥à¤¯ पिछड़े वरà¥à¤—ों पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि उनका जो सामाजिक और आरà¥à¤¥à¤¿à¤• उतà¥à¤¥à¤¾à¤¨ होना था वैसा नहीं हà¥à¤† है. इसके पीछे राजनीतिक इचà¥à¤›à¤¾à¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿ की कमी ही à¤à¤• मातà¥à¤° कारण है. वहीं, कहीं न कहीं उन वरà¥à¤—ों के अधिकारी और राजनेता à¤à¥€ जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अवसर मिलने के बावजूद अपने समाज के लिठउतना काम नहीं किया, जितना वे कर सकते थे. दलित बिरादरी की सब से बड़ी परेशानी यह है कि आगे बॠचà¥à¤•à¥‡ लोग खà¥à¤¦ को अगड़ी जमात में शामिल कर बाकी समाज को à¤à¥‚ल जाते हैं. अगड़ी जमात में शामिल होने की होड़ में दलित धारà¥à¤®à¤¿à¤• कà¥à¤šà¤•à¥à¤°à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ फंसते जा रहे हैं, जो उन के लिठखतरे की घंटी है. यदि आज हिनà¥à¤¦à¥‚ धरà¥à¤® को सामाजिक राजनीतिक रूप से कमजोर होता नहीं देख सकते तो इसके लिठपहले दलितों-आदिवासियों की चिंता करनी होगी तà¤à¥€ धरà¥à¤® और राषà¥à¤Ÿà¥à¤° मजबूत हो सकता है. लेकिन सामाजिक लड़ाई से पहले à¤à¤• मानसिक लड़ाई लड़नी होगी जिसमें दिमाग से उंच-नीच का जातिगत à¤à¥‡à¤¦ मिटाना होगा.
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