कया आपको याद है?
Author
Dr. Vivek AryaDate
16-Nov-2014Category
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SaurabhUpload Date
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काशी शासतरारथ
कारतिक शकला 12 संवत 1926 (16 नवंबर 1869 ई0)
सवामी दयाननद के काशी आगमन और परचार से खलबली मच गई। सवामी जी के बार बार शासतरारथ के लि आहवान करने पर वहा की पणडित मणडली आना कानी करती रही, पर अनत में काशी नरेश के आगरह पर तैयार हो गई। सà¤à¤¾ का परबंध नगर कोतवाल शरी रघनाथ परसाद के अधीन रहा। काशी नरेश के पकषपात ने परबंध को छिनन à¤à¤¿à¤¨à¤¨ कर दिया। सवामी जी के पकष के विदवानों को सà¤à¤¾ में आने से रोका गया। सवामी जी के आगरह पर उनहें आने तो दिया गया परनत उनहें पिछली पंकति में सथान दिया गया और समसत पौराणिक मणडली सवामी जी को घेर कर बैठगई। शासतरारथ कया था- सवामी जी को किसी à¤à¥€ तरह परासत घोषित करने का षडयंतर था। शासतरारथ का विषय था ‘वेदों में मूरति पूजा है या नहीं।’ बहत देर तक पणडित मणडली वेदों में मूरति पूजा दिखाने में असफल रही। उनहोंने विषय को बदलने का बार बार परयास किया।
अब उनहोंने विषय बनाया- वेद में पराण शबद है या नहीं! सवामी जी का मानना था कि वेदों में पराण शबद तो है किनत उसका अरथ ‘पराना’ है और उसका परयोग विशेषण के रूप में हआ है। अठारह पराणों का उससे गरहण नहीं हो सकता। इस पर माधवाचारय ने दो पतरे, जो वासतव में गृहय सूतर के थे, वेद के बताकर दिये। कहा कि यहा लिखा है कि यजञ के समापत होने पर यजमान दसवें दिन पराणों का पाठसने-- । यहा पराण शबद किसका विशेषण है? शाम हो रही थी। दीपक के परकाश में सवामी जी उस पतरे को देख ही रहे थे कि विशदधाननद ने कहा कि हमें देर होती है और सवामी जी की पीठपर हाथ रखकर बोले- ओहो! हार गये! और यह कहते ही उनहोंने ताली बजाई। दूसरे पणडितों और काशी नरेश ने à¤à¥€ उनका साथ दिया। ‘दयाननद हार गये।’ कहते ह सब ने हो हलला मचा दिया। इस सà¤à¤¾ में लगà¤à¤— पचास हजार लोग उपसथित थे। गणडों दवारा ढेले फेंक कर उपदरव à¤à¥€ किया गया, परनत कोतवाल सवामी जी को वहा से निकाल ले गये और उनकी रकषा की। उस समय के ‘हिनदू पेटरियट’ ‘रहेलखणड समाचार’ ‘तततवबोधिनी पतरिका’ ‘पायोनियर’ आदि समाचार पतरों ने सवामी जी की विजय को सवीकार किया और पणडित मणडली के असà¤à¤¯ वयवहार की आलोचना की। उस दिन वेद विदया का सूरय देदीपयमान हआ। क ईशवर विशवासी, निरà¤à¥€à¤• बाल बरहमचारी संनयासी ने ूठके किले को ददराशायी किया और नरेश के पकषपात व पणडितममनयों के अहंकार से विदयानगरी काशी कलंकित हई।
सवामी जी इसके बाद à¤à¥€ क मास तक काशी रहे और उनको शासतरारथ के लि ललकारते रहे कि वेदों में मूततिपूजा सिदध कर सकते हो तो बताओ। उसके बाद à¤à¥€ पाच या छः बार सवामी जी काशी आ और शासतरारथ का आहवान किया-- पर वेदों में मूरततिपूजा का विधान होता तà¤à¥€ तो किसी का साहस होता
Nice article... I am new Arya.