गà¥à¤°à¥ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ का महतà¥à¤µ


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Acharya AnoopdevDate
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Vikas KumarUpload Date
16-Jul-2019Download PDF
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गà¥à¤°à¥ का अरà¥à¤¥ - शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में गॠका अरà¥à¤¥ बताया गया है- अंधकार या मूल अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ और रॠका का अरà¥à¤¥ किया गया है- उसका निरोधक। गà¥à¤°à¥ को गà¥à¤°à¥ इसलिठकहा जाता है कि वह अंधकार को हटाकर पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ की ओर ले जाने वाले को 'गà¥à¤°à¥' कहा जाता है।
इस जगत का सबसे बड़ा गà¥à¤°à¥ कौन है? इस पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ का उतà¥à¤¤à¤° हमें योग दरà¥à¤¶à¤¨ में मिलता है।
स à¤à¤· पूरà¥à¤µà¥‡à¤·à¤¾à¤®à¤ªà¤¿ गà¥à¤°à¥à¤ƒ कालेनानवचà¥à¤›à¥‡à¤¦à¤¾à¤¤à¥ || ( योगदरà¥à¤¶à¤¨ : 1-26 )
वह परमेशà¥à¤µà¤° काल दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ नषà¥à¤Ÿ न होने के कारण पूरà¥à¤µ ऋषि-महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का à¤à¥€ गà¥à¤°à¥ है।
अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ - ईशà¥à¤µà¤° गà¥à¤°à¥à¤“ं का à¤à¥€ गà¥à¤°à¥ है । अब दूसरी शंका यह आती है की कà¥à¤¯à¤¾ सबसे बड़े गà¥à¤°à¥ को केवल गà¥à¤°à¥ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ के दिन सà¥à¤®à¤°à¤£ करना चाहिà¤à¥¤ इसका सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ उतà¥à¤¤à¤° है कि नहीं ईशà¥à¤µà¤° को सदैव सà¥à¤®à¤°à¤£ रखना चाहिठऔर सà¥à¤®à¤°à¤£ रखते हà¥à¤ ही सà¤à¥€ करà¥à¤® करने चाहिà¤à¥¤ अगर हर वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• à¤à¤µà¤‚ निराकार ईशà¥à¤µà¤° को मानने लगे तो कोई à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ पापकरà¥à¤® में लिपà¥à¤¤ न होगा। इसलिठधरà¥à¤® शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में ईशà¥à¤µà¤° को अपने हृदय में मानने à¤à¤µà¤‚ उनकी उपासना करने का विधान है।
अब पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ उठता है कि फिर गà¥à¤°à¥ कैसा हो, उसका वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° कैसा हो, उसका आचरण कैसा हो, उसकी वाणी कैसी हो, उसके लिठउपनिषदों मे इस बारे मे सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ करते हà¥à¤ कहा गया है कि –
निवरà¥à¤¤à¤¯à¤¤à¥à¤¯à¤¨à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤‚ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦à¤¤à¤ƒ, सà¥à¤µà¤¯à¤‚ च निषà¥à¤ªà¤¾à¤ªà¤ªà¤¥à¥‡ पà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¤¤à¥‡ ।
गà¥à¤£à¤¾à¤¤à¤¿ ततà¥à¤¤à¥à¤µà¤‚ हितमिचà¥à¤›à¥à¤°à¤‚गिनामà¥, शिवारà¥à¤¥à¤¿à¤¨à¤¾à¤‚ यः स गà¥à¤°à¥ रà¥à¤¨à¤¿à¤—दà¥à¤¯à¤¤à¥‡ ॥
जो दूसरों को पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦ करने से रोकते हैं, सà¥à¤µà¤¯à¤‚ निषà¥à¤ªà¤¾à¤ª रासà¥à¤¤à¥‡ पर चलते हैं, जनहित और दीन दà¥à¤–ीयों के कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ की कामना का ततà¥à¤µ बोध करते-कराते हैं तथा निसà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ à¤à¤¾à¤µ से अपने शिषà¥à¤¯ के जीवन को कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ पथ पर अगà¥à¤°à¤¸à¤° करते हैं उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गà¥à¤°à¥ कहते हैं।
मà¥à¤à¥‡ आचारà¥à¤¯ चाणकà¥à¤¯ जी की à¤à¤• बात याद आती है जिसमें उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा था कि:- पà¥à¤°à¤²à¤¯ और निरà¥à¤®à¤¾à¤£ आचारà¥à¤¯ की गोद में पलते हैं।
इतिहास में à¤à¤¸à¥‡ अनेको उदाहरण à¤à¤°à¥‡ पड़े हैं जिसमें छातà¥à¤°à¥‹à¤‚ à¤à¤µà¤‚ छातà¥à¤°à¤¾à¤“ं ने अपने गà¥à¤°à¥ से जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर महान बनने की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ ली।
जैसे आचारà¥à¤¯ चाणकà¥à¤¯ से शिकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर चंदà¥à¤°à¤—à¥à¤ªà¥à¤¤ मौरà¥à¤¯ मगध राजà¥à¤¯ के राजा बने।
à¤à¤¸à¥‡ अनेकों उदाहरण हमारे साहितà¥à¤¯à¥‹à¤‚ मे हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने गà¥à¤°à¥à¤“ं में शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ रखी और जगत में अपना नाम कर गà¤à¥¤
“उनà¥à¤¨à¥€à¤¸à¤µà¥€à¤‚ शताबà¥à¤¦à¥€ का मधà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤². मथà¥à¤°à¤¾ मे यमà¥à¤¨à¤¾ नदी के किनारे à¤à¤• पà¥à¤°à¤œà¥à¤žà¤¾à¤šà¤•à¥à¤·à¥ गà¥à¤°à¥‚ विरजाननà¥à¤¦ दंडी जी का आशà¥à¤°à¤® था। जब अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ पूरा होने के बाद जब सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ जी गà¥à¤°à¥‚ विरजाननà¥à¤¦ जी को गà¥à¤°à¥‚ दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ के रूप में थोडी से लौंग, जो गà¥à¤°à¥‚ जी को बहà¥à¤¤ पसनà¥à¤¦ थी लेकर गये तो गà¥à¤°à¥‚ जी ने à¤à¤¸à¥€ दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ लेने से मना कर दिया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दयाननà¥à¤¦ से कहा कि गà¥à¤°à¥‚ दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ के रूप में, मैं यह चाहता हूं कि ” इस देश मे चहूं ओर धरà¥à¤® के नाम पर पाखंड और अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ का जाल फैला हà¥à¤† है. à¤à¥‹à¤²à¥€ à¤à¤¾à¤²à¥€ जनता अपनी अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ के अंधकार मे सतà¥à¤¯ के पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ का इंतजार कर रही है, देश मे धरà¥à¤® के नाम पर फैले हà¥à¤ पाखंड, अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ और कà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को समापà¥à¤¤ करो। गà¥à¤°à¥‚ जी के आदेश के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जी ने à¤à¤¾à¤°à¤¤ के सामाजिक, सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• और राजनैतिक उतà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में अपना महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ योगदान दिया।
हमारे जीवन में गà¥à¤°à¥ का महतà¥à¤µ माता-पिता के सामान ही है, और à¤à¤• ही जीवन में हम à¤à¤• अथवा अनेक गà¥à¤°à¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ से मिलते हैं और जà¥à¤žà¤¾à¤¨ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करते हैं। जीवन को सदà¥à¤®à¤¾à¤°à¥à¤— पर ले जाने वाला और à¤à¤• सही दिशा देने में गà¥à¤°à¥ का ही सरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है, इसलिठतो कहा गया है कि:-
गà¥à¤°à¥ कà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤° शिषà¥à¤¯ कà¥à¤®à¥à¤ है, गढि गढि काढैं खोट।
अंतर हाथ सहार दे, बाहर बाहै चोट ।।
अरà¥à¤¥ – गà¥à¤°à¥ कà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤° है और शिषà¥à¤¯ मिटà¥à¤Ÿà¥€ के कचà¥à¤šà¥‡ घड़े के समान है। जिस तरह घड़े को सà¥à¤‚दर बनाने के लिठअंदर हाथ डालकर बाहर से थाप मारता है ठीक उसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° शिषà¥à¤¯ को कठोर अनà¥à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ में रखकर अंतर से पà¥à¤°à¥‡à¤® à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ रखते हà¥à¤ शिषà¥à¤¯ कि बà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤¯à¥‹à¤‚ को दूर करके संसार में समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ बनता है।
आज हमें सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ विरजानंद जी जैसा गà¥à¤°à¥ और सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयानंद जी जैसा शिषà¥à¤¯ चाहिà¤, तà¤à¥€ समाज उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ कर सकता है और इस अंधकारमय जà¥à¤žà¤¾à¤¨, पाखंड और अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ से बाहर निकल सकता है।
लेखक- आचारà¥à¤¯ अनूपदेव
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