यजà¥à¤ž की महिमा
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Acharya AnoopdevDate
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Vikas KumarUpload Date
20-Jul-2019Download PDF
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यजà¥à¤žà¥‹à¤‚ की महिमा का कोई अंत नहीं। 'यजà¥à¤ž' à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जगत को दी गई à¤à¤¸à¥€ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ देन है जिसे सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• फलदायी à¤à¤µà¤‚ समसà¥à¤¤ परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ केनà¥à¤¦à¥à¤° 'इको सिसà¥à¤Ÿà¤®' के ठीक बने रहने का आधार माना जा सकता है और संसार के सà¤à¥€ करà¥à¤®à¥‹ में सबसे शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ बताया गया है।
ऋषियों ने कहा है - 'अयं यजà¥à¤žà¥‹ विशà¥à¤µà¤¸à¥à¤¯ à¤à¥à¤µà¤¨à¤¸à¥à¤¯ नाà¤à¤¿à¤ƒ' ।। (अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦ 9.15.14)
कि यजà¥à¤ž ही संसार की सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का आधार बिंदॠहै।
गीताकार शà¥à¤°à¥€à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤£ ने कहा है -
सहयजà¥à¤žà¤¾à¤ƒ पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ƒ सृषà¥à¤Ÿà¤¾ पà¥à¤°à¥‹à¤µà¤¾à¤š पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿à¤ƒà¥¤
अनेन पà¥à¤°à¤¸à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯à¤§à¥à¤µà¤®à¥‡à¤· वोडसà¥à¤¤à¥à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿ कामधà¥à¤•à¥à¥¥
अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ – परमातà¥à¤®à¤¾ ने कलà¥à¤ª के आदि में यजà¥à¤ž सहित पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤“ं को रचकर, उनसे कहा कि तà¥à¤® लोग इस यजà¥à¤ž करà¥à¤® के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वृदà¥à¤˜à¤¿ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होओ और यजà¥à¤ž तà¥à¤® लोगों को इचà¥à¤›à¤¿à¤¤ à¤à¥‹à¤— पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला हो।
यजà¥à¤ž शबà¥à¤¦ ‘यजà¥à¤ž’ धातॠसे सिदà¥à¤§ होता है जिसका अरà¥à¤¥ है देव-पूजा, संगतिकरण और दान के अरà¥à¤¥ में परिà¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤ होता है। यजà¥à¤ž को अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°, देवयजà¥à¤ž, होम, हवन, à¤à¥€ अधà¥à¤µà¤° à¤à¥€ कहते हैं वैदिक धरà¥à¤® में किसी का जनà¥à¤® होता है तो.... तो वहां यजà¥à¤ž होता है ..... पहली बार केश कटे (मà¥à¤‚डन) तो यजà¥à¤ž हà¥à¤†. .....नामकरण होता है तो यजà¥à¤ž, हवन किया जाता है।
अगर दूसरे शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में कहूठतो..... हर शà¥à¤ करà¥à¤® करने से पहले हवन किया जाता है ..... कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि, à¤à¤• आसà¥à¤¥à¤¾ है कि ...... हवन कर लूà¤à¤—ा.... तो , à¤à¤—वान साथ होंगे.... या फिर, मैं कहीं à¤à¥€ रहूà¤à¤—ा, à¤à¤—वान साथ होंगे. और, इस जीवन की अगà¥à¤¨à¤¿ में सारे पाप जलकर सà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¾ होंगे तथा मेरे सतà¥à¤•à¤°à¥à¤®à¥‹à¤‚ की सà¥à¤—ंधि सब दिशाओं में फैलेगी, हर वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ कि यह कामना होती है ।
गीता में शà¥à¤°à¥€à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤£ जी ने कहा गया है कि -
अनà¥à¤¨à¤¾à¤¦à¥à¤à¤µà¤¨à¥à¤¤à¤¿ à¤à¥‚तानि परà¥à¤œà¤¨à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¨à¥à¤¨à¤¸à¤®à¥à¤à¤µà¤ƒà¥¤
यजà¥à¤žà¤¾à¤¦à¥à¤à¤µà¤¤à¤¿ परà¥à¤œà¤¨à¥à¤¯à¥‹ यजà¥à¤žà¤ƒ करà¥à¤®à¤¸à¤®à¥à¤¦à¥à¤à¤µà¤ƒ ।।
अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤- समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ अनà¥à¤¨ से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होते हैं, अनà¥à¤¨ की उतà¥à¤ªà¤¤à¤¿ वरà¥à¤·à¤¾ से होती है, वरà¥à¤·à¤¾ यजà¥à¤ž से होती है और यजà¥à¤ž शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤Ÿ करà¥à¤®à¥‹ से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होने वाला है।
अगà¥à¤¨à¤¿ में पकाठजाने पर जिस तरह सोने की कलà¥à¤·à¤¤à¤¾ मिटती और आà¤à¤¾ निखरती है, उसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° यजà¥à¤ž दरà¥à¤¶à¤¨ को अपना कर मनà¥à¤·à¥à¤¯ उतà¥à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿà¤¤à¤¾ के शिखर पर चà¥à¤¤à¤¾ और देवतà¥à¤µ की ओर अगà¥à¤°à¤¸à¤° होता है।
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ की पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• वसà¥à¤¤à¥ परिवरà¥à¤¤à¤¨à¤¶à¥€à¤² है। अतः पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के सà¤à¥€ पदारà¥à¤¥ परसà¥à¤ªà¤° संसरà¥à¤— से जहां बनते रहते हैं, वहां वियोग से बिगड़ते à¤à¥€ रहते हैं। मिटà¥à¤Ÿà¥€ के परमाणॠजलादिका संसरà¥à¤— पाकर घट, मठआदि रूपों में बन à¤à¥€ जाते हैं और वही मिटà¥à¤Ÿà¥€ के परमाणॠअनà¥à¤¯ किसी कारण से वियोग को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर घटादि के नाश का à¤à¥€ कारण बन जाते हैं।
इसीलिठसंयोग अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का परसà¥à¤ªà¤° संगतिकरण ही संसार की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ का कारण है और वियोग विनाश का हेतà¥à¥¤ यदि हाइडà¥à¤°à¥‹à¤œà¤¨ और ऑकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ का संयोग न हो तो जल नहीं बन सकता। अतः मनà¥à¤·à¥à¤¯ का करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है कि संसार की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ को बनाठरखने के लिठपदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के संगतिकरण रूपी पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ में सदा पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨à¤¶à¥€à¤² रहे और संगतिकरण का नाम ही 'यजà¥à¤ž' है।
महरà¥à¤·à¤¿ दयानंद ने यजà¥à¤ž की महतà¥à¤¤à¤¾ का वरà¥à¤£à¤¨ करते हà¥à¤ à¤à¤• बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¤¾ उदाहरण दिया है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लिखा है- घर में किलो à¤à¤° जीरा पड़ा हà¥à¤† है। किनà¥à¤¤à¥ उसकी सà¥à¤—ंध किसी को à¤à¥€ नहीं आ रही है, परनà¥à¤¤à¥ घर की गृहिणी उसमें से दो गà¥à¤°à¤¾à¤® जीरा लेकर अगà¥à¤¨à¤¿ में खूब तपे थोड़े घृत में डालकर जब दाल में बघार (छौंक) लगा देती है तो न केवल वही à¤à¤• घर पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥à¤¤ आसपास के सà¤à¥€ घर उसकी सà¥à¤—ंध से सà¥à¤—ंधिमय हो जाते हैं।
इस यà¥à¤— में जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ कोयला, जल, पेटà¥à¤°à¥‹à¤², à¤à¤Ÿà¤® दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ की जा रही है, उसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल में यजà¥à¤ž कà¥à¤‚डों और वेदियों में अनेक रहसà¥à¤¯à¤®à¤¯ यंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ à¤à¤µà¤‚ विधानों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ की जाती थी। इस समय विविध मशीन अनेक कारà¥à¤¯ करती है, उस समय मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ और यजà¥à¤žà¥‹à¤‚ के संयोग से à¤à¤¸à¥€ शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का आविरà¥à¤à¤¾à¤µ होता है। आधà¥à¤¨à¤¿à¤• विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ मानव और परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ के बीच बिगड़ते संबंध का हल ढूंà¥à¤¨à¥‡ में उलà¤à¤¤à¤¾ जा रहा है।
यजà¥à¤ž के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अनेक रोगों का इलाज – बमà¥à¤¬à¤ˆ में à¤à¤• अमेरिकन डा० वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• ने यह बताया है कि लोग कई शताबà¥à¤¦à¥€ से इस बात कि खोज में लगे थे कि सूघने कि गैस से फेफड़े की टी० बी० को अचà¥à¤›à¤¾ किया जावे, अब हम लोग उस खोज में सफल हो गये हैं और अमेरिका में इसका परिणाम सब चिकितà¥à¤¸à¤¾à¤“ं कि अपेकà¥à¤·à¤¾ असाधारण तोर पर अचà¥à¤›à¤¾ रहा है यजà¥à¤ž कि गैस सूघने से धीरे-२ रोगी बिलकà¥à¤² ठीक हो जाता है इसका अरà¥à¤¥ यह है कि आज अमीरका à¤à¥€ इस यजà¥à¤ž कि साइंस को सब चिकितà¥à¤¸à¤•à¥‹à¤‚ से बेहतर मानने लगा है पर अà¤à¥€ उसे यह पता नही है कि यजà¥à¤ž के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ और किन-किन ओषधियो का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कर सकते है और किन–किन रोगों का इलाज कर सकते हैं, इसलिये हर इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ को यजà¥à¤ž करना चाहिठजिससे वे सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ और निरोग रहें।
मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ के शà¥à¤²à¥‹à¤• दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ किया है कि -
अगà¥à¤¨à¥Œ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¹à¥à¤¤à¤¿à¤ƒ समà¥à¤¯à¤—ादितà¥à¤¯à¤®à¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ते ।
आदितà¥à¤¯à¤¾à¤œà¥à¤œà¥à¤¯à¤¤à¥‡ वृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤µà¤°à¥à¤·à¥à¤Ÿà¥‡à¤°à¤¨à¥à¤¨à¤‚ ततः पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ƒà¥¥
अगà¥à¤¨à¤¿ में डाली हà¥à¤ˆ आहà¥à¤¤à¤¿ सूरà¥à¤¯ की किरणों में उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होती है । उसके संसरà¥à¤— में अनà¥à¤¤à¤°à¤¿à¤•à¥à¤· में इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का वातावरण निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ हो जाता है, जिससे मेघों का संगà¥à¤°à¤¹ होने लगता है, वे समय पाकर पृथà¥à¤µà¥€ पर बरसते हैं, उस पर वृषà¥à¤Ÿà¤¿ से यहाठऔषधि, वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿, लता, फल, फूल आदि विविध खादà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥ न केवल मानव के, अपितॠपà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° के लिठउतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो जाते हैं ।औषधि, वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿, लता, फूल, फल, आदि खादà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में विविध पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की जीवन शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ रहती हैं, जो फलादि का उपà¤à¥‹à¤— करने से पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को जीवन पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करती हैं । वे जीवन शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ इनमें अगà¥à¤¨à¤¿, वायà¥, सूरà¥à¤¯, चनà¥à¤¦à¥à¤°, पृथà¥à¤µà¥€, जल आदि के पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ से ही उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो पाती हैं ।
आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ में आता है कि –
पà¥à¤°à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤à¥à¤¯à¤¾ यथा चेषà¥à¤Ÿà¤¯à¤¾ राजयकà¥à¤·à¥à¤®à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤œà¤¿à¤¤à¤¾ ।
ता वेद विहिता मिषà¥à¤Ÿà¤®à¤¾à¤°à¥‹à¤—à¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¯à¥‡à¤¤ ।।
जिस यजà¥à¤ž के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— से पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल में राजयकà¥à¤·à¥à¤®à¤¾ रोग नषà¥à¤Ÿ किया जाता था, आरोगà¥à¤¯à¤¤à¤¾ चाहने वाले मनà¥à¤·à¥à¤¯ को वेद विहित यजà¥à¤ž का अनà¥à¤·à¥à¤ ान करना चाहिà¤à¥¤
à¤à¤• नज़र कà¥à¤› रोगों और उनके नाश के लिठपà¥à¤°à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ होने वाली हवन सामगà¥à¤°à¥€ पर -
1. कैंसर नाशक हवन:-
गà¥à¤²à¤° के फूल, अशोक की छाल, अरà¥à¤œà¤¨ की छाल, लोध, माजूफल, दारà¥à¤¹à¤²à¥à¤¦à¥€, हलà¥à¤¦à¥€, खोपारा, तिल, जो , चिकनी सà¥à¤ªà¤¾à¤°à¥€, शतावर , काकजंघा, मोचरस, खस, मà¥à¤¨à¥à¤œà¥€à¤·à¥à¤ , अनारदाना, सफेद चनà¥à¤¦à¤¨, लाल चनà¥à¤¦à¤¨, ,गंधा विरोजा, नारवी ,जामà¥à¤¨ के पतà¥à¤¤à¥‡, धाय के पतà¥à¤¤à¥‡, सब को सामान मातà¥à¤°à¤¾ में लेकर चूरà¥à¤£ करें तथा इस में दस गà¥à¤¨à¤¾ शकà¥à¤•à¤° व à¤à¤• गà¥à¤¨à¤¾ केसर से हवन करें।
2. संधि गत जà¥à¤µà¤° ( जोड़ों का दरà¥à¤¦ ) :-
संà¤à¤¾à¤²à¥‚ ( निरà¥à¤—à¥à¤¨à¥à¤¡à¥€ ) के पतà¥à¤¤à¥‡ , गà¥à¤—à¥à¤—ल, सफ़ेद सरसों, नीम के पतà¥à¤¤à¥‡, गà¥à¤—à¥à¤—ल, सफ़ेद सरसों, नीम के पतà¥à¤¤à¥‡, रल आदि का संà¤à¤¾à¤— लेकर चूरन करें , घी मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ धà¥à¤¨à¥€ दें, हवन करें।
3. निमोनियां नाशक हवन :-
पोहकर मूल, वाच, लोà¤à¤¾à¤¨, गà¥à¤—à¥à¤—ल, अधà¥à¤¸à¤¾, सब को संà¤à¤¾à¤— ले चूरन कर घी सहित हवं करें व धà¥à¤¨à¥€ दें।
4. जà¥à¤•à¤¾à¤® नाशक :-
खà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤¾à¤¨à¥€ अजवायन, जटामासी , पशà¥à¤®à¥€à¤¨à¤¾ कागज, लाला बà¥à¤°à¤¾ ,सब को संà¤à¤¾à¤— ले घी सचूरà¥à¤£ कर हित हवं करें व धà¥à¤¨à¥€ दें।
5. पीनस ( बिगाड़ा हà¥à¤† जà¥à¤•à¤¾à¤® ) :-
बरगद के पतà¥à¤¤à¥‡, तà¥à¤²à¤¸à¥€ के पतà¥à¤¤à¥‡, नीम के पतà¥à¤¤à¥‡, वा|यà¥à¤µà¤¡à¤¿à¤‚ग,सहजने की छाल , सब को समà¤à¤¾à¤— ले चूरन कर इस में धूप का चूरा मिलाकर हवन करें व धूनी दें।
6. शà¥à¤µà¤¾à¤¸ – कास नाशक :-
बरगद के पतà¥à¤¤à¥‡, तà¥à¤²à¤¸à¥€ के पतà¥à¤¤à¥‡, वच, पोहकर मूल, अडूसा – पतà¥à¤°, सब का संà¤à¤¾à¤— करà¥à¤£ लेकर घी सहित हवं कर धà¥à¤¨à¥€ दें ।
यह बडा दà¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ कि आज लोगों के पास तीरà¥à¤¥ यातà¥à¤°à¤¾à¤“ं के लिये, सैर सपाटे के लिये, घर वा शरीर सजाने के लिये समय है, धन है परनà¥à¤¤à¥ यजà¥à¤ž जैसे शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ तम व अतिआवशà¥à¤¯à¤• करà¥à¤® करने के लिये ना ही हमारे पास समय है और न ही धन है।
लेखक – आचारà¥à¤¯ अनूपदेव
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