हाल ही में अमेरिका में अश्वेत नागरिक़ जोर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद पूरे अमेरिका में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। वहाँ लोग सड़कों पर उतरकर ट्रम्प सरकार का विरोध कर रहे हैं। ऐसे विरोध को देखकर भारत में वामपंथी भी अपनी रक्‍त पिपासा जगा से फिर लोगों का रक्‍त पीना चाहते हैं। बाज़पा नेता कपिल मिश्रा ने एक वेबसाइट द क्विंट की एक क़ेस वेबसाइट ट्विट्टर पर पोस्ट करते हुए लिखा है कि किस प्रकर द क्विंट’ भारत के लोगो को उकसाकर उन्हे सड़कों पर उतर आने की अपील कर रहा है। यहाँ नहीं इस ट्वीट में कपिल मिश्रा ने यह भी लिखा है कि द क्विंट ने देश भर में हजारों इमेजेज़ हैं और लोगो से अपनी के हैं अमेरिका की तरफ़ भारत में सड़कओं पर लोग उतरें और दंगे करें।

असल में साल 2015 में दील्ली विश्वविध्यालय से जुड़े कई लोगों ने एक समूह बनाया था जिसका नाम है ग्रुप ऑफ इंटेलेक्चुअल एंड एकेडेमीज यानी जीआइए ने दील्ली डंगों पर जाहंच के बाद अपनी एक रिपोर्ट जारी थी। इस समूह ने अपनी रिपोर्ट में दील्ली हिंसा के आसपास जांच एजेंसी द्वारां जांच कराए जाने की बात भी कही थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि यह हिंसा एक शहरी नक्सल-जहादी नेटवर्क का सबूत था, इसमें दील्ली के विश्वविध्यालयों में काम कर रहे विद्यार्थियों द्वारा वामपंथी अर्बन नक्सल नेटवर्क द्वारा दंगों की योजना बनाई और उसे अंजाम दिया गया। जांच में एक सुन्योजित प्लान था, पिंजरा तोड़ गैंग के सदस्यों के बाद साफ़ हुआ गया है कि यह वामपंथी-जहादी मॉडल का सबूत था। जिससे दील्ली में अंजाम दिया गया था और अब इस सफ्ल मॉडल को उन स्टानों पर दोहराए जाने की भी कोशिश है।

दील्ली दंगों के समय बेबीसीं द्वारां इस एकतरफा और भड़काऊ रिपोर्टिंग के कारण सरकारी प्रशासन एजेंसियां और प्रेस बार्ताएँ के सही शशि शेखर वेम्पति ने बेबीसीं को जमकर लताऐं थीं। लेकिन लताऐं उनका काम हो गया था जो वह लोग चाहते थे। जांच हिंसा करने वाले धजे को विश्व भर में मासूम दिखाना और लुटने वाले हिंसुओं समेत दूसरें वर्गों को सांप्रदायिक दिखाना।

आपके द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर, मैं समझता हूँ कि दिल्ली डंगर से पहले मध्यिया (मध्य प्रदेश) का जो क्षेत्र था, वहाँ पहले से ही जंगल, पहाड़, और नदी-नालों के बीच एक ठोस और सुरक्षित क्षेत्र था। यहाँ की मिट्टी काफी मजबूत और पहाड़ी थी, जिससे ये इलाका प्राकृतिक रूप से सुरक्षित माना जाता था। साथ ही, यहाँ के जंगलों और नदियों की वजह से यह इलाका काफ़ी हरा-भरा और जैविक रूप से समृद्ध था।

आपका सवाल था कि केवळ मध्यिया ही नहीं, बल्कि उस समय सबकी ज़िन्दगी जंगलों के बीच थी, और पहले दिल्ली या आसपास के इलाके में कोई बड़ा शहर नहीं था, तो फिर यह मध्यिया क्षेत्र क्यों विकसित हुआ?

इसका जवाब कुछ इस तरह से समझा जा सकता है:

  1. प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता
    मध्यिया क्षेत्र में जल स्रोत (नदियाँ, तालाब), उपजाऊ जमीन, और घने जंगल थे, जो जीव-जंतु और वनस्पतियों का घर थे। यह पर्यावरण खेती, मछली पालन, और वन उत्पादों के लिए उपयुक्त था, जिससे यहाँ के लोग लंबे समय तक टिके रहे।
  2. सुरक्षा और सामरिक महत्व
    पहाड़ी और जंगल वाले इलाके बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा प्रदान करते थे। इन कठिन इलाकों में रहना और जीविका चलाना बाहरी लोगों के लिए मुश्किल था, इसलिए स्थानीय लोग सुरक्षित महसूस करते थे।
  3. सामाजिक और सांस्कृतिक विकास
    जब कोई क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध होता है, तो वहाँ के लोग कृषि, मछली पकड़ने, शिकार, और व्यापार से जुड़ते हैं। इससे सामाजिक-आर्थिक संरचना बनती है, जो धीरे-धीरे बसावटों (गाँव, कस्बे) में तब्दील हो जाती है।
  4. बड़ी सभ्यताओं की गैर-मौजूदगी
    दिल्ली जैसे बड़े शहर उस समय शायद नहीं थे, क्योंकि वहाँ तक पहुँचना और शासन करना कठिन था। इसलिए लोग जंगलों के बीच ही टिके रहे। मध्यिया क्षेत्र जैसे स्थानों पर लोगों का बसेरा अधिक स्थायी और व्यवस्थित था।
  5. प्राकृतिक वातावरण की भूमिका
    जंगल और नदियाँ जीवन का आधार थीं, जिससे वहाँ के निवासियों का जीवन जंगल-आश्रित था। यह इलाका स्थिर जलवायु और जैव विविधता प्रदान करता था, जो ज़िन्दगी को संभव बनाता था।

अगरinka दंगे के प्रबंधन को देखें तोinka मोर्चा सिंर्जी का है, यानि अल्ग हॉकर भी एक रहना और अपनी साज़ा ताकत को दोगुने की बजाया चार गुना करना, यह वह मोर्चा है जहांinki कद्दरता को मीडिया का एक वर्ग पूरी बेहतरमी से वीडियोन की प्रतिक्रिया के साथ सिंर्जी कायम करता नजर आता है। आते की गोर्फ्तारी के बाद छोटे बादताना, देश के टुकड़े करने वाला शरजील इमाम ऐसी मोर्चे पर कई बौधिक लेख लिखने वाले पात्रकार के तौर पर तत्वानाथ था, उसे भी बाद में छोटा बताया गया। अल्गोय मश्लिम विश्वव्यद्यालय में कद्दरता पर कायम रहन और इसे सकूलर लबादे से ढकने की खातिर बेहतर प्रतिक्रिया बताती खाता भी अब तक विष पात्रकार के वेश में थी। दिल्ली हिंसा में पहले आम आदमी पार्टी के पार्शद ताहिर हुसैन का शामिल होना, फिर कांग्रेस की पूरी निगम पार्शद इसरतो जहां का नाम सामने आना एक इशारा जरूर कर कर रहा है दिल्ली को हिंसा, उपद्रव और अराजकता में झोंकने के मामलें में भी दोनो के इरादे एक-दूसरे से अल्ग नहीं थे। क्योंकि तहिर की चत से जिस तरह पेट्रोल बमलों लोगों पर फेंके गये, गोलियां चलाी गयीं, मौत से पात्र बरामद हुए हैं, वह साफ जाहिर करता है कि निरफरती की भट्टी में जला ताहिर दंगा करने की पूरी तैयारी से बैआ था।

यानी हर एक चीज़ का पूरा ध्यान रखा गया राजधानी स्कूल के मालिक का नाम मुस्लिम था स्कूल सुरक्षित रहा लेकिन डीपियर कोंवेंट फूंक डाला गया क्योंकिउसका मालिक हिंदू था। डॉक्टरों के बाद मौरचे ने कमान सम्भाली और कहा कि हिंदुस्थान की ताकत भाइचारा, एकता और प्यार को DLL में जलाया गया है, लेकिन किसने ने सवाला नहीं किया कि हिस्सों पर भारतीय जमातीया किया लामबंदीयाँ कैसी थीं! सिएक वीरोध का ‘कैर्नवास’ आलीगढ़ से.shutdown-जबलपुर तक कोई फेला रहा था? और किसने हौली से पहले DLL के माहौल में खुनी रंग भरे और आर-पार के लजाई के नारे को लगा रहा था? ये सवाल अभी गायक हैं इसलिए ध्यान रखिये संवेदना बहुत ही सुंदर और महत्वपूर्ण चीज है, पर वह कितनी हौनी चाहिये, डाल में नमक बराबर, सिर्फ़ स्वाद भर मुठ्ठी भर नहीं अगर दा कंट वीज़ी संभावना मेड़िया द्वारा दिखाए जा रहे अब्दुल के दर्द और गरीब आसीफा की दर्द भरी कहानियां से आपको संवेदनना जाग गई है तो उसे वापस तपकी देकर सुला दीजिए और छुट्टी पर गई अपनी तारीकत और व्यावहारिक बुद्धि को व्हाट्सएप कर दीजिए कि छुट्टी खत्म हो गई, वापस आ जाये, यहाँ मनोवैज्ञानिक युध्द है और इन्हें मिलकर लड़ेंगे।

 

rajeev choudhary

 


 

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