पृथवी की आकरषण शकति


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Manmohan Kumar AryaDate
29-Apr-2015Language
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गरूतवाकरषण के नियम वा सिदधानत के बारे में कया वैदिक साहितय में कछ उललेख मिलता है, यह परशन वैदिक धरम व संसकृति के अन��?यायियों व प��?रशंसकों को उद��?वेलित करता है। महर��?षि दयानन��?द ने अपने प��?रसिद��?ध ग��?रन��?थ ऋग��?वेदादिà¤à¤¾à¤·ï¿½ï¿½?यà¤à¥‚मिका में आकर��?षणान��?कर��?षण अध��?याय में वेदों में विद��?यमान मन��?त��?रों को प��?रस��?त��?त कर इस विषय में प��?रकाश डाला है। इससे सम��?बन��?धित अनेक प��?रमाण विस��?तृत वैदिक साहित��?य में उपलब��?ध होते हैं। सà¤à¥€ विद��?वानों व स��?वाध��?याय प��?रेमियों की पह��?ंच सà¤à¥€ ग��?रन��?थों तथा उसमें वर��?णित प��?रत��?येक बात तक नहीं होती। इसलि��? कई बार अनेक प��?रम��?ख प��?रासंगिक उल��?लेख छूट जाते हैं। हम आज के लेख में आर��?य जगत के उच��?च कोटि के विद��?वान डा. कपिलदेव द��?विवेदी जी द��?वारा इस विषय में अपनी प��?रसिद��?ध प��?स��?तक वैदिक विज��?ञान में प��?रस��?त��?त सन��?दर��?à¤à¥‹à¤‚ को उनके ही विवेचन सहित साà¤à¤¾à¤° प��?रस��?त��?त कर रहे हैं जिससे इसका लाठअन��?यों को हो सके और वह इस ग��?रन��?थ को प��?राप��?त कर लाठउठा सकें। विद��?वान लेखक की प��?स��?तक में ग��?र��?त��?वाकर��?षण सिद��?धान��?त अध��?याय में लिखित उनके विचार आगामी पंक��?तियों में प��?रस��?त��?त हैं।
आधारशक��?तिः बृहत��? जाबाल उपनिषद��? में ग��?र��?त��?वाकर��?षण सिद��?धान��?त को ‘आधारशक��?ति’ नाम से कहा गया है। इसके दो à¤à¤¾à¤— कि��? ग��? हैं - 1. ऊर��?ध��?वशक��?ति या ऊर��?ध��?वगः ऊपर की ओर खिंचकर जाना, जैसे - अग��?नि का ऊपर की ओर जाना: 2. अधःशक��?ति या निम��?नगः नीचे की ओर खिंचकर जाना, जैसे - जल का नीचे की ओर जाना या पत��?थर आदि का नीचे आना। उपनिषद��? का कथन है कि यह सारा संसार अग��?नि और सोम का समन��?वय है। अग��?नि की ऊर��?ध��?वगति है और सोम की अधोःशक��?ति। इन दोनों शक��?तियों के आकर��?षण से ही यह संसार रूका ह��?आ है।
(क) अग��?नीषोमात��?मकं जगत��?। बृ.जा.उप. 2.4
(ख) आधारशक��?त��?यावधृतः, कालाग��?निरयम��? ऊर��?ध��?वगः। तथैव निम��?नगः सोमः। बृ.जा.उप. 2.8
महर��?षि पतंजलि (150 ईसा पूर��?व) ने व��?याकरण महाà¤à¤¾à¤·ï¿½ï¿½?य में इस ग��?र��?त��?वाकर��?षण सिद��?धान��?त का उल��?लेख करते ह��?��? पृथिवी की आकर��?षण शक��?ति का वर��?णन किया है कि - यदि मिट��?टी का ढेला ऊपर फेंका जाता है तो वह बाह��?वेग को पूरा करने पर, न टेढ़ा जाता है और न ऊपर चढ़ता है। वह पृथिवी का विकार है, इसलि��? पृथिवी पर ही आ जाता है।
लोष��?ठक��?षिप��?तो बाह��?वेगं गत��?वा नैव तिर��?यग��? गच��?छति,
नोधरवमारोहति। पृथिवीविकारः पृथिवीमेव गच��?छति, आन��?तर��?यतः। महाà¤à¤¾à¤·ï¿½ï¿½?य (स��?थानेऽन��?तरतम, 1.1.49 सूत��?र पर)
आकृष��?टिशक��?तिः à¤à¤¾à¤¸ï¿½ï¿½?कराचार��?य द��?वितीय (1114 ईस��?वी) ने अपने ग��?रन��?थ सिद��?धान��?तशिरोमणि में ग��?र��?त��?वाकर��?षण के लि��? आकृष��?टिशक��?ति शब��?द का प��?रयोग किया है। à¤à¤¾à¤¸ï¿½ï¿½?कराचार��?य का कथन है कि पृथिवी में आकर��?षण शक��?ति है, अतः वह ऊपर की à¤à¤¾à¤°à¥€ वस��?त��? को अपनी ओर खींच लेती है। वह वस��?त��? पृथिवी पर गिरती ह��?ई सी लगती है। पृथिवी स��?वयं सूर��?य आदि के आकर��?षण से र��?की ह��?ई है, अतः वह निराधार आकाश में स��?थित है तथा अपने स��?थान से नहीं हटती ओर न गिरती है। वह अपनी कीली पर घूमती है।
आकृष��?टिशक��?तिश��?च मही तया यत��? खस��?थं ग��?र��?ं स��?वाà¤à¤¿à¤®ï¿½ï¿½?खं स��?वशक��?त��?या।
आकृष��?यते तत��? पततीव à¤à¤¾à¤¤à¤¿ स��?मे समन��?तात��? क��?व पतत��?वियं खे।। सिद��?धान��?त. à¤ï¿½ï¿½?वन. 16
वराहमिहिर (476 ई.) ने अपने ग��?रन��?थ पंचसिद��?धान��?तिका और श��?रीपति (1039 ई.) ने अपने ग��?रन��?थ सिद��?धान��?तशेखर में यही à¤à¤¾à¤µ प��?रकट किया है कि तारासमूहरूपी पंजर में गोल पृथिवी इसी प��?रकार रूकी ह��?ई है, जैसे बड़े च��?म��?बकों के बीच में लोहा।
पंचमहाà¤à¥‚तमयस��?तारा - गणपंजरे महीगोलः।
खेऽयस��?कान��?तान��?तःस��?थो लोह इवावस��?थितो वृत��?तः।। पच. पृ. 31
आचार��?य श��?रीपति का कहना है कि पृथिवी की अन��?तरिक��?ष में स��?थिति उसी प��?रकार स��?वाà¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• है, जैसे सूर��?य में गर��?मी, चन��?द��?र में शीतलता और वाय��? में गतिशीलता। दो बड़े च��?म��?बकों के बीच में जैसे लोहे का गोला स��?थिर रहता है, उसी प��?रकार पृथिवी à¤à¥€ अपनी ध��?री पर रूकी ह��?ई है।
(क) उष��?णत��?वमर��?कशिखि शिशिरत��?वमिन��?दौ,
निर��?हेत��?रेवमवनेः स��?थितिरन��?तरिक��?षे।। सिद��?धान��?त. 15.21
(ख) नà¤à¤¸ï¿½ï¿½?ययस��?कान��?तमहामणीनां मध��?ये स��?थितो लोहग��?णो यथास��?ते।
आधारशून��?योऽपि तथैव सर��?वाधारो धरित��?र��?या ध��?र��?वमेव गोलः।। सिद��?धान��?त. 15.22
पिप��?पलाद ऋषि (लगाà¤à¤— 4000 वर��?ष ई. पूर��?व) ने प��?रश��?न-उपनिषद��? में पृथिवी में आकर��?षण शक��?ति का उल��?लेख किया है। अत��?व अपान वाय��? के द��?वारा मल-मूत��?र शरीर से नीचे की ओर जाता है। आचार��?य शंकर (700-800 ईसा पूर��?व) ने प��?रश��?नोपनिषद��? के à¤à¤¾à¤·ï¿½ï¿½?य में कहा है कि पृथिवी की आकर��?षण शक��?ति के द��?वारा ही अपान वाय��? मन��?ष��?य को रोके ह��?��? है, अन��?यथा वह आकाश में उड़ जाता।
(क) पायूपस��?थे - अपानम��?। प��?रश��?न. उप. 3.5
(ख) पृथिव��?यां या देवता सैषा प��?र��?षस��?यापानमवष��?टà¤ï¿½ï¿½?य.। प��?रश��?न. 3.8
(ग) तथा पृथिव��?याम��? अà¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¨à¥€ या देवता .. सैषा प��?र��?षस��?य अपान-
वृत��?तिम��? आकृष��?य .. अपकर��?षणेन अन��?ग��?रहं क��?र��?वती वर��?तते। अन��?यथा
हि शरीरं ग��?र��?त��?वात��? पतेत��? सावकाशे वा उद��?गच��?छेत��?।
शांकर à¤à¤¾à¤·ï¿½ï¿½?य, प��?रश��?न. 3.8
इससे स��?पष��?ट है कि पृथिवी के ग��?र��?त��?वाकर��?षण का सिद��?धान��?त à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ को हजारों वर��?ष पूर��?व से ज��?ञात था।
यह उद��?धरण उपर��?य��?क��?त लेखक की प��?स��?तक के ज��?वार-à¤à¤¾à¤Ÿà¤¾ अध��?याय का है। इसमें à¤à¥€ आकर��?षण शक��?ति का विधान, उल��?लेख व संकेत है। ऋग��?वेद में उल��?लेख है कि चन��?द��?रमा के आकर��?षण के कारण सम��?द��?र में ज��?वार आता है। सम��?द��?री जल के चढ़ाव को ज��?वार (Tide) और उतार को à¤à¤¾à¤Ÿà¤¾ (Ebb) कहते हैं। ज��?वार-à¤à¤¾à¤Ÿà¤¾ का मूल कारण ग��?र��?त��?वाकर��?षण है। संसार का प��?रत��?येक पदार��?थ दूसरे पदार��?थ को अपनी ओर आकृष��?ट करता है। प��?रत��?येक परमाण��? (atom) में आकर��?षण शक��?ति है, अतः वह दूसरे परमाण��? को अपनी ओर आकृष��?ट करता है। इसी नियम के अन��?सार पृथिवी, सूर��?य और चन��?द��?रमा तीनों ��?क दूसरे को अपनी ओर आकर��?षित करते हैं। इस सिद��?धान��?त का प��?रतिपादन ऋग��?वेद में किया गया है संसार में प��?रत��?येक पदार��?थ सदा ��?क-दूसरे को आकृष��?ट करता रहता है।
��?को अन��?यत��? - चकृषे विश��?वम��? आन��?ष��?क��?। ऋग��?वेद 1.52.14
इसी नियम के अन��?सार सूर��?य और चन��?द��?रमा दोनों पृथिवी को अपनी-अपनी ओर आकर��?षित करते हैं। जल तरल है, अतः वह अधिक प��?रà¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ होता है। अत��?व विशेषर��?प से पूर��?णिमा के दिन सम��?द��?र का जल अधिक ऊपर की ओर चढ़ता है। इसे ज��?वार कहते हैं। क��?छ समय बाद वह उतरने लगता है। उसे à¤à¤¾à¤Ÿà¤¾ कहते हैं। यह आकर��?षण शक��?ति के कारण होता है।
उपर��?य��?क��?त उल��?लेखों व उदाहरणों से यह सिद��?ध है कि सृष��?टि के आरम��?ठसे ही हमारे पूर��?वज ऋषियों को पृथिवी व अन��?य ग��?रहों में आकर��?षण शक��?ति के ग��?ण-धर��?म का ज��?ञान रहा है। इसके विपरीत हम विगत दो हजार वर��?षों की कालावधि में अस��?तित��?व में आयीं विà¤à¤¿à¤¨ï¿½ï¿½?न मत व धर��?म की प��?स��?तकों में पृथिवी के वर��?णन को विज��?ञान विरूद��?ध पाते हैं। आकर��?षण शक��?ति विषयक सत��?य उल��?लेखों का उनमें होना तो सम��?à¤à¤µ ही नहीं है। इसका कारण यह है विगत 150 से 5000 वर��?षों में विश��?व में वेद विज��?ञान विल��?प��?त हो गया था और संसार में अज��?ञान रूपी अन��?धकार छाया ह��?आ था। इस अज��?ञान व अन��?धकार को दूर करने का श��?रेय उन��?नीसवीं शताब��?दी के वेदों के पारदर��?शी विद��?वान महर��?षि दयानन��?द सरस��?वती को है जिन��?होंने देश à¤à¤° के अनेक विद��?वानों की संगति कर व यत��?र तत��?र उपलब��?ध वैदिक व इतर साहित��?य का अध��?ययन कर सत��?य ज��?ञान व उपासना को प��?राप��?त किया व उस सम��?पूर��?ण ज��?ञान का मन��?ष��?य व प��?राणीमात��?र के हित के लि��? उसका देश देशान��?तर में प��?रचार किया। सत��?य ज��?ञान व मत के प��?रचार के कारण सà¤à¥€ मतों के अधिकांश धर��?मान��?ध अन��?यायी उनके शत��?र��? बन गये थे जिनके षडयन��?त��?र की परिणति जोधप��?र में 29 सितम��?बर, 1883 की रात��?रि को उनको विषपान द��?वारा उनकी हत��?या के प��?रयास से ह��?ई और इसी कारण अजमेर में मंगलवार 30 अक��?तूबर, 1883 को उनकी मृत��?य��? ह��?ई। लेख को विराम देते ह��?��? हम निवेदन करना चाहते हैं वेद ��?वं वैदिक साहित��?य सारे संसार के सà¤à¥€ मानवों की सम��?पत��?ति है। इसमें ज��?ञान व विज��?ञान à¤à¤°à¤¾ ह��?आ है जिससे सबका कल��?याण व उन��?नति सम��?à¤à¤µ है। देश विदेश में बह��?तों ने इसका उपयोग किया à¤à¥€ है और अन��?य सà¤à¥€ को करके लाठउठाना चाहिये। मन��?ष��?यों के कल��?याण का अन��?य कोई पथ à
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