गरूतवाकरषण के नियम वा सिदधानत के बारे में कया वैदिक साहितय में कछ उललेख मिलता है, यह परशन वैदिक धरम व संसकृति के अन��?यायियों व प��?रशंसकों को उद��?वेलित करता है। महर��?षि दयानन��?द ने अपने प��?रसिद��?ध ग��?रन��?थ ऋग��?वेदादिभाष��?यभूमिका में आकर��?षणान��?कर��?षण अध��?याय में वेदों में विद��?यमान मन��?त��?रों को प��?रस��?त��?त कर इस विषय में प��?रकाश डाला है। इससे सम��?बन��?धित अनेक प��?रमाण विस��?तृत वैदिक साहित��?य में उपलब��?ध होते हैं। सभी विद��?वानों व स��?वाध��?याय प��?रेमियों की पह��?ंच सभी ग��?रन��?थों तथा उसमें वर��?णित प��?रत��?येक बात तक नहीं होती। इसलि��? कई बार अनेक प��?रम��?ख प��?रासंगिक उल��?लेख छूट जाते हैं। हम आज के लेख में आर��?य जगत के उच��?च कोटि के विद��?वान डा. कपिलदेव द��?विवेदी जी द��?वारा इस विषय में अपनी प��?रसिद��?ध प��?स��?तक वैदिक विज��?ञान में प��?रस��?त��?त सन��?दर��?भों को उनके ही विवेचन सहित साभार प��?रस��?त��?त कर रहे हैं जिससे इसका लाभ अन��?यों को हो सके और वह इस ग��?रन��?थ को प��?राप��?त कर लाभ उठा सकें। विद��?वान लेखक की प��?स��?तक में ग��?र��?त��?वाकर��?षण सिद��?धान��?त अध��?याय में लिखित उनके विचार आगामी पंक��?तियों में प��?रस��?त��?त हैं।

आधारशक��?तिः बृहत��? जाबाल उपनिषद��? में ग��?र��?त��?वाकर��?षण सिद��?धान��?त को आधारशक��?ति नाम से कहा गया है। इसके दो भाग कि��? ग��? हैं - 1. ऊर��?ध��?वशक��?ति या ऊर��?ध��?वगः ऊपर की ओर खिंचकर जाना, जैसे - अग��?नि का ऊपर की ओर जाना: 2. अधःशक��?ति या निम��?नगः नीचे की ओर खिंचकर जाना, जैसे - जल का नीचे की ओर जाना या पत��?थर आदि का नीचे आना। उपनिषद��? का कथन है कि यह सारा संसार अग��?नि और सोम का समन��?वय है। अग��?नि की ऊर��?ध��?वगति है और सोम की अधोःशक��?ति। इन दोनों शक��?तियों के आकर��?षण से ही यह संसार रूका ह��?आ है।

 

(कअग��?नीषोमात��?मकं जगत��?।            बृ.जा.उप. 2.4 

                                               

(खआधारशक��?त��?यावधृतः, कालाग��?निरयम��? ऊर��?ध��?वगः। तथैव निम��?नगः सोमः।          बृ.जा.उप. 2.8

महर��?षि पतंजलि (150 ईसा पूर��?व) ने व��?याकरण महाभाष��?य में इस ग��?र��?त��?वाकर��?षण सिद��?धान��?त का उल��?लेख करते ह��?��? पृथिवी की आकर��?षण शक��?ति का वर��?णन किया है कि - यदि मिट��?टी का ढेला ऊपर फेंका जाता है तो वह बाह��?वेग को पूरा करने पर, न टेढ़ा जाता है और न ऊपर चढ़ता है। वह पृथिवी का विकार है, इसलि��? पृथिवी पर ही आ जाता है।

लोष��?ठ क��?षिप��?तो बाह��?वेगं गत��?वा नैव तिर��?यग��? गच��?छति,

नोधरवमारोहति। पृथिवीविकारः पृथिवीमेव गच��?छति, आन��?तर��?यतः।           à¤®à¤¹à¤¾à¤­à¤¾à¤·ï¿½ï¿½?य (स��?थानेऽन��?तरतम, 1.1.49 सूत��?र पर)

आकृष��?टिशक��?तिः भास��?कराचार��?य द��?वितीय (1114 ईस��?वी) ने अपने ग��?रन��?थ सिद��?धान��?तशिरोमणि में ग��?र��?त��?वाकर��?षण के लि��? आकृष��?टिशक��?ति शब��?द का प��?रयोग किया है। भास��?कराचार��?य का कथन है कि पृथिवी में आकर��?षण शक��?ति है, अतः वह ऊपर की भारी वस��?त��? को अपनी ओर खींच लेती है। वह वस��?त��? पृथिवी पर गिरती ह��?ई सी लगती है। पृथिवी स��?वयं सूर��?य आदि के आकर��?षण से र��?की ह��?ई है, अतः वह निराधार आकाश में स��?थित है तथा अपने स��?थान से नहीं हटती ओर न गिरती है। वह अपनी कीली पर घूमती है।

                     

आकृष��?टिशक��?तिश��?च मही तया यत��? खस��?थं ग��?र��?ं स��?वाभिम��?खं स��?वशक��?त��?या।

आकृष��?यते तत��? पततीव भाति स��?मे समन��?तात��? क��?व पतत��?वियं खे।।                   सिद��?धान��?त. भ��?वन. 16

 

वराहमिहिर (476 ई.) ने अपने ग��?रन��?थ पंचसिद��?धान��?तिका और श��?रीपति (1039 ई.) ने अपने ग��?रन��?थ सिद��?धान��?तशेखर में यही भाव प��?रकट किया है कि तारासमूहरूपी पंजर में गोल पृथिवी इसी प��?रकार रूकी ह��?ई है, जैसे बड़े च��?म��?बकों के बीच में लोहा।

 

                पंचमहाभूतमयस��?तारा - गणपंजरे महीगोलः।

                खेऽयस��?कान��?तान��?तःस��?थो लोह इवावस��?थितो वृत��?तः।।                               पच. पृ. 31

आचार��?य श��?रीपति का कहना है कि पृथिवी की अन��?तरिक��?ष में स��?थिति उसी प��?रकार स��?वाभाविक है, जैसे सूर��?य में गर��?मी, चन��?द��?र में शीतलता और वाय��? में गतिशीलता। दो बड़े च��?म��?बकों के बीच में जैसे लोहे का गोला स��?थिर रहता है, उसी प��?रकार पृथिवी भी अपनी ध��?री पर रूकी ह��?ई है।

 

(कउष��?णत��?वमर��?कशिखि शिशिरत��?वमिन��?दौ,

                        à¤¨à¤¿à¤°ï¿½ï¿½?हेत��?रेवमवनेः स��?थितिरन��?तरिक��?षे।।                  सिद��?धान��?त. 15.21

 

(खनभस��?ययस��?कान��?तमहामणीनां मध��?ये स��?थितो लोहग��?णो यथास��?ते।

                        à¤†à¤§à¤¾à¤°à¤¶à¥‚न��?योऽपि तथैव सर��?वाधारो धरित��?र��?या ध��?र��?वमेव गोलः।।     सिद��?धान��?त. 15.22

 

पिप��?पलाद ऋषि (लगाभग 4000 वर��?ष ई. पूर��?व) ने प��?रश��?न-उपनिषद��? में पृथिवी में आकर��?षण शक��?ति का उल��?लेख किया है। अत��?व अपान वाय��? के द��?वारा मल-मूत��?र शरीर से नीचे की ओर जाता है। आचार��?य शंकर (700-800 ईसा पूर��?व) ने प��?रश��?नोपनिषद��? के भाष��?य में कहा है कि पृथिवी की आकर��?षण शक��?ति के द��?वारा ही अपान वाय��? मन��?ष��?य को रोके ह��?��? है, अन��?यथा वह आकाश में उड़ जाता।

 

(कपायूपस��?थे - अपानम��?।    प��?रश��?न. उप. 3.5

 

(खपृथिव��?यां या देवता सैषा प��?र��?षस��?यापानमवष��?टभ��?य.।    प��?रश��?न. 3.8

 

(ग)   तथा पृथिव��?याम��? अभिमानिनी या देवता  .. सैषा प��?र��?षस��?य अपान-

                        à¤µà¥ƒà¤¤ï¿½ï¿½?तिम��? आकृष��?य .. अपकर��?षणेन अन��?ग��?रहं क��?र��?वती वर��?तते। अन��?यथा

        à¤¹à¤¿ शरीरं ग��?र��?त��?वात��? पतेत��? सावकाशे वा उद��?गच��?छेत��?।

                                                                                                                  à¤¶à¤¾à¤‚कर भाष��?य, प��?रश��?न. 3.8

 

इससे स��?पष��?ट है कि पृथिवी के ग��?र��?त��?वाकर��?षण का सिद��?धान��?त भारतीयों को हजारों वर��?ष पूर��?व से ज��?ञात था।

 

यह उद��?धरण उपर��?य��?क��?त लेखक की प��?स��?तक के ज��?वार-भाटा अध��?याय का है। इसमें भी आकर��?षण शक��?ति का विधान, उल��?लेख व संकेत है। ऋग��?वेद में उल��?लेख है कि चन��?द��?रमा के आकर��?षण के कारण सम��?द��?र में ज��?वार आता है। सम��?द��?री जल के चढ़ाव को ज��?वार (Tide) और उतार को भाटा (Ebb) कहते हैं। ज��?वार-भाटा का मूल कारण ग��?र��?त��?वाकर��?षण है। संसार का प��?रत��?येक पदार��?थ दूसरे पदार��?थ को अपनी ओर आकृष��?ट करता है। प��?रत��?येक परमाण��? (atom) में आकर��?षण शक��?ति है, अतः वह दूसरे परमाण��? को अपनी ओर आकृष��?ट करता है। इसी नियम के अन��?सार पृथिवी, सूर��?य और चन��?द��?रमा तीनों ��?क दूसरे को अपनी ओर आकर��?षित करते हैं। इस सिद��?धान��?त का प��?रतिपादन ऋग��?वेद में किया गया है संसार में प��?रत��?येक पदार��?थ सदा ��?क-दूसरे को आकृष��?ट करता रहता है।

��?को अन��?यत��? - चकृषे विश��?वम��? आन��?ष��?क��?।          ऋग��?वेद 1.52.14

इसी नियम के अन��?सार सूर��?य और चन��?द��?रमा दोनों पृथिवी को अपनी-अपनी ओर आकर��?षित करते हैं। जल तरल है, अतः वह अधिक प��?रभावित होता है। अत��?व विशेषर��?प से पूर��?णिमा के दिन सम��?द��?र का जल अधिक ऊपर की ओर चढ़ता है। इसे ज��?वार कहते हैं। क��?छ समय बाद वह उतरने लगता है। उसे भाटा कहते हैं। यह आकर��?षण शक��?ति के कारण होता है।

उपर��?य��?क��?त उल��?लेखों व उदाहरणों से यह सिद��?ध है कि सृष��?टि के आरम��?भ से ही हमारे पूर��?वज ऋषियों को पृथिवी व अन��?य ग��?रहों में आकर��?षण शक��?ति के ग��?ण-धर��?म का ज��?ञान रहा है। इसके विपरीत हम विगत दो हजार वर��?षों की कालावधि में अस��?तित��?व में आयीं विभिन��?न मत व धर��?म की प��?स��?तकों में पृथिवी के वर��?णन को विज��?ञान विरूद��?ध पाते हैं। आकर��?षण शक��?ति विषयक सत��?य उल��?लेखों का उनमें होना तो सम��?भव ही नहीं है। इसका कारण यह है विगत 150 से 5000 वर��?षों में विश��?व में वेद विज��?ञान विल��?प��?त हो गया था और संसार में अज��?ञान रूपी अन��?धकार छाया ह��?आ था। इस अज��?ञान व अन��?धकार को दूर करने का श��?रेय उन��?नीसवीं शताब��?दी के वेदों के पारदर��?शी विद��?वान महर��?षि दयानन��?द सरस��?वती को है जिन��?होंने देश भर के अनेक विद��?वानों की संगति कर व यत��?र तत��?र उपलब��?ध वैदिक व इतर साहित��?य का अध��?ययन कर सत��?य ज��?ञान व उपासना को प��?राप��?त किया व उस सम��?पूर��?ण ज��?ञान का मन��?ष��?य व प��?राणीमात��?र के हित के लि��? उसका देश देशान��?तर में प��?रचार किया। सत��?य ज��?ञान व मत के प��?रचार के कारण सभी मतों के अधिकांश धर��?मान��?ध अन��?यायी उनके शत��?र��? बन गये थे जिनके षडयन��?त��?र की परिणति जोधप��?र में 29 सितम��?बर, 1883 की रात��?रि को उनको विषपान द��?वारा उनकी हत��?या के प��?रयास से ह��?ई और इसी कारण अजमेर में मंगलवार 30 अक��?तूबर, 1883 को उनकी मृत��?य��? ह��?ई। लेख को विराम देते ह��?��? हम निवेदन करना चाहते हैं वेद ��?वं वैदिक साहित��?य सारे संसार के सभी मानवों की सम��?पत��?ति है। इसमें ज��?ञान व विज��?ञान भरा ह��?आ है जिससे सबका कल��?याण व उन��?नति सम��?भव है। देश विदेश में बह��?तों ने इसका उपयोग किया भी है और अन��?य सभी को करके लाभ उठाना चाहिये। मन��?ष��?यों के कल��?याण का अन��?य कोई पथ à

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