गायतरी मनतर व उसका परामाणिक
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Manmohan Kumar AryaDate
21-Jul-2015Category
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Sandeep AryaUpload Date
22-Jul-2015Download PDF
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गायतरी मनतर आधयातमिक वं सामाजिक जीवन में क शरेषठवेदमनतर के रूप में विशव में जाना जाता है। इसमें दी गई शिकषा के मनषयमातर के लि कलयाणकारी होने के परति कोई à¤à¥€ मतावलमबी अपने आप को पृथक नहीं कर सकता जैसा कि अनेक मामलों में देखने में आता है। आज हम पाठकों के लि इसी परसिदध वेद मनतर जिसका कि रचयिता व उपदेषटा इस संसार का रचने व चलाने वाला तथा मनषयों सहित पराणीमातर को जनम देने व पालन करने वाला परमातमा है, को संसकृत व हिनदी में अरथ सहित परसतत कर रहे हैं। पहले मनतर को इसके सà¤à¥€ पदों व शबदों सहित देख लेते हैं।
गायतरी मनतरः ओ३म à¤à¥‚रà¤à¤µà¤ƒà¤¸à¤µà¤ƒà¥¤ ततसवितरवरेणयं à¤à¤°à¤—ो देवसय धीमहि। घियो यो नः परयोदयात।।
गायतरी मनतर में परथम जो (ओ३म) है यह ओंकार शबद परमेशवर का सवारवेततम नाम है, कयोंकि इसमें जो अ, उ और म अकषर मिलकर क (ओ३म) समदाय हआ है, इस क ओ३म नाम से परमेशवर के बहत नाम आते हैं जैसे-अकार से विराट, अगनि और विशववादि। उकार से हिरणयगरà¤, वाय और तैजसादि। मकार से ईशवर, आदितय और पराजञादि नामों का वाचक और गराहक है। वेदादि सतयशासतरों में इसका सा ही सपषट वयाखयान किया गया है। तीन महावयाहृतियों ‘à¤à¥‚ः, à¤à¤µà¤ƒ सवः’ के अरथ à¤à¥€ संकषेप से कहते हैं। - ‘à¤à¥‚रिति वै पराणः’ ‘यः पराणयति चराऽचरं जगत स à¤à¥‚ः सवयमà¤à¥‚रीशवरः’ जो सब जगत के जीवन का आधार, पराण से à¤à¥€ परिय और सवयमà¤à¥‚ है, उस पराण का वाचक होके ‘à¤à¥‚ः’ परमेशवर का नाम है। ‘à¤à¤µà¤°à¤¿à¤¤à¤¯à¤ªà¤¾à¤¨à¤ƒ’ ‘यः सरवं दःखमपानयति सोऽपानः’ जो सब दःखों से रहित, जिस के संग से जीवन सब दःखों से छूट जाते हैं इसलिये उस परमेशवर का नाम ‘à¤à¤µà¤ƒ’ है। ‘सवरिति वयानः’ ‘यो विविधं जगद वयानयति वयापनोति स वयानः’ जो नानाविध जगत में वयापक होके सब का धारण करता है, इसलिये उस परमेशवर का नाम ‘सवः’ है। ये तीनों वचन तैततिरीय आरणयक गरनथ के हैं।
(सवितः) ‘यः सनोतयतपादयति सरवं जगत स सविता तसय’ जो सब जगत का उतपादक और सब शवरय का दाता है। (देवसय) ‘यो दीवयति दीवयते वा स देवः’ जो सरवसखों का देनेहारा और जिस की परापति की कामना सब करते हैं। उस परमातमा का जो (वरेणयम) ‘वरततमरहम’ सवीकार करने योगय अतिशरेषठ(à¤à¤°à¤—ः) ‘शदधसवरूपम’ शदधसवरूप और पवितर करने वाला चेतन बरहमसवरूप है (तत) उसी परमातमा के सवरूप को हम लोग (धीमहि) ‘धरेमहि’ धारण करें। किस परयोजन के लिये कि (यः) ‘जगदीशवरः’ जो सविता देव परमातमा (नः) ‘असमाकम’ हमारी (धियः) ‘बदधीः’ बदधियों को (परचोदयात) ‘परेरयेत’ परेरणा करे अरथात बरे कामों से छड़ा कर अचछे कामों में परवृतत करे।
गायतरी मनतर का सरल संसकृत में à¤à¤¾à¤µà¤¾à¤°à¤¥à¤ƒ ‘हे परमेशवर ! हे सचचिदाननदसवरूप ! हे नितयशदधबदधमकतसवà¤à¤¾à¤µ ! हे अज निरंजन निरविकार ! हे सरवानतरयामिन ! हे सरवाधार जगतपते सकलजगदतपादक ! हे अनादे ! विशवमà¤à¤° सरववयापिन ! हे करूणामृतवारिधे ! सवितरदेवसय तव यदों à¤à¥‚रà¤à¤µà¤ƒ सवरवरेणयं à¤à¤°à¤—ोऽसति तदवयं धीमहि दधीमहि धयायेम वा कसमै परयोजनायेतयतराह। हे à¤à¤—वन यः सविता देवः परमेशवरो à¤à¤µà¤¾à¤¨à¤¨à¤¸à¤®à¤¾à¤•à¤‚ धियः परचोदयात स वासमाकं पूजय उपासनीय इषटदेवो à¤à¤µà¤¤ नातोऽनयं à¤à¤µà¤¤à¤²à¤¯à¤‚ à¤à¤µà¤¤à¥‹à¤½à¤§à¤¿ कं च कशचित कदाचिनमनयामहे।
गायतरी मनतर का à¤à¤¾à¤·à¤¾ में अरथः हे मनषयो ! जो सब समरथों में समरथ, सचचिदाननदाननतसवरूप, नितय शदध, नितय मकतसवà¤à¤¾à¤µ वाला, कृपासागर, ठीक-ठीक नयाय का करनेहारा, जनममरणादि कलेशरहित, आकाररहित, सब के घट-घट का जानने वाला, सब का धरतता, पिता, उतपादक, अननादि से विशव का पोषण करनेहारा, सकल शवरययकत, जगत का निरमाता, शदधसवरूप और जो परापति की कामना करने योगय है, उस परमातमा का जो शदध चेतनसवरूप है उसी को हम धारण करें। इस परयोजन के लिये कि वह परमेशवर हमारे आतमा और बदधियों का अनतरयामीसवरूप से हम को दषटाचार अधमरमयकत मारग से हटा कर शरेषठाचारयकत सतय मारग में चलावे, उस को छोड़कर दूसरे किसी वसत का धयान हम लोग नहीं करें। कयोंकि न कोई उसके तलय और न अधिक है। वही हमारा पिता, राजा, नयायाधीश और सब सखों का देनेहारा है।
यह गायतरी मनतर का संकषिपतारथ है जो महरषि दयाननद सरसवती जी महाराज ने सतयारथ परकाश में किया है। यह इतना सनदर, सारथक व सारगरà¤à¤¿à¤¤ अरथ सरव परथम महरषि दयाननद ने सन 1874 में सतयारथ परकाश गरनथ को लिखते समय किया था। इतना सनदर अरथ उनसे पूरव अनयतर उपलबघ नहीं होता। यह गायतरी मनतर गरू मनतर à¤à¥€ कहलाता है। कयोंकि इसी मनतर का परथम माता अपने बालक को घर में और गरूकल वा पाठशाला में आचारय बरहमचारी को उपदेश करते थे। मनतर में ईशवर के सवरूप व उसके गण-करम-सवà¤à¤¾à¤µ पर परकाश डाला गया है। इसके साथ हि इस मनतर में जीवन को सफल करने के लि ईशवर दवारा बदधि को सदपरेरणा देने की परारथना की गई है। बचचों को परेरणा देने का कारय माता-पिता व आचारय करते हैं। परमातमा इन सबका à¤à¥€ आचारय व गरू होने के कारण उपासक व याचक दवारा उस परम आचारय ईशवर से ही बदधि को सनमारग में चलाने की परेरणा करने की परारथना की गई है। परमातमा आतमा के à¤à¥€à¤¤à¤° सरवानतरयामी रूप से विदयमान है। वह हमारे मन के परतयेक विचार को जानता है, परारथना को सनता है और हमारे करमों को जानता है। अतः उससे की गई परारथना निःसनदेह सनी à¤à¥€ जाती है और पातरता के अनसार पूरी à¤à¥€ की जाती है। महरषि दयाननद, मरयादा परूषोततम शरी रामचनदर, योगेशवर शरी कृषण जी, आचारय चाणकय व समसत ऋषि-मनि ईशवर से गायतरी मनतर दवारा शरेषठबदधि परदान करने व उसे परेरित करने की परारथना करते आये हैं। हम à¤à¥€ गायतरी मनतर के अरथ सहित जप व ईशवर का धयान कर इषट को परापत कर सकते हैं। हम आशा करते हैं कि इस गायतरी मनतर के अरथ से अनेक पाठकों को लाठहोगा।
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